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जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तानी महिलाओं को वापस भेजने का विरोध, क्या बोले तारिगामी और महबूबा - DEPORTATION OF PAKISTANI WOMEN

जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं ने पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजे जाने वाले कदम की आलोचना करते हुए इसे अमानवीय करार दिया.

महबूबा मुफ्ती और  एमवाई तारिगामी, फाइल फोटो
महबूबा मुफ्ती और एमवाई तारिगामी, फाइल फोटो (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : April 29, 2025 at 8:33 PM IST

4 Min Read

श्रीनगर: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत में पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान कर उन्हें उनके देश भेजे जाने का सिलसिला जारी है. पहलगाम हमले के बाद सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार करते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को जल्द से जल्द पाकिस्तानियों की पहचान कर उन्हें भारत से निकालने का निर्देश दिया था. वहीं, जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे अमानवीय करार दिया.

वरिष्ठ सीपीआई(एम) नेता और कुलगाम से विधायक एमवाई तारिगामी ने कहा कि, यह निर्वासन अभियान अमानवीय है. उन्होंने कहा कि, स्थानीय कश्मीरी पुरुषों से विवाहित इन महिलाओं ने यहां अपना जीवन बनाया है, परिवार का पालन-पोषण किया है और यहां आने के बाद से ही शांतिपूर्वक रह रही हैं.

उन्होंने कहा कि, ये महिलाएं हमेशा कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में रहना चाहती हैं. उन्हें जबरन वापस भेजने से उनके परिवार में अशांति फैलेगी और उन्हें गहरी मानसिक पीड़ा होगी. तारिगामी ने कहा कि 2006 में, सीपीआई(एम) ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें "एलओसी पार कर गए युवाओं की वापसी को सुविधाजनक बनाने के उपायों का आह्वान किया गया था.

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी ट्विटर के ज़रिए केंद्र से 'दयालु दृष्टिकोण अपनाने' का आग्रह किया है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, "भारत, खासकर जम्मू कश्मीर से सभी पाकिस्तानी नागरिकों को निर्वासित करने के हालिया सरकारी निर्देश ने गंभीर मानवीय चिंताओं को जन्म दिया है. इसमें कई महिलाएं शामिल हैं जो 30 से 40 साल पहले भारत आई थीं, भारतीय नागरिकों से शादी की, परिवार बनाए और लंबे समय से हमारे समाज का हिस्सा रही हैं."

महबूबा ने केंद्र से इस फैसले पर पुनर्विचार करने और महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों से जुड़े मामलों में "दयालु और मानवीय दृष्टिकोण" अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि, "दशकों से भारत में शांतिपूर्वक रह रहे लोगों को निर्वासित करना न केवल अमानवीय होगा बल्कि उन परिवारों पर गहरा भावनात्मक और शारीरिक संकट भी डालेगा जो अब कोई दूसरा घर नहीं जानते."

गृह मंत्रालय (एमएचए) के 25 अप्रैल को जारी आदेश के अनुसार, देश में अवैध रूप से रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल तक देश छोड़ने या सख्त कानूनी कार्रवाई का सामना करने का निर्देश दिया गया है. जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकारियों का कहना है कि निर्वासन का सामना करने वालों में से 60 महिलाएं और बच्चे हैं, जो 2010 की पुनर्वास नीति के तहत अपने कश्मीरी पतियों के साथ लौटी थीं.

उन्होंने कहा "निर्वासन का सामना करने वाले 60 लोगों में से 36 श्रीनगर के निवासी हैं, 9 बारामुला और 9 कुपवाड़ा से हैं. वैसे ही चार बडगाम में और दो शोपियां में हैं."उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान शुरू की गई 2010 की पुनर्वास नीति, उन कश्मीरी पुरुषों की वापसी की सुविधा के लिए बनाई गई थी, जो हथियार प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन बाद में आतंकवाद को छोड़कर मुख्यधारा के जीवन में वापस लौटना चाहते थे.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ऐसे 4,587 व्यक्तियों में से केवल 489 ही वापस लौटे, जिनमें से कई नेपाल जैसे तीसरे देशों के माध्यम से लौटे. निर्वासित लोगों में शमीमा अख्तर भी शामिल हैं, जो कांस्टेबल मुदासिर अहमद शेख की मां हैं, जो शौर्य चक्र पुरस्कार विजेता हैं. वह मई 2022 में बारामुला में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के दौरान मारे गए थे.

ये भी पढ़ें: करारा जवाब दिया जाएगा! पीएम मोदी ने तीनों सेना को दी खुली छूट, कहा- तरीका, टारगेट और टाइम तय करने की दी आजादी

श्रीनगर: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत में पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान कर उन्हें उनके देश भेजे जाने का सिलसिला जारी है. पहलगाम हमले के बाद सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार करते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को जल्द से जल्द पाकिस्तानियों की पहचान कर उन्हें भारत से निकालने का निर्देश दिया था. वहीं, जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे अमानवीय करार दिया.

वरिष्ठ सीपीआई(एम) नेता और कुलगाम से विधायक एमवाई तारिगामी ने कहा कि, यह निर्वासन अभियान अमानवीय है. उन्होंने कहा कि, स्थानीय कश्मीरी पुरुषों से विवाहित इन महिलाओं ने यहां अपना जीवन बनाया है, परिवार का पालन-पोषण किया है और यहां आने के बाद से ही शांतिपूर्वक रह रही हैं.

उन्होंने कहा कि, ये महिलाएं हमेशा कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में रहना चाहती हैं. उन्हें जबरन वापस भेजने से उनके परिवार में अशांति फैलेगी और उन्हें गहरी मानसिक पीड़ा होगी. तारिगामी ने कहा कि 2006 में, सीपीआई(एम) ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें "एलओसी पार कर गए युवाओं की वापसी को सुविधाजनक बनाने के उपायों का आह्वान किया गया था.

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी ट्विटर के ज़रिए केंद्र से 'दयालु दृष्टिकोण अपनाने' का आग्रह किया है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, "भारत, खासकर जम्मू कश्मीर से सभी पाकिस्तानी नागरिकों को निर्वासित करने के हालिया सरकारी निर्देश ने गंभीर मानवीय चिंताओं को जन्म दिया है. इसमें कई महिलाएं शामिल हैं जो 30 से 40 साल पहले भारत आई थीं, भारतीय नागरिकों से शादी की, परिवार बनाए और लंबे समय से हमारे समाज का हिस्सा रही हैं."

महबूबा ने केंद्र से इस फैसले पर पुनर्विचार करने और महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों से जुड़े मामलों में "दयालु और मानवीय दृष्टिकोण" अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि, "दशकों से भारत में शांतिपूर्वक रह रहे लोगों को निर्वासित करना न केवल अमानवीय होगा बल्कि उन परिवारों पर गहरा भावनात्मक और शारीरिक संकट भी डालेगा जो अब कोई दूसरा घर नहीं जानते."

गृह मंत्रालय (एमएचए) के 25 अप्रैल को जारी आदेश के अनुसार, देश में अवैध रूप से रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल तक देश छोड़ने या सख्त कानूनी कार्रवाई का सामना करने का निर्देश दिया गया है. जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकारियों का कहना है कि निर्वासन का सामना करने वालों में से 60 महिलाएं और बच्चे हैं, जो 2010 की पुनर्वास नीति के तहत अपने कश्मीरी पतियों के साथ लौटी थीं.

उन्होंने कहा "निर्वासन का सामना करने वाले 60 लोगों में से 36 श्रीनगर के निवासी हैं, 9 बारामुला और 9 कुपवाड़ा से हैं. वैसे ही चार बडगाम में और दो शोपियां में हैं."उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान शुरू की गई 2010 की पुनर्वास नीति, उन कश्मीरी पुरुषों की वापसी की सुविधा के लिए बनाई गई थी, जो हथियार प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन बाद में आतंकवाद को छोड़कर मुख्यधारा के जीवन में वापस लौटना चाहते थे.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ऐसे 4,587 व्यक्तियों में से केवल 489 ही वापस लौटे, जिनमें से कई नेपाल जैसे तीसरे देशों के माध्यम से लौटे. निर्वासित लोगों में शमीमा अख्तर भी शामिल हैं, जो कांस्टेबल मुदासिर अहमद शेख की मां हैं, जो शौर्य चक्र पुरस्कार विजेता हैं. वह मई 2022 में बारामुला में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के दौरान मारे गए थे.

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