गया : ''जब मैंने पावरलूम शुरू किया तो नई मशीन के लिए पैसे नहीं थे. कारू भाई ने मेरी मदद की. मैंने उनसे मशीन खरीदी, जिसकी कीमत काफी कम थी. इसी मशीन की वजह से आज मेरा परिवार खुशहाल है.'' पटवा टोली के दुलेश्वर यहीं नहीं रुकते, आगे कहते हैं, ''पुरानी मशीन भले ही कबाड़ से बनी हो, लेकिन बिल्कुल नई मशीन की तरह ही काम करती है.''
बिना डिग्री वाले 'इंजीनियर' कारू लाल : पटवा टोली के पबड़िया घाट गली के मिस्त्री धर्म प्रकाश कहते हैं कि ''यहां 50 से ज्यादा मिस्त्री हैं लेकिन इनमें हेड मिस्त्री तो कारू लाल ही हैं, वो भले ही चौथी पास हो, लेकिन एक इंजीनियर का दिमाग रखते हैं. मुझे भी उन्होंने ही एक कुशल कारीगर बनाया है.'' कारू लाल अब तक 30 अच्छे पावरलून बनाने वाले कारीगर (मिस्त्री) भी बना चुके हैं. कारू लाल मिस्त्री तो खुद पढ़े-लिखे नहीं है, लेकिन वह पटवा टोली में इंजीनियर कहलाते हैं.
कबाड़ से बना डाला 800 पावरलूम : बिहार के गया जिले के पटवा टोली के कारू लाल कबाड़ को कारगर बना रहे हैं. अब तक वह 600 बेकार पावरलूम की मरम्मत कर काम के लायक बना चुके हैं. साथ ही लगभग करीब 200 चीन के कबाड़ से पावरलूम बनाया हैं. इनके बनाए हुए पावरलूम की वजह से पटवा टोली के उद्योग संचालकों को काफी बचत हो रही है.
चाइना का कबाड़, पटवा टोली का जुगाड़ : चीन से देश के कई राज्यों में स्क्रैप आते हैं. खासकर बंगाल, गुजरात, दिल्ली, हरियाण और दूसरे शहर हैं, जहां पर ये आते हैं. कारू लाल और दूसरे साथी मिस्त्री इन शहरों से किलो के भाव में तौल कर कबाड़ खरीद कर लाते हैं. फिर अपनी मेहनत और जुगाड़ से उस मशीन को बनाकर बुनकरों को बेच देते हैं. खासकर छोटे बुनकर इसे खरीद कर आर्थिक स्थिति सुधार रहे हैं.

यहां के बुनकर भी मानते हैं कि चाइना के कबाड़ को जुगाड़ विधि से मशीन बनाकर एक इंजीनियर के तरह तरह के अविष्कार वाले दिमाग को भी फेल कर दिया है. चीन के कबाड़ पर पटवा टोली का जुगाड़ भारी पड़ रहा है.
''यहां कबाड़ के भाव में मशीन के समान लाते हैं. हम लोग इसको प्रक्रिया कर तैयार करते हैं. नए ढंग से मरम्मत कर फिटिंग करते हैं और उसके बाद उसे बुनकरों के हवाले कर देते हैं. नई मशीन की कीमत बहुत होती है, इसीलिए लोग पुरानी मशीन लगाते हैं. यह मशीन नई वाली मशीन की तरह ही काम करती हैं. तैयार होने वाले कपड़ों की क्वालिटी भी अच्छी होती है.''- कारू लाल, मिस्त्री, पावरलूम

गया का पटवा टोली : बिहार में गया के मानपुर पटवा टोली में 12 हजार पावरलूम संचालित हैं. यहां करीब 40 हजार लोग काम करते हैं. खास बात यह है कि 200 पावरलूम ऐसे हैं, जो चाइना के कबाड़ से देसी जुगाड़ विधि से बनाए गए हैं. इसमें मुख्य रूप से जुगाड़ से पावरलूम तैयार करने वालों में कारू लाल हैं, कारू लाल और उनकी टीम ने कबाड़ में जंग खाने वाले लोहे-लक्कड़ से पावरलूम तैयार किया है.
ये रद्दी और कबाड़ से पावरलूम मशीनें बना रहे हैं. इनमें पटवा टोली के कारू लाल, धर्म प्रकाश, प्रमोद कुमार, राजू विश्वकर्मा, किशोरी मिस्त्री और ऐसे दूसरे लगभग 30 कारीगर (मिस्त्री) हैं. जिन्होंने कबाड़ में जंग खा रहे लोहे लक्कड़ को जुगाड़ विधि के माध्यम से ठोक पीट कर उपयोगी बना दिया. जिससे छोटे बुनकरों को खुद पावरलूम संचालित करने में मदद मिल रही है और उनकी आर्थिक स्थिती भी सुधरी है.

10 वर्षों की दी जाती है वारंटी : कबाड़ वाले पावरलूम को कारगर बनाने के लिए अभी पटवा टोली में 40 लोगों की टीम है, जो विभिन्न तरह के काम करती है. इसको सही ढंग से बनाया जाए तो यह 10 से 12 साल तक खराब न होने की गारंटी भी दी जाती है. कारू बताते हैं कि 30 से 50 हजार में कबाड़ से पावर लूम के पार्ट खरीदे जाते हैं, इसको डिजाइन कर के वो देते हैं. इसमें मैन्युअल और सॉफ्टवेयर दोनों तरह की मशीन वो बनाते हैं.
12000 पावरलूम, 40 हजार को रोजगार : पटवा टोली के बुनकर दुलेश्वर बताते हैं कि जिला उद्योग केंद्र से 12000 पावरलूम रजिस्टर्ड हैं. पटवा समाज की लगभग 1500 घरों की आबादी होगी जिनमें अधिकतर लोग पावरलूम और उससे जुड़े कारोबार में लगे हैं. इसी तरह पटवा टोली के अधिकतर घरों में कम से कम एक व्यक्ति इंजीनियर है. पटवा टोली के पावरलूम में दो शिफ्टों में वस्त्र तैयार करने का काम होता है. लगभग 40 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है.

पहले जो जुगाड़ से पावर लूम बनाए जाते थे वो देश के दूसरी जगहों पर संचालित पवारलूम होते थे. जिनको पुराना और खराब होने के बाद कबाड़ में बेच दिया गया था. उन्हें खरीद कर यहां उसको रिपेयरिंग कर नए ढंग से बनाकर कारगर किया गया. पहले पुराने और कबाड़ वाले पावरलूम देश के ही होते थे लेकिन अब पिछले दो तीन वर्षों में चाइना के कबाड़ से पावरलूम बनाए जा रहे हैं.
''इन्हें बनाने में कारू मिस्त्री और पटवा टोली के दूसरे मिस्त्री लगे हैं लेकिन वरिष्ठ कारीगर के रूप में कारू लाल हैं. इनका दिमाग एक इंजीनियर ही की तरह चलता है. मुझे कहने में कोई संकोच नहीं होगा की पटवा टोली की मिट्टी में ही यह खासियत है.''- दुलेश्वर, बुनकर, पटवा टोली
आईआईटीयन और पावरलूम के लिए मशहूर : वैसे, गया के मानपुर का जब भी जिक्र होता है तो मन में पटवा टोली के आईआईटीयन और पावरलूम का ही ख्याल आता है. आज तक आपने यहां से तैयार होने वाले वस्त्र देश के कोने-कोने में भेजे जाने की बात सुनी होगी. इसके साथ ही यहां से इंजीनियर निकलने के बारे में सुना होगा, जो देश विदेशों में नाम रोशन कर रहे हैं.

'खटखट की आवाज से स्थिति सुधरी' : असल में आप इस बात को नहीं जानते होंगे कि उन इंजीनियरों को बनाने में पावरलूम बनाने वालों का कितना बड़ा हाथ है. पटवा समाज के कोषाध्यक्ष नागेंद्र प्रसाद कहते हैं कि खटखट की आवाज करने वाली मशीनों के कारण आर्थिक स्थिति सुधरी तो गांव में खुशहाली आई. बुनकरों ने अपने बच्चों को शिक्षित कर इंजिनियर बनाना शुरू किया. उनकी कला, हुनर किसी इंजीनियर से कम नहीं है. यह कहना उचित होगा ये अशिक्षित इंजिनियरों ने पढ़े लिखे इंजीनियर बनाने में बड़ा योगदान दिया है.
पटवा टोली के लगभग 1000 इंजीनियर देश-विदेश में टेक्नोलॉजी के सहारे नए नए अविष्कार करने की खोज में लगे हैं. हालांकि उनके अपने परिवार और समाज के अशिक्षित वर्ग के कुछ लोग हैं जो देसी जुगाड़ के सहारे समाज और अपनों की तकदीर बदलने में लगे हैं. इनमें अधिकतर वो हैं जो पांचवीं पास भी नहीं लेकिन उनकी काबिलियत और जुगाड़ वाले सामानों को देखकर पढ़े लिखे इंजीनियरों से कम आंकना सही नहीं होगा.
कारू के दो बेटे कस्टम सेवा में कार्यरत : इंजीनियर कहलाने वाले कारू लाल ने पटवा टोली के अन्य लोगों की तरह अपने बेटों को जेईई की तैयारी कराकर इंजीनियर नहीं बनाया, बल्कि उन्होंने अपने दोनों बेटों को पढ़कर प्रशासनिक सेवा में भेजा है. इनके दो बेटे हैं और दोनों बेटे कस्टम सेवा में कार्यरत हैं.
ये भी पढ़ें :-
IIT JEE Advanced Result 2024 में गया के पटवा टोली का परचम, छात्रों ने फिर दिखाई प्रतिभा, कई हुए सफल