नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विकास यादव की मां की हालत की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन में देरी को लेकर उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को फटकार लगाई. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य को निष्पक्ष होना चाहिए.
विकास यादव 2002 के नीतीश कटारा हत्याकांड में 25 साल की जेल की सजा काट रहा है. यादव ने अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए अंतरिम जमानत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
यह मामला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ के समक्ष आया. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि 2 अप्रैल के आदेश के बावजूद संबंधित प्राधिकारी ने यादव की मां की स्थिति की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने में 10 दिन लगा दिए. उन्हें गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल में भर्ती कराया गया.
पीठ ने कहा, 'आपने मेडिकल बोर्ड गठित करने में 10 दिन लगा दिए.' पीठ ने कहा कि जब तक मेडिकल बोर्ड आया तब तक यादव की मां को अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी थी.
यादव का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके मुवक्किल की मां को सोमवार को फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी मां की हालत फरवरी में खराब हो गई थी, जैसा कि उन्होंने उनके मेडिकल दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखा था.
पीठ ने निर्देश दिया कि एम्स के चिकित्सा अधीक्षक द्वारा एक नया मेडिकल बोर्ड गठित किया जाए और तुरंत मूल्यांकन कर रिपोर्ट पेश की जाए. यादव ने अपनी अंतरिम जमानत याचिका में कहा कि उनकी मां उमेश यादव गंभीर रूप से बीमार हैं और आईसीयू में भर्ती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को उत्तर प्रदेश के राजनीतिज्ञ डी पी यादव के पुत्र यादव को बिना किसी छूट का लाभ दिए सजा सुनाई थी.
उसके चचेरे भाई विशाल यादव को भी बिजनेस एग्जीक्यूटिव कटारा के अपहरण और हत्या के लिए सजा दी गई थी. दोनों ही विकास की बहन भारती यादव के साथ कटारा के कथित संबंध के खिलाफ थे, क्योंकि वे अलग-अलग जातियों से थे.