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वक्फ एक्ट पर कल भी सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या वह मुसलमानों को हिंदू ट्रस्ट का हिस्सा बनने की अनुमति देगा? - SUPREME COURT

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई की.

supreme court
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By Sumit Saxena

Published : April 16, 2025 at 2:50 PM IST

9 Min Read

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने बुधवार को मामले की सुनवाई की. ताजा जानकारी के मुताबिक आज की सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट कल यानी गुरुवार को भी इस केस की सुनवाई करेगा. बता दें, याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से अंतरिम आदेश देने की मांग की थी.

वहीं, सुनवाई के दौरान सुनवाई कर रही जजों की पीठ ने दो पहलुओं को रेखांकित किया. सीजेआई ने कहा, "दो पहलू हैं जिन पर हम दोनों पक्षों से विचार करने के लिए कहना चाहते हैं. पहला, क्या हमें इसे सुनना चाहिए या इसे हाई कोर्ट को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं? "सीजेआई ने कहा, "दूसरा बिंदु हमें पहले मुद्दे को तय करने में कुछ हद तक मदद कर सकता है."

'आस्था में हस्तेक्षेप की कोशिश'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ एक्ट में मुस्लिम उत्तराधिकारों में हस्तक्षेप है. उन्होंने कोर्ट में कहा कि यह आस्था में हस्तेक्षेप की कोशिश है और यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है.

'कैसे तय होगा मैं मुसलमान हूं या नहीं'
अपनी शुरुआती दलीलों में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अनुच्छेद 26 का हवाला दिया जो धार्मिक संप्रदायों को अपने मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता से संबंधित है. उन्होंने कहा, "कृपया यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एक्ट की धारा 3आर देखें. कृपया वक्फ की परिभाषा देखें. वक्फ का मतलब है किसी व्यक्ति द्वारा स्थायी समर्पण जो दर्शाता है या प्रदर्शित करता है... कि वह पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा है. इसलिए अगर मैं वक्फ बनाना चाहता हूं तो मुझे दिखाना होगा कि मैं पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हूं और स्टेट यह कैसे तय करेगी कि मैं मुसलमान हूं या नहीं..."

'सभी पर लागू होता है अनुच्छेद 26'
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "स्टेट कौन होता है यह बताने वाला कि मेरे धर्म में उत्तराधिकार कैसे होगा?" सिब्बल का जवाब देते हुए CJI खन्ना ने कहा, "लेकिन हिंदू धर्म में ऐसा होता है.. इसलिए संसद ने मुसलमानों के लिए कानून बनाया है.. हो सकता है कि यह हिंदुओं जैसा न हो… अनुच्छेद 26 इस मामले में कानून बनाने पर रोक नहीं लगाएगा.. अनुच्छेद 26 यूनिवर्सल है और यह इस मायने में धर्मनिरपेक्ष है कि यह सभी पर लागू होता है."

'अनुच्छेद 26 का उल्लंघन'
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, "वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन है. यह कानून इस देश के 200 करोड़ लोगों की आस्था का संसदीय अतिक्रमण है.

हाई कोर्ट खुद वक्फ की संपत्ति पर बना है-CJI
सीजेआई संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "जब हम दिल्ली हाई कोर्ट में थे, तो हमें बताया गया था कि हाई कोर्ट खुद वक्फ की संपत्ति पर बना है और ओबेरॉय होटल भी वक्फ की जमीन पर बना है. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह यह नहीं कह रहे हैं कि वक्फ बाय यूजर गलत है, लेकिन वास्तव में यह है कंसर्न है." वहीं, जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि प्रशासन आदि से संबंधित अनुच्छेद 26 के शब्दों को आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता.

रोक लगाने की मांग
वरिष्ठ अभिषेक मनु सिंघवी ने अयोध्या फैसले के एक पैराग्राफ का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ बाय यूजर एक बहुत पुराना कॉन्सेप्ट है. सिंघवी ने कहा कि अगर कोई कहता है कि संसद वक्फ है, तो अदालत इसे स्वीकार नहीं करेगी, लेकिन यह अवधारणा गलत नहीं है. इतना ही नहीं उन्होंने एक्ट पर रोक लगाने की मांग की.

'वक्फ इस्लाम के लिए आवश्यक'
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि संशोधन मुसलमानों के धर्म का पालन करने के अधिकार का उल्लंघन करता है और वक्फ इस्लाम का एक आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस है.

'सरकार ने JPC गठित की थी'
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ एक्ट के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) बनाई गई थी, जिसने 38 बैठकें कीं. इसने कई क्षेत्रों और शहरों का दौरा किया, परामर्श किया और लाखों सुझावों की जांच की. फिर यह दोनों सदनों में गया और फिर कानून पारित किया गया. मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड एक चैरिटी कमीशन है.

सीजेआई ने मेहता से क्या कहा?
इस पर सीजेआई ने मेहता से कहा, यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जब हिंदुओं इंडोमेंट की बात आती है, तो यह आम तौर पर हिंदुओं के इंडोमेंट होते हैं. सीजेआई ने मेहता से कहा, क्या वक्फ बाय यूजर को शून्य या अस्तित्वहीन घोषित किया जाता है, अगर यूजर द्वारा वक्फ पहले से ही स्थापित है, तो क्या इसे अमान्य घोषित किया जाएगा या अस्तित्व में रहना जारी रहेगा? सीजेआई ने कहा कि जामा मस्जिद समेत सभी प्राचीन स्मारक संरक्षित रहेंगे.

'वक्फ बाय यूजर्स को खत्म करने से समस्या पैदा होगी'
CJI ने मेहता से कहा, "अगर आप वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियों को डीनोटिफाई करने जा रहे हैं, तो यह एक मुद्दा होगा." आप यूजर द्वारा वक्फ का रजिस्ट्रेशन कैसे करेंगे? क्योंकि दस्तावेज की कमी हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "वक्फ बाय यूजर्स को खत्म करने से समस्या पैदा होगी, हालांकि, इसका कुछ दुरुपयोग भी हुआ है.".

कानून में मुस्लिम समाज के सभी संप्रदायों को प्रतिनिधित्व
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि नया कानून सबको लेकर चलने वाला है. पहले इसमें सिर्फ शिया और सुन्नी थे, जबकि अब इसमें सबको जगह मिलेगी. कानून में मुस्लिम समाज के सभी संप्रदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और पीठ ने बोर्ड की संरचना के बारे में बहस की. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "उनके (याचिकाकर्ताओं) तर्क के अनुसार माननीय आप भी इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते.

हिंदू धार्मिक बोर्ड ेमें शामिल होंगे गैर-मुस्लिम
सीजेआई ने कहा,"जब हम यहां निर्णय लेने के लिए बैठते हैं, तो हम अपना धर्म तरफ रख देते हैं. हम धर्मनिरपेक्ष हैं. हम एक ऐसे बोर्ड की बात कर रहे हैं जो धार्मिक मामलों का प्रबंधन कर रहा है." सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है. क्या गैर-हिंदू को हिंदू इंडोमेंट में शामिल कर सकते हैं. क्या गैर हिंदू- हिंदू धार्मिक बोर्ड का हिस्सा होंगे.

इस बीच एक वादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि वक्फ बाय यूजर इस्लाम की स्थापित प्रथा है, इसे छीना नहीं जा सकता.

कोर्ट के सामने कई विकल्प
सीजेआई ने कहा कि कोर्ट के सामने कई विकल्प हैं. हम इस चुनौती पर निर्णय लें, हम याचिकाओं को एक सामान्य हाई कोर्ट में ट्रांसफर करें या इन याचिकाओं को लेकर फैसला लें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी संपत्ति वक्फ बाय यूजर या कोर्ट द्वारा वक्फ घोषित की गई है, उसे गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक ​​बोर्ड और काउंसिल के गठन का सवाल है, पदेन सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है, उन्हें धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य सदस्य मुस्लिम होने चाहिए.

हाल में सदन से पास हुआ था एक्ट
बता दें कि केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया, जिसे दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद से पारित होने के बाद 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली.

विधेयक को राज्य सभा में पारित किया गया, जिसमें 128 सदस्यों ने इसके पक्ष में तथा 95 ने इसके विरोध में मतदान किया, जबकि लोकसभा में इसे 288 सदस्यों का समर्थन मिला और 232 सांसदों ने इसको विरोध किया.

अधिनियम की वैधता को चुनौती
इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड , जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी तथा मोहम्मद जावेद सहित 72 याचिकाएं दायर की गई हैं.

केंद्र ने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर की तथा मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की मांग की. किसी पक्ष द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसे सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए.

यह भी पढ़ें- 'हम टकराव नहीं चाहते', वक्फ एक्ट का समर्थन करने वालों को हिमंत बिस्वा सरमा ने दी यह सलाह

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने बुधवार को मामले की सुनवाई की. ताजा जानकारी के मुताबिक आज की सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट कल यानी गुरुवार को भी इस केस की सुनवाई करेगा. बता दें, याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से अंतरिम आदेश देने की मांग की थी.

वहीं, सुनवाई के दौरान सुनवाई कर रही जजों की पीठ ने दो पहलुओं को रेखांकित किया. सीजेआई ने कहा, "दो पहलू हैं जिन पर हम दोनों पक्षों से विचार करने के लिए कहना चाहते हैं. पहला, क्या हमें इसे सुनना चाहिए या इसे हाई कोर्ट को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं? "सीजेआई ने कहा, "दूसरा बिंदु हमें पहले मुद्दे को तय करने में कुछ हद तक मदद कर सकता है."

'आस्था में हस्तेक्षेप की कोशिश'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ एक्ट में मुस्लिम उत्तराधिकारों में हस्तक्षेप है. उन्होंने कोर्ट में कहा कि यह आस्था में हस्तेक्षेप की कोशिश है और यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है.

'कैसे तय होगा मैं मुसलमान हूं या नहीं'
अपनी शुरुआती दलीलों में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अनुच्छेद 26 का हवाला दिया जो धार्मिक संप्रदायों को अपने मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता से संबंधित है. उन्होंने कहा, "कृपया यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एक्ट की धारा 3आर देखें. कृपया वक्फ की परिभाषा देखें. वक्फ का मतलब है किसी व्यक्ति द्वारा स्थायी समर्पण जो दर्शाता है या प्रदर्शित करता है... कि वह पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा है. इसलिए अगर मैं वक्फ बनाना चाहता हूं तो मुझे दिखाना होगा कि मैं पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हूं और स्टेट यह कैसे तय करेगी कि मैं मुसलमान हूं या नहीं..."

'सभी पर लागू होता है अनुच्छेद 26'
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "स्टेट कौन होता है यह बताने वाला कि मेरे धर्म में उत्तराधिकार कैसे होगा?" सिब्बल का जवाब देते हुए CJI खन्ना ने कहा, "लेकिन हिंदू धर्म में ऐसा होता है.. इसलिए संसद ने मुसलमानों के लिए कानून बनाया है.. हो सकता है कि यह हिंदुओं जैसा न हो… अनुच्छेद 26 इस मामले में कानून बनाने पर रोक नहीं लगाएगा.. अनुच्छेद 26 यूनिवर्सल है और यह इस मायने में धर्मनिरपेक्ष है कि यह सभी पर लागू होता है."

'अनुच्छेद 26 का उल्लंघन'
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, "वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन है. यह कानून इस देश के 200 करोड़ लोगों की आस्था का संसदीय अतिक्रमण है.

हाई कोर्ट खुद वक्फ की संपत्ति पर बना है-CJI
सीजेआई संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "जब हम दिल्ली हाई कोर्ट में थे, तो हमें बताया गया था कि हाई कोर्ट खुद वक्फ की संपत्ति पर बना है और ओबेरॉय होटल भी वक्फ की जमीन पर बना है. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह यह नहीं कह रहे हैं कि वक्फ बाय यूजर गलत है, लेकिन वास्तव में यह है कंसर्न है." वहीं, जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि प्रशासन आदि से संबंधित अनुच्छेद 26 के शब्दों को आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता.

रोक लगाने की मांग
वरिष्ठ अभिषेक मनु सिंघवी ने अयोध्या फैसले के एक पैराग्राफ का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ बाय यूजर एक बहुत पुराना कॉन्सेप्ट है. सिंघवी ने कहा कि अगर कोई कहता है कि संसद वक्फ है, तो अदालत इसे स्वीकार नहीं करेगी, लेकिन यह अवधारणा गलत नहीं है. इतना ही नहीं उन्होंने एक्ट पर रोक लगाने की मांग की.

'वक्फ इस्लाम के लिए आवश्यक'
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि संशोधन मुसलमानों के धर्म का पालन करने के अधिकार का उल्लंघन करता है और वक्फ इस्लाम का एक आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस है.

'सरकार ने JPC गठित की थी'
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ एक्ट के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) बनाई गई थी, जिसने 38 बैठकें कीं. इसने कई क्षेत्रों और शहरों का दौरा किया, परामर्श किया और लाखों सुझावों की जांच की. फिर यह दोनों सदनों में गया और फिर कानून पारित किया गया. मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड एक चैरिटी कमीशन है.

सीजेआई ने मेहता से क्या कहा?
इस पर सीजेआई ने मेहता से कहा, यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जब हिंदुओं इंडोमेंट की बात आती है, तो यह आम तौर पर हिंदुओं के इंडोमेंट होते हैं. सीजेआई ने मेहता से कहा, क्या वक्फ बाय यूजर को शून्य या अस्तित्वहीन घोषित किया जाता है, अगर यूजर द्वारा वक्फ पहले से ही स्थापित है, तो क्या इसे अमान्य घोषित किया जाएगा या अस्तित्व में रहना जारी रहेगा? सीजेआई ने कहा कि जामा मस्जिद समेत सभी प्राचीन स्मारक संरक्षित रहेंगे.

'वक्फ बाय यूजर्स को खत्म करने से समस्या पैदा होगी'
CJI ने मेहता से कहा, "अगर आप वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियों को डीनोटिफाई करने जा रहे हैं, तो यह एक मुद्दा होगा." आप यूजर द्वारा वक्फ का रजिस्ट्रेशन कैसे करेंगे? क्योंकि दस्तावेज की कमी हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "वक्फ बाय यूजर्स को खत्म करने से समस्या पैदा होगी, हालांकि, इसका कुछ दुरुपयोग भी हुआ है.".

कानून में मुस्लिम समाज के सभी संप्रदायों को प्रतिनिधित्व
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि नया कानून सबको लेकर चलने वाला है. पहले इसमें सिर्फ शिया और सुन्नी थे, जबकि अब इसमें सबको जगह मिलेगी. कानून में मुस्लिम समाज के सभी संप्रदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और पीठ ने बोर्ड की संरचना के बारे में बहस की. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "उनके (याचिकाकर्ताओं) तर्क के अनुसार माननीय आप भी इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते.

हिंदू धार्मिक बोर्ड ेमें शामिल होंगे गैर-मुस्लिम
सीजेआई ने कहा,"जब हम यहां निर्णय लेने के लिए बैठते हैं, तो हम अपना धर्म तरफ रख देते हैं. हम धर्मनिरपेक्ष हैं. हम एक ऐसे बोर्ड की बात कर रहे हैं जो धार्मिक मामलों का प्रबंधन कर रहा है." सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि क्या वह मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने को तैयार है. क्या गैर-हिंदू को हिंदू इंडोमेंट में शामिल कर सकते हैं. क्या गैर हिंदू- हिंदू धार्मिक बोर्ड का हिस्सा होंगे.

इस बीच एक वादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि वक्फ बाय यूजर इस्लाम की स्थापित प्रथा है, इसे छीना नहीं जा सकता.

कोर्ट के सामने कई विकल्प
सीजेआई ने कहा कि कोर्ट के सामने कई विकल्प हैं. हम इस चुनौती पर निर्णय लें, हम याचिकाओं को एक सामान्य हाई कोर्ट में ट्रांसफर करें या इन याचिकाओं को लेकर फैसला लें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी संपत्ति वक्फ बाय यूजर या कोर्ट द्वारा वक्फ घोषित की गई है, उसे गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक ​​बोर्ड और काउंसिल के गठन का सवाल है, पदेन सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है, उन्हें धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य सदस्य मुस्लिम होने चाहिए.

हाल में सदन से पास हुआ था एक्ट
बता दें कि केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया, जिसे दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद से पारित होने के बाद 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली.

विधेयक को राज्य सभा में पारित किया गया, जिसमें 128 सदस्यों ने इसके पक्ष में तथा 95 ने इसके विरोध में मतदान किया, जबकि लोकसभा में इसे 288 सदस्यों का समर्थन मिला और 232 सांसदों ने इसको विरोध किया.

अधिनियम की वैधता को चुनौती
इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड , जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी तथा मोहम्मद जावेद सहित 72 याचिकाएं दायर की गई हैं.

केंद्र ने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर की तथा मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की मांग की. किसी पक्ष द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसे सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए.

यह भी पढ़ें- 'हम टकराव नहीं चाहते', वक्फ एक्ट का समर्थन करने वालों को हिमंत बिस्वा सरमा ने दी यह सलाह

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