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बंदरों को जब जंगल में नहीं मिलता पानी तो ढूंढ़ते हैं यह पेड़, खासियत जानकर हर कोई हैरान - LANGUR QUENCH THIRST WITH TREE

मध्य प्रदेश के जंगलों में एक ऐसा पेड़ पाया जाता है जो गर्मियों में छोड़ता है पसीना. लंगूरों के लिए कैसे वरदान है यह पेड़. पढ़िए एक्सप्लेनर खबर.

LANGUR QUENCH THIRST WITH TREE
बंदरों को जब जंगल में नहीं मिलता पानी तो ढूंढ़ते हैं यह पेड़ (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 30, 2025 at 4:24 PM IST

Updated : May 30, 2025 at 9:08 PM IST

5 Min Read

सिवनी (महेंद्र राय): इंसान हो या जानवर जब प्यास लगती है, तो वह सबसे पहले पानी की तलाश करता है. इसलिए कहा गया है जल ही जीवन है. क्या आप जानते हैं जब काले मुंह के बंदरों यानि लंगूर को प्यास लगती है, तो वह पानी को तलाशने के बजाय, एक ऐसे पेड़ को ढूंढते हैं. जिसके पसीना से अपनी प्यास बुझाकर शरीर में होने वाले पानी की कमी को पूरा करते हैं. पेंच टाइगर और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में ऐसे काले मुंह के बंदरों की भरमार है. आईए जानते हैं आखिर यह पेड़ अपने पसीने से कैसे लंगूरों की प्यास बुझाता है.

पेड़ का पसीना चूसकर प्यास बुझाते हैं लंगूर

काले मुंह वाले बंदरों को लंगूर कहा जाता है. पेंच टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में इन बंदरों की संख्या हजारों में है. गर्मी के मौसम में जब पानी की कमी होती है, तो जानवर हो या इंसान पानी की तलाश में कुआं, तालाब या नदियों को ढूंढते हैं, लेकिन काले मुंह के बंदर यानी लंगूर पानी की तलाश करने की बजाए एक पेड़ को ढूंढते हैं. जिसका पसीना चूसकर प्यास बुझाते हैं और शरीर में होने वाली पानी की कमी को भी पूरा कर लेते हैं.

MOPANE TREE EMITS SWEAT
मोपेन के पेड़ से प्यास बुझाते लंगूर (Pench Tiger Reserve Image)

हालांकि ऐसा नहीं है कि लंगूर पानी नहीं पीते हैं. आम इंसानों और जानवरों की तरह वह भी पानी पीते हैं. वे पानी पीने के लिए जल स्त्रोतों जैसे नदी, तालाब, झील और पेड़ों के बिलों में जमा पानी को पीते हैं. जब भीषण गर्मी में जंगलों में आसानी से पानी नहीं मिलता, या नदी-नाले सूख जाते हैं, तो ऐसे में लंगूर इन पेड़ों के रस लेकर अपनी प्यास बुझाते हैं.

मोपेन के पेड़ से निकलता है पसीना

वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया "मोपेन का पेड़ दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है. जो वहां की लकड़ियों में सबसे वजनदार लकड़ियां मानी जाती है. इसे स्थानीय भाषा में 'मोयन' कहा जाता है. जिसका वनस्पतिक नाम कोलोफोस्पर्मम है. इसकी गुर्दे के आकार की फलियां और विशिष्ट तितली के आकार की पत्तियां होती हैं. जो शरद ऋतु में चमकीले हरे रंग से सुनहरे भूरे रंग में बदल जाती है.

MOPANE TREES IN PENCH TIGER RESERVE
मोपेन पेड़ की खासियत (ETV Bharat Info)

यह पेड़ गर्म, शुष्क, मिट्टी जैसी मिट्टी वाले निचले इलाकों में पाया जाता है. इसकी काफी मात्रा पेंच टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा के घने जंगलों में पाई जाती है. इस पेड़ से पसीना जैसा एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है. अगर यह सूख जाए तो यह गोंद के काम भी आता है. कुछ पेड़ों के तनों से नेचुरल रूप से रस निकलता है. यह रस चिपचिपा होता है, फिर जब यह रस निकलता है, तो सूख जाता है. इस सूखे और जमे हुए रस को ही गोंद कहा जाता है. जिस भी पेड़ से गोंद निकलता है, उसके औषधीय गुण इस गोंद में भी पाए जाते हैं."

LANGUR TAKE JUICE OF MOPANE TREE
पेड़ों का रस लेकर प्यास बुझाते लंगूर (Getty Image)

इन पेड़ों से भी निकलता है पसीना

वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि "भारत में महत्वपूर्ण गोंद देने वाले पेड़ बबूल नीलोटिका (बाबुल), कत्था (खैर), स्टेरुकुलिया यूरेन्स (कुल्लू), एनोजिसस लैटिफोलिया (धौरा), बुटिया मोनोस्पर्मा (पलास), बाउहिनिया रेटुसा (सेमल), लैनिया कोरोमंडेलिका (लेंडिया) और अज़ादिराचता इंडिका और नीम है. जिससे पसीना निकलता है और इस पसीने के सूख जाने के बाद वह गोंद बन जाती है.

जो कई दवाइयां के काम भी आती है. इसमें कई शरीर को फायदे देने वाले तत्व भी होते हैं, लेकिन काले मुंह के बंदर मोपेन के पेड़ से निकलने वाला पसीना ही पसंद करते हैं.

LANGUR TAKE JUICE OF MOPANE TREE
लंगूरों से जुड़ी जानकारी (ETV Bharat Info)

काले मुंह के बंदर और लाल मुंह के बंदर में अंतर

काले मुंह वाले बंदरों का चेहरा काला होता है. जबकि लाल बंदरों का चेहरा लाल या भूरे रंग का होता है. इनमें भी कई तरह के होते हैं. कुछ काले मुंह वाले बंदरों में जैसे कि बंगाल हनुमान लंगूर, चेहरा पूरी तरह काला होता है. जबकि उनके शरीर का फर हल्का ग्रे या चांदी जैसा होता है. लाल बंदरों की प्रजातियों में जैसे कि लाल पूंछ वाला बंदर, लाल चेहरे वाले मकड़ी बंदर और लाल गर्दन वाले चेहरे पर लाल या भूरे रंग के निशान होते हैं.

इंसानों के संपर्क में रहना पसंद करते हैं काले बंदर

काले मुंह वाले बंदर ज्यादातर शहर के आसपास के जंगल में पाए जाते हैं. लोगों के साथ व्यवहार करते हैं. जबकि लाल बंदर जंगलों में पाए जाते हैं. इंसानों के संपर्क में कम रहते हैं. काले मुंह वाले बंदरों को पकड़ने और उन्हें वन क्षेत्र में छोड़ने के लिए वन विभाग नियमों का पालन करता है. जबकि लाल बंदरों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है.

सिवनी (महेंद्र राय): इंसान हो या जानवर जब प्यास लगती है, तो वह सबसे पहले पानी की तलाश करता है. इसलिए कहा गया है जल ही जीवन है. क्या आप जानते हैं जब काले मुंह के बंदरों यानि लंगूर को प्यास लगती है, तो वह पानी को तलाशने के बजाय, एक ऐसे पेड़ को ढूंढते हैं. जिसके पसीना से अपनी प्यास बुझाकर शरीर में होने वाले पानी की कमी को पूरा करते हैं. पेंच टाइगर और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में ऐसे काले मुंह के बंदरों की भरमार है. आईए जानते हैं आखिर यह पेड़ अपने पसीने से कैसे लंगूरों की प्यास बुझाता है.

पेड़ का पसीना चूसकर प्यास बुझाते हैं लंगूर

काले मुंह वाले बंदरों को लंगूर कहा जाता है. पेंच टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में इन बंदरों की संख्या हजारों में है. गर्मी के मौसम में जब पानी की कमी होती है, तो जानवर हो या इंसान पानी की तलाश में कुआं, तालाब या नदियों को ढूंढते हैं, लेकिन काले मुंह के बंदर यानी लंगूर पानी की तलाश करने की बजाए एक पेड़ को ढूंढते हैं. जिसका पसीना चूसकर प्यास बुझाते हैं और शरीर में होने वाली पानी की कमी को भी पूरा कर लेते हैं.

MOPANE TREE EMITS SWEAT
मोपेन के पेड़ से प्यास बुझाते लंगूर (Pench Tiger Reserve Image)

हालांकि ऐसा नहीं है कि लंगूर पानी नहीं पीते हैं. आम इंसानों और जानवरों की तरह वह भी पानी पीते हैं. वे पानी पीने के लिए जल स्त्रोतों जैसे नदी, तालाब, झील और पेड़ों के बिलों में जमा पानी को पीते हैं. जब भीषण गर्मी में जंगलों में आसानी से पानी नहीं मिलता, या नदी-नाले सूख जाते हैं, तो ऐसे में लंगूर इन पेड़ों के रस लेकर अपनी प्यास बुझाते हैं.

मोपेन के पेड़ से निकलता है पसीना

वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया "मोपेन का पेड़ दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है. जो वहां की लकड़ियों में सबसे वजनदार लकड़ियां मानी जाती है. इसे स्थानीय भाषा में 'मोयन' कहा जाता है. जिसका वनस्पतिक नाम कोलोफोस्पर्मम है. इसकी गुर्दे के आकार की फलियां और विशिष्ट तितली के आकार की पत्तियां होती हैं. जो शरद ऋतु में चमकीले हरे रंग से सुनहरे भूरे रंग में बदल जाती है.

MOPANE TREES IN PENCH TIGER RESERVE
मोपेन पेड़ की खासियत (ETV Bharat Info)

यह पेड़ गर्म, शुष्क, मिट्टी जैसी मिट्टी वाले निचले इलाकों में पाया जाता है. इसकी काफी मात्रा पेंच टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा के घने जंगलों में पाई जाती है. इस पेड़ से पसीना जैसा एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है. अगर यह सूख जाए तो यह गोंद के काम भी आता है. कुछ पेड़ों के तनों से नेचुरल रूप से रस निकलता है. यह रस चिपचिपा होता है, फिर जब यह रस निकलता है, तो सूख जाता है. इस सूखे और जमे हुए रस को ही गोंद कहा जाता है. जिस भी पेड़ से गोंद निकलता है, उसके औषधीय गुण इस गोंद में भी पाए जाते हैं."

LANGUR TAKE JUICE OF MOPANE TREE
पेड़ों का रस लेकर प्यास बुझाते लंगूर (Getty Image)

इन पेड़ों से भी निकलता है पसीना

वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि "भारत में महत्वपूर्ण गोंद देने वाले पेड़ बबूल नीलोटिका (बाबुल), कत्था (खैर), स्टेरुकुलिया यूरेन्स (कुल्लू), एनोजिसस लैटिफोलिया (धौरा), बुटिया मोनोस्पर्मा (पलास), बाउहिनिया रेटुसा (सेमल), लैनिया कोरोमंडेलिका (लेंडिया) और अज़ादिराचता इंडिका और नीम है. जिससे पसीना निकलता है और इस पसीने के सूख जाने के बाद वह गोंद बन जाती है.

जो कई दवाइयां के काम भी आती है. इसमें कई शरीर को फायदे देने वाले तत्व भी होते हैं, लेकिन काले मुंह के बंदर मोपेन के पेड़ से निकलने वाला पसीना ही पसंद करते हैं.

LANGUR TAKE JUICE OF MOPANE TREE
लंगूरों से जुड़ी जानकारी (ETV Bharat Info)

काले मुंह के बंदर और लाल मुंह के बंदर में अंतर

काले मुंह वाले बंदरों का चेहरा काला होता है. जबकि लाल बंदरों का चेहरा लाल या भूरे रंग का होता है. इनमें भी कई तरह के होते हैं. कुछ काले मुंह वाले बंदरों में जैसे कि बंगाल हनुमान लंगूर, चेहरा पूरी तरह काला होता है. जबकि उनके शरीर का फर हल्का ग्रे या चांदी जैसा होता है. लाल बंदरों की प्रजातियों में जैसे कि लाल पूंछ वाला बंदर, लाल चेहरे वाले मकड़ी बंदर और लाल गर्दन वाले चेहरे पर लाल या भूरे रंग के निशान होते हैं.

इंसानों के संपर्क में रहना पसंद करते हैं काले बंदर

काले मुंह वाले बंदर ज्यादातर शहर के आसपास के जंगल में पाए जाते हैं. लोगों के साथ व्यवहार करते हैं. जबकि लाल बंदर जंगलों में पाए जाते हैं. इंसानों के संपर्क में कम रहते हैं. काले मुंह वाले बंदरों को पकड़ने और उन्हें वन क्षेत्र में छोड़ने के लिए वन विभाग नियमों का पालन करता है. जबकि लाल बंदरों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है.

Last Updated : May 30, 2025 at 9:08 PM IST
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