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हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में मिलेट इंटर्नशिप कार्यक्रम, उद्देश्य कुपोषण के खिलाफ लड़ाई - MILLET INTERNSHIP

देश में कुपोषित लोगों की बढ़ती संख्या एक गंभीर चिंता का विषय है. जबकि यहां कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं.

HCU Aims to Fight Malnutrition
हैदराबाद विश्वविद्यालय (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : June 25, 2025 at 12:33 AM IST

4 Min Read

हैदराबाद: तेलंगाना के हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (HCU) में, पोषण और जलवायु लचीलापन बढ़ाने के लिए एडवांस जेनेटिक तकनीक का उपयोग करते हुए बाजरा और माइक्रोग्रेन अनुसंधान के विज्ञान में पूरे भारत के छात्रों को ट्रेंड करने के लिए एक अनूठा इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू किया गया है.

मिलेट मिशन
मई से जून तक, अलग-अळग विश्वविद्यालयों के छात्र एचसीयू के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज में मिलेट (बाजरा) इंटर्नशिप कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. जहां वे सोरघम और बाजरा जैसे माइक्रोग्रेन (सूक्ष्म अनाजों) पर रिसर्च कर रहे हैं. ये छोटे अनाज अपने उच्च पोषण मूल्य और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बढ़ने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के सामने एक आदर्श खाद्य स्रोत बनाता है.

शोध के प्रमुख और स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रमुख डॉ. मुथमिलारसन मेहानाथन ने कहा कि, माइक्रोग्रेन में बढ़ती आबादी में पोषण संबंधी अंतर को पाटने की क्षमता है. इसलिए हमारा ध्यान सिर्फ पैदावार पर ही नहीं बल्कि पोषक तत्वों की मात्रा को बेहतर बनाने पर भी है.

भविष्य के पोषण के लिए अत्याधुनिक अनुसंधान
डॉ. मुथमिलारासन के मार्गदर्शन में, टीम 300 से अधिक किस्मों के ज्वार और 100 से अधिक किस्मों के बाजरे का अध्ययन करने के लिए CRISPR-Cas9, नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग, मॉलिक्यूलर मार्कर और जैव सूचना विज्ञान जैसे जीनोम एडिटिंग टूल्स का उपयोग कर रही है. उनका लक्ष्य फाइटिक एसिड जैसे पोषण विरोधी तत्वों को कम करते हुए उपज, सूखा प्रतिरोध और पोषण गुणवत्ता को बढ़ाना है.

फाइटिक एसिड, जो दालों में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है, आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे प्रमुख खनिजों के अवशोषण को रोकता है. हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया है कि अनाज को अंकुरित करने, भिगोने और किण्वित करने से यह एसिड कम हो सकता है, जिससे पोषक तत्व अधिक जैव उपलब्ध हो जाते हैं और पाचन आसान हो जाता है.

विज्ञान के साथ कुपोषण से लड़ना
भारत में 5.32 करोड़ कुपोषित बच्चे हैं. इस शोध का उद्देश्य उन्हें सीधे लाभ पहुंचाना है. एचसीयू के जीवन विज्ञान विभाग ने पहले ही दिखाया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पोषक तत्वों से भरपूर दालें खिलाने से कुपोषण कम करने में मदद मिलती है.

अध्ययनों से पता चलता है कि अगर बच्चों को छह महीने तक सप्ताह में सिर्फ तीन बार उपमा या माल्ट जैसे बाजरे से बने भोजन खिलाए जाएं, तो इससे कुपोषण में काफी कमी आ सकती है. इसके अलावा, शोधकर्ताओं का कहना है कि ये अनाज मधुमेह को नियंत्रित करने में भीमदद करते हैं, जिससे ये चावल और गेहूं का एक स्वस्थ विकल्प बन जाते हैं.

जीनोम एडिटेड ग्रेन में भारत अग्रणी
भारत हाल ही में जीनोम एडिटेड राइस की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है. इससे प्रेरित होकर, एचसीयू की टीम उच्च पोषक तत्व सामग्री और कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता वाली नई जीनोम एडिटेड मिलेट्स (बाजरा) किस्मों को जारी करने की दिशा में काम कर रही है.

डॉ. मुथमिलारसन ने कहा, "हम वैज्ञानिकों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना चाहते हैं जो इस शोध को लोगों तक ले जा सकें और संभवतः उद्यमी बन सकें." अब तक 50 से अधिक छात्रों और युवा शोधकर्ताओं ने इस इंटर्नशिप में भाग लिया है.

एचसीयू इस दिशा में अग्रणी
भारत के 56 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय ही एकमात्र ऐसा यूनिवर्सिटी है जो सूक्ष्म अनाजों पर इतने बड़े पैमाने पर शोध कर रहा है. विश्वविद्यालय बाजरे की अपनी अगली एडवांस किस्म जारी करने की तैयारी कर रहा है, जो बेहतर पोषण और कृषि स्थिरता का वादा करता है.

ये भी पढ़ें: Mission Millets: मिलेट मिशन के तहत विशेष डाक टिकट जारी - डाक विभाग

हैदराबाद: तेलंगाना के हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (HCU) में, पोषण और जलवायु लचीलापन बढ़ाने के लिए एडवांस जेनेटिक तकनीक का उपयोग करते हुए बाजरा और माइक्रोग्रेन अनुसंधान के विज्ञान में पूरे भारत के छात्रों को ट्रेंड करने के लिए एक अनूठा इंटर्नशिप कार्यक्रम शुरू किया गया है.

मिलेट मिशन
मई से जून तक, अलग-अळग विश्वविद्यालयों के छात्र एचसीयू के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज में मिलेट (बाजरा) इंटर्नशिप कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. जहां वे सोरघम और बाजरा जैसे माइक्रोग्रेन (सूक्ष्म अनाजों) पर रिसर्च कर रहे हैं. ये छोटे अनाज अपने उच्च पोषण मूल्य और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बढ़ने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के सामने एक आदर्श खाद्य स्रोत बनाता है.

शोध के प्रमुख और स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रमुख डॉ. मुथमिलारसन मेहानाथन ने कहा कि, माइक्रोग्रेन में बढ़ती आबादी में पोषण संबंधी अंतर को पाटने की क्षमता है. इसलिए हमारा ध्यान सिर्फ पैदावार पर ही नहीं बल्कि पोषक तत्वों की मात्रा को बेहतर बनाने पर भी है.

भविष्य के पोषण के लिए अत्याधुनिक अनुसंधान
डॉ. मुथमिलारासन के मार्गदर्शन में, टीम 300 से अधिक किस्मों के ज्वार और 100 से अधिक किस्मों के बाजरे का अध्ययन करने के लिए CRISPR-Cas9, नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग, मॉलिक्यूलर मार्कर और जैव सूचना विज्ञान जैसे जीनोम एडिटिंग टूल्स का उपयोग कर रही है. उनका लक्ष्य फाइटिक एसिड जैसे पोषण विरोधी तत्वों को कम करते हुए उपज, सूखा प्रतिरोध और पोषण गुणवत्ता को बढ़ाना है.

फाइटिक एसिड, जो दालों में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है, आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे प्रमुख खनिजों के अवशोषण को रोकता है. हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया है कि अनाज को अंकुरित करने, भिगोने और किण्वित करने से यह एसिड कम हो सकता है, जिससे पोषक तत्व अधिक जैव उपलब्ध हो जाते हैं और पाचन आसान हो जाता है.

विज्ञान के साथ कुपोषण से लड़ना
भारत में 5.32 करोड़ कुपोषित बच्चे हैं. इस शोध का उद्देश्य उन्हें सीधे लाभ पहुंचाना है. एचसीयू के जीवन विज्ञान विभाग ने पहले ही दिखाया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पोषक तत्वों से भरपूर दालें खिलाने से कुपोषण कम करने में मदद मिलती है.

अध्ययनों से पता चलता है कि अगर बच्चों को छह महीने तक सप्ताह में सिर्फ तीन बार उपमा या माल्ट जैसे बाजरे से बने भोजन खिलाए जाएं, तो इससे कुपोषण में काफी कमी आ सकती है. इसके अलावा, शोधकर्ताओं का कहना है कि ये अनाज मधुमेह को नियंत्रित करने में भीमदद करते हैं, जिससे ये चावल और गेहूं का एक स्वस्थ विकल्प बन जाते हैं.

जीनोम एडिटेड ग्रेन में भारत अग्रणी
भारत हाल ही में जीनोम एडिटेड राइस की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है. इससे प्रेरित होकर, एचसीयू की टीम उच्च पोषक तत्व सामग्री और कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता वाली नई जीनोम एडिटेड मिलेट्स (बाजरा) किस्मों को जारी करने की दिशा में काम कर रही है.

डॉ. मुथमिलारसन ने कहा, "हम वैज्ञानिकों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना चाहते हैं जो इस शोध को लोगों तक ले जा सकें और संभवतः उद्यमी बन सकें." अब तक 50 से अधिक छात्रों और युवा शोधकर्ताओं ने इस इंटर्नशिप में भाग लिया है.

एचसीयू इस दिशा में अग्रणी
भारत के 56 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय ही एकमात्र ऐसा यूनिवर्सिटी है जो सूक्ष्म अनाजों पर इतने बड़े पैमाने पर शोध कर रहा है. विश्वविद्यालय बाजरे की अपनी अगली एडवांस किस्म जारी करने की तैयारी कर रहा है, जो बेहतर पोषण और कृषि स्थिरता का वादा करता है.

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