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महिला जज से दुर्व्यवहार करने के दोषी वकील की याचिका पर विचार करने से SC का इनकार - LAWYER CONVICTED FOR ABUSING JUDGE

सुप्रीम कोर्ट ने महिला जज से दुर्व्यवहार करने के दोषी वकील को 15 दिन के अंदर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.

SC refuses to consider plea of ​​lawyer convicted of misbehaving with woman judge.
महिला जज से दुर्व्यवहार करने के दोषी वकील की याचिका पर SC का विचार करने से इनकार. (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : June 10, 2025 at 8:29 PM IST

2 Min Read

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक वकील की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. वकील ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय राजधानी में एक महिला जज के साथ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार करने के लिए 18 महीने की जेल की सजा को चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने उसकी सजा बरकरार रखते हुए वकील को आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.

बता दें कि यह मामला न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष आया था. पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 26 मई के फैसले के खिलाफ अधिवक्ता संजय राठौर की अपील पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसमें महिला न्यायिक अधिकारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए वकील को दी गई सजा को कम करने से इनकार कर दिया गया था.

वकील की टिप्पणियों का हवाला देते हुए पीठ ने पूछा, “एक महिला न्यायिक अधिकारी न्यायिक कार्यों को कैसे अंजाम दे सकती है और कैसे उनका निर्वहन कर सकती है?”

शीर्ष अदालत ने वकील की नरमी बरतने की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. वकील ने दलील दी कि उसे "अपने कृत्यों के कारण बहुत तकलीफ हुई है." बेंच ने कहा "नहीं, कुछ नहीं किया जा सकता... हमें मामले की प्रकृति देखनी होगी. यहां एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार किया जाता है."

वकील कथित तौर पर ट्रैफिक चालान से जुड़े अपने मामले की सुनवाई स्थगित होने से नाराज था. उसने कोर्ट रूम में हंगामा किया और मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि लिंग-विशिष्ट दुर्व्यवहार के माध्यम से न्यायाधीश को डराने या धमकाने वाला कोई भी कार्य न्याय पर ही हमला है. उच्च न्यायालय ने 26 मई को कहा, "जब किसी न्यायिक अधिकारी की गरिमा को गंदे शब्दों के इस्तेमाल से ठेस पहुंचती है, जो उचित संदेह से परे साबित होते हैं, तो कानून को उस धागे की तरह काम करना चाहिए जो उसे ठीक करे और बहाल करे."

उच्च न्यायालय ने उसकी सजा बरकरार रखते हुए वकील को आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.

ये भी पढ़ें - केंद्र पर शिक्षा फंड रोकने का आरोप, तमिलनाडु की याचिका पर तत्काल सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक वकील की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. वकील ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय राजधानी में एक महिला जज के साथ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार करने के लिए 18 महीने की जेल की सजा को चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने उसकी सजा बरकरार रखते हुए वकील को आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.

बता दें कि यह मामला न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष आया था. पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 26 मई के फैसले के खिलाफ अधिवक्ता संजय राठौर की अपील पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसमें महिला न्यायिक अधिकारी की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए वकील को दी गई सजा को कम करने से इनकार कर दिया गया था.

वकील की टिप्पणियों का हवाला देते हुए पीठ ने पूछा, “एक महिला न्यायिक अधिकारी न्यायिक कार्यों को कैसे अंजाम दे सकती है और कैसे उनका निर्वहन कर सकती है?”

शीर्ष अदालत ने वकील की नरमी बरतने की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. वकील ने दलील दी कि उसे "अपने कृत्यों के कारण बहुत तकलीफ हुई है." बेंच ने कहा "नहीं, कुछ नहीं किया जा सकता... हमें मामले की प्रकृति देखनी होगी. यहां एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार किया जाता है."

वकील कथित तौर पर ट्रैफिक चालान से जुड़े अपने मामले की सुनवाई स्थगित होने से नाराज था. उसने कोर्ट रूम में हंगामा किया और मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि लिंग-विशिष्ट दुर्व्यवहार के माध्यम से न्यायाधीश को डराने या धमकाने वाला कोई भी कार्य न्याय पर ही हमला है. उच्च न्यायालय ने 26 मई को कहा, "जब किसी न्यायिक अधिकारी की गरिमा को गंदे शब्दों के इस्तेमाल से ठेस पहुंचती है, जो उचित संदेह से परे साबित होते हैं, तो कानून को उस धागे की तरह काम करना चाहिए जो उसे ठीक करे और बहाल करे."

उच्च न्यायालय ने उसकी सजा बरकरार रखते हुए वकील को आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.

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