मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : बारिश का मौसम छत्तीसगढ़ में छा चुका है. नदियां,नाले और पहाड़ सभी मॉनसून का स्वागत कर रहे हैं.इसी मॉनसून और बारिश की देन है एक ऐसी चीज है जिसे पाने के लिए आदिवासी और वनवासी जंगलों की खाक छानते हैं. ये चीज इन्हें दिखते ही वो इस पर टूट पड़ते हैं.क्योंकि इसकी असली कीमत का अंदाजा उन्हें होता है.ये वो चीज है जिसकी ना तो खेती की जा सकती है और ना ही इसे स्टोर करके सालों तक रखा जा सकता है.इस चीज को बेचकर आदिवासी अच्छी खासी आमदनी इकट्ठा कर लेते हैं.वहीं जो इसे खरीदता है वो इसके अंदर मौजूद पोषक तत्वों को पाकर अपने शरीर की कमियों को पूरा कर लेता है.इसलिए ये मटन मछली से भी महंगी बिकती है.
क्या है जंगली सोना ?: हम जिस चीज की बात कर रहे हैं उसका नाम है पुटू.जिसे गरीबों का सोना कहे तो ये गलत नहीं होगा.क्योंकि यदि आप बाजार में इसे खरीदने जाएंगे तो आपको मालूम पड़ जाएगा कि आखिर क्यों इसे गरीबों का सोना कहा जाता है. क्योंकि कुदरती तौर पर मिलने वाली इस सब्जी का दाम बाजार में 1 हजार से 2 हजार रुपए किलो तक है.स्थानीय भाषा में लोग इस सब्जी को पुटू के नाम से ही जानते हैं.
कहां मिलता है ये सुपर फूड : पुटू की बात करें तो ये सब्जी बारिश के मौसम में ही मिलती है. साल पेड़ के नीचे इस सुपर फूड को लोग खोजते हैं.क्योंकि इसी पेड़ के तले पुटू मिलता है. भरतपुर वनांचल क्षेत्र के जंगलों में अधिकांश आदिवासी ग्रामीण जंगल में उगने वाली इस अनोखी सब्जी को इकट्ठा करके बाजार में बेचते हैं.
ग्रामीणों को लिए आमदनी का बड़ा जरिया : एमसीबी जिले का सबसे बड़ा जंगल भरतपुर विकासखण्ड में है. यहां के आदिवासी हर सीजन में जितने भी फल सब्जी जंगल में होते है. उन सभी को बाजार में बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं. जिससे उन लोगों के परिवारों को जीविका के लिए अतिरिक्त आमदनी मिलती है. जंगलोंं में आषाढ़ और सावन के महीने में साल पेड़ के नीचे ही पैदा होता है.ग्रामीणों की माने तो पुटू तभी होता है जब बारिश और तेज बिजली कड़कती है.बिजली की कड़कड़ाहट से पुटू जमीन के अंदर से बाहर आता है.लिहाजा इस सब्जी और बिजली का गहरा नाता होता है.
नहीं की जा सकती खेती : आपको बता दें कि पुटू को सिर्फ कुदरती तौर पर ही हासिल किया जा सकता है. इसे मशरूम की प्रजाति भी कहा जा सकता है. लेकिन इसकी खेती नहीं की जा सकती.क्योंकि ये मौसम के तापमान और बिजली के कारण ही पैदा होता है.इसलिए खेतों में बारिश के मौसम से पहले होने वाली उमस और आसमानी बिजली का इंतजाम नहीं हो सकता.इसलिए इसकी खेती नहीं होती है.
''हम लोग इसे जनकपुर से लाते हैं. शुरू में 1000 रुपये किलो बिकता है. फिर 400 रुपए किलो तक बेचते हैं. इसे खाने से कोई नुकसान नहीं होता है. पुटू साल में एक बार सरई पेड़ के नीचे ही मिलता है.''- संगीता, ग्रामीण
आदिवासियों का है सुपरफूड : जंगल में रहने वाले लोगों के पास आय के साधन सीमित होते हैं. यदि मांसाहार की बात की जाए तो शायद ही जंगल के अंदर आदिवासी रोजाना मांस या मछली का सेवन करते होंगे.ऐसे में वो अपने शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए पुटू का इस्तेमाल करते हैं. इस सब्जी में मिनरल,आयरन, कैल्सियम और प्रोटीन का प्रचुर मात्रा पाई जाती है.जिसका सेवन करके किसी के भी शरीर के अंदर की कमजोरी दूर हो सकती है. वनांचल क्षेत्र में आदिवासी बारिश के मौसम में इसे दिन निकलते ही इकट्ठा करना शुरु कर देते हैं.
'' हम लोग खेती किसानी वाले लोग हैं. हम लोग सुबह भोर में उठते हैं. फिर काम धाम करने के बाद जंगल में जाकर पुटू उठाकर लाते हैं. फिर इससे बेचते हैं.ये सब्जी तीन से चार सौ रुपए किलो तक बिकता है. जिससे हम लोगों का जीवन यापन होता है.''- राजकुमार, ग्रामीण
कैसा होता है पुटू ? : पुटू जमीन में उगने वाली एक जंगली सब्जी है. ये सब्जी बारिश के मौसम में साल और सरई पेड़ के नीचे उगती है. बारिश के मौसम में उमस के कारण सब्जी जमीन के अंदर आकार ले लेती है.जिसका आकार आलू से छोटा होता है.इस सब्जी का रंग भूरा होता है जिसमें ऊपर की परत पतली रहती है और अंदर का गुदा सफेद रंग का होता है. आपको बता दें कि एमसीबी जिले में साल वृक्ष का क्षेत्र ज्यादा है. इसलिए यहां पुटू सब्जी सबसे ज्यादा होती है. मौसम की शुरुआत में ये सब्जी लगभग एक से दो हजार रुपए किलो तक बिकती है.लेकिन सप्लाई बढ़ने पर 2 से 3 सौ रुपए किलो तक ये बिकती है.