देहरादून (रोहित सोनी): उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते राज्य सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. यही वजह है सरकार नित नए-नए प्रयास कर रही है. जिसके जरिए न सिर्फ राज्य की आय को बढ़ाया जा सके, बल्कि प्रदेश के किसानों की आय को भी बढ़ाया जा सके. इसी क्रम में उत्तराखंड सरकार एरोमा फार्मिंग (सुगंधित पौधों की खेती) पर विशेष जोर दे रही है.
इसकी खासियत यह है कि कम लागत और कम पानी में भी किसान फार्मिंग कर अच्छी खासी इनकम प्राप्त कर सकते हैं. इसी क्रम में उत्तराखंड राज्य में गुलाब की एक ऐसी प्रजाति का उत्पादन किया जा रहा है, जिसके ऑयल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 12 से 15 लाख रुपए प्रति लीटर है. आखिर कौन सी है गुलाब की ये प्रजाति, कैसे किसान इसकी खेती कर बन सकते हैं लखपति? देखिए ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.
उत्तराखंड राज्य के खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि काफी सीमित है. साथ ही स्थानीय लोग पारंपरिक उत्पादों की ही खेती करते हैं. लेकिन उत्तराखंड सरकार पारंपरिक उत्पादों के इतर एरोमा फार्मिंग पर जोर दे रही है, जिससे उत्तराखंड के किसान आसानी से ज्यादा पैसा कमा सकते हैं. उत्तराखंड सगंध पौधा केंद्र लंबे समय से गुलाब की तमाम प्रजातियों पर रिसर्च और अध्ययन कर रहा है. इसी क्रम में इस केंद्र की ओर से बल्गेरियन गुलाब (Rosa damascena) के फार्मिंग पर जोर दी जा रही है. इसके साथ ही देहरादून से करीब 30 किलोमीटर दूर सगंध पौधा केंद्र के सैटेलाइट सेंटर में बल्गेरियन गुलाब के सैकड़ों पौधे लगाए गए हैं.

1000 हेक्टेयर भूमि पर होगी खेती: इसके साथ ही सगंध पौधा केंद्र ने जोशीमठ में 60 से 70 हेक्टेयर जमीन और ताकुला, अल्मोड़ा में 50 हेक्टेयर जमीन पर क्लस्टर बेस्ड खेती करवा रहा है. जिसका काफी अच्छा रिस्पांस मिलने के बाद अब ये केंद्र इन दोनों जगहों पर 500- 500 हेक्टेयर भूमि पर बल्गेरियन गुलाब की खेती कराने का निर्णय लिया है. ताकि स्थानीय स्तर पर बंजर पड़ी जमीनों से फसल उगाते हुए किसानों की आय को बढ़ाया जा सके. इसके साथ ही हर साल विदेशों से इंपोर्ट होने वाले बल्गेरियन गुलाब के ऑयल में अपनी भूमिका निभा सके.
बनाया जाता है रोज वाटर: ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए उत्तराखंड सगंध पौधा केंद्र के निदेशक निपेंद्र चौहान ने बताया कि बल्गेरियन गुलाब, गुलाब की एक मात्र ऐसी वैरायटी है, जिससे रोज वाटर बनाया जाता है. गुलाब की इस प्रजाति की उत्पत्ति सीरिया की राजधानी दमिश्क (Damascus) में हुई थी. इसके बाद मुगल काल के दौरान गुलाब की इस प्रजाति को भारत में लाया गया था. इसके बाद इस गुलाब को 1989 में कश्मीर में उत्पादन के लिए बढ़ावा दिया गया था. दरअसल, ये गुलाब कम तापमान वाले क्षेत्रों में उगने वाला पौधा है. यही वजह है कि सगंध पौधा केंद्र ने इसे मुख्य फसल के रूप में चुना है.

किसानों के लिए साबित हो सकता है वरदान: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंजर जमीन मौजूद है. जहां खेती नहीं होती है. इसके अलावा जो कृषि भूमि है, जहां पर खेती की जाती है, उस फसल को जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं. इस कारण किसानों को काफी अधिक नुकसान पहुंचता है और उनका कृषि से मोह भंग होता जा रहा है. ऐसे में गुलाब की इस प्रजाति की खेती पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है. केंद्र के निदेशक निपेंद्र ने बताया कि इस फसल को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. साथ ही बेहद कम पानी में ये फसल तैयार हो जाती है. इसकी खास बात ये है कि एक बार पौधा लगाने के बाद 10 से 15 साल तक लगातार फसल होती है. निपेंद्र ने बताया कि बंजर जमीन पर बहुत ही आसानी से इस फसल की खेती की जा सकती है.
बंजर जमीन पर गुलाब की खेती: केंद्र के सैटेलाइट सेंटर में जिस जमीन पर गुलाब के फसल की खेती की गई है, वह जमीन पहले बंजर हुआ करती थी. बावजूद इसके इस बंजर जमीन पर गुलाब की इस प्रजाति की खेती कर रहे हैं. साथ ही बताया कि बारिश के पानी को एकत्र करके ड्रिप के माध्यम से इन पौधों के पास पहुंचाया जा रहा है. लिहाजा प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों पर और खासकर बंजर जमीन पर गुलाब की इस प्रजाति की खेती करना काफी आसान है. ऐसे में अगर कोई किसान एक हेक्टेयर भूमि पर इस गुलाब की खेती करता है तो उसे करीब 700-800 ग्राम गुलाब ऑयल निकलेगा. जिसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत लगभग 8 लाख रुपए से भी अधिक है. जबकि पहाड़ में इतनी अधिक कीमत की कोई भी फसल नहीं है.
लोकल इत्र भी बन सकता है कमाई का जरिया: निपेंद्र ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों का मोह खेती से इसलिए भंग हो रहा है. क्योंकि पहले तो जंगली जानवर उनकी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. दूसरा पारंपरिक फसलों की कीमत उतनी रही नहीं है. क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र में छोटी-छोटी जमीन है जिससे अधिक मात्रा में पारंपरिक फसलों का उत्पादन भी नहीं हो पता है. लेकिन कम जमीन में भी गुलाब की इस प्रजाति की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. साथ ही स्थानीय स्तर पर इत्र बनाकर भी रोजगार का एक जरिया बना सकते हैं. उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को लगातार जागरूक कर रहे हैं और पिछले सात आठ सालों से किसानों को इस खेती से जोड़ रहे हैं, जिसका नतीजा है कि तमाम किसान छोटे-छोटे खेतों में इसकी खेती कर रहे हैं.

केंद्र कर रहा एक लाख पौधे तैयार: किसानों का अच्छा रिस्पांस मिलने के बाद अब ये केंद्र बड़े स्तर पर गुलाब की इस प्रजाति की खेती को बढ़ावा दे रहा है. ताकि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसान इस फसल को अपनाकर अपनी इनकम को काफी अधिक बढ़ा सकते हैं. किसानों के अच्छे रिस्पॉन्स को देखते हुए ये केंद्र हर साल करीब 1 लाख पौधे तैयार कर रहा है. लिहाजा जल्द ही एक वैली के रूप में पहाड़ों पर गुलाब की इस प्रजाति की खेती होती नजर आएगी. साथ ही बताया कि जब कुछ जगहों पर एक वैली के रूप में गुलाब की खेती होनी शुरू हो जाएगी तो फिर एरोमा टूरिज्म के रूप में इसे विकसित किया जाएगा. फूलों की खेती में आकर पर्यटक काफी अधिक खुश होते हैं और उनकी तमाम नई नई जानकारियां मिलती हैं.
महक क्रांति पॉलिसी: उत्तराखंड सरकार ने एरोमा फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए 'महक क्रांति पॉलिसी' तैयार की है जो अभी शासन स्तर पर है. इसे मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद लागू कर दिया जाएगा. इस पॉलिसी की खास बात ये है कि किसानों को एरोमा फार्मिंग के लिए लोन के साथ ही तमाम अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी. निदेशक निपेंद्र ने कहा कि अभी छोटे स्तर पर खेती की जा रही थी. जब बड़े स्तर पर खेती होगी तो वो क्षेत्र उस नाम से जाना जाएगा. ऐसे में जब किसी बड़े क्षेत्र में खेती होती है तो इंडस्ट्री और इन्वेस्टमेंट अपने आप आ जाता है. जिससे मार्केटिंग की दिक्कत अपने आप समाप्त हो जाती है. इसके अलावा जब किसी बंजर जमीन में खेती करेंगे तो शुरुआत में इन्वेस्टमेंट की जरूरत होगी. उसको देखते हुए 'महक क्रांति पॉलिसी' में तमाम प्रावधान किए गए हैं.

फ्लेवर के लिए भी किया जाता है इस्तेमाल: निपेंद्र ने बताया कि बल्गेरियन गुलाब के तेल का इस्तेमाल तमाम तरह से किया जाता है. सबसे अधिक इस गुलाब तेल का इस्तेमाल फ्लेवर में किया जाता है. महंगे दामों में बिकने वाले परफ्यूम में इसका इस्तेमाल किया जाता है. कुल मिलाकर इस गुलाब के तेल का बाजार विश्व भर में काफी अधिक है. लेकिन इसका उत्पादन बहुत कम होता है. भारत देश में भी इसका उत्पादन न के बराबर होता है. जबकि हर साल बड़ी मात्रा में इस गुलाब के तेल का इंपोर्ट किया जाता है. ऐसे में इस गुलाब की खेती करके भारत में बढ़ते इसके तेल की डिमांड में सहयोग दिया जा सकता है.
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