नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेशों को रद करने का फैसला लिया है. इस आदेश में कहा गया था कि मेडक जिले में प्रतिवादी डॉ. पशुपुलेटी निर्मला हनुमंत राव चैरिटेबल ट्रस्ट भूमि का पूर्ण स्वामी है. पीठ ने यह फैसला उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ तेलंगाना सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनाया.
इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया. जिसमें कहा गया था कि मेडक जिले में जमीन का डॉ. पशुपुलेटी निर्मला हनुमंत राव चैरिटेबल ट्रस्ट पूर्ण मालिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सरकार राज्य की उदारता को वितरित नहीं कर सकती है. आमतौर पर उसे संसाधनों का ‘अधिकतम मूल्य’ मिलना चाहिए. खासकर तब, जब उसकी संपत्ति निजी व्यक्तियों या संस्थाओं को हस्तांतरित की जाती है. हालांकि विशेष परिस्थितियों में ऐसा करने के लिए अच्छे और ठोस कारण न हों, तो दीगर बात है.
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने कहा “यह न्यायालय इस बात पर भी सहमत है कि जब सरकार अपनी जमीन बेचने का फैसला करती है, जैसा कि प्रतिवादी-ट्रस्ट इस न्यायालय को विश्वास दिलाना चाहेगा, तो सरकार न तो खरीदार का चयन कर सकती है और न ही कीमत तय कर सकती है. जब तक कि उक्त निर्णय किसी सामाजिक या आर्थिक या कल्याणकारी नीति/उद्देश्य द्वारा समर्थित न हो - जो वर्तमान मामले में निस्संदेह अनुपस्थित है.”
पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेशों को रद करने का फैसला किया. इस आदेश में कहा गया था कि प्रतिवादी डॉ. पशुपुलेटी निर्मला हनुमंत राव चैरिटेबल ट्रस्ट मेडक जिले में स्थित भूमि का पूर्ण स्वामी है. पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ तेलंगाना सरकार द्वारा दायर अपील पर यह फैसला सुनाया.
पीठ ने कहा, "यह एक स्थापित कानून है कि सरकार, राज्य की उदारता को वितरित नहीं कर सकती है. और सामान्य तौर पर राज्य को संसाधनों का 'अधिकतम मूल्य' मिलना चाहिए. खासकर तब जब राज्य के स्वामित्व वाली संपत्ति निजी व्यक्तियों/संस्थाओं को सौंपी जाती है. ऐसा तब तक, जब तक कि विशेष परिस्थितियों में ऐसा करने के लिए अच्छे और ठोस कारण न हों."
पीठ ने कहा कि उसका मानना है कि तेलंगाना ने सार्वजनिक उद्देश्य के लिए सार्वजनिक ट्रस्ट को भूमि आवंटित की थी.
पीठ ने कहा कि किसी भी स्थिति में, 2011 में, डॉ. पशुपुलेटि निरमाला हनुमंत राव ने यह खुलासा किए बिना कि वह प्रतिवादी-ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं, जिसे राज्य सरकार द्वारा भूमि आवंटित की गई थी. सैयद जावेद को 18 जून 2011 के पंजीकरण विलेख के तहत जी.पी.ए. धारक नियुक्त किया. पीठ ने कहा, "यह उल्लेख करना उचित है कि जिन शर्तों पर राज्य सरकार द्वारा आवंटन किया गया था, उनका उल्लेख/प्रकटीकरण जी.पी.ए. में नहीं किया गया था, जो प्रतिवादी-ट्रस्ट (आवंटिती) की दुर्भावना को दर्शाता है."
पीठ ने कहा कि उसका यह भी मानना है कि ट्रस्ट ने आंध्र प्रदेश बोर्ड के स्थायी आदेश की शर्त संख्या 6 के तहत हस्तांतरण की शर्तों को स्वीकार करने के बावजूद इन शर्तों का उल्लंघन किया है, क्योंकि उक्त भूमि का उपयोग उस उद्देश्य के लिए नहीं किया गया जिसके लिए इसे दिया गया था, अर्थात धर्मार्थ ट्रस्ट के उद्देश्य के लिए.
पीठ ने कहा, "इसके विपरीत, उक्त भूमि पर एक कॉलोनी काटी गई, जिसे भूखंडों में विभाजित किया गया था, जिनमें से कुछ को आवंटन की शर्तों का उल्लंघन करते हुए अलग-अलग बिक्री विलेखों के माध्यम से तीसरे पक्ष को पहले ही बेच दिया गया है. इस न्यायालय की राय है कि जिन विशिष्ट शर्तों पर भूमि आवंटित की गई थी. उनका उल्लंघन करते हुए कॉलोनी काटने के निर्णय को कानून के साथ धोखाधड़ी के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता है."
उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकार ने बाजार मूल्य पर भूमि बेच दी है, इसलिए वह भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाली कोई शर्त नहीं रख सकती है और संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 10 के तहत ऐसे प्रतिबंध निरर्थक हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम और तेलंगाना राज्य भूमि एवं भूमि राजस्व हस्तांतरण नियम, 1975 का हवाला देते हुए कहा, "जब राज्य ने सार्वजनिक उद्देश्य के लिए सार्वजनिक ट्रस्ट को भूमि आवंटित की थी, तो राज्य को सामान्य शास्त्रीय अंतर-विवो पक्ष की स्थिति में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि सार्वजनिक हित सर्वोच्च है और उसे ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए."