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कभी हथियार के बल पर गांवों में माओवादी हर घर से मांगते थे बच्चा! माओवादियों के ट्रेनिंग सेंटर रहे इलाके में बदल रहे हैं हालात - TRAINING CENTRE OF MAOISTS

झारखंड में नक्सलियों का पूरी तरह से खात्मा होने वाला है. नक्सली आतंक से बाहर निकल लोग अब सुकून से जी रहे हैं.

TRAINING CENTRE OF MAOISTS
ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 12, 2025 at 7:00 PM IST

6 Min Read

पलामूः लातेहार के जयगिर गांव के रहने वाले संजय लोहरा को माओवादियों ने हथियार के बल पर अपने दस्ते में शामिल करने की कोशिश की थी. यह दौर था 2022-23 का माओवादी लगातार संजय को दस्ते शामिल होने का दबाव बना रहे थे. लेकिन उसी दौरान सुरक्षाबलों का अभियान ऑक्टोपस शुरू हुआ, जिसके बाद माओवादियों की स्थिति कमजोर हो गई और संजय माओवादियों के दस्ते में शामिल होन से बच गया.

संजय इकलौता युवक नही हैं जिसे माओवादी अपने दस्ते में शामिल करना चाहते थे. यह कहानी हर उस गांव की है जो बूढ़ापहाड़ और जयगिर पहाड़ के इलाके में है. माओवादी फरमान जारी कर हर घर से एक एक बच्चे की मांग करते थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. बूढ़ापहाड़ एवं जयगिर के इलाके में सुरक्षा बलों का कब्जा हो गया है. अब ग्रामीण सुकून के साथ रह रहे और मुख्यधारा में शामिल हुए हैं.

कभी हथियार के बल पर गांवों में माओवादी हर घर से मांगते थे बच्चा (ईटीवी भारत)
हर घर से मांगा जाता था बच्चा, माओवादी मजदूरों की तरह करवाते थे काम

बूढ़ापहाड़ से सटे हुए तिसिया, नावाटोली, बहेराटोली, हेसातु, पुंदाग, जयगिर समेत दर्जनों गांव हैं जहां से बच्चों की मांग की गई थी. कई मौकों पर माओवादी बच्चों को दस्ते में शामिल करने में सफल रहे. लेकिन स्थानीय ग्रामीणों में विरोध को देखते हुए बच्चो को अधिक दिन तक साथ नही रख पाए.

TRAINING CENTRE OF MAOISTS
माओवादी हर घर से मांगते थे बच्चा (ईटीवी भारत)

माओवादी गांव में बैठक कर बच्चों की मांग करते थे, नहीं देने पर हथियार का भय दिखाया जाता था. माओवादी ग्रामीणों से खाना भी मांगते थे, मजदूरी भी करवाते थे और बच्चों को भी मांगते थे. कोई व्यक्ति दिन भर खेत में काम किया या मजदूरी किया हो, उससे भी रात में माओवादी अपना काम करवाते थे. अपना सामान ढुलवाते या रास्ता दिखाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलते थे.

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ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
हर घर से एक बेटा चाहिए यही बोला जाता था. हथियार का भय दिखाया जाता था. इंकार करने पर धमकी दी जाती थी. दिन में अपना काम करते थे. रात में माओवादी गांव में पहुंचने के बाद समान ढुलवाते या अन्य काम करवाने लगते थे. -रायमल बृजिया, ग्रामीण
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ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
माओवादियों ने दस्ते में शामिल करने के लिए कई बार दबाव बनाया था, हथियार का बल भी दिखाते थे, लेकिन दस्ते में शामिल करने में माओवादी सफल नहीं रहे. माओवादियों की धमकी के बाद डर भी लगता था. - संजय लोहरा, ग्रामीण, जयगिर
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ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
हर घर से माओवादियों ने एक बच्चा मांगा था लेकिन ग्रामीणों ने इनकार कर दिया था. बाद में माओवादियों के द्वारा इस विषय में कुछ नहीं कहा गया था- सोना देवी, ग्रामीण
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ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की थी. इसी दौरान अचानक रात में हल्ला हुआ कि माओवादी हर घर से बच्चे को ले जा रहे हैं. उस रात वे उनका भाई किसी तरह बच के गांव से बाहर निकले. इंटर तक की पढ़ाई पूरा करने के बाद 2024 में वो वापस गांव में लौटे हैं. - सेजल सिंह, ग्रामीण, चेमो सान्यामाओवादी क्यों मांगते थे हर घर से बच्चा, ग्रामीणों ने किया था विरोध

2017-18 के बाद से पुलिस एवं सुरक्षाबलों ने माओवादियों के इलाके में घेराबंदी शुरू की थी. यह वह दौर था जब माओवादियों के दस्ते में नए कैडर शामिल होना बंद हो गए थे. माओवादियों के कैडर बड़ी संख्या में पकड़े जा रहे थे और दस्ता छोड़कर भाग रहे थे.

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माओवादी क्यों मांगते थे बच्चा (ईटीवी भारत)

इसके बाद माओवादियों ने कैडर को बढ़ाने के लिए अपने गढ़ में हर घर से बच्चों की मांग शुरू की थी. लेकिन स्थानीय ग्रामीणों ने इसका विरोध भी शुरू किया था. ग्रामीणों के विरोध के कारण माओवादियों को यह डर था कि स्थनीय स्तर पर मिलने वाली मदद खत्म हो जाएगी.

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केस स्टडी 01 (ईटीवी भारत)
केस स्टडी -01

2023-24 में जयगिर पहाड़ के इलाके में टॉप माओवादी छोटू खरवार ने अपने दस्ते में दो आदिवासी बच्चों को शामिल कर लिया था. छह से सात महीने के बाद दोनों बच्चे वापस लौट गए थे, जिसके बाद ग्रामीणों ने जश्न मनाते हुए पूजा पाठ भी किया था.

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केस स्टडी 02 (ईटीवी भारत)
केस स्टडी 02

2018-19 में बूढ़ा पहाड़ के बहेराटोली के इलाके में पांच बच्चों को उठाकर ले गए थे. बाद में ग्रामीणों ने जोरदार विरोध किया था, जिसके बाद सभी बच्चों को वापस माओवादियों ने कर दिया था. सामान को ढुलवाने के लिए माओवादी बच्चों को ले गए थे.

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केस स्टडी 03 (ईटीवी भारत)

केस स्टडी 03

2016 में लातेहार के छिपादोहर के इलाके में सर्च अभियान में पुलिस ने एक 13 वर्षीय नाबालिह को दस्ते से मुक्त करवाया था. वहीं 2015 में लातेहार में एक लड़की को मुक्त करवाया था.

माओवादियों के कमजोर होने के बाद सुकून से जीवन जी रहे ग्रामीण

माओवादी जिस इलाके में ग्रामीणों से बच्चे की मांग करते थे, उस इलाके में हालात बदल गए हैं. अब कोई भी ग्रामीणों से दस्ते में शामिल करने के लिए बच्चों की मांग नहीं करता है. बूढ़ापहाड़ और जयगिर के इलाके में हालात बदल गए हैं. बूढ़ापहाड़ इलाके में दो हजार से भी अधिक जवान तैनात हैं. बच्चे बेखौफ होकर स्कूल जा रहे हैं और ग्रामीण मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं.

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ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
नक्सल प्रभावित इलाकों में हालात बदले हैं और लोग मुख्यधारा में शामिल हुए हैं. सामुदायिक पुलिसिंग ने एक बड़ा बदलाव लाया है. दूर दराज वाले इलाकों में पुलिस एवं सुरक्षाबलों की पहुंच हुई है. इलाके में एक सुरक्षित माहौल तैयार हुआ है और लोग मुख्यधारा में शामिल हुए हैं. बचे हुए नक्सलियों से भी मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की जा रही है. - सुनील भास्कर, आईजी, पलामू

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संजय इकलौता युवक नही हैं जिसे माओवादी अपने दस्ते में शामिल करना चाहते थे. यह कहानी हर उस गांव की है जो बूढ़ापहाड़ और जयगिर पहाड़ के इलाके में है. माओवादी फरमान जारी कर हर घर से एक एक बच्चे की मांग करते थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. बूढ़ापहाड़ एवं जयगिर के इलाके में सुरक्षा बलों का कब्जा हो गया है. अब ग्रामीण सुकून के साथ रह रहे और मुख्यधारा में शामिल हुए हैं.

कभी हथियार के बल पर गांवों में माओवादी हर घर से मांगते थे बच्चा (ईटीवी भारत)
हर घर से मांगा जाता था बच्चा, माओवादी मजदूरों की तरह करवाते थे काम

बूढ़ापहाड़ से सटे हुए तिसिया, नावाटोली, बहेराटोली, हेसातु, पुंदाग, जयगिर समेत दर्जनों गांव हैं जहां से बच्चों की मांग की गई थी. कई मौकों पर माओवादी बच्चों को दस्ते में शामिल करने में सफल रहे. लेकिन स्थानीय ग्रामीणों में विरोध को देखते हुए बच्चो को अधिक दिन तक साथ नही रख पाए.

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माओवादी हर घर से मांगते थे बच्चा (ईटीवी भारत)

माओवादी गांव में बैठक कर बच्चों की मांग करते थे, नहीं देने पर हथियार का भय दिखाया जाता था. माओवादी ग्रामीणों से खाना भी मांगते थे, मजदूरी भी करवाते थे और बच्चों को भी मांगते थे. कोई व्यक्ति दिन भर खेत में काम किया या मजदूरी किया हो, उससे भी रात में माओवादी अपना काम करवाते थे. अपना सामान ढुलवाते या रास्ता दिखाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलते थे.

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ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)
हर घर से एक बेटा चाहिए यही बोला जाता था. हथियार का भय दिखाया जाता था. इंकार करने पर धमकी दी जाती थी. दिन में अपना काम करते थे. रात में माओवादी गांव में पहुंचने के बाद समान ढुलवाते या अन्य काम करवाने लगते थे. -रायमल बृजिया, ग्रामीण
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माओवादियों ने दस्ते में शामिल करने के लिए कई बार दबाव बनाया था, हथियार का बल भी दिखाते थे, लेकिन दस्ते में शामिल करने में माओवादी सफल नहीं रहे. माओवादियों की धमकी के बाद डर भी लगता था. - संजय लोहरा, ग्रामीण, जयगिर
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हर घर से माओवादियों ने एक बच्चा मांगा था लेकिन ग्रामीणों ने इनकार कर दिया था. बाद में माओवादियों के द्वारा इस विषय में कुछ नहीं कहा गया था- सोना देवी, ग्रामीण
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आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की थी. इसी दौरान अचानक रात में हल्ला हुआ कि माओवादी हर घर से बच्चे को ले जा रहे हैं. उस रात वे उनका भाई किसी तरह बच के गांव से बाहर निकले. इंटर तक की पढ़ाई पूरा करने के बाद 2024 में वो वापस गांव में लौटे हैं. - सेजल सिंह, ग्रामीण, चेमो सान्यामाओवादी क्यों मांगते थे हर घर से बच्चा, ग्रामीणों ने किया था विरोध

2017-18 के बाद से पुलिस एवं सुरक्षाबलों ने माओवादियों के इलाके में घेराबंदी शुरू की थी. यह वह दौर था जब माओवादियों के दस्ते में नए कैडर शामिल होना बंद हो गए थे. माओवादियों के कैडर बड़ी संख्या में पकड़े जा रहे थे और दस्ता छोड़कर भाग रहे थे.

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माओवादी क्यों मांगते थे बच्चा (ईटीवी भारत)

इसके बाद माओवादियों ने कैडर को बढ़ाने के लिए अपने गढ़ में हर घर से बच्चों की मांग शुरू की थी. लेकिन स्थानीय ग्रामीणों ने इसका विरोध भी शुरू किया था. ग्रामीणों के विरोध के कारण माओवादियों को यह डर था कि स्थनीय स्तर पर मिलने वाली मदद खत्म हो जाएगी.

TRAINING CENTRE OF MAOISTS
केस स्टडी 01 (ईटीवी भारत)
केस स्टडी -01

2023-24 में जयगिर पहाड़ के इलाके में टॉप माओवादी छोटू खरवार ने अपने दस्ते में दो आदिवासी बच्चों को शामिल कर लिया था. छह से सात महीने के बाद दोनों बच्चे वापस लौट गए थे, जिसके बाद ग्रामीणों ने जश्न मनाते हुए पूजा पाठ भी किया था.

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केस स्टडी 02 (ईटीवी भारत)
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2018-19 में बूढ़ा पहाड़ के बहेराटोली के इलाके में पांच बच्चों को उठाकर ले गए थे. बाद में ग्रामीणों ने जोरदार विरोध किया था, जिसके बाद सभी बच्चों को वापस माओवादियों ने कर दिया था. सामान को ढुलवाने के लिए माओवादी बच्चों को ले गए थे.

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2016 में लातेहार के छिपादोहर के इलाके में सर्च अभियान में पुलिस ने एक 13 वर्षीय नाबालिह को दस्ते से मुक्त करवाया था. वहीं 2015 में लातेहार में एक लड़की को मुक्त करवाया था.

माओवादियों के कमजोर होने के बाद सुकून से जीवन जी रहे ग्रामीण

माओवादी जिस इलाके में ग्रामीणों से बच्चे की मांग करते थे, उस इलाके में हालात बदल गए हैं. अब कोई भी ग्रामीणों से दस्ते में शामिल करने के लिए बच्चों की मांग नहीं करता है. बूढ़ापहाड़ और जयगिर के इलाके में हालात बदल गए हैं. बूढ़ापहाड़ इलाके में दो हजार से भी अधिक जवान तैनात हैं. बच्चे बेखौफ होकर स्कूल जा रहे हैं और ग्रामीण मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं.

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