कुरुक्षेत्र : कहते हैं ना कि अगर हिम्मत करके कुछ करने का आपने ठान लिया तो कुछ भी मुमकिन है. ऐसी ही एक कहानी है कुरुक्षेत्र की रहने वाली दो सहेलियों की, जिन्होंने विपरीत हालातों में परिवार के पालन पोषण करने का बीड़ा उठाया और आज वे लखपति बन चुकी है, साथ ही एक दर्जन से ज्यादा महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं.
पतियों का काम छूटा, खुद की रसोई की शुरू : दो सहेलियां जिनका नाम शरणजीत कौर और रजवंत कौर है दोनों कुरुक्षेत्र के नजदीक लगते गांव की रहने वाली हैं. शरणजीत कौर कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर गांव की रहने वाली है तो वहीं रजवंत कौर दयालपुर गांव की रहने वाली है. जब कोरोना महामारी आई थी तो उस समय दोनों के पतियों का अच्छा खासा काम ठप हो गया था. शरणजीत कौर ने बताया कि उसके पति का कपड़ों का काम था, जिसमें वे अच्छा पैसा कमा रहे थे लेकिन कोरोना की मार के चलते उनके व्यापार पर असर पड़ा और वो ठप पड़ गया. परिवार की आर्थिक हालत कमजोर होती देख शरणजीत कौर ने अपनी सहेली रजवंत कौर के साथ मिलकर खुद की रसोई शुरू करने की सोची और आज वे खुद भी लखपति हैं और दूसरी महिलाओं को रोजगार दे रही हैं.
अन्नपूर्णा आजीविका रसोई : शरणजीत कौर ने बताया कि वे स्वयं सहायता ग्रुप से जुड़ी हुई थी. उन्होंने 2,30,000 रुपए के लोन के साथ काम की शुरुआत की और अन्नपूर्णा आजीविका रसोई कुरुक्षेत्र के 13 सेक्टर में पंचायत भवन के बाहर बनाई. देखते ही देखते करीब चार सालों में उनका काम अच्छा चल गया है जिससे वे आज अच्छी-ख़ासी अर्निंग कर रही हैं.

शुरुआती समय में आई परेशानी : शरणजीत कौर ने बताया कि वे दोनों सहेली गांव से आती हैं. ऐसे में गांव से आकर शहर में काम करना उनके लिए शुरुआती समय में काफी चुनौती पूर्ण रहा है क्योंकि गांव का माहौल अलग होता है और शहर का माहौल अलग होता है. यहां पर आकर सड़क पर उनका काम करना काफी चुनौती भरा रहा है. उन्होंने शुरू में मुंह बांधकर काम किया लेकिन धीरे-धीरे वे इस माहौल में ढल गई और अब वे अपने साथ-साथ यहां पर काम करने वाली दूसरी महिलाओं को भी काफी अच्छा और सुरक्षित माहौल दे रही हैं.

सरकारी विभागों में जाता है खाना : शरणजीत कौर ने बताया कि जब उन्होंने शुरुआत में यहां पर रसोई शुरू की थी, तब काम भी बहुत कम था. वे सोचती थी कि ना जाने काम चल पाएगा या नहीं, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को उनकी खाने की गुणवत्ता भा गई और अब स्थानीय 90 प्रतिशत सरकारी विभागों में उनका खाना पहुंच रहा है. यहां तक कि सरकारी विभाग की ओर से कोई कार्यक्रम जब वहां आयोजित होता है तो तब भी उनका बनाया खाना वहां जाता है. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी खुद की आजीविका तो तैयार की है, साथ ही कई महिलाओं को रोज़गार देने का काम किया है.

पोस्टग्रेजुएट हैं शरणजीत कौर : शरणजीत कौर ने बताया कि उन्होंने पढ़ाई में डबल एमए की हुई है और तीन बार एचटेट भी क्लियर किया हुआ है. हालांकि ये काम करने से पहले उनको लगता था कि उनके पास सरकारी नौकरी होनी चाहिए थी, लेकिन इस काम को शुरू करने के बाद उन्होंने सोचा कि अगर खुद का बिजनेस हो तो वो ज्यादा बेहतर होता है. इस काम को करके वे अब काफी ज्यादा खुश हैं.

घर के खाने का मिलता है स्वाद : वहीं राजवंत कौर ने बताया कि उनके लिए इस पोजीशन पर पहुंचना काफी ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहा है लेकिन उन्होंने हर मुश्किल का सामना डटकर किया है जिसके चलते आज वे काफी अच्छा पैसा कमा रही हैं. उन्होंने कहा कि हमने 4 साल पहले इस काम की शुरुआत की थी और जिला परिषद पंचायत भवन के अधिकारी, कर्मचारियों से उन्हें काफी सपोर्ट मिला है.

12 से ज्यादा महिलाओं को दिया रोजगार : ये दोनों सहेलियां आज लाखों महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन चुकी हैं. इन दोनों सहेलियों के पास काम करने वाली महिला आशा रानी ने बताया कि वे पिछले कई सालों से उनके पास काम कर रही हैं और इनके पास रहकर वे अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं. करीब 10 हजार से 15,000 रुपए वे एक महीने में कमा लेती हैं और ऐसे ही करीब एक दर्जन महिलाएं हैं जो यहां पर काम करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर बिलकुल परिवार जैसा माहौल है.



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