
Explainer: 20 साल से बिहार के CM लेकिन चुनाव क्यों नहीं लड़ते हैं नीतीश कुमार?
बिहार में 20 साल से मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश कुमार ने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा है. स्पेशल रिपोर्ट में पढ़ें इसके पीछे की वजह..

Published : September 29, 2025 at 8:37 PM IST
अविनाश कुमार की रिपोर्ट
पटना: नीतीश कुमार 2005 से बिहार की सत्ता के सिरमौर बने हुए हैं. 2014-15 के कुछ महीनों को छोड़ दें तो वह पिछले 20 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं लेकिन वह खुद चुनावी राजनीति से दूर रहते हैं. अब एक बार फिर से विधानसभा का चुनाव होना है लेकिन इस बार भी उनके विधानसभा चुनाव लड़ेंगे की कोई संभावना नहीं है. उनके विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने पर विपक्ष यहां तक आरोप लगाता रहता है कि सीएम असल में चुनाव लड़ने से डरते हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि मुख्यमंत्री को जनता के बीच से ही चुनकर आना चाहिए.
लगातार दो चुनावों में मिली हार: जेपी आंदोलन से छात्र राजनीति में आने वाले नीतीश कुमार ने पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री ली है. कुछ समय तक विद्युत विभाग में काम करने के बाद वह राजनीति में सक्रिय हो गए. उन्होंने 1977 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर हरनौत से विधानसभा का चुनाव लड़े लेकिन सफलता नहीं मिली. 1980 में भी हरनौत से हार का सामना करना पड़ा.

1985 में पहली बार बने विधायक: नीतीश कुमार को विधानसभा चुनाव में पहली बार सफलता 1985 में मिली. लोकदल के टिकट पर वह हरनौत विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने. 1985 के बाद उन्होंने कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि वह लोकसभा का चुनाव लगातार लड़ते रहे और केंद्र में मंत्री भी बने.
1989 से 2004 तक लोकसभा सांसद: 1989 में पहली बार वह बाढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने. उसके बाद 1991, 1996, 1998 और 1999 में भी इसी सीट से जीतते रहे. वहीं 2004 में उन्होंने बाढ़ के साथ-साथ नालंदा लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ा. बाढ़ में उनको हार का सामना करना पड़ा, जबकि नालंदा से चुनाव जीतने में सफल रहे. 2004 के बाद नीतीश कुमार ने कभी भी लोकसभा या विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा.

9 चुनाव लड़े, 3 में हार: नीतीश कुमार ने 1977, 1980 और 1985 में लगातार तीन बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ एक बार (1985) जीत मिली. वहीं, 6 बार यानी 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ा. हर बार जीत मिली. हालांकि 2004 में दो सीट से लड़े. बाढ़ से हार मिली और नालंदा में विजयी रहे.

'चुनाव तो लड़ना ही चाहिए': राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का भी कहना है कि लोकतंत्र में दोनों सदनों का महत्व है. यदि मुख्यमंत्री जनता के बीच से चुनकर आए तो अच्छा होता है लेकिन अब एक परिपाटी चल गई है. उनके साथ सुशील कुमार मोदी लंबे समय तक उप मुख्यमंत्री रहे लेकिन वे भी विधान परिषद के ही सदस्य बनते रहे. वे कहते हैं कि मनमोहन सिंह 10 सालों तक प्रधानमंत्री रहे, लेकिन वह राज्यसभा के माध्यम से सदस्य बनकर बने.

"अभी नीतीश कुमार के अलावे उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी विधान परिषद के ही सदस्य हैं. कई अन्य बड़े नेता भी चुनाव लड़ने से बचते हैं, क्योंकि उनका चुनाव काफी कठिन हो जाता है. नीतीश कुमार भी इस चीज को समझते हैं और इसीलिए विधान परिषद से जाना ही उनके लिए सहूलियत लगता है. यह अलग बात है कि नीतीश कुमार जिसको चाहेंगे, उसको टिकट मिलेगा. उनके नाम पर ही कई विधानसभा में उम्मीदवार चुनाव भी जीतते हैं."- अरुण पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ

'जनता के बीच जाना चाहिए': वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ प्रवीण बागी का कहना है कि नीतीश कुमार जनता के बीच से चुनकर नहीं आने पर सवाल तो उठेगा ही, क्योंकि मुख्यमंत्री जनता का प्रतिनिधि होना चाहिए लेकिन नीतीश कुमार विधान परिषद के माध्यम से सदन में आते हैं. अधिकांश मुख्यमंत्री चुनाव लड़कर जनता के बीच से आते हैं. कुछ ही राज्यों के मुख्यमंत्री दूसरे सदन के माध्यम से सदस्य बनते रहे हैं. संविधान में इसकी मनाही नहीं है लेकिन लोकतांत्रिक दृष्टि से इसे देखा जाए तो यह सही नहीं माना जा सकता है.

"स्वस्थ परंपरागत वही है कि जनता से चुनकर आने के बाद ही मुख्यमंत्री बनना चाहिए. कई जगह इस परंपरा को चोट लगी है. जो लोग जनता के बीच से चुनकर नहीं आते हैं, उसमें नीतीश कुमार का नाम भी है और इस बार भी तय है कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार नहीं लड़ेंगे."- प्रवीण बागी, राजनीतिक विशेषज्ञ

क्या चुनाव लड़ने से डरते हैं नीतीश?: प्रवीण बागी कहते हैं कि विधानसभा चुनाव हार ना जाएं, इसका डर तो नीतीश कुमार के मन में जरूर बैठा है. 1977 में जब जनता पार्टी की लहर थी, तब भी अपने ही गृह जिले में नीतीश कुमार हार गए थे. 1980 का विधानसभा चुनाव भी हार गए. 1985 में जरूर उन्हें सफलता मिली लेकिन शुरुआत में जो चुनाव हारने का डर इनके अंदर है, वह अब तक बना हुआ है. एक बार लोकसभा का चुनाव भी हार गए थे, इसलिए सेफ खेल रहे हैं.

क्या बोले जेडीयू प्रवक्ता?: नीतीश कुमार के विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने के सवाल पर पार्टी के नेताओं की तरफ से बार-बार सफाई भी दी जाती है. जेडीयू प्रवक्ता निहोरा यादव का कहना है कि एक बार हमने भी मुख्यमंत्री से पूछा था कि विधानसभा का चुनाव क्यों नहीं लड़ते हैं, तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि यदि मैं विधानसभा का चुनाव लड़ूंगा तो अपने क्षेत्र पर विशेष ध्यान नहीं दे पाऊंगा.

"मुख्यमंत्री अगर खुद चुनाव लड़ेंगे तो उनके लिए बाकी सीटों पर ध्यान देना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा. विपक्ष को याद रखना चाहिए 1985 में जब हरनौत से मुख्यमंत्री विधानसभा का चुनाव लड़े थे तो नॉमिनेशन के बाद अपने क्षेत्र में प्रचार करने भी नहीं गए, लेकिन इसके बावजूद जनता ने उन्हें चुनकर भेजा. इसलिए डरने वाली बात में कोई दम नहीं है."- निहोरा यादव, प्रवक्ता, जनता दल यूनाइटेड

कब-कब बने बिहार के सीएम?: नीतीश कुमार पहली बार साल 2000 में बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत के अभाव में 7 दिनों में इस्तीफा दे दिया. उसके बाद नवंबर 2005 में दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली. 2010 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. 2024 लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन 2015 में उनको हटाकर चौथी बार सीएम पद की शपथ ली.

2015 में चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार में पांचवीं बार सीएम बने लेकिन जुलाई 2017 में इस्तीफा दे दिया और अगले ही दिन बीजेपी के समर्थन से छठी बार मुख्यमंत्री बन गए. 2020 में एनडीए की सरकार में सातवीं बार पद संभाला. अगस्त 2022 में इस्तीफा दिया और उसी दिन आरजेडी के साथ मिलकर आठवीं बार मुख्यमंत्री बन गए. जनवरी 2024 में त्यागपत्र दे दिया और उसी दिन बीजेपी के समर्थन से नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
सीएम बनने के बाद नहीं लड़ा चुनाव: 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से नीतीश कुमार कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े हैं. वह लगातार बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं. 2024 में एक बार फिर वह विधान पार्षद चुने गए थे, उनका कार्यकाल 2030 तक का है.

कई मंत्री भी विधान परिषद से ही सदस्य: नीतीश कुमार के अलावे उनकी सरकार में जेडीयू और बीजेपी के कई मंत्री भी विधान परिषद से ही सदस्य हैं. इनमें उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी, मंत्री संतोष कुमार सुमन और मंत्री जनक राम भी शामिल हैं. सत्ता पक्ष के अलावे विपक्ष की भी बात करें तो बिहार की दो बार मुख्यमंत्री रहीं राबड़ी देवी भी अब चुनाव नहीं लड़ती हैं. वह विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष भी हैं.
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