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90 साल बाद सह्याद्री टाइगर रिजर्व में दिखा दुर्लभ काला जंगली कुत्ता - RARE BLACK WILD DOG SPOTTED

विशेषज्ञों के अनुसार यह मेलेनिस्टिक ढोल है, जो भारत में लगभग 90 वर्षों बाद रिकॉर्ड किया गया है.

सह्याद्री टायगर रिजर्व में दिखा दुर्लभ काला जंगली कुत्ता
सह्याद्री टाइगर रिजर्व में दिखा दुर्लभ काला जंगली कुत्ता (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : June 24, 2025 at 9:35 AM IST

3 Min Read

सातारा: सह्याद्री टाइगर रिजर्व के बफर जोन में हाल ही में एक दुर्लभ वन्यजीव की उपस्थिति दर्ज की गई है. एक पर्यटक ने जंगल में घूमते समय पूरी तरह काले रंग के जंगली कुत्ते (ढोल) को देखा और उसकी तस्वीरें व वीडियो अपने मोबाइल कैमरे में कैद की. यह घटना जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि इस तरह के मेलेनिस्टिक ढोल को भारत में 90 वर्षों बाद कैमरे में रिकॉर्ड किया गया है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, पर्यटक दिग्विजय पाटिल सह्याद्री टायगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे, जब उन्होंने इस काले जंगली कुत्ते को देखा. उन्होंने तुरंत उसका वीडियो बनाकर मानद वन्यजीव वार्डन रोहन भाटे को इसकी सूचना दी. घटना की पुष्टि होते ही वन विभाग सक्रिय हो गया और संबंधित क्षेत्र में कैमरा ट्रैप लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं.

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य ढोल का रंग लाल-भूरा होता है, लेकिन कभी-कभी मेलेनिज्म नामक आनुवंशिक अवस्था के कारण कुछ ढोलों का रंग पूरी तरह काला हो जाता है. ऐसे ढोलों को ‘मेलेनिस्टिक ढोल’ कहा जाता है. इससे पहले, वर्ष 1936 में तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के गद्देसल इलाके में एक काले ढोल को दर्ज किया गया था. उस समय यह जानकारी ब्रिटिश शिकारी और प्रकृतिवादी आर.सी. मॉरिस द्वारा दी गई थी.

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य ढोल का रंग लाल-भूरा होता है
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य ढोल का रंग लाल-भूरा होता है (ETV Bharat)

वन विभाग के अनुसार, ढोल एक अत्यंत सामूहिक शिकारी प्रजाति है जो झुंड में शिकार करती है. एक झुंड में 15 से 20 सदस्य होते हैं और ये बड़े जानवरों जैसे सांभर, चीतल, गौर (जंगली गाय), सूअर आदि का शिकार करते हैं. कभी-कभी बाघ जैसे शीर्ष शिकारी भी ढोल के झुंड से दूरी बनाए रखते हैं.

वन अधिकारियों ने इस घटना को सह्याद्री की समृद्ध जैव विविधता का प्रमाण बताया है. उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि जंगल की पारिस्थितिकी संतुलित है और दुर्लभ प्रजातियों को भी जीवित रहने का अनुकूल वातावरण मिल रहा है. अब वन विभाग उस क्षेत्र में लगातार निगरानी रख रहा है और जल्द ही उस काले ढोल के बारे में अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए डीएनए परीक्षण, व्यवहार अध्ययन और ट्रैकिंग जैसे कदम उठाए जाएंगे. यदि यह ढोल वाकई पूर्ण रूप से मेलेनिस्टिक पाया जाता है, तो यह भारतीय वन्यजीव इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय होगा.

अधिकारियों ने लोगों से अपील की है कि जंगल भ्रमण करते समय वन्यजीवों को परेशान न करें और ऐसी दुर्लभ घटनाओं की जानकारी तुरंत वन विभाग को दें.

यह भी पढ़ें- फ्लैट के टॉयलेट में फन उठाए बैठा था किंग कोबरा सांप, सोसायटी में मचा हड़कंप

सातारा: सह्याद्री टाइगर रिजर्व के बफर जोन में हाल ही में एक दुर्लभ वन्यजीव की उपस्थिति दर्ज की गई है. एक पर्यटक ने जंगल में घूमते समय पूरी तरह काले रंग के जंगली कुत्ते (ढोल) को देखा और उसकी तस्वीरें व वीडियो अपने मोबाइल कैमरे में कैद की. यह घटना जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि इस तरह के मेलेनिस्टिक ढोल को भारत में 90 वर्षों बाद कैमरे में रिकॉर्ड किया गया है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, पर्यटक दिग्विजय पाटिल सह्याद्री टायगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे, जब उन्होंने इस काले जंगली कुत्ते को देखा. उन्होंने तुरंत उसका वीडियो बनाकर मानद वन्यजीव वार्डन रोहन भाटे को इसकी सूचना दी. घटना की पुष्टि होते ही वन विभाग सक्रिय हो गया और संबंधित क्षेत्र में कैमरा ट्रैप लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं.

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य ढोल का रंग लाल-भूरा होता है, लेकिन कभी-कभी मेलेनिज्म नामक आनुवंशिक अवस्था के कारण कुछ ढोलों का रंग पूरी तरह काला हो जाता है. ऐसे ढोलों को ‘मेलेनिस्टिक ढोल’ कहा जाता है. इससे पहले, वर्ष 1936 में तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के गद्देसल इलाके में एक काले ढोल को दर्ज किया गया था. उस समय यह जानकारी ब्रिटिश शिकारी और प्रकृतिवादी आर.सी. मॉरिस द्वारा दी गई थी.

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य ढोल का रंग लाल-भूरा होता है
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सामान्य ढोल का रंग लाल-भूरा होता है (ETV Bharat)

वन विभाग के अनुसार, ढोल एक अत्यंत सामूहिक शिकारी प्रजाति है जो झुंड में शिकार करती है. एक झुंड में 15 से 20 सदस्य होते हैं और ये बड़े जानवरों जैसे सांभर, चीतल, गौर (जंगली गाय), सूअर आदि का शिकार करते हैं. कभी-कभी बाघ जैसे शीर्ष शिकारी भी ढोल के झुंड से दूरी बनाए रखते हैं.

वन अधिकारियों ने इस घटना को सह्याद्री की समृद्ध जैव विविधता का प्रमाण बताया है. उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि जंगल की पारिस्थितिकी संतुलित है और दुर्लभ प्रजातियों को भी जीवित रहने का अनुकूल वातावरण मिल रहा है. अब वन विभाग उस क्षेत्र में लगातार निगरानी रख रहा है और जल्द ही उस काले ढोल के बारे में अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए डीएनए परीक्षण, व्यवहार अध्ययन और ट्रैकिंग जैसे कदम उठाए जाएंगे. यदि यह ढोल वाकई पूर्ण रूप से मेलेनिस्टिक पाया जाता है, तो यह भारतीय वन्यजीव इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय होगा.

अधिकारियों ने लोगों से अपील की है कि जंगल भ्रमण करते समय वन्यजीवों को परेशान न करें और ऐसी दुर्लभ घटनाओं की जानकारी तुरंत वन विभाग को दें.

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