देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड में सड़कों और जगहों के नाम बदलने पर राजनीति हाई है. हिंदुत्व की पार्टी लाइन के साथ भाजपा सरकार मुस्लिम नामों को तो बल्क में बदल रही है, लेकिन नाम बदलने की इस राजनीति में केवल मुस्लिम नाम ही क्यों टारगेट में हैं, ये सवाल भी पूछे जाने लगे हैं.
दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के टारगेट पर मुस्लिम शासक तो दिख रहे हैं, लेकिन ब्रिटिश शासन की यादों से सरकार को कोई परहेज नहीं दिख रहा. शायद यही कारण है कि राज्य में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान रखे गए नामों को बदलने की पहल नहीं दी गई.
उत्तराखंड में नाम बदलने की राजनीति: देश पर लंबे समय तक राज करने वाले मुगल शासकों की यादें आज भी तमाम सड़कों, इमारतों और जगहों के नाम से ताजा हो जाती हैं. हालांकि, ऐसी ही गुलामी की कड़वी यादें देश में अंग्रेजी हुकूमत की भी हैं. लेकिन अक्सर भाजपा सरकारों के निशाने पर मुस्लिम आक्रांता ही दिखाई देते हैं.
उत्तराखंड में धामी सरकार भी कुछ ऐसे ही निर्णय को लेकर इन दिनों चर्चाओं में है. दरअसल, उत्तराखंड में धामी सरकार ने चार जिलों की 17 सड़कों या जगहों के नाम बदलने का ऐलान किया है. इसके बाद राज्य में नाम बदलने की इस राजनीति पर बहस शुरू हो गई है.
मुगलों से बैर, अंग्रेजों से नहीं परहेज: भारतीय जनता पार्टी की सरकार जिन 17 क्षेत्रों या सड़कों के नाम बदलने का ऐलान कर चुकी है, उन्हें मुगल शासन की कड़वी यादों को भुलाने के रूप में बताया गया है. हालांकि, इसमें कुछ नाम ऐसे हैं जो इस्लामिक नाम तो हैं, लेकिन इनका नामकरण बाद में हुआ. लेकिन सवाल यह पूछे जा रहे हैं कि आखिरकार मुगल शासकों के नाम से बैर रखने वाली भाजपा को ब्रिटिश हुकूमत की कड़वी यादों से परहेज क्यों नहीं है?
ब्रिटिश हुकूमत में अंग्रेजों द्वारा दिए गए कई नाम: उत्तराखंड को ब्रिटिश हुकूमत के कई अफसर बेहतरीन प्रवास के रूप में मानते थे. खासतौर पर नैनीताल और मसूरी को बसाते समय उन्होंने यहां कई इमारतें अंग्रेजों की ऐशगाह के लिए स्थापित की थीं. आज भी उत्तराखंड की कई इमारतों, सड़कों और जगहों के नाम अंग्रेजों द्वारा या तो दिए गए हैं, या उन्हीं के नाम पर जाने जाते हैं.
देहरादून में एश्ले हॉल से लेकर टर्नर रोड, नैशविला रोड, क्लेमनटाउन, रोवर्स केव, रेसकोर्स, कॉन्वेंट रोड समेत कई जगहों के अंग्रेज नाम हैं. इनमें अधिकतर की यादें ब्रिटिश हुकूमत से जुड़ी हैं.

अंग्रेजों को बहुत पसंद थी मसूरी, दे दिए कई नाम: अंग्रेज अफसरों को मसूरी बहुत पसंद थी. उनके लिए यह एक खूबसूरत और स्वास्थ्यवर्धक हिल स्टेशन था. गर्मियों में ब्रिटिश अफसर और यहां रहने वाले अंग्रेज मसूरी की ठंडक का आनंद लेते थे. दरअसल, इंग्लैंड एक ठंडी जलवायु वाला देश है. अंग्रेजों को मसूरी की जलवायु वहां के जैसा एहसास कराती थी. इसलिए उनके लिए ये स्थान छुट्टियां बिताने की मनपसंद जगह थी. इस कारण मसूरी के कई स्थानों के नाम अंग्रेजों के नाम पर हैं.
देहरादून के अलावा मसूरी में ऐसी दर्जनों सड़कें और जगहें हैं, जिनके नाम अंग्रेजों ने रखे हैं. मॉल रोड, कैम्पटी फॉल, जॉर्ज एवरेस्ट, कंपनी गार्डन, गन हिल, क्लाउड्स एंड, कैमल बैक रोड समेत कई जगहें यहां अंग्रेजों के नाम से जानी जाती हैं.

नैनीताल थी अंग्रेजों की ग्रीमष्मकालीन राजधानी: अंग्रेजों को नैनीताल भी बहुत पसंद था. नैनीताल एक सुंदर और शांत पहाड़ी क्षेत्र था. जब अंग्रेज यहां आए तो यहां मैदानी इलाकों के जैसी गर्मी और भीड़ नहीं थी. उनके लिए नैनीताल ग्रीमष्मकालीन राजधानी जैसा था. नैनीताल को उन्होंने शिक्षा का हब बनाया जो उनके बच्चों के लिए अनुकूल साबित हुआ. उत्तराखंड बनने से पहले तक उत्तर प्रदेश के राजभवन का कामकाज गर्मियों में नैनीताल राजभवन से ही चलता था. गर्मियों में यूपी के राज्यपाल नैनीताल में भी प्रवास करते थे और यहीं से राज्य का कामकाज संभालते थे. अंग्रेज जब यहां थे तो उन्होंने अनेक स्थानों के नाम अपने हिसाब से रखे थे.
नैनीताल में भी अंग्रेजों की याद दिलाने वाली कई इमारतें और सड़कें मौजूद हैं. यहां भी अंग्रेजों ने मॉल रोड बनाई. मसूरी की तरह ही यह जगह भी एक हिल स्टेशन के रूप में ब्रिटिश अफसरों को काफी पसंद थी. यहां पर कई चर्च स्थापित किए गए.
नैनीताल में ओल्ड स्मगलर हाउस, चार्टन लॉज, रैमजे एरिया आज भी हैं. देश और दुनिया भर में जाना जाने वाला जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जिसका नाम ब्रिटिश शिकारी जिम कॉर्बेट के नाम से रखा गया, भी यहां मौजूद है. इतना ही नहीं प्रदेश में दूसरे कई क्षेत्र हैं, जो अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाते हैं.

नाम बदलने पर कांग्रेस हुई हमलावर: इस मामले में कांग्रेस राज्य की भाजपा सरकार पर हमलावर दिखती है. कांग्रेस कहती है कि ब्रिटिश हुकूमत में गुलामी के समय से ही भाजपा से जुड़े लोगों का इतिहास अंग्रेजों के साथ वाला रहा है. ऐसे में यह केवल मुस्लिम नामों को बदलने की राजनीति तक ही सीमित रहते हैं. इन्हें ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी की यादों से जुड़े नामों से कोई लेना देना नहीं है.
नाम बदलने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन नाम तभी बदले जाने चाहिए जब स्थानीय लोग इसके लिए सरकार के सामने कोई प्रस्ताव रखें या उनकी कोई डिमांड हो. बीजेपी सरकार अपने राजनीतिक नफा-नुकसान को देखते हुए फालतू में स्थानों के नाम बदल रही है.
- शीशपाल गुसाईं, कांग्रेस नेता -
बीजेपी मीडिया प्रभारी ने दिया ये तर्क: केवल मुस्लिम नामों को ही बदले जाने और ब्रिटिश हुकूमत में हुए अन्याय की याद दिलाते नामों पर सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने के सवाल से भाजपा नेता भी घिरते हुए दिखाई देते हैं.
धामी सरकार ने नाम बदलने को लेकर यह केवल शुरुआत की है. आगे भी इसी तरह नाम बदलने का सिलसिला जारी रहेगा.
- मनवीर चौहान, बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी -
ब्रिटिश हुकूमत के समय के नाम भी बदलेगी सरकार: इस मामले पर जब ब्रिटिश हुकूमत के दौरान दिए गए नामों का सवाल पूछा गया तो इस पर भाजपा के मीडिया प्रभारी कहते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत के दौरान रखे गए नामों को भी भाजपा सरकार बदलेगी. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस पर भी कदम उठाएंगे, उन्हें इसकी पूरी उम्मीद है.

बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा- नीरज कोहली: प्रदेश में नाम बदलने को लेकर चल रही बयानबाजी के बीच इस पूरे घटनाक्रम को राजनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है. जानकार मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ती है. ऐसे में राज्य में मुस्लिम नामों से जुड़े स्थानों के नाम बदला जाना राजनीति से प्रेरित दिखाई देता है.
भाजपा की केंद्र और राज्य की सरकार दोनों ही मुस्लिम नाम बदलने पर कदम उठाती हुई दिखाई दी हैं. इससे सीधे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सरकार का यह कदम राजनीतिक नफा नुकसान से जुड़ा दिखाई देता है.
- नीरज कोहली, वरिष्ठ पत्रकार -
उत्तराखंड सरकार ने बदले हैं 17 स्थानों के नाम: गौरतलब है कि, धामी सरकार ने बीते 31 मार्च को उत्तराखंड के 4 जिलों के 17 जगहों के नाम बदलने की घोषणा की थी. हरिद्वार जिले में 10 स्थानों के नाम बदले गए. देहरादून जिले में 4 स्थानों के नाम बदले गए. नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में 3 स्थानों के नाम बदले गए. देहरादून के मियांवाला का नाम बदलने का भारी विरोध हो गया. विरोध के बाद सरकार ने नाम बदलने पर पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया. दरअसल, मियांवाला निवासियों का दावा है कि ये मुस्लिम नाम नहीं बल्कि राजपूत नाम है.
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