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पहलगाम आतंकी हमला: घास के मैदान में खून के धब्बे दे रहे थे घटना की गवाही - PAHALGAM TERROR ATTACK

पहलगाम के बैसरन में आतंकियों के हमले में 26 पर्यटकों की मौत हो गई. वहीं घटना के बाद का मंजर कई लोगों ने बयां किया.

Mud-covered shoes lying on the way to Baisaran
बैसरन जाने के रास्ते पर पड़े मिट्टी से सने जूते (ETV Bharat)
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By Moazum Mohammad

Published : April 24, 2025 at 3:13 PM IST

9 Min Read

बैसरन (पहलगाम): घने जंगलों और बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरे ढलान वाले घास के मैदानों के साथ बैसरन पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है. बैसरन की यात्रा ऊंचे देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरे जंगलों के बीच पत्थरों से भरे उबड़-खाबड़ रास्ते पर खड़ी चढ़ाई के रूप में शुरू होती है.

'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर यह घास का मैदान सुबह से ही लगभग 1000 से 1500 पर्यटकों से भरा हुआ था, जो एक दिन की पिकनिक मनाने के लिए टट्टुओं और ऑल टेरेन बाइकों पर आए थे. यह लंबे समय से पर्यटकों और ट्रेकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, जो सर्दियों में भी शहरों की हलचल से दूर शांति और सुंदरता की तलाश में रहते हैं. लेकिन मंगलवार दोपहर के बाद से सब कुछ बदल गया, जब आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए. अब कभी चहल-पहल से भरी वनीय ढलानें शांत हो गई हैं और भागते हुए पर्यटकों का सामान पूरे रास्ते में बिखरा पड़ा है.

एक स्थान पर, एक जोड़ी जूते एक देवदार के पेड़ में फंसे हुए हैं, वहीं बिस्किट के रैपरों और पानी की बोतलें पड़ी हुई थीं. वहीं घास और पेड़ों पर लगे खून के धब्बे उस दहशत, भय और आतंक की गवाही देते हैं जो पहलगाम शहर से छह किलोमीटर दूर बैसरन में हुए हमले के बाद पैदा हुआ था. इस बारे में टट्टू चालक रईस अहमद भट ने कहा कि लोग सभी दिशाओं से आ रहे थे. उन्होंने बताया कि घटना के बाद करीब अपराह्न 3:15 बजे घास के मैदान पर सबसे पहले पहुंचने वालों में से थे.

उन्होंने बताया कि रास्ते में कोई भी मुझे कुछ भी बताने को तैयार नहीं था, हर कोई भाग रहा था. यहां तक ​​कि हमारे व्हाट्सएप ग्रुप पर अलर्ट मिलने के बाद हमले वाली जगह तक पहुंचने के लिए मेरे साथ चल रहे कुछ टट्टूवाले भी मेरे पीछे-पीछे गायब हो गए. वे अराजकता और डर से डर गए. रईस ने कहा कि यह प्रलय के दिन जैसा था.

पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों ने याद किया कि पर्यटक घास के मैदान में फैले हुए थे, कुछ लेटे हुए थे, अन्य लोग फोटो खींच रहे थे तो कुछ मैगी खा रहे थे या जिप लाइनिंग और जोरबिंग जैसे साहसिक खेलों का आनंद ले रहे थे. दोपहर करीब 2:15-2:30 के बीच जब रूबीना चेन्ना से आए एक पर्यटक जोड़े से निपट रही थी, तभी गोलियों की आवाज सुनाई पड़ी.

The rocky path to the grassland known as 'Mini Switzerland'
'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर घास के मैदान जाने का पथरीला रास्ता (ETV Bharat)

उन्होंने पर्यटकों को खरगोश दिखाकर 'कश्मीर की खरगोश लड़की' की उपाधि अर्जित की है, जो 10-30 रुपये तक के टिप के बदले में उनके साथ फोटो खींचते हैं. उसने उस समय की घटना को याद करते हुए बताया कि मुझे लगा कि किसी ने पटाखे फोड़े हैं. लेकिन दंपती समेत सभी भाग गए. लेकिन मुझे तब तक कुछ समझ नहीं आया जब तक कि मैंने काले रंग की पतलून पहने, चेहरे को मास्क से ढके और हाथों में दस्ताने पहने एक व्यक्ति को कुछ कदम दूर अपनी बंदूक से गोली चलाते नहीं देखा.

हालांकि उसने इधर-उधर एक जोड़े की तलाश की क्योंकि उन्होंने अभी तक उसे टिप नहीं दी थी. ट्रैक के किनारे कोठा में रहने वाली गुज्जर समुदाय की 16 वर्षीय किशोरी ने बताया कि उसने उस आदमी को गोलियों की बौछार करते देखा था.

उसने कहा, "मैं भाग गई और घबराहट के कारण प्रवेश द्वार से वापस आ गई." घास के मैदान को बाड़ से घेरा गया है और लोहे के गेट से 30 रुपये का शुल्क लेकर किसी भी व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति दी जाती है.

अपने नाबालिग भाई के साथ बिस्किट खाते हुए उसने कहा, "मैंने कई लोगों को गिरते देखा. मैगी खा रहा एक आदमी मेरी आंखों के सामने गिर गया. उसके सिर में गोली लगी थी. हर कोई मदद के लिए चिल्ला रहा था."

किशोरी ने बताया कि बंदूकधारी एक स्थान से एक साथ गोलीबारी नहीं कर रहे थे, बल्कि घास के मैदान में फैले हुए थे. पीड़ितों के परिवारों और प्रारंभिक रिपोर्टों के मुताबिक आतंकवादियों की संख्या चार या पांच है और वे लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ से जुड़े हैं, जो धर्म के आधार पर पुरुषों को चुन-चुन कर निशाना बनाते हैं.

वहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आतंकवादियों के तीन स्केच जारी किए और उनके बारे में कोई भी जानकारी देने पर 20 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की है. गोलीबारी में फंसे लोगों में हरियाणा के 29 वर्षीय लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल भी शामिल थे. इसी तरह भारतीय नौसेना के अधिकारी की शादी एक हफ्ते पहले ही हुई थी और यूरोप का वीजा नहीं मिलने के कारण बैसरन ट्रेक उनके हनीमून कार्यक्रम का हिस्सा था. वे 22 अप्रैल को पहलगाम पहुंचे.

हिमांशी ने बताया कि हम भेल पुरी खा रहे थे तभी वे अचानक सामने आए और कहा कि वह मुसलमान नहीं हैं. इसके बाद आतंकियों ने विनय नरवाल को गोली मार दी, फलस्वरुप हिमांशी घास के मैदान में अपने पति के बेजान शरीर के पास बैठी थी.

वहीं खाली मैदान में अपने पति के शव के साथ उनकी तस्वीर नरसंहार का परिभाषित चेहरा बन गई. हमले के लगभग 45 मिनट बाद सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों में शामिल वहीद अहमद ने कहा कि हिमांशी अपने पति से दूर नहीं गई. उन्होंने कहा, "वह मदद मांगने के लिए मेरे पास दौड़ी, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी." उन्होंने उस क्षण को बहुत गहरा सदमा पहुंचाने वाला बताया.

वह इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी. वह मुझसे कह रही थी कि वह अभी भी सांस ले रहा है. लेकिन वह हिली नहीं और बस उसे पकड़े रही, लेकिन मैं उसे बचा नहीं सका.”

इस बारे में टट्टू चालक रईस अहमद भट ने बताया कि घास के मैदान के अंदर लाशें बिखरी पड़ी थीं और घायल लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे. रईस जो टट्टू एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा, "मैंने उनमें से कई को डेढ़ घंटे से ज्यादा समय तक पहाड़ी से नीचे उतारा. इनमें से कुछ के पैरों, कंधों या हाथों में गोली के घाव थे."

उन्होंने बताया कि पुलिस और सुरक्षा बल बाद में पहुंचे. उन्होंने मारे गए लोगों के पहचान पत्रों की जांच करके सूची तैयार की. हमने घास के मैदान में ऑल टेरेन व्हीकल्स के माध्यम से शवों को एक स्थान पर एकत्रित करने में भी मदद की. कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया, "बाद में पुलिस और सुरक्षा बलों ने उन्हें ट्रैक्टर से नीचे उतारा."

विडंबना यह है कि इस मैदान में सीआरपीएफ का कैंप है, जबकि पुलिस स्टेशन काफी दूर है, लेकिन मैदान पर कोई सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं है. यहां तक ​​कि इस जगह पर सीसीटीवी भी नहीं है. मैदान से परिचित कई लोगों ने कहा, "हम मैदान में पहली बार सुरक्षा देख रहे हैं."

एक आधिकारिक सूत्र ने स्वीकार किया कि आतंकवादियों को हमला करने से रोकने में चूक हुई, जबकि यह घास का मैदान घने जंगलों से होते हुए कोकेरनाग के निकट पड़ता है, जो आगे किश्तवाड़ तक फैला हुआ है, जहां पिछले पांच वर्षों में नए सिरे से आतंकवाद उभरा है.

जैश-ए-मोहम्मद के तीन विदेशी आतंकवादी 12 अप्रैल को किश्तवाड़ के जंगलों में मारे गए थे. लेकिन अजय साहनी जैसे शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञ इसे पहला ऐसा हमला मानते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यटकों की सामूहिक हत्या हुई तथा उन्होंने कहा कि खतरे की कमी के कारण तैनाती न्यूनतम थी.

आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में इस क्षेत्र में कई हमलों में 70 पर्यटक मारे गए हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से कहा, "ऐसा लग रहा था कि इन क्षेत्रों में इस पैमाने पर कुछ नहीं होगा. अब जब ऐसा हो गया है, तो कुछ प्रतिक्रिया होनी चाहिए."

"यह सुरक्षा बलों की अधिकता नहीं है, बल्कि असुरक्षित क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही पर कुछ प्रतिबंध है." इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट और साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के संस्थापक सदस्य और कार्यकारी निदेशक ने कहा, "यह हमला उस ऐतिहासिक पैटर्न का परिणाम है, जिसमें पर्यटकों पर शायद ही कभी हमला किया जाता था.

पहलगाम में, जो होटल पर्यटकों से भरे रहते थे वे सूनसान हैं. टैक्सी चालक और टट्टू चालक घूम रहे हैं जबकि कुछ रेस्तरां आधे शटर के पीछे चल रहे हैं. लेकिन वहीद अहमद के लिए यह खामोशी और भी गहरी है. वह अभी भी अपने मोबाइल फोन पर वह फोटो देख रहे हैं जिसमें हिमांशी खाली घास के मैदान में अपने पति के बगल में घुटनों के बल बैठी हैं. वह याद करते हुए बताते हैं कि कल रात जब मैं सोने की कोशिश कर रहा था तो उसके शब्द कि 'वह अभी भी सांस ले रहा है' मेरे कानों में गूंज रहे थे."

ये भी पढ़ें- पहलगाम अटैक: आतंकियों की सूचना देने पर मिलेगा 20 लाख का इनाम, पुलिस ने की घोषणा

बैसरन (पहलगाम): घने जंगलों और बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरे ढलान वाले घास के मैदानों के साथ बैसरन पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है. बैसरन की यात्रा ऊंचे देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरे जंगलों के बीच पत्थरों से भरे उबड़-खाबड़ रास्ते पर खड़ी चढ़ाई के रूप में शुरू होती है.

'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर यह घास का मैदान सुबह से ही लगभग 1000 से 1500 पर्यटकों से भरा हुआ था, जो एक दिन की पिकनिक मनाने के लिए टट्टुओं और ऑल टेरेन बाइकों पर आए थे. यह लंबे समय से पर्यटकों और ट्रेकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, जो सर्दियों में भी शहरों की हलचल से दूर शांति और सुंदरता की तलाश में रहते हैं. लेकिन मंगलवार दोपहर के बाद से सब कुछ बदल गया, जब आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए. अब कभी चहल-पहल से भरी वनीय ढलानें शांत हो गई हैं और भागते हुए पर्यटकों का सामान पूरे रास्ते में बिखरा पड़ा है.

एक स्थान पर, एक जोड़ी जूते एक देवदार के पेड़ में फंसे हुए हैं, वहीं बिस्किट के रैपरों और पानी की बोतलें पड़ी हुई थीं. वहीं घास और पेड़ों पर लगे खून के धब्बे उस दहशत, भय और आतंक की गवाही देते हैं जो पहलगाम शहर से छह किलोमीटर दूर बैसरन में हुए हमले के बाद पैदा हुआ था. इस बारे में टट्टू चालक रईस अहमद भट ने कहा कि लोग सभी दिशाओं से आ रहे थे. उन्होंने बताया कि घटना के बाद करीब अपराह्न 3:15 बजे घास के मैदान पर सबसे पहले पहुंचने वालों में से थे.

उन्होंने बताया कि रास्ते में कोई भी मुझे कुछ भी बताने को तैयार नहीं था, हर कोई भाग रहा था. यहां तक ​​कि हमारे व्हाट्सएप ग्रुप पर अलर्ट मिलने के बाद हमले वाली जगह तक पहुंचने के लिए मेरे साथ चल रहे कुछ टट्टूवाले भी मेरे पीछे-पीछे गायब हो गए. वे अराजकता और डर से डर गए. रईस ने कहा कि यह प्रलय के दिन जैसा था.

पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों ने याद किया कि पर्यटक घास के मैदान में फैले हुए थे, कुछ लेटे हुए थे, अन्य लोग फोटो खींच रहे थे तो कुछ मैगी खा रहे थे या जिप लाइनिंग और जोरबिंग जैसे साहसिक खेलों का आनंद ले रहे थे. दोपहर करीब 2:15-2:30 के बीच जब रूबीना चेन्ना से आए एक पर्यटक जोड़े से निपट रही थी, तभी गोलियों की आवाज सुनाई पड़ी.

The rocky path to the grassland known as 'Mini Switzerland'
'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर घास के मैदान जाने का पथरीला रास्ता (ETV Bharat)

उन्होंने पर्यटकों को खरगोश दिखाकर 'कश्मीर की खरगोश लड़की' की उपाधि अर्जित की है, जो 10-30 रुपये तक के टिप के बदले में उनके साथ फोटो खींचते हैं. उसने उस समय की घटना को याद करते हुए बताया कि मुझे लगा कि किसी ने पटाखे फोड़े हैं. लेकिन दंपती समेत सभी भाग गए. लेकिन मुझे तब तक कुछ समझ नहीं आया जब तक कि मैंने काले रंग की पतलून पहने, चेहरे को मास्क से ढके और हाथों में दस्ताने पहने एक व्यक्ति को कुछ कदम दूर अपनी बंदूक से गोली चलाते नहीं देखा.

हालांकि उसने इधर-उधर एक जोड़े की तलाश की क्योंकि उन्होंने अभी तक उसे टिप नहीं दी थी. ट्रैक के किनारे कोठा में रहने वाली गुज्जर समुदाय की 16 वर्षीय किशोरी ने बताया कि उसने उस आदमी को गोलियों की बौछार करते देखा था.

उसने कहा, "मैं भाग गई और घबराहट के कारण प्रवेश द्वार से वापस आ गई." घास के मैदान को बाड़ से घेरा गया है और लोहे के गेट से 30 रुपये का शुल्क लेकर किसी भी व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति दी जाती है.

अपने नाबालिग भाई के साथ बिस्किट खाते हुए उसने कहा, "मैंने कई लोगों को गिरते देखा. मैगी खा रहा एक आदमी मेरी आंखों के सामने गिर गया. उसके सिर में गोली लगी थी. हर कोई मदद के लिए चिल्ला रहा था."

किशोरी ने बताया कि बंदूकधारी एक स्थान से एक साथ गोलीबारी नहीं कर रहे थे, बल्कि घास के मैदान में फैले हुए थे. पीड़ितों के परिवारों और प्रारंभिक रिपोर्टों के मुताबिक आतंकवादियों की संख्या चार या पांच है और वे लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ से जुड़े हैं, जो धर्म के आधार पर पुरुषों को चुन-चुन कर निशाना बनाते हैं.

वहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आतंकवादियों के तीन स्केच जारी किए और उनके बारे में कोई भी जानकारी देने पर 20 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की है. गोलीबारी में फंसे लोगों में हरियाणा के 29 वर्षीय लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल भी शामिल थे. इसी तरह भारतीय नौसेना के अधिकारी की शादी एक हफ्ते पहले ही हुई थी और यूरोप का वीजा नहीं मिलने के कारण बैसरन ट्रेक उनके हनीमून कार्यक्रम का हिस्सा था. वे 22 अप्रैल को पहलगाम पहुंचे.

हिमांशी ने बताया कि हम भेल पुरी खा रहे थे तभी वे अचानक सामने आए और कहा कि वह मुसलमान नहीं हैं. इसके बाद आतंकियों ने विनय नरवाल को गोली मार दी, फलस्वरुप हिमांशी घास के मैदान में अपने पति के बेजान शरीर के पास बैठी थी.

वहीं खाली मैदान में अपने पति के शव के साथ उनकी तस्वीर नरसंहार का परिभाषित चेहरा बन गई. हमले के लगभग 45 मिनट बाद सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों में शामिल वहीद अहमद ने कहा कि हिमांशी अपने पति से दूर नहीं गई. उन्होंने कहा, "वह मदद मांगने के लिए मेरे पास दौड़ी, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी." उन्होंने उस क्षण को बहुत गहरा सदमा पहुंचाने वाला बताया.

वह इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी. वह मुझसे कह रही थी कि वह अभी भी सांस ले रहा है. लेकिन वह हिली नहीं और बस उसे पकड़े रही, लेकिन मैं उसे बचा नहीं सका.”

इस बारे में टट्टू चालक रईस अहमद भट ने बताया कि घास के मैदान के अंदर लाशें बिखरी पड़ी थीं और घायल लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे. रईस जो टट्टू एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा, "मैंने उनमें से कई को डेढ़ घंटे से ज्यादा समय तक पहाड़ी से नीचे उतारा. इनमें से कुछ के पैरों, कंधों या हाथों में गोली के घाव थे."

उन्होंने बताया कि पुलिस और सुरक्षा बल बाद में पहुंचे. उन्होंने मारे गए लोगों के पहचान पत्रों की जांच करके सूची तैयार की. हमने घास के मैदान में ऑल टेरेन व्हीकल्स के माध्यम से शवों को एक स्थान पर एकत्रित करने में भी मदद की. कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया, "बाद में पुलिस और सुरक्षा बलों ने उन्हें ट्रैक्टर से नीचे उतारा."

विडंबना यह है कि इस मैदान में सीआरपीएफ का कैंप है, जबकि पुलिस स्टेशन काफी दूर है, लेकिन मैदान पर कोई सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं है. यहां तक ​​कि इस जगह पर सीसीटीवी भी नहीं है. मैदान से परिचित कई लोगों ने कहा, "हम मैदान में पहली बार सुरक्षा देख रहे हैं."

एक आधिकारिक सूत्र ने स्वीकार किया कि आतंकवादियों को हमला करने से रोकने में चूक हुई, जबकि यह घास का मैदान घने जंगलों से होते हुए कोकेरनाग के निकट पड़ता है, जो आगे किश्तवाड़ तक फैला हुआ है, जहां पिछले पांच वर्षों में नए सिरे से आतंकवाद उभरा है.

जैश-ए-मोहम्मद के तीन विदेशी आतंकवादी 12 अप्रैल को किश्तवाड़ के जंगलों में मारे गए थे. लेकिन अजय साहनी जैसे शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञ इसे पहला ऐसा हमला मानते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यटकों की सामूहिक हत्या हुई तथा उन्होंने कहा कि खतरे की कमी के कारण तैनाती न्यूनतम थी.

आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों में इस क्षेत्र में कई हमलों में 70 पर्यटक मारे गए हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से कहा, "ऐसा लग रहा था कि इन क्षेत्रों में इस पैमाने पर कुछ नहीं होगा. अब जब ऐसा हो गया है, तो कुछ प्रतिक्रिया होनी चाहिए."

"यह सुरक्षा बलों की अधिकता नहीं है, बल्कि असुरक्षित क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही पर कुछ प्रतिबंध है." इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट और साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के संस्थापक सदस्य और कार्यकारी निदेशक ने कहा, "यह हमला उस ऐतिहासिक पैटर्न का परिणाम है, जिसमें पर्यटकों पर शायद ही कभी हमला किया जाता था.

पहलगाम में, जो होटल पर्यटकों से भरे रहते थे वे सूनसान हैं. टैक्सी चालक और टट्टू चालक घूम रहे हैं जबकि कुछ रेस्तरां आधे शटर के पीछे चल रहे हैं. लेकिन वहीद अहमद के लिए यह खामोशी और भी गहरी है. वह अभी भी अपने मोबाइल फोन पर वह फोटो देख रहे हैं जिसमें हिमांशी खाली घास के मैदान में अपने पति के बगल में घुटनों के बल बैठी हैं. वह याद करते हुए बताते हैं कि कल रात जब मैं सोने की कोशिश कर रहा था तो उसके शब्द कि 'वह अभी भी सांस ले रहा है' मेरे कानों में गूंज रहे थे."

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