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TASMAC घोटाला: बिना सबूत की गई छापेमारी पर कोर्ट ने लगाई ED को फटकार - COURT FINDS ED ACTION ARBITRARY

मद्रास हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को अवैध ठहराते हुए जांच बंद करने और जब्त दस्तावेज लौटाने का आदेश दिया.

मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : June 20, 2025 at 4:14 PM IST

2 Min Read

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई को अवैध करार देते हुए फिल्म निर्माता आकाश भास्करन और व्यवसायी विक्रम रविंद्रन के खिलाफ चल रही धनशोधन (Money Laundering) की जांच को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि ED द्वारा की गई तलाशी, सीलिंग और जब्ती की कार्रवाई कानूनन गलत और सबूतों से रहित थी.

न्यायालय ने की प्रवर्तन निदेशालय की कड़ी आलोचना
मुख्य न्यायमूर्ति एम.एस. रमेश और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मी नारायणन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि, किसी भी संपत्ति को सील करने से पहले पर्याप्त सबूत और कानूनी आधार होना चाहिए. अदालत ने ED द्वारा दायर रिपोर्ट को अधूरी और कमजोर बताया, जिसमें तलाशी या जब्ती का कोई ठोस कारण नहीं दर्शाया गया था.

अदालत ने सीलिंग को अवैध ठहराया
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रवर्तन निदेशालय को तलाशी के दौरान प्रॉपर्टी सील करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की संपत्ति में हस्तक्षेप करना एक गंभीर संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, खासकर जब ऐसा बिना पर्याप्त सबूतों और आदेशों के किया जाए.

प्रवर्तन निदेशालय ने स्वीकार की गलती
कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद, प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश वकील ने स्वीकार किया कि एजेंसी को संबंधित परिसरों को सील करने का अधिकार नहीं था. उन्होंने अदालत को सूचित किया कि सीलिंग का आदेश वापस लिया जा रहा है, और जब्त किए गए दस्तावेज तथा अन्य सामग्रियाँ यथाशीघ्र लौटा दी जाएंगी.

अदालत का स्पष्ट आदेश
अंततः न्यायालय ने यह आदेश जारी किया कि, आकाश भास्करन और विक्रम रविंद्रन के खिलाफ ED की चल रही जांच तुरंत रोकी जाए. धनशोधन का कोई स्पष्ट कारण या सबूत नहीं मिला, जिससे ED की कार्रवाई को औचित्य नहीं दिया जा सकता. ED द्वारा जब्त किए गए दस्तावेज और सामग्री उनके असली मालिकों को बिना किसी क्षति के लौटाई जाए. भविष्य में इस प्रकार की कार्रवाई करते समय कानून का पालन अनिवार्य रूप से किया जाए. कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि सरकारी एजेंसियों को अपनी सीमाओं का पालन करना होगा, और जांच-पड़ताल केवल स्पष्ट सबूतों और उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत ही की जा सकती है.

'यह भी पढ़े- ठग लाइफ' की रिलीज के खिलाफ धमकी देने वालों के खिलाफ एक्शन लें, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से कहा

चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई को अवैध करार देते हुए फिल्म निर्माता आकाश भास्करन और व्यवसायी विक्रम रविंद्रन के खिलाफ चल रही धनशोधन (Money Laundering) की जांच को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि ED द्वारा की गई तलाशी, सीलिंग और जब्ती की कार्रवाई कानूनन गलत और सबूतों से रहित थी.

न्यायालय ने की प्रवर्तन निदेशालय की कड़ी आलोचना
मुख्य न्यायमूर्ति एम.एस. रमेश और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मी नारायणन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि, किसी भी संपत्ति को सील करने से पहले पर्याप्त सबूत और कानूनी आधार होना चाहिए. अदालत ने ED द्वारा दायर रिपोर्ट को अधूरी और कमजोर बताया, जिसमें तलाशी या जब्ती का कोई ठोस कारण नहीं दर्शाया गया था.

अदालत ने सीलिंग को अवैध ठहराया
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रवर्तन निदेशालय को तलाशी के दौरान प्रॉपर्टी सील करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की संपत्ति में हस्तक्षेप करना एक गंभीर संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, खासकर जब ऐसा बिना पर्याप्त सबूतों और आदेशों के किया जाए.

प्रवर्तन निदेशालय ने स्वीकार की गलती
कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद, प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश वकील ने स्वीकार किया कि एजेंसी को संबंधित परिसरों को सील करने का अधिकार नहीं था. उन्होंने अदालत को सूचित किया कि सीलिंग का आदेश वापस लिया जा रहा है, और जब्त किए गए दस्तावेज तथा अन्य सामग्रियाँ यथाशीघ्र लौटा दी जाएंगी.

अदालत का स्पष्ट आदेश
अंततः न्यायालय ने यह आदेश जारी किया कि, आकाश भास्करन और विक्रम रविंद्रन के खिलाफ ED की चल रही जांच तुरंत रोकी जाए. धनशोधन का कोई स्पष्ट कारण या सबूत नहीं मिला, जिससे ED की कार्रवाई को औचित्य नहीं दिया जा सकता. ED द्वारा जब्त किए गए दस्तावेज और सामग्री उनके असली मालिकों को बिना किसी क्षति के लौटाई जाए. भविष्य में इस प्रकार की कार्रवाई करते समय कानून का पालन अनिवार्य रूप से किया जाए. कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि सरकारी एजेंसियों को अपनी सीमाओं का पालन करना होगा, और जांच-पड़ताल केवल स्पष्ट सबूतों और उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत ही की जा सकती है.

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