'बिहार में 80% दलित मतदाता मेरे साथ', चिराग पर भड़के पशुपति पारस, कहा- INDIA गठबंधन ही विकल्प
पशुपति पारस ने दावा किया कि बिहार में 80 फीसदी दलित मतदाता उनके साथ हैं. उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि वह इंडिया गठबंधन में जाएंगे.

Published : May 6, 2025 at 5:07 PM IST
पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए का साथ कभी न छोड़ने का दावा करने वाले राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस आज राजनीति में अकेले खड़े हैं. 14 अप्रैल 2025 को अंबेडकर जयंती के अवसर पर पार्टी के कार्यक्रम में उन्होंने एनडीए से निकलने का ऐलान भी कर दिया. भतीजे चिराग पासवान से 'दुश्मनी' के कारण उनके सामने राजनीति में फिर से स्थापित करने की चुनौती है. इसी साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है, लिहाजा उनको गठबंधन भी तय करना होगा. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने खुलकर बताया कि अब उनका रास्ता किस ओर जाएगा?
पारस की संगठन पर मजबूत पकड़: दलित राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में शुमार रामविलास पासवान अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस पर बहुत भरोसा करते थे. यही कारण है कि पहली बार सांसद बनने के बाद उन्होंने जब अलौली विधानसभा सीट से इस्तीफा दिया तो पारस को वहां से उम्मीदवार बनाया. 1977 में वह पहली बार विधायक बने और यहीं से उनके सियासी सफर की शुरुआत हुई. पारस पर रामविलास पासवान को इतना भरोसा था कि संगठन का सभी काम उन्हीं के जिम्मे रहता था. भले ही उनकी सियासत बड़े भाई की छत्रछाया में फूली-फली. हालांकि लगभग 45 सालों के राजनीतिक सफर में उन्होंने अपनी भी एक अलग पहचान बनाकर रखी.
पशुपति पारस का राजनीतिक सफर: बिहार की सियासत में वरिष्ठ नेताओं की गिनती होती है तो उसमें एक नाम पशुपति कुमार पारस का भी आता है. उनकी राजनीतिक पहचान भले ही रामविलास पासवान के छोटे भाई के रूप में होती रही हो लेकिन उनका राजनीतिक जीवन 70 के दशक में ही शुरू हो गया था. 1977 में पहली बार विधायक बने फिर उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. खगड़िया के अलौली (सु) विधानसभा क्षेत्र से वह 7 बार विधायक बने. बिहार में 4 बार मंत्री, विधान परिषद के सदस्य और फिर लोकसभा के सदस्य बने. इस बीच नरेंद्र मोदी की सरकार में वे कैबिनेट मिनिस्टर भी बने.

एनडीए से क्यों अलग हुए?: ईटीवी भारत संवाददाता आदित्य झा से बातचीत करते हुए पशुपति पारस ने कहा कि 2014 में जब लोजपा का एनडीए के साथ गठबंधन हुआ था, उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे. उसे समय उनके बड़े भाई स्वर्गीय रामविलास पासवान जीवित थे और बीजेपी के साथ गठबंधन हुआ. हम लोग पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा पूर्वक एनडीए के साथ रहे. एनडीए में कभी किसी तरीके का खटपट नहीं हुआ. हम लोग सरकार में भी रहे.

पशुपति कुमार पारस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन पर विश्वास किया और उनको मंत्री बनाया. ढाई वर्षो से ज्यादा समय तक उनके मंत्रिमंडल में शामिल रहे. हमारी पार्टी या हमारे द्वारा कभी भी एनडीए के कार्यकलाप में अवहेलना नहीं हुई, बल्कि हम लोग ईमानदारी पूर्वक सरकार के साथ रहे. 2024 लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे से दो दिन पहले तक कैबिनेट की बैठक में मैं था. मुझे नहीं पता था कि हमारी पार्टी या हम लोगों के साथ नाइंसाफी होगी. दो दिनों के बाद जब समाचार माध्यम से पता चला कि हमारे पांच सांसदों में से किसी को भी टिकट नहीं मिला.
'दलित होने के कारण अनदेखी': वजह पूछने पर पशुपति पारस ने कहा कि क्या कारण रहा, वे नहीं बता सकते लेकिन उन्हें लग रहा है कि वह दलित हैं, इसीलिए एनडीए गठबंधन के लोगों को दलित के प्रति रुचि नहीं रही होगी. यही कारण रहा कि हम लोगों का टिकट काट दिया गया. फिर भी पार्टी में विरोध के बावजूद उन लोगों ने राष्ट्रहित में और देश हित में अपने निजी हित को खत्म करते हुए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए प्रचार किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नॉमिनेशन कार्यक्रम में वह बनारस भी गए थे. जहां भी चुनाव प्रचार में उनको बुलाया गया, वह वहां गए थे.

एनडीए ने आपका साथ क्यों नहीं दिया?: इस बारे में पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि इसका जवाब हम से बेहतर एनडीए के लोग दे सकते हैं कि उन लोगों ने उनके साथ क्यों नहीं दिया. वे कहते हैं कि हमारी यही गलती थी कि मैं दलित परिवार में जन्म लिया.
क्या भतीजे चिराग के कारण ऐसा हुआ?: हालांकि इस सवाल पर पशुपति कुमार पारस ने कहा कि किसी के कारण किसी को हाशिए पर नहीं रखा जा सकता. जब कोई न्याय की कुर्सी पर बैठा हो तो उसका काम है न्याय करना. न्याय की कुर्सी पर बैठकर यदि कोई अन्याय करता है तो आपकी मान्यता समाप्त हो जाएगी. इसके बावजूद उन्होंने एनडीए का साथ दिया. लोकसभा चुनाव के 6 महीने के बाद जब बिहार में एनडीए की बैठक बुलाई गई तो उस बैठक में उन लोगों को कोई सूचना नहीं दी गई. उसके बाद उन लोगों का बयान आया कि बिहार में एनडीए में पांच पार्टी है और वह पांडव हैं.
11 साल का साथ छोड़ना पड़ा: आरएलजेपी अध्यक्ष कहते हैं कि एनडीए की मीटिंग में उनकी पार्टी का नाम नहीं था. वे कहते हैं कि क्योंकि राजनीति में मजबूरी होती है उन्हें पार्टी चलानी पड़ती है, इसीलिए उन लोगों ने तय किया कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर 14 अप्रैल को हम लोग कोई फैसला करेंगे. वे बताते हैं कि 14 अप्रैल को ही वे लोग 2014 में गठबंधन में शामिल हुए थे, ऐसे में 14 अप्रैल 2025 को उन्होंने एनडीए से बाहर होने का ऐलान कर दिया.

चिराग से दुश्मनी से हुआ नुकसान?: पशुपति कुमार पारस के मुताबिक किसी के चाह लेने से किसी का राजनीतिक कैरियर समाप्त नहीं होता. जिस समय चिराग पासवान का जन्म नहीं हुआ था, उससे पहले से वह विधायक हैं. 1977 बैच का मैं विधायक हूं. 48 साल पहले मैं विधायक बना था. एक ही विधानसभा क्षेत्र से सात बार विधायक रहा. बिहार सरकार में चार बार मंत्री रहा. आठवीं बार विधान परिषद का सदस्य बना. 9वीं बार में वह लोकसभा के सदस्य बने और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने. चिराग पासवान का जन्म 1982 ईस्वी में हुआ और वह 1977 में विधायक बन चुके थे. पूरे बिहार के लोग जानते हैं कि वह तीन भाई थे और उनकी जोड़ी राम-लक्ष्मण और भरत की थी.
स्वर्गीय रामविलास पासवान भारत की राजनीति में दूसरे अंबेडकर माने जाते हैं, जिनको बनाने में कहीं ना कहीं उनकी भी भूमिका रही है. मैं पार्टी का संगठनकर्ता रहा हूं और आज भी मैं संगठन का ही काम कर रहा हूं. विपरीत परिस्थिति में भी उनके लोग उनके साथ थे. बिहार के 38 जिलों में से 36 जिलों के अध्यक्ष उनके साथ हैं. इस तरीके से दलित सेना के सभी जिला अध्यक्ष उनके साथ हैं. उनकी पार्टी ने चलो गांव की ओर का कार्यक्रम चलाया है. अभी तक 22 जिला का दौरा वह कर चुके हैं. सभी जिला के कार्यक्रम में लोगों की अपार भीड़ रही और सभी लोगों की इच्छा यही है कि बिहार में बदलाव हो.
अब किधर जाएंगे पशुपति पारस?: इस सवाल पर पशुपति कुमार पारस ने कहा कि पूरे देश में और खास कर बिहार में राजनीति में दो धुरी है. एक एनडीए का गठबंधन और दूसरा इंडिया गठबंधन यानी महागठबंधन. अब जब हमने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया है तो इंडिया गठबंधन ही बचता है. 15 जनवरी को जब मकर संक्रांति के भोज का आयोजन किया गया तो हमने सभी राजनेताओं को निमंत्रण दिया था. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने उनके घर आकर उनका सम्मान बढ़ाया. वहीं से गठबंधन की शुरुआत हुई.
लालू परिवार से हमारा पुराना रिश्ता रहा है. पारस ने कहा कि 1990 में जब लालू प्रसाद के नेतृत्व में सरकार बनी थी तो मैं भी उनकी सरकार में मंत्री था और 8 वर्षों तक मंत्री पद पर रहा. कुछ दिन पहले उनकी तेजस्वी प्रसाद यादव से मुलाकात हुई. लालू प्रसाद जब बीमार थे तो दिल्ली में जाकर उनसे भेंट की थी. जब एनडीए गठबंधन से कोई नाता नहीं है तो इंडिया गठबंधन ही बचता है लेकिन अभी उन लोगों ने फैसला किया है कि अपनी पार्टी को कुछ मजबूत किया जाए. जहां तक गठबंधन की बात होगी तो जहां भी उनका मान-सम्मान मिलेगा, उसके साथ उनका गठबंधन होगा.
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर आज बिहार प्रदेश राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की ओर से दही चुड़ा भोज का आयोजन किया गया जिसमें राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय श्री लालू प्रसाद यादव जी का हमारे आवास पर आगमन हुआ, उनका स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त हुआ | pic.twitter.com/qhrVrci8RL
— Pashupati Kumar Paras (@PashupatiParas) January 15, 2025
विधानसभा चुनाव में कहां पाते हैं अपने को?: पशुपति कुमार पारस ने दावा किया कि बिहार में जो दलित वोट है, उसमें से 80% उनके साथ हैं. वे कहते हैं कि लोकसभा का चुनाव हमारी पार्टी ने नहीं लड़ा था, इसलिए लोगों को इस बारे में ठीक-ठीक अंदाजा नहीं हो पा रहा है लेकिन इस बार जब हम बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे तो हमारा वोट बैंक हमारे साथ नजर आएगा. आरएलजेपी अध्यक्ष कहते हैं कि बिहार की जनता राजनीतिक रूप से बहुत जागरुक है. बिहार में जहां-जहां हम लोग घूम हैं, वहां एक ही नारा है कि बिहार में बदलाव हो. बिहार में एक व्यक्ति और एक पार्टी की सरकार है. बिहार में किसी तरीके का कल-कारखाना नहीं लगा है. शिक्षा का व्यवस्था चौपट हो गई है.

"बिहार में जो दलित वोट है, उसमें हम दावे के साथ कह सकते हैं कि 80 प्रतिशत दलित वोट हमारे साथ है. चूकि हम लोकसभा का चुनाव लड़े नहीं इसलिए लोगों को आइडिया नहीं मिला. अब जब हम विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे तो जरूर साथ मिलेगा. जहां-जहां हमलोग घूम रहे हैं, लोगों का एक ही नारा है बदलाव."- पशुपति कुमार पारस, अध्यक्ष, आरएलजेपी
भतीजा क्यों नीतीश की तारीफ करते हैं?: पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान पर तंज कसते हुए कहा कि हमारा भतीजा 2020 चुनाव में नीतीश कुमार को जेल भेज रहा था. आप उनसे पूछिए कि उन्होंने कहा था कि उनके पिताजी का अपमान नीतीश कुमार ने किया था, इसलिए नीतीश कुमार को जेल भेजेंगे. आज कौन सी विपरीत परिस्थिति आ गई कि वह उनका पैर छूकर प्रणाम करते हैं? वे कहते हैं, 'राजनीति में या व्यवहारिक जीवन में हंसना और गाल फुलाना एक साथ नहीं होता है.'

जातीय जनगणना पर पारस ने कहा कि 1996 में जब सभी समाजवादी लोग एक साथ थे, तब उनके बड़े भाई स्वर्गीय रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ने एक साथ पार्लियामेंट में बहस की थी लेकिन विवाद होने के कारण यह नहीं हो सका. आज 31 वर्ष के बाद भारत सरकार ने कैबिनेट से जातीय जनगणना करने की मंजूरी दी है. इसको लेकर भी चिराग पासवान का बयान आया है कि जातीय जनगणना हो लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जाए. अगर ऐसा होगा तो जनगणना से क्या फायदा होने वाला है, वे (चिराग) देश को और समाज को गुमराह करने का काम कर रहे हैं.
पहले कार्यालय और अब घर में हिस्से की लड़ाई क्यों?: पशुपति कुमार पारस इस बारे में कहते हैं कि मेरे गांव में कोई घटना नहीं घटी है. मेरे गांव के लोगों ने प्रेस मीडिया के सामने बता दिया है. वहां किसी तरह का झगड़ा नहीं रगड़ा है. चुनावी वर्ष आया है, इसीलिए रगड़ा चाहिए. अलौली मेरा गांव है, जन्मभूमि है. जिसका जन्म ही वहां नहीं हुआ, शहरबन्नी में क्या चिराग पासवान का जन्म हुआ है? चिराग पासवान का दो दिन पहले क्या बयान आया है, उन्होंने कहा है कि मैं पंजाबी हूं. मेरी मां पंजाबी है, मेरी मां सिख धर्म को मानती है. वह अल्पसंख्यक हैं, यह उनका बयान आया है.
बड़ी मां के साथ चिराग क्यों खड़े हैं?: पशुपति कुमार पारस कहते हैं कि हां आजकल अपनी बड़ी मां की गोदी में जाकर बैठते हैं. 40 साल से बड़ी मां के साथ क्यों नहीं बैठते थे. उन्होंने अपनी बड़ी मां का डाइवोर्स क्यों करवाया. इस विवाद को छोड़िए यदि बात होगी तो बहुत आगे तक जाएगी. वहां झगड़ा नहीं रगड़ा चल रहा है.

2025 के चुनाव में किस रूप में दिखाई देंगे?: इस सवाल पर पशुपति कुमार पारस ने कहा कि जनता हमारे साथ है. हम संगठनकर्ता रहे हैं. 1977 से लेकर आज तक सिर्फ संगठन का ही काम किए हैं. जिस अलौली क्षेत्र की लड़ाई अभी चल रही है, हम वहां से सात बार लगातार विधायक रहे हैं. वह हमारी कर्म भूमि है और जन्मभूमि भी है. भविष्य में भी हमारे दल के लोग वहां से चुनाव लड़ेंगे और भारी मतों से जीतेंगे.
चाचा-भतीजा भविष्य में साथ हो सकते हैं?: पशुपति कुमार पारस ने इस सवाव पर कहा कि देखिए रहिमन फटे दूध को मथे न माखन हो. बिगड़ी बात बने नहीं लाख करे किन कोई रहिमन फाटे दूध को मथे न माखन होई. जब दूध फटता है तो मक्खन नहीं होता है. पार्टी हमारी टूट गई, परिवार हमारा अलग हो गया. इसलिए जो जहां है, वहीं बरकरार रहेगा.
भतीजे के लिए आपके दरवाजे हमेशा के लिए बंद?: इस सवाल पर पशुपति कुमार पारस कहते हैं, 'नहीं दरवाजे बंद नहीं है. उनका रास्ता अलग है, मेरा रास्ता अलग है.'

संख्याबल में कहां खड़े हैं पारस?: एनडीए से अलग होने के बाद पशुपति पारस के सामने फिलहाल दो ही विकल्प है. एक है अकेले संघर्ष करना और दूसरा महागठबंधन के साथ जाना. वैसे वह खुद ही कह चुके हैं कि दो धुरी यानी एनडीए और इंडिया गठबंधन में से किसी के साथ जाना पड़ेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार की राजनीति में उनकी क्या ताकत है? संख्याबल के लिहाज से देखें तो उनकी पार्टी आरएलजेपी का लोकसभा और राज्यसभा में एक भी सदस्य नहीं है. बिहार विधानसभा में भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जबकि विधान परिषद में एक सदस्य हैं.
पारस के पाला बदलने से क्या बदलेगा?: जब से लोक जनशक्ति पार्टी में टूट हुई है, तब से अबतक चुनाव में इन दोनों गुटों का आमना-सामना नहीं हुआ है. 2021 में चाचा-भतीजे के अलग होने के बाद सिर्फ लोकसभा का चुनाव हुआ है लेकिन उसमें पारस की पार्टी ने उम्मीदवार नहीं उतारे थे, जबकि चिराग के सभी 5 प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. वहीं अब जब 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों अलग-अलग गठबंधन में होंगे तब उनकी असली परीक्षा होगी. दलित वोट खासकर पासवान (दुसाध) मतदाताओं में बिखराव से विपक्षी खेमे को लाभ हो सकता है लेकिन अगर बिखराव नहीं होता है तो माना जाएगा कि चिराग का इस वोट बैंक पर एकाधिकार है.
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