मगध-शाहाबाद की 48 में से 80% सीट जीतने के लिए NDA का 'मास्टर प्लान', पवन सिंह साबित होंगे 'तुरुप का इक्का'?
बिहार के शाहाबाद और मगध की 48 सीटों के लिए बीजेपी ने फुलप्रूफ प्लान बनाया है. पवन सिंह की वापसी उसी रणनीति का हिस्सा है.

Published : October 1, 2025 at 8:44 PM IST
अविनाश कुमार की रिपोर्ट
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार पवन सिंह की बीजेपी में वापसी से शाहाबाद और मगध क्षेत्र का समीकरण पूरी तरह से बदल गया है. पिछले दो चुनावों में इन दोनों इलाकों में बीजेपी और एनडीए का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. 2024 लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के कारण न केवल काराकाट बल्कि शाहाबाद की सभी सीटों पर एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा. अब पवन सिंह की वापसी से गठबंधन को मजबूती मिलेगी.
'पवन पूरा पावर लगाएगा': बीजेपी में आते ही पवन सिंह ने अपने इरादे जता दिए हैं. तस्वीर के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जातिवादी राजनीति के पोषकों के दिल पर इस फोटो को देख कर सांप लोट रहा होगा लेकिन जिनके दिल में विकसित बिहार का सपना बसता है, वो कब तक एक दूसरे से दूर रह सकते हैं. साथ ही कहा कि पीएम मोदी और सीएम नीतीश के सपनों का बिहार बनाने के लिए अपनी ताकत लगा देंगे.
"जातिवादी राजनीति के पोषकों के दिल पे आज ई फोटो देख के सांप लोट रहा होगा लेकिन जिनके दिल में विकसित बिहार का सपना बसता है, वो कब तक एक दूसरे से दूर रह सकते है. मोदी जी और नीतीश जी के सपनों का बिहार बनाने में आपका बेटा पवन पूरा पावर लगाएगा."- पवन सिंह, भोजपुरी स्टार

काराकाट की कड़वाहट में फिसली 6 सीट: 2024 लोकसभा चुनाव में पवन सिंह ने काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था, हालांकि उनको सफलता नहीं मिली. सीपीआई माले के राजाराम सिंह कुशवाहा चुनाव जीत गए, जबकि एनडीए कैंडिडेट उपेंद्र कुशवाहा तीसरे नंबर पर रहे. सिर्फ काराकाट ही नहीं आसपास की 5 अन्य सीटों पर भी सत्ता पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा.

पवन सिंह के आने से क्या बदलेगा?: राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडे कहते हैं कि शाहाबाद ही नहीं पूरे पटना प्रमंडल, मगध और सारण प्रमंडल में भी पवन सिंह की लोकप्रियता बहुत अधिक है. युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. 2024 लोकसभा चुनाव पवन सिंह के कारण गड़बड़ा गया था, क्योंकि राजपूत वोटर नाराज हो गए थे. न केवल राजपूत वोटर नाराज हुए बल्कि कुशवाहा वोटर ने भी साथ नहीं दिया. जिस वजह से आरा से आरके सिंह जैसे मजबूत नेता भी चुनाव हार गए.

राजपूत-कुशवाहा एकता से एनडीए को फायदा: सुनील पांडे कहते हैं कि बक्सर सीट में भी कुशवाहा ने खेला किया. राजपूत-कुशवाहा की लड़ाई में काराकाट, औरंगाबाद, जहानाबाद और पाटलिपुत्र की सीट भी एनडीए के हाथ से निकल गई. जहानाबाद को छोड़ दें तो सभी सीट एनडीए के पक्ष में जाती दिख रहा था लेकिन पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच काराकाट में हुई लड़ाई के कारण उसका असर इन सभी सीटों पर पड़ा.

आरा से चुनाव लड़ेंगे पवन सिंह?: आरा विधानसभा सीट से बीजेपी के कद्दावर नेता अमरेंद्र प्रताप सिंह विधायक हैं. साल 2000 से वह लगातार जीत रहे हैं लेकिन अब उनकी उम्र हो गई है. ऐसे में उनकी जगह पवन सिंह को टिकट मिल सकता है. बिहार में पवन सिंह स्टार प्रचारक की भूमिका निभाएंगे, जिससे विपक्ष के खिलाफ जबरदस्त बढ़त दिलाने में मदद मिलेगी.

"एनडीए के लिए एक तो अच्छी बात है कि पवन सिंह फिर से बीजेपी के साथ आ गए हैं. लोकसभा में भी आरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन आरके सिंह के कारण उन्हें सीट नहीं मिली, तब काराकाट से निर्दलीय लड़े थे. अब वह आरा से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं."- सुनील पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ

तीन प्रमंडल में 'पवन फैक्टर' काम करेगा: पटना, मगध और सारण में पवन सिंह फैक्टर काम कर सकता है. इन तीन प्रमंडलों में कुल 79 विधानसभा सीटें हैं. मगध और शाहाबाद की 48 सीटों पर तो वह बेहद असरदार साबित हो सकते हैं. एनडीए की स्थिति 2015, 2020 और 2024 में काफी खराब रही थी.

पटना प्रमंडल में दिखेगा 'पावर': पटना प्रमंडल में विधानसभा की 43 सीटें, जिसमें से केवल 13 पर एनडीए को जीत मिली. पटना प्रमंडल में ही भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिला आता है. इसके अलावा पटना और नालंदा जिला भी है, जहां एनडीए की स्थिति बेहतर है. शाहाबाद की 22 सीटें इसी प्रमंडल में है, जिसमें सिर्फ 2 सीटें ही एनडीए जीत पाया था. इन 6 जिलों में महागठबंधन के पास 30 सीटें है.

मगध में असरदार होंगे भोजपुरी स्टार: मगध प्रमंडल में 5 जिले अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद, गया और नवादा है. इसमें कुल 26 विधानसभा की सीटें हैं, जिसमें से महागठबंधन का 20 पर कब्जा है. वहीं एनडीए के पास केवल 6 सीट है. औरंगाबाद को राजपूतों के लिए 'बिहार का चितौड़गढ़' कहा जाता है. औरंगाबाद में 2020 में सभी 6 सीटों पर महागठबंधन को जीत मिली थी. पवन सिंह के आने से औरंगाबाद की तस्वीर पूरी तरह से बदल सकती है.

सारण में भी दिखेगा जलवा: सारण प्रमंडल में सारण, सिवान और गोपालगंज आते हैं. सारण की 10 विधानसभा सीटों में महागठबंधन के हिस्से में 7 और एनडीए के पास 3 सीट है. सिवान की 8 में 6 सीट महागठबंधन के पास और 2 सीट एनडीए के पास है, जबकि गोपालगंज की 6 में 4 पर एनडीए और 2 पर महागठबंधन का कब्जा है. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की जोड़ी सारण प्रमंडल में भी धमाल मचा सकती है.

राजपूत वोटरों का होगा ध्रुवीकरण: राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती के मुताबिक आरके सिंह जिस प्रकार से बीजेपी पर दबाव बना रहे थे, अब पवन सिंह के आने से राजपूत वोटरों के बंटने का खतरा कम हो जाएगा. वैसे आरके सिंह ने भी कहा था कि पवन सिंह कि बीजेपी में वापसी होनी चाहिए. चर्चा है कि आरके सिंह की भी बीजेपी नेतृत्व के साथ बातचीत हो गई है और इसीलिए फिलहाल शांत हैं.

"पवन सिंह के आने से एनडीए को विशेष कर भोजपुरी इलाके में बहुत लाभ मिलेगा यह तय है. खासकर उपेंद्र कुशवाहा के साथ जिस प्रकार से दूरियां बढ़ी थी, अब दोनों एक हो गए हैं तो यह बहुत शुभ संकेत है. यह विपक्ष के लिए भी टेंशन बढ़ाने वाला है."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ

शाहाबाद-मगध की 48 सीटों पर नजर: शाहाबाद की 22 और मगध की 26 यानी कुल 48 सीटें ऐसी है, जहां 2020 में एनडीए को का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. हालांकि 2024 उपचुनाव में 2 सीटों पर जरूर 'कमल' खिला था लेकिन 2025 में इन सीटों पर जीत हासिल करना आसान नहीं होगा. यही वजह है कि पवन सिंह की घर वापसी कराई गई है. पावर स्टार का क्या 'पावर' है, ये बीजेपी को भी पता है. इसलिए अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक ने गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया है. देखना होगा कि भोजपुरी स्टार इस चुनाव में सत्ता पक्ष के लिए 'तुरुप का इक्का' साबित होते हैं या नहीं?
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