गया: एनटीए ने जेईई मेन्स 2025 का रिजल्ट घोषित कर दिया है. इसबार भी बिहार में आईआईटीयन का गांव पटवा टोली का जलवा देखने को मिला. इस बार के रिजल्ट में 40 से अधिक छात्र-छात्राओं ने सफलता पायी है. इसमें वृक्ष संस्थान में पढ़ने वाले 28 छात्र-छात्राएं शामिल हैं.
पटना टोली के 40 छात्रों ने जेईई मेन्स पास किया : जेईई मेन्स में शरण्या को 99.64 पर्सेंटाइल अंक आए हैं. इसी तरह आलोक को 97.7, शौर्य 97.53, यश राज 97.38, शुभम 96.7, प्रतीक 96.35, केतन 96.00, निवास 95.7, गौरिका यादव 95.1, सागर, 94.8, अस्मिता को 91.82 पर्सेंटाइल अंक आए हैं.
बिहार की आईआईटी फैक्ट्री पटवा टोली : इसी तरह निरुपम को 91.02, अभिराज 91.01, मनीष 91.37, नंदनी 2-90.8, कशिश 90.8, अंजली 90.66, सानिया 90.4, श्रेया 89.92, अमन 89. अभिनव 88.89, शशिकांत 87.7, आकाश 87.6, अर्शियन 87.37, नैंसी 87.2, मंत राज 87, नेहा 83.95, भरत को 80.45 पर्सेंटाइल अंक आए हैं.
हर घर में इंजीनियर: इंजीनियरों का कारखाना कहें या फिर आईआईटीयन का गांव, यहां हर घर में इंजनीयिर देखने को मिल जाएगा. इसकी शुरुआत 1991 से ही हो गयी थी. इसके बाद से हर साल इस गांव से इंजनीयिर बनते हैं. इसमें वृक्ष नामक संस्था का अहम योगदान है. साल 2013 से यह संस्थान छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क इंजीनियरिंग परीक्षा की तैयारी कराता है.
सागर की सफलता की कहानी: जेईई मेंस 2 की परीक्षा में सफलता हासिल करने वाले सागर कुमार को 94.8 अंक प्राप्त हुए हैं. सागर कुमार के सफलता की कहानी भी हैरान करने वाली है. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने बताया कि 'जब होश भी नहीं संभाला था तो सिर से पिता का साया उठ गया था. पिता की मौत के बाद सागर को बुनकरों की इस नगरी में सहारा मिला. आर्थिक रूप से कमजोर सागर को वृक्ष संस्थान से मदद मिली.

"इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहते हैं. पिता की मौत के बाद आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. वृक्ष संस्था जो कि पटवा टोली में बुनकरों के बच्चों के लिए काम करती है इसका सहारा मिला. यही पढ़ाई शुरू कर दी. इसी कारण सफलता मिली है. दादी भी काम करती है तब जाकर घर का गुजारा हो पाता है." -सागर कुमार, जेईई मेंस 2 क्वालीफाई
गरीबी को लोहा माना: 91.82 पर्सेंटाइल लाने वाली अस्मिता कुमारी भी गरीब घर से आती हैं. गरीबी लोहा मान सफलता हासिल की है. अस्मिता कुमारी बताती है कि उसके पिता बुनकर है. मां भी सूत काटने का काम करती है. काफी गरीब परिवार से हैं. आर्थिक स्थिति खराब रहती है लेकिन इसके बीच उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी.
"लगातार 12 घंटे तक मेहनत कर इस परीक्षा में सफलता आई है. आगे जाकर एक सफल इंजीनियर बनना चाहती हूं और देश का नाम रोशन करना चाहती हूं." -अस्मिता कुमारी, जेईई मेंस 2 क्वालीफाई

गेटकीपर का बेटा बनेगा इंजीनियर: छात्र प्रतीक को 96.35 पर्सेंटाइल अंक आए हैं. उन्होंने बताया कि उसके पिता आईआईएम बोधगया में गेटकीपर हैं. उन्होंने काफी मेहनत की है इसके बाद सफलता मिली है. शुभम कुमार ने बताया कि वह जमुई का रहने वाला है. 'हमने सुना था कि यहां बच्चे इंजीनियर बनते हैं तो यहां पढ़ने का फैसला लिया. इसी खटखट(सूत काटने की आवाज) वाले माहौल में पढकर सफल हुआ'.
शुभम ने बताया कि बताया कि यहां कई राज्यों से भी छात्र आते हैं. पटवा टोली की नंदिनी कुमारी ने बताया कि उसके माता-पिता सूत काटते हैं. घर चलाने के लिए काफी मशक्कत करते हैं. पटवाटोली में रहकर वह सफल हुई हैं.
तीन दशक से यहां के बच्चे बन रहे इंजीनियर: वृक्ष संस्था से जुड़े रंजीत कुमार बताते हैं कि जेईई मेंस 2 में पटवा टोली में पढने वाले 40 से अधिक बच्चे सफल हुए हैं. यह सफलता पिछले तीन दशक से जारी है. हमलोग वृक्ष संस्था के तहत निशुल्क शिक्षा प्रदान करते हैं. इसमें किसी प्रकार का शुल्क बच्चों से नहीं लिया जाता है.
"हर साल बुनकरों के गरीब परिवार के बच्चे काफी संख्या में सफल हो रहे हैं. इस बार भी बुनकरों की बस्ती पटवा टोली के बच्चों ने कमाल कर दिखाया है. दूसरे राज्य से आने वाले छात्र भी पटवा टोली में पढकर सफल हुए हैं." -रंजीत कुमार, वृक्ष संस्था

पटवा टोली आईआईटीयन का गांव कैसे बन गया? : आईए जानते हैं कि कभी बिहार का मैनचेस्टर नाम से विख्यात पटवा टोली आईआईटीयन का गांव कैसे बन गया?. पावर लूमो की कर्कश शोर के बीच बच्चों ने खुद को कैसे तराशा?. क्या है इस गांव की सफलता की कहानी?
20 हजार की आबादी: आईआईटीयन का गांव बनने से पहले पटवा टोली बिहार का मैनचेस्टर के रूप में जाना जाता था. यहां घर-घर में सूत काटने का काम होता है. दशकों पहले यहां का कपड़ा उद्योग शुरू हुआ था. 20 हजार की आबादी वाले इस गांव में 8000 के करीब पावर लूम और 1000 के करीब हैंडलूम चलता है. खटखट की आवाज में बच्चों ने पढ़ाई शुरू की और सफलता हासिल की.
जितेंद्र कुमार गांव के पहले इंजीनियर: सफलता शुरू होने के बाद सिलसिला कभी नहीं थमा. बात 1992 की है जब जितेंद्र कुमार आईआईटी की परीक्षा किए थे. जितेंद्र वर्तमान में यूएसए में कार्यरत हैं. जितेंद्र कुमार की सफलता पटवा समुदाय के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए. इसके बाद यहां के बुनकर समुदाय के लोग इतने जागरूक हुए कि उन्होंने अपने बच्चों को इसकी पढ़ाई करवानी शुरू कर दी.
18 देशों में हैं पटवा टोली के इंजीनियर: यूएसए में रहे जितेंद्र कुमार पटवा टोली के बच्चों को निशुल्क शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं. 'वृक्ष वी द चेंज' नाम की संस्था के बैनर तले आईआईटी की तैयारी करवाई जाती है. पिछले 33 साल की सफलता को देखें तो यहां के इंजीनियर 18 देशों में काम करते हैं.
किस साल कितने इंजीनियर: 1998 में तीन छात्रों ने आईआईटी में प्रवेश पाया. इसके बाद 1999 में 7 और फिर यह सिलसिला जो शुरू हुआ है जो बढ़ता ही रहा. अब तक 500 सौ के करीब छात्र आईआईटी में शामिल हुए हैं जबकि कई एनआईटी और अन्य इंजीनियरिंग संस्थानों में गए हैं. वर्ष 2014 में 13 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लियर किया था. 2015 में 12, 2016 में 11, 2017 में 20, 2018 में 5.
पटवा टोली वस्त्र उद्योग में भी आगे : पटवा टोली से प्रतिदिन कई ट्रक निर्मित वस्त्र देश के विभिन्न राज्यों में जाते हैं. यहां का वस्त्र तमिलनाडु तक जाता है. पावरलूम में चादर, साड़ी, धोती, गमछा के अलावा कई तरह के वस्त्रों का उत्पादन होता है. रजाई तोशक खोल के कपड़े भी मिलते हैं. यहां का वस्त्र उद्योग काफी प्रसिद्ध है और यहां का निर्मित वस्त्र देश भर में जाता है.
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