चेन्नई: अगर आप कोई भी कारोबार, इनोवेशन और विजन के साथ शुरू करते हैं, तो सफलता अपने आप ही मिल जाएगी. बस इसके लिए आपको जरा हटकर और बड़ा सोचना होगा. इसकी एक मिसाल चेन्नई के राजीव है, जो चाय की बिक्री में इनोवेशन करके कमाई के रिकॉर्ड बना रहे हैं. वहीं चाय, जिसे हम हर दिन पीते हैं.चाहे खुशी हो, चिंता हो या तनाव चाय ही एक ऐसी चीज है जो कम खर्च में हमें तरोताजा कर देती है.
चेन्नई जैसे महानगरों में चाय की दुकान चलाना काफी मुनाफे वाला कारोबार है. इसलिए, जैसे-जैसे दुकानों की संख्या बढ़ रही है, दुकानदारों ने चाय प्रोडक्शन में अपनी यूनीकनेस दिखाने के लिए विभिन्न स्वादों वाली चाय बेचना शुरू कर दिया है. ऐसे ही एक व्यक्ति हैं चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास 'दीया स्नैक्स' के मालिक राजीव. राजीव की दुकान की खासियत यह है कि इसमें 100 तरह की चाय मिलती है.
8 फीट लंबी, 8 फीट चौड़ी, दुकान के ऊपर एक बड़ा पीला बोर्ड... उस पर लिखे 100 तरह की चाय के नाम... उमड़ते ग्राहक... चाय मास्टर जो उनकी मांग के अनुसार चाय बनाता है... यह दुकान चहल-पहल से गुलजार है.

100 तरह की चाय
इस दुकान पर 100 तरह की चाय मिलती है, जिसमें दार्जिलिंग ब्लैक, काली मिर्च, अवरमपू, कपूर, धनिया जैसी चाय शामिल है, जिसके बारे में हमने पहले कभी नहीं सुना. एक चाय की मिनिमम कीमत 12 रुपये है, जबकि अधिकतम कीमत 20 रुपये है.
जब हम वहां गए तो दुकान के मालिक राजीव ग्राहकों की देखभाल में व्यस्त थे. हमने भी नाम अजीब समझकर 'दार्जिलिंग ब्लैक टी' का ऑर्डर दिया और उनसे बात करने लगे. फिर उन्होंने कहा, "मैं 15 साल से यह दुकान चला रहा हूं मेरा गृहनगर पलक्कड़ है. मेरे पिताजी की वहां चाय की दुकान थी. हम वहां से काम के लिए चेन्नई आए थे."
अस्पताल के अंदर चाय की दुकान चलाते थे
उन्होंने बताया कि शुरू में वह एक अस्पताल के अंदर चाय की दुकान चलाते थे. जब किसी डॉक्टर को हल्का बुखार, सिरदर्द होता था तो वे हमारी दुकान पर आते और अदरक, हल्दी और काली मिर्च वाली चाय मांगते. यहीं से मुझे एक ऐसी दुकान खोलने का विचार आया, जहां 100 तरह की चाय बेची जा सके. राजीव ने कहा कि कोरोना काल में बिक्री में भारी गिरावट आई. उसका खत्म होना ही था कि हमने जो 'दार्जिलिंग ब्लैक टी' ऑर्डर की थी, वह आ गई.
दार्जिलिंग में ठंड होती है... हमें आश्चर्य है कि यह चाय कैसी होगी? हम सोचते-सोचते मुंह बंद कर लेते हैं लेकिन, उस चाय का स्वाद अलग था. उस समय बोलते हुए राजीव ने कहा, "जड़ी-बूटियां कहां से मिलेंगी? उनके क्या-क्या फायदे हैं? मैं उनके बारे में थोड़ा-बहुत जानता हूं.मैं उन्हें ले आया और अपनी चाय की दुकान में भी उनका इस्तेमाल करने लगा. शुरुआत में हम सिर्फ अदरक, काली मिर्च और टिपिली वाली चाय बेचते थे. फिर हमने धीरे-धीरे चाय के फ्लेवर की संख्या बढ़ाकर 100 कर दी. कोरोना काल से पहले सभी फ्लेवर की चाय कुछ हद तक बिक रही थी. उसके बाद सेल कम हो गई. अब सिर्फ 30 तरह की चाय बिक रही है."

तभी चाय वाले ने कुछ पूछा और अपनी शंकाओं का समाधान करते हुए दुकान मालिक राजीव हमारे पास वापस आए. उन्होंने कहा, "हम सिर्फ चाय बनाने वालों को ही मास्टर नहीं रखते. उन्हें जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए. कोरोना के कुछ महीनों बाद ही दुकान में फिर से कारोबार शुरू हो गया है. कुछ ही दिनों में हमारी दुकान में फिर से 100 तरह की चाय मिलने लगेगी."
प्रसिद्ध ब्लैककरंट कॉफी
"हमारी दुकान में करुप्पट्टी कॉफी बहुत लोकप्रिय है. हम इसे लगभग 28 जड़ी-बूटियों से तैयार करते हैं. हम तुलसी, अदरक, काली मिर्च, मेथी, सुक्कू, ब्लैककरंट और कुछ अन्य जड़ी-बूटियां मिलाकर करुप्पट्टी कॉफ़ी बेचते हैं. यह हमारी दुकान में सबसे ज्यादा बिकने वाला प्रोडक्ट है.
'हमने बीज बोए'
राजीव ने गर्व से कहा, "अगर हमारी तबियत ठीक नहीं होती तो हम घर पर ही सुक्कू, काली मिर्च आदि का काढ़ा बना लेते हैं. इससे हमें बीमारियों से लड़ने की थोड़ी प्रतिरोधक क्षमता मिलती है. यह भी वैसा ही है. करुपट्टी कॉफी अब हर जगह पहुंच गई है. हम जहां भी जाते हैं, करुपट्टी कॉफी की दुकानें हमारी नजरों में आ जाती हैं. हमने इन सबके लिए बीज बोए."
क्या आपकी कोई ब्रांच है?
सोमवार से शुक्रवार तक दुकान पर भीड़ रहती है. शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों पर ग्राहकों की संख्या कम होती है. इसके हाज हमने राजीव से पूछा कि क्या आपकी कहीं कोई ब्रांच है? इस पर उन्होंने कहा, "बहुत से लोग हमारे नाम से फ़्रैंचाइजी के जरिए दुकान चलाने के लिए आगे आ रहे हैं, लेकिन अगर आप ऐसा करना चाहते हैं, तो आपको यहां 6 महीने काम करना होगा और ट्रेनिंग लेनी होगी, क्योंकि हम जड़ी-बूटियों का कारोबार करते हैं, इसलिए आपको यह समझना होगा कि उन्हें ठीक से कैसे रखा जाए और चाय कैसे बनाई जाए. वर्तमान में यहां कोई भी मजदूर उपलब्ध नहीं है. इसलिए हम उत्तर भारतीय कर्मचारियों के साथ काम कर रहे हैं."

चाय बनाने के लिए जरूरी जड़ी-बूटियां कहांसे खरीदते हैं? हमने झिझकते हुए 'ट्रेड सीक्रेट' वाला सवाल पूछा. इस पर राजीव ने कहा, "पहले मैं हर शुक्रवार को जड़ी-बूटियां लाने गांव जाता था. चूंकि कोरोना काल में हम बार-बार आना-जाना नहीं कर सकते थे और चेन्नई में हमारी आजीविका भी बदल गई है, इसलिए हमने अपने घर की छत पर गुड़हल और तुलसी उगाना शुरू कर दिया है. हम उपनगरों में जड़ी-बूटी का बगीचा लगाने के लिए जगह तलाश रहे हैं."
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