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क्या पत्नी को पति का कानूनी अभिभावक नियुक्त किया जा सकता है? उड़ीसा हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला - ORISSA HIGH COURT

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि स्वास्थ्य कारणों से अचेत पति की कानूनी अभिभावक पत्नी को नियुक्त किया जा सकता है.

ORISSA High Court
उड़ीसा हाईकोर्ट. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 17, 2025 at 2:26 PM IST

2 Min Read

कटक: क्या 'पत्नी को पति का कानूनी अभिभावक नियुक्त किया जा सकता है'? उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि स्वास्थ्य कारणों से बेहोश पति का कानूनी अभिभावक पत्नी को नियुक्त किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि बेहोश पति का अभिभावक पत्नी को मानना ​​संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह उस परंपरा से जुड़ा है जो वैवाहिक बंधन को एकता, कर्तव्य और आपसी सुरक्षा के रूप में मान्यता देती है.

उड़ीसा हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनायाः

चिकित्सा के क्षेत्र में हो रही प्रगति के कारण व्यक्ति का अचेत अवस्था में भी लंबे समय तक जीवित रहना संभव है. ऐसे में वास्तविक स्थिति पर विचार किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने ऐसे दिव्यांग व्यक्ति की सुरक्षा पर जोर दिया. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने एक साल से अधिक समय से अचेत पति की पत्नी को कानूनी अभिभावक और प्रतिनिधि नियुक्त करने का आदेश दिया.

पत्नी को अपने पति के व्यक्तिगत, कानूनी, चिकित्सा और व्यावसायिक मामलों के प्रबंधन का पूरा अधिकार होगा. जिसमें उसकी वैधानिक जिम्मेदारियां भी शामिल हैं. न्यायालय ने फैसले में स्पष्ट किया है कि सभी बैंक, नियामक संस्थाएं और अन्य प्राधिकरण पत्नी के ऐसे अधिकारों को मान्यता देंगे. न्यायमूर्ति डॉ. संजीव कुमार पाणिग्रही की पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया.

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा क्यों खटखटाया:

याचिकाकर्ता के पति की अचानक तबियत खराब हो गई. इलाज के दौरान तबीयत और बिगड़ गई. अचेतावस्था में चले गये और अशक्त हो गए. पति के लिए कोई निर्णय लेना, कुछ कहना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना संभव नहीं था. ऐसे में पत्नी ने अपने पति के कारोबार, अन्य लेन-देन और परिवार को संभालने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पत्नी ने कोर्ट में प्रार्थना की कि उसे अपने पति की अभिभावक के रूप में मान्यता दी जाए.

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उड़ीसा हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनायाः

चिकित्सा के क्षेत्र में हो रही प्रगति के कारण व्यक्ति का अचेत अवस्था में भी लंबे समय तक जीवित रहना संभव है. ऐसे में वास्तविक स्थिति पर विचार किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने ऐसे दिव्यांग व्यक्ति की सुरक्षा पर जोर दिया. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने एक साल से अधिक समय से अचेत पति की पत्नी को कानूनी अभिभावक और प्रतिनिधि नियुक्त करने का आदेश दिया.

पत्नी को अपने पति के व्यक्तिगत, कानूनी, चिकित्सा और व्यावसायिक मामलों के प्रबंधन का पूरा अधिकार होगा. जिसमें उसकी वैधानिक जिम्मेदारियां भी शामिल हैं. न्यायालय ने फैसले में स्पष्ट किया है कि सभी बैंक, नियामक संस्थाएं और अन्य प्राधिकरण पत्नी के ऐसे अधिकारों को मान्यता देंगे. न्यायमूर्ति डॉ. संजीव कुमार पाणिग्रही की पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया.

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा क्यों खटखटाया:

याचिकाकर्ता के पति की अचानक तबियत खराब हो गई. इलाज के दौरान तबीयत और बिगड़ गई. अचेतावस्था में चले गये और अशक्त हो गए. पति के लिए कोई निर्णय लेना, कुछ कहना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना संभव नहीं था. ऐसे में पत्नी ने अपने पति के कारोबार, अन्य लेन-देन और परिवार को संभालने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पत्नी ने कोर्ट में प्रार्थना की कि उसे अपने पति की अभिभावक के रूप में मान्यता दी जाए.

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