नई दिल्ली/ नारायणपुर: पूरे देश दुनिया में बस्तर की संस्कृति और बस्तर की पहचान कायम हो रही है. 27 मई 2025 का दिन बस्तर के लिए सबसे गौरव का दिन साबित हुआ. जब नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले की सांस्कृतिक माटी से उपजे लोककला साधक पंडीराम मंडावी को पद्मश्री सम्मान 2025 से नवाजा गया. राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित गरिमामय समारोह में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पंडीराम मंडावी को पद्मश्री सम्मान भेंट किया.
बस्तर में उत्साह का माहौल: जैसे ही पंडीराम मंडावी को नई दिल्ली में राष्ट्रपति ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया. पूरे छत्तीसगढ़ में खुशी की लहर दौड़ गई. बस्तर से लेकर नारायणपुर और नारायणपुर से लेकर अबूझमाड़ तक में पंडी राम मंडावी की कृति गूंजने लगी. पंडीराम मंडावी नारायणपुर जिले के दूसरे व्यक्ति हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ है.इससे पूर्व वर्ष 2024 में पारंपरिक वैद्य हेमचंद मांझी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
जानिए कौन हैं पंडीराम मंडावी?: 68 साल के पंडीराम मंडावी बीते 5 दशक से छत्तीसगढ़ की कला खासकर काष्ठ कला को प्रचारित प्रसारित और संरक्षित करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़ की पारंपरिक वाद्य यंत्र निर्माण और काष्ठ शिल्पकला को संरक्षित करने का काम किया है.

पंडीराम मंडावी ने कौन से वाद्य यंत्र बनाए?: पंडीराम मंडावी बांसुरी, टेहण्डोंड, डूसीर, सिंग की तोड़ी, कोटोड़का, उसूड़ जैसे विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को न केवल बनाते हैं बल्कि उन्हें लोक मंचों पर बजाकर प्रस्तुत भी करते हैं.
पंडीराम मंडावी के कला की विशेषता: पंडीराम मंडावी के कला की विशेषता की बात करें तो यह केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जागरूकता और संरक्षण की एक जीवंत प्रक्रिया है. जिसे उन्होंने संरक्षित कर रखा है. मंडावी जी की कला यात्रा सीमाओं में नहीं बंधी हैं. उनकी कला की ख्याति विश्व के कई देशों तक पहुंची है. वे रूस, फ्रांस, जर्मनी, जापान और इटली जैसे देशों में भारत की सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भाग ले चुके हैं और छत्तीसगढ़ की माटी की सुगंध को वैश्विक फलक तक पहुंचाने का काम कर चुके हैं.

पंडीराम मंडावी को पहले भी मिल चुका है सम्मान: छत्तीसगढ़ शासन ने भी उनकी साधना को सराहते हुए उन्हें दाऊ मंदराजी सम्मान 2024 से सम्मानित किया है, जो लोक परंपराओं को जीवित रखने वाले कलाकारों को प्रदान किया जाता है.

बस्तर के संस्कृति की गूंज: पंडीराम मंडावी को पद्मश्री सम्मान मिलना छत्तीसगढ़ के बस्तर की संस्कृति, खासकर अबूझमाड़ की संस्कृति की गूंज है. जो देश दुनिया तक पहुंच रही है. यह केवल एक कलाकार की उपलब्धि नहीं, बल्कि यह बस्तर की सांस्कृतिक अस्मिता और जनजातीय विरासत की विजय है.


आने वाले पीढ़ियों तक पहुंचे ये कला: पंडीराम मंडावी ने जिस कला को संजोया है. यह बस्तर और छत्तीसगढ़ की आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुंचे. उनकी यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देती है कि परंपरा और पहचान को अगर लगन और समर्पण से निभाया जाए, तो वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक अपनी कला के जरिए जरूर पहुंचेगी. नारायणपुर के इस सपूत को पद्मश्री मिलना देश के साथ साथ छत्तीसगढ़, बस्तर और नारायणपुर के लिए गौरव की बात है.