नई दिल्ली: भू-राजनीतिक तनाव के बीच पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार सोमवार को चीन पहुंचे. भारत पर चीनी मिसाइलों के इस्तेमाल से विफल हमले से देश को लगे बड़े झटके के बाद यह उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा है. यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक होने वाली है.
डार बीजिंग अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात करेंगे. वहीं, अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी भी 20 मई को चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं. सवाल यह है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के मद्देनजर यह यात्रा कितनी महत्वपूर्ण है?
पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया ने कहा, "इस यात्रा को दो प्रमुख दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है. पहला हालिया संघर्ष और दूसरा व्यापक संबंध गतिशीलता. सबसे पहले, हाल ही में भारत-पाकिस्तान संघर्ष ने एक मिलीभगत वाले युद्धक्षेत्र को उजागर किया, जहां इस्तेमाल किए गए 80 प्रतिशत इक्विपमेंट चीनी थे.
इस स्थिति ने एक महत्वपूर्ण प्रतियोगिता को उजागर किया. इस युद्धक्षेत्र परीक्षण के दौरान चीनी हथियारों की अटैकिंग और डिफेंसिंग कैपेबलिटी दोनों में विफलताओं को प्रदर्शित किया. नतीजतन, निर्णायक हार का सामना करने के बाद पाकिस्तान भविष्य के किसी भी संघर्ष में भारत के साथ बेहतर प्रतिस्पर्धा करने के लिए अतिरिक्त सैन्य संसाधनों की तलाश करने और अपने मौजूदा शस्त्रागार का आधुनिकीकरण करने की संभावना है."
पूर्व राजनयिक ने कहा, "आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान कठोर शर्तों के कारण आईएमएफ फंडिंग के संभावित खत्म होने को लेकर चिंतित है, जिससे उन्हें अपने प्राथमिक सहयोगी चीन से अधिक वित्तीय सहायता लेने के लिए प्रेरित कर रहा है. यह क्लाइंट-स्टेट संबंध पाकिस्तान को चीन के क्षेत्र में और आगे बढ़ाएगा, क्योंकि वे बढ़ी हुई सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक सहायता का अनुरोध करेंगे."
इस सवाल पर कि क्या चीन की भागीदारी पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों को जटिल बनाती है. इसपर बिसारिया ने कहा, "चीन की भूमिका कोई हालिया घटनाक्रम नहीं है. हमने इसे 2019 में देखा था जब वैश्विक समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र 1267 प्रतिबंध समिति के माध्यम से मसूद अजहर को आतंकवादी के रूप में लेबल करने की मांग की थी. चीन ने आखिरी क्षण तक इस पर तकनीकी रोक लगाई, जिसे 1 मार्च को ही हटाया गया. पाकिस्तान के आतंकवाद को बचाने और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के भीतर कूटनीतिक कवर प्रदान करने का चीन का यह पैटर्न अच्छी तरह से स्थापित है. नतीजतन, यह किसी भी महत्वपूर्ण तरीके से भारत की कार्रवाइयों को प्रभावित नहीं करता है."
Today, Deputy Prime Minister/Foreign Minister, Senator Mohammad Ishaq Dar @MIshaqDar50 arrived in Beijing on a three day official visit from 19-21 May 2025 . He was received at the airport by senior Chinese officials and Ambassador of Pakistan to China, Khalil Hashmi. pic.twitter.com/Q4GqAC3HI8
— Ministry of Foreign Affairs - Pakistan (@ForeignOfficePk) May 19, 2025
बिसारिया ने समझाया, "हम चीन को प्रभावित करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वह पाकिस्तान को एक क्लाइंट स्टेट के रूप में देखता है और न्यूनतम समर्थन देगा. हालांकि, चीन यह भी जानता है कि आतंकवाद का खुलकर समर्थन करने से वह अंतरराष्ट्रीय जांच के दायरे में आ सकता है, इसलिए उसे सावधानी से कदम उठाने होगा. बाहरी फैक्टरों के बावजूद भारत को लगातार अपनी युद्ध क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए. हाल के अनुभवों ने मूल्यवान सबक दिए हैं, जो दर्शाते हैं कि पाकिस्तान और चीन के बीच भविष्य में सहयोग बढ़ सकता है."
इस सवाल पर कि क्या पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल की जा रही चीनी तकनीक के जवाब में भारत को अपने सैन्य आधुनिकीकरण में तेजी लाने की जरूरत है, पूर्व भारतीय राजनयिक ने कहा कि भारत को न केवल चीन के साथ दो-मोर्चे की स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, बल्कि एक संभावित यूनिफाइड फ्रंट के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
उन्होंने कहा, "इसके परिणामस्वरूप हमारी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना आवश्यक है. वर्तमान रक्षा बजट, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1.9 प्रतिशत है. भारत को इन क्षमताओं को विकसित करने और वैश्विक मंच हासिल करने के लिए कम से कम 3 प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे यूनिफाइड फ्रंट की संभावना सहित भविष्य की चुनौतियों के लिए तत्परता सुनिश्चित हो सके. भारत पाकिस्तान के साथ हाल के संघर्ष से काफी मजबूत होकर उभरा है, जिसने आतंकवाद से निपटने में रणनीतिक संकल्प का प्रदर्शन किया है."
उन्होंने कहा, "इसके अलावा भारत के पास इन संघर्षों को मैनेज करने और उन्हें यूक्रेन या गाजा जैसे लंबे युद्धों में बदलने से रोकने की रणनीतिक जिम्मेदारी है. चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में, जो जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी, भारत के पास चीन और पाकिस्तान दोनों से संबंधित अपनी रणनीतिक चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करते हुए एक वैश्विक नेता के रूप में विकसित होने की क्षमता है."
बता दें कि उनके (पाकिस्तान) कार्यालय से जारी एक बयान के अनुसार, 19 से 21 मई तक डार और यी दक्षिण एशिया में बदलती स्थिति और शांति और स्थिरता पर इसके प्रभावों पर चर्चा करेंगे. वे अपने द्विपक्षीय संबंधों के बारे में भी बात करेंगे और उन वैश्विक मुद्दों पर राय साझा करेंगे जो उन दोनों को चिंतित करते हैं. तालिबान द्वारा नियुक्त विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी 20 मई को चीन पहुंचेंगे.
सूत्रों के अनुसार भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्षों के बारे में चर्चा दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय होगी. नेता संभवतः व्यापार और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे, खासकर पीओके और कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में. जम्मू कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकवादी हमले के बाद तनाव बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप 26 लोग मारे गए और कई घायल हो गए.
जवाबी कार्रवाई में भारतीय सशस्त्र बलों ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नौ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे समूहों से जुड़े 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए.
वहीं, पूर्व राजदूत केपी फैबियन ने कहा, "हमें यह समझने की जरूरत है कि भारतीय कूटनीति ने पाकिस्तान को एक हद तक अलग-थलग करने में सफलता हासिल की है, लेकिन उसे चीन और तुर्की से ठोस समर्थन मिल रहा है." चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान त्रिपक्षीय गठबंधन और भारत पर इसके प्रभाव के सवाल पर फैबियन ने कहा, "भारत ने तालिबान से संपर्क किया है, जिनके वर्तमान में पाकिस्तान के साथ संबंध खराब हैं. इसलिए, भारत के खिलाफ त्रिपक्षीय गठबंधन की संभावना नहीं है."
उन्होंने कहा कि इशाक डार की बीजिंग यात्रा चीन की ओर से निरंतर आश्वासनों का प्रतीक है. फेबियन ने इस बात पर जोर दिया कि चाणक्य ने कहा था कि किसी भी पड़ोसी देश के लिए कम से कम एक देश उसके साथ स्वाभाविक दुश्मन की तरह व्यवहार करेगा. भारत के मामले में पाकिस्तान और चीन दोनों ही भारत को अपना स्वाभाविक दुश्मन मानते हैं.
उन्होंने कहा, "चीन भारत को एशिया में एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है और मानता है कि भारत एशिया में चीन को हेजेमॉनी जमाने से रोकता है. पाकिस्तान के मामले में यह सेना ही है जो नागरिक सरकार पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए भारत को स्वाभाविक दुश्मन के रूप में पेश करती है."