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'व्यक्ति ने दुष्कर्म पीड़िता से शादी की और उसके चार बच्चे हैं', SC ने 27 साल बाद आरोप मुक्त किया - SUPREME COURT NEWS

सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की दोषसिद्धि को रद्द करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र और शक्तियों का प्रयोग किया.

Man married the rape survivor, have four children, SC clears him of rape charges after 27 years
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 6, 2025, 8:49 PM IST

Updated : Feb 7, 2025, 8:02 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कठोर कानूनी प्रक्रियाओं के स्थान पर न्यायिक व्यावहारिकता अपनाने का निर्णय लिया और फैसला दिया कि वह जमीनी हकीकत से आंखें मूंदकर एक दंपती के पारिवारिक जीवन में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता. शीर्ष अदालत ने एक आदिवासी महिला के अपहरण और दुष्कर्म के लिए एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया. व्यक्ति और महिला दो दशक से अधिक समय से शादी के बंधन हैं और उनके चार बच्चे भी हैं.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अपने निर्णय में कहा, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि इस मामले में अपीलकर्ता-अभियुक्त ने बाद में दूसरी प्रतिवादी (महिला) से विवाह किया और उनके विवाह से चार बच्चे हैं, हम पाते हैं कि इस मामले के विशिष्ट तथ्य और परिस्थितियां हमें उपरोक्त आदेशों में इस मामले के पहले के निर्देशों का पालन करके भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र और शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करती हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 उसे प्रदत्त एक विशेष शक्ति है. पीठ ने कहा, "संविधान का अनुच्छेद 142 (1) सुप्रीम कोर्ट को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए जरूरी आदेश पारित करने का अधिकार देता है."

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि इस शक्ति का प्रयोग निस्संदेह संयम से किया जाना चाहिए और पक्षों के बीच न्याय करने के लिए मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए.

पीठ ने 2022 के एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, उसका मानना है कि अपीलकर्ता जो शिकायतकर्ता (prosecutrix) का मामा है, की दोषसिद्धि और सजा को बाद की घटनाओं के मद्देनजर रद्द किया जाना चाहिए, जो उसके संज्ञान में लाई गई हैं.

2022 के आदेश में कहा गया, "यह न्यायालय जमीनी हकीकत से आंखें मूंदकर अपीलकर्ता और अभियोक्ता के खुशहाल पारिवारिक जीवन में खलल नहीं डाल सकता. हमें तमिलनाडु में लड़की के मामा से विवाह करने की प्रथा के बारे में बताया गया है."

पीठ ने 2024 के एक अलग आदेश पर भी विचार किया, जिसमें कहा गया था कि चूंकि अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता ने एक-दूसरे से विवाह किया है, इसलिए हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय की पुष्टि करने से आरोपी अपीलकर्ता को जेल भेजे जाने पर विनाशकारी परिणाम होंगे, जिससे शिकायतकर्ता के साथ उसका वैवाहिक संबंध खतरे में पड़ सकता है.

शीर्ष अदालत ने 2024 के आदेश में कहा, "जिसके मद्देनजर, हम आरोपी अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को रद्द करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए इच्छुक हैं, जैसा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किया गया है और हाईकोर्ट द्वारा संशोधित किया गया है."

इन आदेशों का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी को पारित आदेश में कहा, "उपर्युक्त पैराग्राफ को पढ़ने पर, हम पाते हैं कि उन मामलों में भी, अपीलकर्ता/आरोपी और शिकायतकर्ता/पीड़ित ने एक-दूसरे से विवाह किया था, जैसा कि इस मामले में हुआ है. इसलिए, हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं और अपीलकर्ता पर लगाई गई सजा के साथ-साथ दोषसिद्धि को भी रद्द करते हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता के वकील की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि अगर उनके मुवक्किल की दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है तो इससे और अधिक अन्याय होगा.

1997 में हुई थी घटना
आदिवासी समुदाय से आने वाले अपीलकर्ता को 1997 में महिला (महिला उस समय नाबालिग थी) का अपहरण करने और उसके साथ दुष्कर्म करने का दोषी ठहराया गया था. ट्रायल कोर्ट ने उसे 1999 में दोषी ठहराया और उसे सात साल की जेल की सजा सुनाई. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दो साल बाद उसे जमानत दे दी. जमानत मिलने के बाद, व्यक्ति ने 2003 में महिला से शादी कर ली और अपना परिवार शुरू कर दिया.

2019 में, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए व्यक्ति को तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया. इसके बाद व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और सरेंडर से छूट मांगी. शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि पुरुष और महिला ने विवाह कर लिया है और उनका एक परिवार है. राज्य सरकार द्वारा इसकी पुष्टि करने के बाद, अक्टूबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उसे जमानत दे दी.

राज्य सरकार के वकील ने व्यक्ति द्वारा दायर अपील का विरोध करते हुए तर्क दिया कि कथित अपराध के समय महिला नाबालिग थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाया और दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया.

यह भी पढ़ें- महिला अपने दूसरे पति से भरण-पोषण पाने की हकदार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कठोर कानूनी प्रक्रियाओं के स्थान पर न्यायिक व्यावहारिकता अपनाने का निर्णय लिया और फैसला दिया कि वह जमीनी हकीकत से आंखें मूंदकर एक दंपती के पारिवारिक जीवन में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता. शीर्ष अदालत ने एक आदिवासी महिला के अपहरण और दुष्कर्म के लिए एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया. व्यक्ति और महिला दो दशक से अधिक समय से शादी के बंधन हैं और उनके चार बच्चे भी हैं.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अपने निर्णय में कहा, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि इस मामले में अपीलकर्ता-अभियुक्त ने बाद में दूसरी प्रतिवादी (महिला) से विवाह किया और उनके विवाह से चार बच्चे हैं, हम पाते हैं कि इस मामले के विशिष्ट तथ्य और परिस्थितियां हमें उपरोक्त आदेशों में इस मामले के पहले के निर्देशों का पालन करके भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र और शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करती हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 उसे प्रदत्त एक विशेष शक्ति है. पीठ ने कहा, "संविधान का अनुच्छेद 142 (1) सुप्रीम कोर्ट को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए जरूरी आदेश पारित करने का अधिकार देता है."

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि इस शक्ति का प्रयोग निस्संदेह संयम से किया जाना चाहिए और पक्षों के बीच न्याय करने के लिए मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए.

पीठ ने 2022 के एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, उसका मानना है कि अपीलकर्ता जो शिकायतकर्ता (prosecutrix) का मामा है, की दोषसिद्धि और सजा को बाद की घटनाओं के मद्देनजर रद्द किया जाना चाहिए, जो उसके संज्ञान में लाई गई हैं.

2022 के आदेश में कहा गया, "यह न्यायालय जमीनी हकीकत से आंखें मूंदकर अपीलकर्ता और अभियोक्ता के खुशहाल पारिवारिक जीवन में खलल नहीं डाल सकता. हमें तमिलनाडु में लड़की के मामा से विवाह करने की प्रथा के बारे में बताया गया है."

पीठ ने 2024 के एक अलग आदेश पर भी विचार किया, जिसमें कहा गया था कि चूंकि अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता ने एक-दूसरे से विवाह किया है, इसलिए हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय की पुष्टि करने से आरोपी अपीलकर्ता को जेल भेजे जाने पर विनाशकारी परिणाम होंगे, जिससे शिकायतकर्ता के साथ उसका वैवाहिक संबंध खतरे में पड़ सकता है.

शीर्ष अदालत ने 2024 के आदेश में कहा, "जिसके मद्देनजर, हम आरोपी अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को रद्द करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए इच्छुक हैं, जैसा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किया गया है और हाईकोर्ट द्वारा संशोधित किया गया है."

इन आदेशों का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी को पारित आदेश में कहा, "उपर्युक्त पैराग्राफ को पढ़ने पर, हम पाते हैं कि उन मामलों में भी, अपीलकर्ता/आरोपी और शिकायतकर्ता/पीड़ित ने एक-दूसरे से विवाह किया था, जैसा कि इस मामले में हुआ है. इसलिए, हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं और अपीलकर्ता पर लगाई गई सजा के साथ-साथ दोषसिद्धि को भी रद्द करते हैं."

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता के वकील की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि अगर उनके मुवक्किल की दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है तो इससे और अधिक अन्याय होगा.

1997 में हुई थी घटना
आदिवासी समुदाय से आने वाले अपीलकर्ता को 1997 में महिला (महिला उस समय नाबालिग थी) का अपहरण करने और उसके साथ दुष्कर्म करने का दोषी ठहराया गया था. ट्रायल कोर्ट ने उसे 1999 में दोषी ठहराया और उसे सात साल की जेल की सजा सुनाई. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दो साल बाद उसे जमानत दे दी. जमानत मिलने के बाद, व्यक्ति ने 2003 में महिला से शादी कर ली और अपना परिवार शुरू कर दिया.

2019 में, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए व्यक्ति को तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया. इसके बाद व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और सरेंडर से छूट मांगी. शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि पुरुष और महिला ने विवाह कर लिया है और उनका एक परिवार है. राज्य सरकार द्वारा इसकी पुष्टि करने के बाद, अक्टूबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उसे जमानत दे दी.

राज्य सरकार के वकील ने व्यक्ति द्वारा दायर अपील का विरोध करते हुए तर्क दिया कि कथित अपराध के समय महिला नाबालिग थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाया और दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया.

यह भी पढ़ें- महिला अपने दूसरे पति से भरण-पोषण पाने की हकदार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Last Updated : Feb 7, 2025, 8:02 AM IST
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