पुरी: किताबें ढोने की जगह कमाने के नाम पर कंधे पर बोरा लादकर निकलते थे. सूरज उगते ही वे पैसे कमाने के लिए कंधे पर बोरा लेकर निकल पड़ते थे. यही वजह है कि झुग्गी-झोपड़ी के लगभग सभी बच्चे कमाने के नाम पर रस्सी बांधकर चलते थे. लेकिन अब वे बोरे नहीं दिखते. अब वे हाथ में किताबें लेकर चलते हैं. यह सब गैर-सरकार संगठन 'अन्वेषण' की बदौलत ही संभव हो पाया है.
अन्वेषण संस्था के एक कर्मचारी ने बताया, 'हमने महज 4 बच्चों से पाठशाला की शुरुआत की थी. अब हमारे पास 70 से ज्यादा बच्चे हैं. इनमें से 27 बच्चे पढ़ाई छोड़ चुके थे. हम उन्हें वापस स्कूल में लाए. वे स्कूल गए और मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं.'
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मृदुभाषी बच्चे अपने कंधों पर परिवार का बोझ उठाते हैं. कुछ जंगल में लकड़ी बीनने जाते हैं तो कुछ होटलों में रहकर तरह-तरह के काम करते हैं. कुछ बच्चे भीख मांगते हैं तो कुछ सड़क किनारे बोरे और बोतलें बीनते हैं.
ओडिशा के पुरी शहर की विभिन्न बस्तियों में यह आम बात है. कुछ युवा ऐसे बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने और उन्हें शिक्षा प्रदान करने का काम कर रहे हैं. सबसे पहले उन्होंने बस्ती में एक ओपन लाइब्रेरी खोली. चूंकि अधिकांश बच्चे पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, इसलिए कुछ युवाओं ने उन्हें शिक्षा के साथ-साथ स्कूल भेजने के उद्देश्य से 'आम पाठशाला' बनाई है. जहां प्रतिदिन दो पाठ पढ़ाए जा रहे हैं. इसके कारण, स्कूल छोड़ चुके कुछ बच्चे अब फिर से सरकारी स्कूलों में दाखिला ले रहे हैं.

पुरी के कुछ युवाओं ने मिलकर 'अन्वेषण' नाम की संस्था बनाई है. इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों के बच्चों की शिक्षा का ध्यान रखना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करके उन्हें अच्छा इंसान बनाना है.
कैसे हुई आम पाठशाला की शुरुआत
पुरी शहर के पेंथाकटा (penthakata) के पास धोबा खाल बस्ती में सैकड़ों बच्चे हैं. माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा को महत्व नहीं देते हैं क्योंकि वे मजदूरी करके अपना परिवार चलाते हैं. ऐसे कई बच्चे हैं जो 10 साल के हैं लेकिन उन्हें एक अक्षर लिखना नहीं आता है. इसलिए, बच्चों को शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए उन्होंने सबसे पहले बस्ती के बच्चों को रोचक पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराईं. इसके बाद 'आम पाठशाला' की शुरुआत हुई. यह नियमित रूप से चल रही है.
2021 में 'आम पाठशाला' की शुरुआत अन्वेषण संस्था ने धोबा खाल झुग्गी में सिर्फ 4 बच्चों के साथ की थी. अब पाठशाला में झुग्गी-झोपड़ियों के 70 से ज्यादा बच्चे क्लास ले रहे हैं. सुबह डेढ़ घंटे और दोपहर में दो घंटे क्लास लग रही हैं. इतना ही नहीं, क्लास के साथ-साथ बच्चों की छिपी प्रतिभा को निखारने के लिए खेल, नृत्य, संगीत और ड्राइंग की क्लास और प्रतियोगिताएं भी करवाई जा रही हैं.

पिछले 4 वर्षों से झुग्गी-झोपड़ियों में ऐसा कार्यक्रम चल रहा है. ऐसे बेहतरीन काम को देखकर धीरे-धीरे दूसरी संस्थाएं और समाजसेवी भी मदद और सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं. संस्था का उद्देश्य है कि कोई भी शिक्षा के अधिकार से वंचित न रहे और झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों के व्यवहार में सुधार हो.
अन्वेषण संस्था का कहना है कि अब ये बच्चे खुद स्कूल जा रहे हैं. दिन में भी कोई स्कूल जाना नहीं छोड़ता. संस्था झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को स्मार्ट शिक्षा से जोड़ने का प्रयास कर रही है.
नृत्य, गायन, चित्रकारी भी सिखाई जाती है...
पाठशाला में पढ़ने वाली छात्रा स्मृति बेहरा ने बताया, "पाठशाला में पहली से दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है. पढ़ाई के साथ-साथ नृत्य, गायन, चित्रकारी आदि सिखाई जाती है. यहां पढ़ाई करना बहुत अच्छा लगता है. हर विषय पढ़ाया जाता है. मेरा लक्ष्य अच्छी तरह से पढ़ाई करके पुलिस अधिकारी बनना है."

निरंजन प्रधान, सुमिता पथिया, सुमित्रा दास, सिपाली बारिक, बामदेव महाराणा, ताराकांत तरेई, प्रियंका दर्शिनी, अभिषेक बेहरा समेत कुछ सदस्यों के प्रयास से कुछ बच्चों के कंधों से गरीबी का बोझ उतर गया है और वे पढ़ाई कर रहे हैं. पुरी शहर के सामाजिक कार्यकर्ता निरंजन प्रधान और संतोष कुमार राउत ने सबसे पहले 2021 में पेंथकटा के स्लम इलाके में आम पाठशाला की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य पाठशाला में उन बच्चों को शिक्षित करना था जो स्कूल नहीं जा रहे थे.
निरंजन प्रधान (45) पुरी सामंत चंद्र शेखर कॉलेज में एसएएमएस में नौकरी कर चुके हैं. एमसीए कोर्स करने वाले निरंजन का मुख्य उद्देश्य झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना और झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना है.

इसी तरह, समाजसेवी संतोष कुमार राउत (33) भी बचपन से ही काफी सामाजिक कार्य करते रहे हैं. चूंकि उनका मुख्य लक्ष्य झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना है, इसलिए वे ऐसी संस्थाओं से जुड़कर यह कार्य कर रहे हैं. संतोष ने कला में स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली है, लेकिन नौकरी में रुचि न दिखाते हुए वे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं. संतोष के इस महान उद्देश्य की हर जगह सराहना हो रही है.
हम अभिभावकों को शिक्षा के फायदे बताते हैं...
संस्था की कर्मचारी संतोष निशि ने बताया, "इस बस्ती में कई बच्चे रहते हैं. उनके परिवार बेहद गरीबी में जी रहे हैं. पुरी के धोबाखाल बस्ती में 700 परिवार रहते हैं. अधिकांश बच्चे आर्थिक समस्याओं के कारण शिक्षा से दूर रह रहे हैं. इसलिए हमने उन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए आम पाठशाला की शुरुआत की. हमारा लक्ष्य मुफ्त शिक्षा प्रदान करना है. हम उन बच्चों को भी स्कूल भेजने का प्रयास कर रहे हैं जो स्कूल नहीं जा रहे हैं और उन्हें शिक्षा से जोड़ना चाहते हैं. इसलिए यह बहुत कठिन काम है. हम बस्ती में रहने वाले अभिभावकों से बात करते हैं और उन्हें शिक्षा के महत्व से अवगत कराते हैं. हम अभिभावकों और बच्चों दोनों को शिक्षा के फायदे बताते हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए अपनी पाठशाला में लाते हैं."
वह आगे कहती हैं, कई बच्चों में प्रतिभा छिपी होती है. हम उन बच्चों की तलाश करते हैं जो अच्छा डांस करते हैं, जो अच्छा खेलते हैं, जो अच्छी ड्राइंग करते हैं. हम पहले बच्चे को उस विषय में प्रशिक्षित करते हैं. बाद में हम उसे शिक्षा से जोड़ते हैं. इससे बच्चा पढ़ाई में रुचि दिखाता है. तलाश का मतलब है खोजना. इसलिए हम उन बच्चों की तलाश करते हैं जिनकी समाज को जरूरत है. एक बच्चा जितना शिक्षा में आगे बढ़ेगा, देश भी उतना ही आगे बढ़ेगा. लेकिन अगर एक बच्चा अशिक्षित और उपेक्षित रहेगा, तो वह व्यक्ति और देश भी उपेक्षित रहेगा. इसलिए, इस अभियान का मुख्य उद्देश्य झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना है."
नौनिहालों के उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा जरूरी
अन्वेषण संस्था में बच्चों को स्वेच्छा से पढ़ाने वाली रूपाली बारिक ने बताया, "यह हमारी तरकीब है. हम उन बच्चों को शिक्षा देते हैं जो स्कूल नहीं जाते और शिक्षा से वंचित हैं. हम झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के माता-पिता को समझाकर शिक्षा देते हैं. कुछ अभिभावक बच्चों को छोड़ने के लिए राजी नहीं होते. हम उनके बच्चों को समझाकर शिक्षा देते हैं. नौनिहालों के उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा जरूरी है."
हम बच्चों की छिपी प्रतिभा को निखारते हैं...
वह कहती हैं, "सिर्फ पढ़ाना ही नहीं, हम बच्चों की छिपी प्रतिभा को निखारते हैं और ड्राइंग, डांसिंग, खेलकूद, गायन आदि का प्रशिक्षण देते हैं. पर्यावरण संरक्षण, अच्छे संस्कारों का भी प्रशिक्षण देते हैं. हम बच्चों को मनोरंजन के विभिन्न माध्यमों से शिक्षा देते हैं. बच्चों को पढ़ाते हुए मुझे बहुत अच्छा लगता है. आगे भी मैं इसे जारी रखूंगी."
संस्था के अध्यक्ष निरंजन प्रधान ने बताया, "हम पिछले चार साल से झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं. झुग्गी-झोपड़ियों में कई तरह की समस्याओं के कारण छोटे बच्चे पढ़ाई से कतराते हैं. फिर हम उनके अभिभावकों को जागरूक कर बच्चों को शिक्षित करते हैं. हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि बच्चा स्कूल कैसे जाएगा. क्योंकि छोटे बच्चों में कई तरह की प्रतिभाएं छिपी होती हैं. अगर उन्हें सही मार्गदर्शन मिले तो आने वाले दिनों में छोटे बच्चे उच्च शिक्षित होंगे और देश के विकास में अहम भूमिका निभाएंगे."
पहली से दसवीं तक की पढ़ाई कर रहे बच्चे
प्रधान कहते हैं, "हमारा मुख्य लक्ष्य पुरी शहर की विभिन्न झुग्गियां हैं. क्योंकि झुग्गी-झोपड़ियों में अभिभावकों की जागरूकता की कमी के कारण बच्चे पढ़ाई से कतराते हैं. बाद में वे बाल मजदूर बन जाते हैं. हमारे पास कुछ स्वयंसेवक हैं. वे बच्चों को सुबह-शाम पढ़ाते हैं. बच्चे पहली से दसवीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं. स्थानीय निवासियों और कुछ दानदाताओं की मदद से हमने एक छोटा सा घर बनाया है. वहां बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. हम आने वाले दिनों में घर को बड़ा बनाने की कोशिश जारी रखे हुए हैं. अब कुछ उदार लोग हमारे साथ जुड़ गए हैं. उनकी मदद से हम बच्चों के लिए जरूरी शैक्षणिक सामग्री खरीदते हैं और बच्चों को देते हैं. अगला लक्ष्य इसे बढ़ाना है. हम ज्यादा से ज्यादा झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ स्कूल भेजेंगे."
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