चेन्नई: तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि 'हिंदी थोपने के खिलाफ लड़ाई' केवल एक भाषा संघर्ष नहीं है, बल्कि तमिल संस्कृति की 'रक्षा' के लिए एक जातीय संघर्ष भी है. वह नंदनम सरकारी कला महाविद्यालय में 4.80 करोड़ रुपये की लागत से तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि के नाम पर निर्मित एक नए ऑडिटोरियम, कलैगनार कलैयारंगम के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे.
उदयनिधि ने कहा, 'हम फादर पेरियार, ग्रैंडमास्टर अन्ना, मुथामिझार कलैगनार और मुख्यमंत्री सहित हमारे नेताओं के नेतृत्व में प्रभुत्वशाली ताकतों द्वारा हिंदी थोपे जाने के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने 1986 में इस कॉलेज में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ करुणानिधि के भाषण की याद दिलाते हुए कहा कि यह आज भी प्रासंगिक है. उपमुख्यमंत्री ने 1956 के हिंदी विरोधी संघर्ष के बारे में भी बात की और कहा कि उस समय छात्रों के विरोध प्रदर्शनों ने 'तमिल की रक्षा की'.
स्टालिन ने कहा, 'छात्रों की क्रांति ने ही तमिलनाडु को हिंदी थोपे जाने से बचाया है. केंद्र सरकार छात्रों को परेशान करती है, जिसे हमारी शिक्षा के लिए खतरा माना जाता है. यह सब एनईईटी, एनईपी और तीन-भाषा नीति के जरिए किया जा रहा है. आपको (छात्रों को) इसके पीछे की सभी चालों को समझना होगा.'
उन्होंने कहा कि भाषा नीति लागू करने के पीछे की मंशा हिंदी को थोपना है. स्टालिन ने कहा, 'तमिलनाडु का आधार केवल तमिल है. तमिल को विभिन्न तरीकों से धमकाया जा रहा है. वे तीन भाषा नीति, नई शिक्षा नीति, एनईईटी लाए और सभी का एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह हिंदी को थोपना है. छात्रों को सतर्क रहना चाहिए और सच्चाई को समझना चाहिए.'
कहा गया कि तीन भाषाओं के विवाद ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कार्यान्वयन को लेकर केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच गतिरोध पैदा कर दिया है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पहले तीन भाषाओं की नीति को 'भगवाकरण नीति' करार दिया था जिसका उद्देश्य भारत के विकास के बजाय हिंदी को बढ़ावा देना है. उन्होंने आरोप लगाया कि नीति तमिलनाडु की शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने का खतरा है.