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शौहर-बच्चे कश्मीरी, खुद पाकिस्तानी, इन महिलाओं ने कहा- न मायका छोड़ूंगी, न ससुराल - PAHALGAM TERROR ATTACK

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद जम्मू कश्मीर में शादी के बाद रह रही पाकिस्तान की महिलाओं के सामने संकट खड़ा हो गया है. पढ़िए ईटीवी भारत संवाददाता परवेजुद्दीन की रिपोर्ट...

Tight security at Srinagar Lal Chowk after Pahalgam terror attack
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद श्रीनगर के लाल चौक में कड़ी सुरक्षा (PTI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : April 26, 2025 at 6:51 PM IST

Updated : April 26, 2025 at 6:58 PM IST

6 Min Read

श्रीनगर: पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने कई निर्णय लिए हैं. इसमें भारत में रह रहे पाकिस्तानी लोगों को यहां से वापस पाकिस्तान जाने का आदेश भी शामिल है. इसी कड़ी में दिलशादा बेगम के लिए अपने बच्चों के बिना पाकिस्तान लौटने का विचार असहनीय है. उन्होंने कांपती आवाज में कहा कि, "यह घर वापसी नहीं, बल्कि एक दुःस्वप्न है."

विधवा और एक दशक से अधिक समय से कश्मीर में रह रही दिलशादा उन सैकड़ों पाकिस्तानी महिलाओं में से एक हैं, जिनका जीवन पहलगाम आतंकवादी हमले के मद्देनजर सभी पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने के भारत के निर्देश के बाद अनिश्चितता में पड़ गया है.

दिलशादा भावुक होकर कहती हैं, "हमें दोनों चाहिए - हमारा मायका और हमारा वैवाहिक घर." यह बात उन्होंने अपने जैसी दर्जनों महिलाओं की गुहार के रूप में कही." उन्होंने कहा कि हमें पूरी तरह से वापस लौटने के लिए मजबूर करने के बजाय सरकार को हमें यात्रा परमिट प्रदान करना चाहिए ताकि हम दोनों तरफ जा सकें. हम पर्यटक नहीं हैं, हम अब यहां परिवारों का हिस्सा हैं, जिनके बच्चे कश्मीर में ही पैदा हुए और पले-बढ़े हैं.

दिलशादा के ये शब्द पहलगाम त्रासदी के बाद आए, जिसकी उन्होंने कड़ी निंदा की. उन्होंने गुस्से और दुख से भरी आवाज में कहा कि"यह मानवता का नरसंहार था." जिन लोगों ने यह राक्षसी कृत्य किया, वे किसी धर्म से संबंधित नहीं हो सकते. वे राक्षस हैं जिन्होंने निर्दोष, निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाईं. उन्होंने कहा कि घटना ने मानवता की अंतरात्मा को झकझोर दिया.

दिलशादा ने स्वीकार किया कि हमले के बाद से वह डर के साए में जी रही हैं. वह कहती हैं कि पहचान पत्र के बिना हमारे साथ कुछ भी हो सकता है. हम अपने और अपने बच्चों के लिए डरे हुए हैं.

38 वर्षीय दिलशादा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद की रहने वाली हैं. 2012 में उन्होंने एक कश्मीरी व्यक्ति से शादी की थी और उसके बाद यहीं बस गईं. उनके पति की मौत हो जाने के बाद उन्होंने अकेले ही पांच बच्चों की परवरिश की. इनमें उनके एक बेटे की शादी हो चुकी है.

दिलशादा ने बताया कि मेरा परिवार अब यहीं है. वह कहती हैं कि मुझे वापस भेजना मुझे मेरी आत्मा से दूर करने जैसा होगा. मैं अकेली नहीं हूं. सीमा के इस पार मेरा घर है, बच्चे हैं और अब नाती-नातिन भी हैं. मैं यह सब कैसे पीछे छोड़ सकती हूं?

वह भारत सरकार से अपने रुख पर पुनर्विचार करने की अपील करती हैं. उन्होंने कहा कि हम केवल यात्रा दस्तावेज मांगते हैं. हम इतने सालों के बाद अपने माता-पिता, भाई-बहनों से मिलने के लिए तरस रहे हैं. हमारे पास दोनों हैं - ससुराल (वैवाहिक परिवार) यहां और मायका (माता-पिता का परिवार) सीमा पार. हम दोनों से मिलने का अधिकार रखते हैं.

एक अन्य पाकिस्तानी महिला ने भी नाम न बताने की शर्त पर ऐसी ही राय जाहिर की. वह एक कश्मीरी से विवाहित हैं और कई सालों से घाटी में रह रही हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि निर्वासन आदेश केवल पर्यटक वीजा पर आए पाकिस्तानी नागरिकों पर लागू होना चाहिए न कि उन लोगों पर जिन्होंने कश्मीर में अपना जीवन बसाया है.

उन्होंने कहा, "हम सरकार के अब तक के व्यवहार से बेहद संतुष्ट हैं." "हम यहां अपने परिवार पाल रहे हैं और शांतिपूर्वक रह रहे हैं. हमें अब निर्वासित करना हमें हमारे बच्चों से अलग कर देगा और हमें असहनीय संकट में डाल देगा."

उन्होंने आगे बताया कि कश्मीर में सैकड़ों पाकिस्तानी महिलाएं ऐसी ही परिस्थितियों में रह रही हैं. हम बस इतना चाहते हैं कि उन्हें सीमा पार जाकर वापस आने की अनुमति दी जाए न कि उन्हें पूरी तरह से निर्वासित किया जाए.

इस स्थिति की जड़ें 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के तहत शुरू की गई नीति में निहित हैं. नई दिल्ली के सहयोग से जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन कश्मीरी युवाओं के लिए पुनर्वास नीति शुरू की थी जो 1989 से 2009 के बीच उग्रवाद के चरम के दौरान पाकिस्तान चले गए थे.

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 4,587 कश्मीरी पुरुष जो पाकिस्तान चले गए थे, उनमें से केवल 489 ही इस नीति के तहत वापस लौटे.उनमें से कई पाकिस्तानी पत्नियों और बच्चों को साथ लेकर आए थे जो अब कश्मीर में बस गए हैं. हालांकि, 2016 में इस नीति को अचानक रोक दिया गया जिससे इनमें से कई परिवार कानूनी अनिश्चितता में फंस गए और कहीं के नागरिक नहीं रहे.

पहलगाम हमले के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक उच्च स्तरीय सुरक्षा बैठक की अध्यक्षता की थी. इसमें अधिकारियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय सीमा तक जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तानी नागरिकों को बाहर निकालना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया.

लेकिन दिलशादा जैसी महिलाओं के लिए इन व्यापक निर्णयों से दशकों के शांत एकीकरण को खतरा पैदा हो गया है. दिलशादा ने दोहराया, "हम इस हमले की तहे दिल से निंदा करते हैं. लेकिन हम, जो शांति से रहते आए हैं, प्यार करते आए हैं, खोते आए हैं और यहां परिवार बनाते आए हैं, उन्हें चंद राक्षसों के अपराधों की सजा क्यों मिलनी चाहिए?"

दिलशादा ने अपील करते हुए कहा, "हमें फिर से अनाथ मत बनाओ. हम पहले ही एक बार अपने घरों को पीछे छोड़ चुके हैं. हमें दोनों तरफ से जुड़ने का मौका दो." जबकि कश्मीर एक आतंकवादी घटना से हुए नुकसान पर शोक मना रहा है. ऐसे में एक और शांत त्रासदी सामने आ रही है महिलाओं और बच्चों की जो जल्द ही गोलियों से नहीं बल्कि नौकरशाही द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे.

ये भी पढ़ें- पहलगाम हमले के खिलाफ बड़ा एक्शन! माछिल में आतंकवादी ठिकाना ध्वस्त, हथियार और गोला बारूद बरामद

श्रीनगर: पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने कई निर्णय लिए हैं. इसमें भारत में रह रहे पाकिस्तानी लोगों को यहां से वापस पाकिस्तान जाने का आदेश भी शामिल है. इसी कड़ी में दिलशादा बेगम के लिए अपने बच्चों के बिना पाकिस्तान लौटने का विचार असहनीय है. उन्होंने कांपती आवाज में कहा कि, "यह घर वापसी नहीं, बल्कि एक दुःस्वप्न है."

विधवा और एक दशक से अधिक समय से कश्मीर में रह रही दिलशादा उन सैकड़ों पाकिस्तानी महिलाओं में से एक हैं, जिनका जीवन पहलगाम आतंकवादी हमले के मद्देनजर सभी पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने के भारत के निर्देश के बाद अनिश्चितता में पड़ गया है.

दिलशादा भावुक होकर कहती हैं, "हमें दोनों चाहिए - हमारा मायका और हमारा वैवाहिक घर." यह बात उन्होंने अपने जैसी दर्जनों महिलाओं की गुहार के रूप में कही." उन्होंने कहा कि हमें पूरी तरह से वापस लौटने के लिए मजबूर करने के बजाय सरकार को हमें यात्रा परमिट प्रदान करना चाहिए ताकि हम दोनों तरफ जा सकें. हम पर्यटक नहीं हैं, हम अब यहां परिवारों का हिस्सा हैं, जिनके बच्चे कश्मीर में ही पैदा हुए और पले-बढ़े हैं.

दिलशादा के ये शब्द पहलगाम त्रासदी के बाद आए, जिसकी उन्होंने कड़ी निंदा की. उन्होंने गुस्से और दुख से भरी आवाज में कहा कि"यह मानवता का नरसंहार था." जिन लोगों ने यह राक्षसी कृत्य किया, वे किसी धर्म से संबंधित नहीं हो सकते. वे राक्षस हैं जिन्होंने निर्दोष, निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाईं. उन्होंने कहा कि घटना ने मानवता की अंतरात्मा को झकझोर दिया.

दिलशादा ने स्वीकार किया कि हमले के बाद से वह डर के साए में जी रही हैं. वह कहती हैं कि पहचान पत्र के बिना हमारे साथ कुछ भी हो सकता है. हम अपने और अपने बच्चों के लिए डरे हुए हैं.

38 वर्षीय दिलशादा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद की रहने वाली हैं. 2012 में उन्होंने एक कश्मीरी व्यक्ति से शादी की थी और उसके बाद यहीं बस गईं. उनके पति की मौत हो जाने के बाद उन्होंने अकेले ही पांच बच्चों की परवरिश की. इनमें उनके एक बेटे की शादी हो चुकी है.

दिलशादा ने बताया कि मेरा परिवार अब यहीं है. वह कहती हैं कि मुझे वापस भेजना मुझे मेरी आत्मा से दूर करने जैसा होगा. मैं अकेली नहीं हूं. सीमा के इस पार मेरा घर है, बच्चे हैं और अब नाती-नातिन भी हैं. मैं यह सब कैसे पीछे छोड़ सकती हूं?

वह भारत सरकार से अपने रुख पर पुनर्विचार करने की अपील करती हैं. उन्होंने कहा कि हम केवल यात्रा दस्तावेज मांगते हैं. हम इतने सालों के बाद अपने माता-पिता, भाई-बहनों से मिलने के लिए तरस रहे हैं. हमारे पास दोनों हैं - ससुराल (वैवाहिक परिवार) यहां और मायका (माता-पिता का परिवार) सीमा पार. हम दोनों से मिलने का अधिकार रखते हैं.

एक अन्य पाकिस्तानी महिला ने भी नाम न बताने की शर्त पर ऐसी ही राय जाहिर की. वह एक कश्मीरी से विवाहित हैं और कई सालों से घाटी में रह रही हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि निर्वासन आदेश केवल पर्यटक वीजा पर आए पाकिस्तानी नागरिकों पर लागू होना चाहिए न कि उन लोगों पर जिन्होंने कश्मीर में अपना जीवन बसाया है.

उन्होंने कहा, "हम सरकार के अब तक के व्यवहार से बेहद संतुष्ट हैं." "हम यहां अपने परिवार पाल रहे हैं और शांतिपूर्वक रह रहे हैं. हमें अब निर्वासित करना हमें हमारे बच्चों से अलग कर देगा और हमें असहनीय संकट में डाल देगा."

उन्होंने आगे बताया कि कश्मीर में सैकड़ों पाकिस्तानी महिलाएं ऐसी ही परिस्थितियों में रह रही हैं. हम बस इतना चाहते हैं कि उन्हें सीमा पार जाकर वापस आने की अनुमति दी जाए न कि उन्हें पूरी तरह से निर्वासित किया जाए.

इस स्थिति की जड़ें 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के तहत शुरू की गई नीति में निहित हैं. नई दिल्ली के सहयोग से जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन कश्मीरी युवाओं के लिए पुनर्वास नीति शुरू की थी जो 1989 से 2009 के बीच उग्रवाद के चरम के दौरान पाकिस्तान चले गए थे.

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 4,587 कश्मीरी पुरुष जो पाकिस्तान चले गए थे, उनमें से केवल 489 ही इस नीति के तहत वापस लौटे.उनमें से कई पाकिस्तानी पत्नियों और बच्चों को साथ लेकर आए थे जो अब कश्मीर में बस गए हैं. हालांकि, 2016 में इस नीति को अचानक रोक दिया गया जिससे इनमें से कई परिवार कानूनी अनिश्चितता में फंस गए और कहीं के नागरिक नहीं रहे.

पहलगाम हमले के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक उच्च स्तरीय सुरक्षा बैठक की अध्यक्षता की थी. इसमें अधिकारियों को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समय सीमा तक जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तानी नागरिकों को बाहर निकालना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया.

लेकिन दिलशादा जैसी महिलाओं के लिए इन व्यापक निर्णयों से दशकों के शांत एकीकरण को खतरा पैदा हो गया है. दिलशादा ने दोहराया, "हम इस हमले की तहे दिल से निंदा करते हैं. लेकिन हम, जो शांति से रहते आए हैं, प्यार करते आए हैं, खोते आए हैं और यहां परिवार बनाते आए हैं, उन्हें चंद राक्षसों के अपराधों की सजा क्यों मिलनी चाहिए?"

दिलशादा ने अपील करते हुए कहा, "हमें फिर से अनाथ मत बनाओ. हम पहले ही एक बार अपने घरों को पीछे छोड़ चुके हैं. हमें दोनों तरफ से जुड़ने का मौका दो." जबकि कश्मीर एक आतंकवादी घटना से हुए नुकसान पर शोक मना रहा है. ऐसे में एक और शांत त्रासदी सामने आ रही है महिलाओं और बच्चों की जो जल्द ही गोलियों से नहीं बल्कि नौकरशाही द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे.

ये भी पढ़ें- पहलगाम हमले के खिलाफ बड़ा एक्शन! माछिल में आतंकवादी ठिकाना ध्वस्त, हथियार और गोला बारूद बरामद

Last Updated : April 26, 2025 at 6:58 PM IST
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