रतलाम: आमतौर पर किसी एक ग्राम पंचायत क्षेत्र में एक दो तालाब और कुछ छोटे-मोटे चेक डैम के विकास कार्य देखने को मिलते हैं, लेकिन एक गांव और उसके आसपास की ग्राम पंचायतों में युवा जनप्रतिनिधियों की बदौलत दो चार नहीं बल्कि 39 छोटे-मोटे तालाब और चेक डैम बन कर तैयार हो गए हैं. जिसके कारण 6 किलोमीटर का क्षेत्र अब गर्मियों में भी पानी से लबालब भरा हुआ है. यह क्षेत्र सिमलावदा ग्राम पंचायत है, इसके आसपास के छोटे-मोटे 12 गांव और मजरे टोले जहां अब किसान गर्मियों में भी तीसरी फसल ले रहे हैं. इस क्षेत्र में सिंचाई विभाग, कृषि विभाग, वाटर शेड, मनरेगा, खेत तालाब सहित कई अन्य योजनाओं सहित जन भागीदारी से 39 वाटर स्ट्रक्चर बनाए गए हैं.
युवा और जनप्रतिनिधियों की जिद से बदली तस्वीर
सिमलावदा ग्राम पंचायत में युवा सरपंच और जनपद प्रतिनिधि सहित जनपद अध्यक्ष के साथ युवाओं ने करीब 15 वर्ष पूर्व इस मिशन को हाथ में लिया. इसके लिए एक बरसाती नाले के 6 किलोमीटर हिस्से को जगह-जगह तालाब चेक डैम बनाकर जलस्तर बढ़ाने की योजना बनाई गई. कुछ प्रोजेक्ट को तो शासकीय अप्रूवल और राशि मिल गई, लेकिन सबसे बड़े तालाब को सर्वे में रिजेक्ट कर दिया गया, लेकिन यहां के जन प्रतिनिधियों और युवाओं ने जन सहयोग से ही इस तालाब का काम शुरू कर दिया.
बाद में सिंचाई विभाग के इंजीनियरों द्वारा तकनीकी सुधार करते हुए इस तालाब को निर्माण करने में सहयोग दिया. अब इस तालाब की बदोलत आसपास के किसान गर्मियों में भी अपनी फसल की सिंचाई कर पा रहे हैं.
एक-एक कर बना दिए 39 वाटर स्ट्रक्चर
स्थानीय जनप्रतिनिधि विशाल जायसवाल बताते हैं कि "हमने 2009-10 से इस कार्य की शुरुआत की थी. इसके बाद एक-एक कर छोटी छोटी परियोजनाओं का लाभ इस क्षेत्र के 12 गांव और मजरे टोले को दिलवाया. जिसमें करीब एक दर्जन अलग-अलग विभागों की अलग-अलग योजनाओं लाभ लिया. किसानों की निजी भूमि पर तालाब बनाकर भी वाटर रिचार्ज का कार्य किया गया. क्षेत्र के लोगों ने जन सहयोग भी दिया और श्रमदान भी किया. विशाल जायसवाल ने गूगल इमेज दिखाते हुए इस क्षेत्र की पहले और अब की तस्वीर दिखाई और बताया कि हमारा कार्य सैटेलाइट इमेज में भी दिखता है."

पहले सूखा क्षेत्र था, अब जमकर हो रहा फसलों का उत्पादन
करीब 12 गांव की किस्मत वाटर कंजर्वेशन के इस कार्य से बदली है. जिस क्षेत्र में यह तालाब बनाए गए हैं, वह काली रुण्डी के नाम से जाना जाता है. यहां के लोग पहले सूखा होने की वजह से रतलाम और गुजरात क्षेत्र में मजदूरी के लिए पलायन कर जाते थे, लेकिन अब इस क्षेत्र में किसान गर्मियों में भी तीसरी फसल ले रहे हैं. स्थानीय ग्रामीण बद्रीलाल मावी और अर्जुन चौहान बताते हैं कि "पहले तो फसल के नाम पर कुछ नहीं होता था, लेकिन अब गर्मियों में उन्होंने सब्जियों और अन्य फसलों का उत्पादन लेना शुरू कर दिया है."

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बहरहाल जनप्रतिनिधियों और युवाओं की जिद से न केवल 12 गांव की किस्मत बदली है, बल्कि दूर-दूर तक इस क्षेत्र में भूजल स्तर भी बढ़ा है. वहीं पर्यावरण और वन्य प्राणियों के लिए भी यह मिशन फायदेमंद रहा है.