नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार द्वारा केंद्र के खिलाफ दायर याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. राज्य सरकार के दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि केंद्र ने 2024-2025 के लिए समग्र शिक्षा योजना के तहत केंद्रीय शिक्षा कोष में 2,151 करोड़ रुपये से अधिक की राशि रोक रखी है.
यह मामला जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति की बेंच के समक्ष आया. बेंच ने कहा कि राज्य सरकार ने मई में याचिका दायर कर 2024 और इस साल भी केंद्रीय निधि रोके रखने का आरोप लगाया था.
बेंच ने कहा कि इसमें कोई जल्दबाजी नहीं है और मामले को 'आंशिक कार्य दिवसों' (ग्रीष्म अवकाश का नया नाम) के बाद उठाया जा सकता है. मई 2025 में, तमिलनाडु सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और पीएम श्री के गैर-कार्यान्वयन को लेकर समग्र शिक्षा योजना (एसएसएस) के तहत केंद्र सरकार पर धन रोके रखने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया था.
द्रमुक सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर अपने मूल मुकदमे में केंद्र सरकार को 2,291.30 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की थी, जिसमें 1 मई, 2025 से लेकर डिक्री की प्राप्ति तक 2,151.59 करोड़ रुपये की मूल राशि पर 6 प्रतिशत वर्ष ब्याज शामिल है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के खिलाफ दायर द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेतृत्व वाली सरकार की याचिका में संविधान के अनुच्छेद 131 का हवाला दिया गया है, जो केंद्र और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच अथवा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच याचिकाओं की सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत को विशेष अधिकार प्रदान करता है.
राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि केंद्र ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और संबंधित 'पीएम श्री' स्कूल योजना को लागू करने के लिए बाध्य करने का प्रयास किया, जिस पर और विशेष रूप से विवादास्पद तीन-भाषा फॉर्मूले पर उसने कड़ी आपत्ति जताई. इसलिए सुप्रीम कोर्ट से यह घोषित करने का आग्रह किया गया कि एनईपी और पीएम श्री स्कूल योजना वादी राज्य पर तब तक बाध्यकारी नहीं हैं जब तक कि वादी और प्रतिवादी के बीच तमिलनाडु के भीतर उनके कार्यान्वयन के लिए औपचारिक समझौता नहीं हो जाता.
याचिका में समग्र शिक्षा योजना के तहत धन प्राप्त करने के लिए तमिलनाडु के अधिकार को एनईपी, 2020 के कार्यान्वयन और राज्य के भीतर ‘पीएम श्री’ स्कूल योजना से जोड़ने की केंद्र की कार्रवाई को असंवैधानिक, अवैध, मनमानी, अनुचित घोषित करने का अनुरोध किया गया है. तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट से 23 फरवरी, 2024 और सात मार्च, 2024 के केंद्र के पत्रों को अवैध, अमान्य घोषित करने और राज्य सरकार पर बाध्यकारी नहीं होने का भी आग्रह किया है.
विवाद इस योजना के तहत केंद्रीय निधि जारी नहीं किए जाने से उपजा है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के उद्देश्य से स्कूली शिक्षा के लिए एक प्रमुख केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है. शिक्षा मंत्रालय के परियोजना अनुमोदन बोर्ड (पीएबी) ने वित्त वर्ष 2024 और 2025 के लिए तमिलनाडु के लिए कुल 3,585.99 करोड़ रुपये के परिव्यय को मंजूरी दी थी, जिसमें से केंद्र सरकार की प्रतिबद्ध 60 प्रतिशत हिस्सेदारी यानि 2,151.59 करोड़ रुपये थी. याचिका में कहा गया है कि इस मंजूरी के बावजूद केंद्र द्वारा अब तक कोई किस्त वितरित नहीं की गई है.
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