
मतदान करने पर नक्सली करते थे खून-खराबा, बिहार के गया में आज कैसे हैं हालात, जानें
गया के बाराचट्टी में नक्सलियों का आतंक था. वोट करने से लोग डरते थे. आज वहां कैसे हालात है ग्राउंड रिपोर्ट में जानें.

Published : September 29, 2025 at 7:53 PM IST
रिपोर्ट: सरताज अहमद
गया: बिहार के गया जिला का बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र पड़ोसी राज्य झारखंड की सीमा से सटा हुआ है. इस इलाके में चुनावों के दौरान नक्सलियों की दहशत से लोग लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होने से भी डरते थे. ये वो क्षेत्र था जहां बंदूक से निकली गोलियों की गूंज से क्षेत्र दहल जाता था. राजनीतिक दलों की चुनावी समीकरण बाराचट्टी पहुंचते ही हवा हवाई हो जाती थी. नक्सलियों के वोट बहिष्कार के नारे पूर्ण रूप से पालन किए जाते थे, लेकिन आज यहां की परिस्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है.
कभी नक्सली तय करते थे जनप्रतिनिधि!: इस क्षेत्र ने वो समय भी देखा है जब नक्सलियों के एक फरमान से प्रत्याशी तय होते थे. मतदान से पूर्व नक्सलियों की जन अदालत से मतदान को प्रभावित करने के फरमान जारी किए जाते थे. ये वो क्षेत्र था, जहां सुरक्षा बल भी अपनी जानों को हथेली पर रख कर चुनाव की प्रक्रिया कराते थे. इस क्षेत्र में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ आम बात थी.
ग्राउंड पर ईटीवी भारत: चुनावों से पूर्व शाम में अंतिम निर्णय नक्सलियों का होता था, लेकिन अब स्थिति बदली नजर आती है. ईटीवी भारत की टीम ने बाराचट्टी के पत्तलुका, झांझ, बीबी पेसरा, शिवगंज और दूसरे क्षेत्रों पर पहुंच कर ग्राउंड के माध्यम से हालात जाने हैं.
कभी डर से नहीं डालने जाते थे वोट: बाराचट्टी क्षेत्र में विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर लोगों में अपने प्रतिनिधि को चुनने के लिए उत्साह है. झांझ गांव के निवासी रामावतार मांझी कहते हैं कि विकास ही इस क्षेत्र का अब मुद्दा है, लेकिन इसी क्षेत्र में 1990 से लेकर 2015 के चुनावों तक यहां के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में डर से लोग वोट डालने तक नहीं जाते थे.
"प्रत्याशी इस इलाके में प्रवेश करने की हिम्मत तक नहीं जुटाते थे. लेकिन वर्तमान में स्थिति बदली है. बिना किसी डर भय के लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं."- रामावतार मांझी, झांझ गांव निवासी

बाराचट्टी प्रखंड के सबसे अंतिम छोर पर स्थित झांझ के हर शिकार गांव में एक चबूतरे पर बैठे नंनद लाल कुमार कहते हैं कि अब तो राष्ट्रीय स्तर के नेता प्रचार प्रसार में पहुंच रहे हैं. अब यहां के मतदाता विकास के लिए बढ़-चढ़कर मतदान करने की बात करते हैं. राजनीतिक दलों के नेता भी निडर होकर जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं.
"एक समय था यहां इलाके में खून खराबा का माहौल था. अब विकास की बात हो रही है. मुख्य धारा में लौटे कई नक्सली भी इस क्षेत्र का विकास चाहते हैं, हालांकि वो ये भी कहते हैं कि इस क्षेत्र के लोगों को अभी भी विकास के कार्यों का इंतजार है. खास तौर इस क्षेत्र में रोजगार के लिए साधन का नहीं होना एक बड़ी समस्या है."- नंनद लाल कुमार, झांझ गांव निवासी
सुरक्षित सीट है बाराचट्टी: रामावतार मांझी कहते हैं कि बाराचट्टी विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा क्षेत्र है. जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी दक्षिण में स्थित है. इसी क्षेत्र से नेशनल हाईवे 2 होकर गुजरी है. बाराचट्टी में मतदाता संरचना में अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 35.88 प्रतिशत है. फिर भी विकास की रोशनी यहां तक कम पहुंची है.

"बदहाली के चलते अनेक परिवारों के लिए शिक्षा प्राथमिकता नहीं है. बच्चों को काम पर लगाकर दिनचर्या की आमदनी जुटाना ज्यादा जरूरी होता है. यहां की कुल एससी आबादी में लगभग 55.60 प्रतिशत चमार जाति (रविदास), 30.35 प्रतिशत दुसाध (पासवान) और 5.8 प्रतिशत मुसहर जाति हैं."-रामावतार मांझी, झांझ गांव निवासी
मांझी की समधन हैं विधायक: 1957 में अलग विधानसभा क्षेत्र बनने के बाद से बाराचट्टी में अब तक उपचुनाव को मिलाकर 18 चुनाव हो चुके हैं. यहां से कांग्रेस और राजद ने चार चार बार जीत दर्ज की है, जबकि एक बार जनता दल, जदयू दो बार , जनता पार्टी, इंडियन पीपुल फ्रंट और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने एक एक बार इस सीट पर जीत दर्ज की है. वर्तमान में इस सीट पर हम पार्टी से केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की समधन और बिहार सरकार में मंत्री संतोष की सास ज्योति मांझी विधायक हैं.
नक्सलियों के चंगुल में इलाका: बाराचट्टी के शिवगंज गांव के राजदेव पासवान कहते हैं कि वर्षों तक यह इलाका नक्सलियों के चंगुल में रहा है. इस कारण यहां जितना विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो सका है. शिक्षा और सिंचाई क्षेत्र की प्रमुख समस्या है.
"नक्सलवाद के कारण यहां विकास अवरुद्ध रहा है. कई पार्टियों के नेता तो आ रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें मौका मिला तो इस क्षेत्र का व्यापक विकास करेंगे, लेकिन पिछले कई चुनाव में इस क्षेत्र को सिर्फ वादे ही हाथ लगे हैं काम नहीं हुए हैं."- राजदेव पासवान, शिवगंज गांव निवासी
2010 में 5 स्कूलों को नक्सलियों ने किया ध्वस्त: 2010 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्र के कई स्कूलों को नक्सलियों ने निशाना बनाया था. नक्सलियों ने चुनाव बहिष्कार के साथ पोस्टर जारी कर कहा था कि स्कूलों में सुरक्षा बलों को ठहराया जाता है जो उन्हें पसंद नहीं है. नक्सलियों ने झांझ समेत कई गांव में स्थित लगभग 5 स्कूलों को बम लगाकर उड़ा दिया था.

2010 से पहले के कई चुनाव ऐसे थे जब नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ भी हुई थी. सुरक्षा बल इस क्षेत्र में गाड़ियों से चुनाव कराने नहीं जा सकते थे. क्योंकि जगह-जगह पर नक्सली लैंड माइंस छुपा कर रखते थे, ताकि उन्हें निशाना बनाया जा सके. अब तो क्षेत्र के अंतिम छोर पर भी पोलिंग पार्टी पहुंचती है.
नक्सलियों का फरमान होता था सर्वोपरि: स्थानीय पत्रकार अमित कुमार कहते हैं कि क्षेत्र में नक्सलियों का फरमान जारी होता था, जो उनके क्षेत्र थे वहां वोट का बहिष्कार होना आम बात थी. लेकिन आज वह सब स्थिति नहीं है. यह वही क्षेत्र है जहां पूर्व उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू के हेलीकॉप्टर को नक्सलियों ने जला दिया था.
"पहले दहशत हुआ करती थी. लोग नक्सलियों के भय से वोट नहीं देते थे. पुलिस भी जाती थी वोटिंग कराने के लिए तो वह पूरी सतर्कता के साथ जाती थी. एक समय ऐसा था जब धनगई थाने के पास चुनाव के समय पुलिस की बैरिकेटिंग लगती थी और वहां बोर्ड लगता था कि आगे जाना वर्जित है."- अमित कुमार, स्थानीय पत्रकार

फूंक दी गई थी वैंकेया नायडू की हेलीकॉप्टर: बाराचट्टी क्षेत्र वही है, जहां आम लोग क्या खास भी प्रभावित हुए हैं. देश के पूर्व उपराष्ट्रपति और उस समय के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वैंकेया नायडू को भी यहां से जान बचा कर भागना पड़ा था. अमित कुमार कहते हैं कि भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नायडू का हेलीकॉप्टर फरवरी 2005 में बाराचट्टी प्रखंड के पड़रिया गांव में आपात स्थिति में लैंड हुआ था. तब नायडू नक्सलियों के मुंह से कुछ मिनट पहले निकल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचे थे. उन्हें क्षेत्र के राजेंद्र साहू नाम के एक शख्स ने अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था. नक्सलियों ने उनकी हेलीकॉप्टर में आग लगा दी थी.
चुनाव के समय होती थी भयावह स्थिति: 80 वर्ष के राम ब्रिज चौधरी कहते हैं कि चुनाव के समय में स्थित भयावह होती थी. प्रत्याशी उनके इलाके आते नहीं थे. पहले तो इस क्षेत्र के तीली पहाड़ पर पोलिंग पार्टियों को जाने के लिए प्रशासन की भी अनुमति नहीं होती थी. अब तो वहां प्रत्याशी जाकर प्रचार प्रसार करके चले आते हैं.

"क्षेत्र में हत्या , लूट और जन अदालत लगाकर लोगों को पीटने के मामले आम बात थे. साल 2000 में इस क्षेत्र की गतिविधि रुक गई थी. चुनाव के समय में लोग 5 से 10 की संख्या में घर से नहीं जाते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि शायद नक्सली यह ना समझे कि वह चुनाव प्रचार में जा रहे हैं."- राम ब्रिज चौधरी, ग्रामीण

जब रुक जाती गाड़ियां: बेरी गांव के मुशर्रफ़ खान कहते हैं कि उनका गांव शोभ बाजार से लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर है. उनके गांव में तो नक्सलियों का प्रभाव ज्यादा नहीं था. लेकिन हमारे गांव से आगे चुनाव प्रचार की गाड़ियां नहीं जाती थी.

"1995 से लेकर 2010 के बीच के चुनाव में प्रचार प्रसार में पहुंचने वाले यहां से नेता आगे नहीं बढ़ते थे. लोग बेबी पेसर गांव से आगे बढ़ते थे, जिनको नक्सली जाने की अनुमति देते थे. 2005 के चुनाव में धनगई थाना से आगे रिपोर्टरों को भी जाने से रोक दिया जाता था."- मुशर्रफ़ खान, ग्रामीण, बेरी गांव
10 गांव मिलकर एक जगह बनता था बूथ: अमित कुमार बताते हैं कि इस क्षेत्र में 2010 से पहले जहां सुरक्षित स्थान पर चुनाव के लिए क्लस्टर बनता था. वहीं पर 10 से 12 गांव को मिलाकर एक जगह पर बूथ बनाया जाता था. तब वहां पर वोटिंग प्रतिशत 20 से 25 प्रतिशत ही हुआ करती थी. लोग डर के मारे घर से बाहर नहीं निकलते थे, क्योंकि चुनाव से पहले ही नक्सलियों का फरमान जारी हुआ करता था, अगर किसी ने उनके फरमान को नहीं माना तो सजा दी जाती थी.

अब नहीं है डर: गयाजी के वरीय पुलिस अधीक्षक आनंद कुमार कहते हैं कि पहले जैसी स्थिति अब नहीं है नक्सलियों की कमर टूट चुकी है. पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की करवाई और सरकार की नीतियों , विकास के कार्यों ने क्षेत्र से नक्सलियों का राज खत्म हो चुका है.
"पहले चुनौती हुआ करती थी लेकिन अब क्षेत्र के अंतिम छोर तक पुलिस की पहुंच है और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था भी की जाती है. सुरक्षा दृष्टिकोण से अभी भी चुनाव के समय में पुलिस की ओर से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रखी जाती है और लोगों को सुरक्षा का एहसास कराया जाता है."- आनंद कुमार, वरीय पुलिस अधीक्षक

वोट को लेकर लोग जागरुक: कृष्णा मांझी कहते हैं कि हर हाल में हम लोग विधानसभा चुनाव में बूथ पर वोट देने जाएंगे और अपनी सरकार चुनेंगे. विकास हम लोगों का मुख्य मुद्दा है. यहां अब भी स्वास्थ्य शिक्षा और सिंचाई के साथ रोजगार की कमी है. हाल के कुछ सालों में इलाके में कई सड़कें बनी हैं.
"यहां सीआरपीएफ, एसएसबी के भी कैंप हैं. अब तो वो इलाका जहां दिन में जन अदालत नक्सलियों की लगती थी, आज वहां पर पुलिस की मौजूदगी है. कुछ साल पहले इस इलाके में नक्सलियों के कारण डर का माहौल था पर अब किसी का डर नहीं है. विकास की बात हो रही है."-कृष्णा मांझी, ग्रामीण
2020 के चुनाव में 4 महिला थी प्रत्याशी: इस विधानसभा क्षेत्र में 2020 का चुनाव महिला प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हुआ था. यह मुकाबला बेहद रोचक भी रहा क्योंकि इसमें शीर्ष चारों प्रत्याशी महिलाएं थीं. हम पार्टी से ज्योति देवी ने राजद की समता देवी को 6318 वोटों से हराया था.

2020 के विधानसभा चुनाव में ज्योति देवी को 72491 वोट मिले थे. उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत 39.2 था, जबकि राजद की प्रत्याशी समता देवी को 66173 मत मिले थे. 2020 के चुनाव में लोजपा ने रेणुका देवी को प्रत्याशी बनाया था जिन्हें 11244 मत मिले थे. जबकि यहां से बीएसपी ने रीता देवी को प्रत्याशी बनाया था और उन्हें भी 9721 वोट प्राप्त हुए थे. हालांकि 2020 के चुनाव में कुल 12 प्रत्याशी यहां से चुनावी मैदान में उतरे थे.
'कभी प्रत्याशियों को देखने के लिए तरसते थे': 80 साल के नईम खान कहते हैं कि आज तो सभी पार्टी के नेता अपनी दावेदारी यहां से कर रहे हैं. प्रत्याशियों की कोई कमी नहीं है लेकिन एक समय था जब हम लोग यहां प्रत्याशियों को देखने के लिए तरसते थे. मेरा गांव बेरी गांव से 5 किलोमीटर अंदर है, लेकिन आज हम अपने गांव में ही बूथ पर वोट डालते हैं.पहले तो हम लोगों को 1995 से 2010 तक बेरी गांव में वोटिंग के लिए आना पड़ता था.

जीतन राम मांझी से लेकर कई रह चुके हैं विधायक: इस क्षेत्र से पहले विधायक जागेश्वर प्रसाद ख़लिश थे. उन्होंने कांग्रेस पार्टी की टिकट जीत दर्ज की थी. अभी वर्तमान में लगभग 322083 वोटर हैं. इस क्षेत्र में मुख्य रूप से प्रतिनिधित्व करने वाले को देखें तो इन में 1972 में मोहन राम कांग्रेस से जीते थे.
1977 भागवती देवी जनता दल से जीती थीं. 1980 जीएसराम चंद्र दास आईएनसीआई से जीते, 1985 में जी एस राम चंद्र दास कांग्रेस से जीते, 1990 उमेश सिंह पासवान आईपीएफ से जीते, 1995 भगवती देवी जनता दल से जीती, 1996 में जीतन राम मांझी भी यहां से जीते थे.
जबकि 2000 में फिर से भागवती देवी विधायक बनी थीं. 2005 के पहले चुनाव उनके बेटा विजय मांझी विधायक बने थे. 2005 में जीतन राम फिर से यहां से विधायक बने. 2010 में ज्योति देवी जेडीयू की टिकट पर विधायक बनी थीं. 2015 में राजद से समता देवी विधायक बनी, समता देवी भी भगवतिया देवी की बेटी हैं. 2020 में फिर से ज्योति देवी ने जीत दर्ज किया है.
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