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अंधेरे में भी तलाशी उम्मीद की रोशनी, मिसाल बने असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल - ASSISTANT PROFESSOR MOHIT LAL

रांची विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत मोहित लाल दृष्टिबाधित होने के बावजूद अपने शिक्षण कौशल के लिए मिसाल बन गए हैं.

blind Assistant Professor Mohit Lal
असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 14, 2025 at 7:44 PM IST

Updated : May 16, 2025 at 3:54 PM IST

6 Min Read

रांची: रांची विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत मोहित लाल सिर्फ शिक्षक ही नहीं बल्कि एक मिसाल भी हैं. आठ साल की उम्र में जब उनकी आंखों की रोशनी चली गई तो जिंदगी ने उनके सामने बड़ी परीक्षा पेश की. लेकिन मोहित ने हार नहीं मानी. उन्होंने अंधेरे में भी उम्मीद की रोशनी तलाशी और अपनी मेहनत, हिम्मत और लगन से उसे और उज्जवल बनाया.

आज मोहित छात्रों को आधुनिक इतिहास पढ़ाते हैं. उनकी याददाश्त इतनी गजब की है कि एक बार जो भी सुन लेते हैं, वह हमेशा के लिए उनके दिमाग में दर्ज हो जाता है. उनकी क्लास में सिर्फ किताबें ही नहीं बल्कि जीवन के उदाहरणों का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि छात्र उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं. उनका मानना है कि परेशानी मानसिक प्रक्रिया है. अगर आप सोचें तो परेशानी है, ना सोचें तो परेशानी नहीं है.

मिसाल बने असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल की कहानी (ईटीवी भारत)

असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल का जीवन काफी संघर्षों भरा रहा है, लेकिन वह इसे संघर्ष की तरह नहीं देखते. वह शुरू से दृष्टिबाधित नहीं थे. बचपन में वह पूरी तरह से देख सकते थे. लेकिन एक बीमारी ने उनकी आंखों की रौशनी छीन ली.

"कठिनाई सबके जीवन में आती हैं. आंखें ठीक रहे या ना रहे. जीवन का सफर आराम से शायद ही किसी का कटता है. बिना गम और दर्द का कोई नहीं है. इसी तरह सफर में कई अड़चने आई, कुछ असुविधाएं भी हुईं. ऐसे ही जीवन चलता रहा. मेरे पिता एक केंद्रीय कर्मचारी थे. उन्हें हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया. जब मैं वहां गया, तो मुझे ब्लड डिसेंट्री हो गया. ब्लड डिसेंट्री ठीक होने के पहले ही टाइफाइड हो गया. टाइफाइड में डॉक्टर ने जो दवाई दी, उसका मुझपर दुष्प्रभाव हो गया. इसका रिएक्शन पूरे शरीर में हो गया. धीरे-धीरे पूरे शरीर में तो रिएक्शन ठीक हो गया. लेकिन आंखों में हुआ रिएक्शन ठीक नहीं हो पाया. चार से पांच साल तक इसका इलाज चलता रहा. 1981 तक इलाज चलता रहा. अंत में तय हुआ कि ये तो ठीक नहीं होगा. लेकिन मुझे पढ़ाई शुरू करनी थी." - मोहित लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर

दृष्टि बाधित होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और पढ़ाई करने की सोची. उन्होंने रांची से ही अपनी पूरी पढ़ाई पूरी की. रांची के संत माइकल ब्लाइंड स्कूल और संत जेवियर कॉलेज का इसमें बड़ा रोल रहा.

"1981 में मेरा दाखिला संत माइकल ब्लाइंड स्कूल में हो गया. वहां मैंने ब्रेल तकनीक से पढ़ाई की. वहीं से मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी की. उसके बाद 1983-84 में घर से ही मैट्रिक की पढ़ाई की. 1985 में बोर्ड की परीक्षा दी. उसके बाद रांची के संत जेवियर्स कॉलेज से इंटर और स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वहीं से हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. उसके बाद सीएन लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की. उसके बाद नेट की परीक्षा दी. इसके बाद मैं लेक्चरर बन गया. 2021 में मैंने पीएचडी की." - मोहित लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर

टीचिंग कैरियर के बारे में मोहित लाल ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने धनबाद में पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद से अब तक 25 सालों से वह छात्रों को पढ़ा रहे हैं.

"मैं 2001 में टीचिंग जॉब में आया. सात सालों तक धनबाद के एक कॉलेज में पढ़ाया. 2008 में फिर रांची यूनिवर्सिटी के एसएस मेमोरियल कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया. वहां 14 साल तक पढ़ाया. 2022 में फिर पीजी में ट्रांसफर हो गया." - मोहित लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर

असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल को उनके साथी बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति मानते हैं. उनके साथ काम करने वाले अन्य प्रोफेसर उनकी यादाश्त और एकाग्रता के कायल हैं.

"मोहित लाल बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं. भगवान ने उनसे कुछ छीना है तो बदले में बहुत कुछ दिया भी है. लेकिन मोहित लाल ने सभी विपरीत परिस्थितियों को तोड़ मरोड़कर खुद को तैयार किया है. उनके जीवन में आलस्य के लिए कोई जगह नहीं है. जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे किताबें खरीद कर अपने दोस्तों को पढ़वाते हैं और उस ज्ञान को खुद ग्रहण करते हैं. उनके जीवन में विविधता नहीं होने के कारण उनकी एकाग्रता बढ़ गई है. इसका नतीजा यह हुआ है कि वे जो भी सुनते हैं, उसे याद रख लेते हैं. उनकी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है." - संजीव लोचन, असिस्टेंट प्रोफेसर

जो बात दूसरे कई बार समझाते हैं, मोहित सर एक ही बार में दिल तक पहुंचा देते हैं. दृष्टिबाधित होना कभी उनके लिए बाधा नहीं बनी. तय समय से पहले सिलेबस खत्म करना, रिवीजन करवाना और परीक्षा की तैयारी में छात्रों के साथ खड़े रहना- यही उनकी आदत है.

छात्रों ने बताया कि सर ना देखकर भी बहुत सारी चीजों को देख पाते हैं. वे वैसी चीजों को भी देख पाते हैं जो हम आंखे होने के बाद भी नहीं देख पाते हैं. उन्होंने बताया कि सर हमें बहुत ही अच्छे तरीके से बताते हैं. वे जो भी बताते हैं हमें अच्छे से समझ में आ जाता है. छात्र एक्स्ट्रा क्लास में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि मोहित सर से उन्हें सिर्फ शिक्षा ही नहीं बल्कि जिंदगी को देखने का नजरिया भी मिलेगा.

निजी जीवन में मोहित आत्मनिर्भर हैं. वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं, लेकिन किसी पर निर्भर नहीं हैं. गाने सुनना और रेडियो सुनना उनका शौक है. वह हर काम खुद करना पसंद करते हैं - यही उनकी आत्मशक्ति का सबूत है. मोहित लाल की कहानी हमें बताती है कि भले ही आंखें न देख पाएं, लेकिन अगर इरादे में रोशनी हो, तो कोई भी रास्ता अंधेरा नहीं होता.

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रांची: रांची विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत मोहित लाल सिर्फ शिक्षक ही नहीं बल्कि एक मिसाल भी हैं. आठ साल की उम्र में जब उनकी आंखों की रोशनी चली गई तो जिंदगी ने उनके सामने बड़ी परीक्षा पेश की. लेकिन मोहित ने हार नहीं मानी. उन्होंने अंधेरे में भी उम्मीद की रोशनी तलाशी और अपनी मेहनत, हिम्मत और लगन से उसे और उज्जवल बनाया.

आज मोहित छात्रों को आधुनिक इतिहास पढ़ाते हैं. उनकी याददाश्त इतनी गजब की है कि एक बार जो भी सुन लेते हैं, वह हमेशा के लिए उनके दिमाग में दर्ज हो जाता है. उनकी क्लास में सिर्फ किताबें ही नहीं बल्कि जीवन के उदाहरणों का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि छात्र उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं. उनका मानना है कि परेशानी मानसिक प्रक्रिया है. अगर आप सोचें तो परेशानी है, ना सोचें तो परेशानी नहीं है.

मिसाल बने असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल की कहानी (ईटीवी भारत)

असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल का जीवन काफी संघर्षों भरा रहा है, लेकिन वह इसे संघर्ष की तरह नहीं देखते. वह शुरू से दृष्टिबाधित नहीं थे. बचपन में वह पूरी तरह से देख सकते थे. लेकिन एक बीमारी ने उनकी आंखों की रौशनी छीन ली.

"कठिनाई सबके जीवन में आती हैं. आंखें ठीक रहे या ना रहे. जीवन का सफर आराम से शायद ही किसी का कटता है. बिना गम और दर्द का कोई नहीं है. इसी तरह सफर में कई अड़चने आई, कुछ असुविधाएं भी हुईं. ऐसे ही जीवन चलता रहा. मेरे पिता एक केंद्रीय कर्मचारी थे. उन्हें हिमाचल प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया गया. जब मैं वहां गया, तो मुझे ब्लड डिसेंट्री हो गया. ब्लड डिसेंट्री ठीक होने के पहले ही टाइफाइड हो गया. टाइफाइड में डॉक्टर ने जो दवाई दी, उसका मुझपर दुष्प्रभाव हो गया. इसका रिएक्शन पूरे शरीर में हो गया. धीरे-धीरे पूरे शरीर में तो रिएक्शन ठीक हो गया. लेकिन आंखों में हुआ रिएक्शन ठीक नहीं हो पाया. चार से पांच साल तक इसका इलाज चलता रहा. 1981 तक इलाज चलता रहा. अंत में तय हुआ कि ये तो ठीक नहीं होगा. लेकिन मुझे पढ़ाई शुरू करनी थी." - मोहित लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर

दृष्टि बाधित होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और पढ़ाई करने की सोची. उन्होंने रांची से ही अपनी पूरी पढ़ाई पूरी की. रांची के संत माइकल ब्लाइंड स्कूल और संत जेवियर कॉलेज का इसमें बड़ा रोल रहा.

"1981 में मेरा दाखिला संत माइकल ब्लाइंड स्कूल में हो गया. वहां मैंने ब्रेल तकनीक से पढ़ाई की. वहीं से मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी की. उसके बाद 1983-84 में घर से ही मैट्रिक की पढ़ाई की. 1985 में बोर्ड की परीक्षा दी. उसके बाद रांची के संत जेवियर्स कॉलेज से इंटर और स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वहीं से हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. उसके बाद सीएन लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की. उसके बाद नेट की परीक्षा दी. इसके बाद मैं लेक्चरर बन गया. 2021 में मैंने पीएचडी की." - मोहित लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर

टीचिंग कैरियर के बारे में मोहित लाल ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने धनबाद में पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद से अब तक 25 सालों से वह छात्रों को पढ़ा रहे हैं.

"मैं 2001 में टीचिंग जॉब में आया. सात सालों तक धनबाद के एक कॉलेज में पढ़ाया. 2008 में फिर रांची यूनिवर्सिटी के एसएस मेमोरियल कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया. वहां 14 साल तक पढ़ाया. 2022 में फिर पीजी में ट्रांसफर हो गया." - मोहित लाल, असिस्टेंट प्रोफेसर

असिस्टेंट प्रोफेसर मोहित लाल को उनके साथी बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति मानते हैं. उनके साथ काम करने वाले अन्य प्रोफेसर उनकी यादाश्त और एकाग्रता के कायल हैं.

"मोहित लाल बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं. भगवान ने उनसे कुछ छीना है तो बदले में बहुत कुछ दिया भी है. लेकिन मोहित लाल ने सभी विपरीत परिस्थितियों को तोड़ मरोड़कर खुद को तैयार किया है. उनके जीवन में आलस्य के लिए कोई जगह नहीं है. जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे किताबें खरीद कर अपने दोस्तों को पढ़वाते हैं और उस ज्ञान को खुद ग्रहण करते हैं. उनके जीवन में विविधता नहीं होने के कारण उनकी एकाग्रता बढ़ गई है. इसका नतीजा यह हुआ है कि वे जो भी सुनते हैं, उसे याद रख लेते हैं. उनकी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है." - संजीव लोचन, असिस्टेंट प्रोफेसर

जो बात दूसरे कई बार समझाते हैं, मोहित सर एक ही बार में दिल तक पहुंचा देते हैं. दृष्टिबाधित होना कभी उनके लिए बाधा नहीं बनी. तय समय से पहले सिलेबस खत्म करना, रिवीजन करवाना और परीक्षा की तैयारी में छात्रों के साथ खड़े रहना- यही उनकी आदत है.

छात्रों ने बताया कि सर ना देखकर भी बहुत सारी चीजों को देख पाते हैं. वे वैसी चीजों को भी देख पाते हैं जो हम आंखे होने के बाद भी नहीं देख पाते हैं. उन्होंने बताया कि सर हमें बहुत ही अच्छे तरीके से बताते हैं. वे जो भी बताते हैं हमें अच्छे से समझ में आ जाता है. छात्र एक्स्ट्रा क्लास में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि मोहित सर से उन्हें सिर्फ शिक्षा ही नहीं बल्कि जिंदगी को देखने का नजरिया भी मिलेगा.

निजी जीवन में मोहित आत्मनिर्भर हैं. वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं, लेकिन किसी पर निर्भर नहीं हैं. गाने सुनना और रेडियो सुनना उनका शौक है. वह हर काम खुद करना पसंद करते हैं - यही उनकी आत्मशक्ति का सबूत है. मोहित लाल की कहानी हमें बताती है कि भले ही आंखें न देख पाएं, लेकिन अगर इरादे में रोशनी हो, तो कोई भी रास्ता अंधेरा नहीं होता.

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Last Updated : May 16, 2025 at 3:54 PM IST
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