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PoK खाली करो, तभी बात होगी... पहलगाम हमले के बाद भारत का कड़ा रुख - INDIA PAKISTAN TENSIONS

भारत ने पहलगाम के बाद पाकिस्तान के साथ बातचीत से इनकार किया है और केवल आतंकवाद और पीओके पर बातचीत पर जोर दिया है.

बीटिंग रिट्रीट समारोह की तस्वीर
बीटिंग रिट्रीट समारोह की तस्वीर (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : May 22, 2025 at 9:57 PM IST

6 Min Read

नई दिल्ली: 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. इस हमले के बाद, भारत के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर एक स्पष्ट सीमा रेखा खींच दी है. भारत का कहना है कि पाकिस्तान के साथ कोई भी द्विपक्षीय वार्ता तब तक नहीं होगी, जब तक वह जम्मू-कश्मीर के अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्रों (PoK) को खाली नहीं कर देता.

गुरुवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस दृढ़ रुख को दोहराया. यह बयान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को वार्ता के लिए तटस्थ स्थान के रूप में सुझाने के जवाब में आया है. भारत द्वारा पहलगाम हमले के प्रतिशोध में "ऑपरेशन सिंदूर" शुरू किए जाने के साथ, दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच ठोस बातचीत की संभावना अब क्षीण होती जा रही है.

जायसवाल ने एक नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा, "आप हमारी स्थिति से अवगत हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच कोई भी बातचीत द्विपक्षीय होनी चाहिए. साथ ही, मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते. आतंकवाद के मामले में, जैसा कि मैंने पहले कहा था, हम उन कुख्यात आतंकवादियों को भारत को सौंपने पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, जिनकी सूची कुछ साल पहले पाकिस्तान को दी गई थी. मैं यह भी रेखांकित करना चाहूंगा कि जम्मू-कश्मीर पर कोई भी द्विपक्षीय चर्चा केवल पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए क्षेत्र को खाली करने के सवाल पर होगी."

जायसवाल की यह टिप्पणी उन मीडिया रिपोर्ट्स के बाद आई है जिनमें कहा गया है कि "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान पाकिस्तान को मिली करारी हार के बाद शरीफ भारत के साथ बातचीत की गुहार लगा रहे हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, शरीफ भारत के साथ कश्मीर, पानी, व्यापार और आतंकवाद - इन चार मुद्दों पर बातचीत करना चाहते हैं.

हालांकि, निकट भविष्य में ऐसी किसी भी द्विपक्षीय वार्ता की संभावना कम ही है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित अपने संबोधन में भी स्पष्ट संदेश दिया था. उन्होंने कहा था कि "भारत का रुख बहुत स्पष्ट है ... आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते ... आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते ... पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते."

भारत ने सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि वह पहलगाम हमले को पाकिस्तान समर्थित तत्वों द्वारा की गई छद्म कार्रवाई के रूप में देखता है. नई दिल्ली का मानना है कि इस्लामाबाद की ओर से केवल कूटनीतिक पहल आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई का विकल्प नहीं हो सकती है. इन परिस्थितियों में, बातचीत को फिर से शुरू करने के किसी भी सुझाव को समय से पहले और रणनीतिक रूप से नासमझी माना जा रहा है.

खाड़ी देशों को मध्यस्थ बनाने का पाकिस्तान का प्रस्ताव वैश्विक मंच पर एक सहज रिश्ता बनाए रखने के उद्देश्य से हो सकता है. लेकिन भारत की अस्वीकृति - जो स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई - दोनों देशों के बीच गहराते अविश्वास को दर्शाती है. नई दिल्ली अपने रुख पर अडिग है कि "आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते", यह नीतिगत लाइन उसने 2016 के उरी और 2019 के पुलवामा हमलों के बाद से लगातार अपनाई है.

इसके अलावा, भारत का इस बात पर जोर देना कि भविष्य की द्विपक्षीय वार्ता का एकमात्र विषय पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की वापसी होगी, उसके कूटनीतिक रुख में महत्वपूर्ण कठोरता को दर्शाता है. यह घरेलू राजनीतिक सहमति और आंतरिक सुरक्षा को विदेश नीति के साथ मिलाने का प्रतीक है.

सऊदी अरब या यूएई जैसे तीसरे पक्ष के स्थानों का सुझाव, कूटनीतिक रूप से भले ही अच्छा लगे, मगर यह भारत की उस नीति के विपरीत है जिसके अनुसार पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दे केवल द्विपक्षीय स्तर पर ही सुलझाए जाएंगे. भारत ने पारंपरिक रूप से किसी भी प्रकार की बाहरी मध्यस्थता का विरोध किया है, भले ही वह मित्र देशों की ओर से ही क्यों न हो. गुरुवार के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत इस मामले में किसी भी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं है, भले ही पाकिस्तान खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल करके इस गतिरोध को खत्म करना चाहता हो.

वर्तमान जमीनी हकीकत को देखकर, जिसमें हाल ही में हुआ सैन्य अभियान, कश्मीर में बढ़ाई गई सुरक्षा और पहलगाम हमले पर जनता का आक्रोश शामिल है, यह साफ है कि भारत ऐसे किसी भी कूटनीतिक प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा, जिसकी शुरुआत पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को ध्वस्त करने से न हो. भारत आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और किसी भी तरह की बातचीत से पहले ठोस कार्रवाई की मांग करता है.

शरीफ ने कहा कि जिन मुद्दों पर दोनों पक्षों को चर्चा करनी चाहिए, उनमें पानी भी शामिल है. यह पहलगाम आतंकी हमले के एक दिन बाद भारत द्वारा 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को स्थगित करने के बाद आया है.

विश्व बैंक के तत्वावधान में 1960 में हस्ताक्षरित आईडब्ल्यूटी, भारत और पाकिस्तान के बीच जल-साझाकरण समझौता है. यह तीन पूर्वी नदियों - रावी, ब्यास और सतलुज - को भारत को और तीन पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम और चिनाब - को पाकिस्तान को आवंटित करता है, जबकि भारत को गैर-उपभोग उद्देश्यों के लिए पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग करने की अनुमति देता है. यह संधि भारत-पाकिस्तान संबंधों की आधारशिला रही है, जो कई संघर्षों से बची रही और शत्रुता के बीच सहयोग के प्रतीक के रूप में कार्य करती रही.

IWT को निलंबित करके, भारत ने सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ अपनी व्यापक रणनीति में जल संसाधनों का लाभ उठाने के लिए तत्परता का संकेत दिया है. यह कदम भारत को पश्चिमी नदियों पर अधिक स्वायत्तता प्रदान करता है, जिसका संभावित रूप से पाकिस्तान की कृषि और जलविद्युत उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है, जो इन जल पर काफी हद तक निर्भर हैं.

यह भी पढ़ें- भारत-पाकिस्तान में सीजफायर पर सीधी बातचीत हुई, इसमें अमेरिका की भूमिका नहीं: जयशंकर की दो टूक

नई दिल्ली: 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. इस हमले के बाद, भारत के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर एक स्पष्ट सीमा रेखा खींच दी है. भारत का कहना है कि पाकिस्तान के साथ कोई भी द्विपक्षीय वार्ता तब तक नहीं होगी, जब तक वह जम्मू-कश्मीर के अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्रों (PoK) को खाली नहीं कर देता.

गुरुवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस दृढ़ रुख को दोहराया. यह बयान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को वार्ता के लिए तटस्थ स्थान के रूप में सुझाने के जवाब में आया है. भारत द्वारा पहलगाम हमले के प्रतिशोध में "ऑपरेशन सिंदूर" शुरू किए जाने के साथ, दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच ठोस बातचीत की संभावना अब क्षीण होती जा रही है.

जायसवाल ने एक नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा, "आप हमारी स्थिति से अवगत हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच कोई भी बातचीत द्विपक्षीय होनी चाहिए. साथ ही, मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते. आतंकवाद के मामले में, जैसा कि मैंने पहले कहा था, हम उन कुख्यात आतंकवादियों को भारत को सौंपने पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, जिनकी सूची कुछ साल पहले पाकिस्तान को दी गई थी. मैं यह भी रेखांकित करना चाहूंगा कि जम्मू-कश्मीर पर कोई भी द्विपक्षीय चर्चा केवल पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए क्षेत्र को खाली करने के सवाल पर होगी."

जायसवाल की यह टिप्पणी उन मीडिया रिपोर्ट्स के बाद आई है जिनमें कहा गया है कि "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान पाकिस्तान को मिली करारी हार के बाद शरीफ भारत के साथ बातचीत की गुहार लगा रहे हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, शरीफ भारत के साथ कश्मीर, पानी, व्यापार और आतंकवाद - इन चार मुद्दों पर बातचीत करना चाहते हैं.

हालांकि, निकट भविष्य में ऐसी किसी भी द्विपक्षीय वार्ता की संभावना कम ही है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित अपने संबोधन में भी स्पष्ट संदेश दिया था. उन्होंने कहा था कि "भारत का रुख बहुत स्पष्ट है ... आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते ... आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते ... पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते."

भारत ने सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि वह पहलगाम हमले को पाकिस्तान समर्थित तत्वों द्वारा की गई छद्म कार्रवाई के रूप में देखता है. नई दिल्ली का मानना है कि इस्लामाबाद की ओर से केवल कूटनीतिक पहल आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई का विकल्प नहीं हो सकती है. इन परिस्थितियों में, बातचीत को फिर से शुरू करने के किसी भी सुझाव को समय से पहले और रणनीतिक रूप से नासमझी माना जा रहा है.

खाड़ी देशों को मध्यस्थ बनाने का पाकिस्तान का प्रस्ताव वैश्विक मंच पर एक सहज रिश्ता बनाए रखने के उद्देश्य से हो सकता है. लेकिन भारत की अस्वीकृति - जो स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई - दोनों देशों के बीच गहराते अविश्वास को दर्शाती है. नई दिल्ली अपने रुख पर अडिग है कि "आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते", यह नीतिगत लाइन उसने 2016 के उरी और 2019 के पुलवामा हमलों के बाद से लगातार अपनाई है.

इसके अलावा, भारत का इस बात पर जोर देना कि भविष्य की द्विपक्षीय वार्ता का एकमात्र विषय पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की वापसी होगी, उसके कूटनीतिक रुख में महत्वपूर्ण कठोरता को दर्शाता है. यह घरेलू राजनीतिक सहमति और आंतरिक सुरक्षा को विदेश नीति के साथ मिलाने का प्रतीक है.

सऊदी अरब या यूएई जैसे तीसरे पक्ष के स्थानों का सुझाव, कूटनीतिक रूप से भले ही अच्छा लगे, मगर यह भारत की उस नीति के विपरीत है जिसके अनुसार पाकिस्तान के साथ सभी मुद्दे केवल द्विपक्षीय स्तर पर ही सुलझाए जाएंगे. भारत ने पारंपरिक रूप से किसी भी प्रकार की बाहरी मध्यस्थता का विरोध किया है, भले ही वह मित्र देशों की ओर से ही क्यों न हो. गुरुवार के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत इस मामले में किसी भी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं है, भले ही पाकिस्तान खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल करके इस गतिरोध को खत्म करना चाहता हो.

वर्तमान जमीनी हकीकत को देखकर, जिसमें हाल ही में हुआ सैन्य अभियान, कश्मीर में बढ़ाई गई सुरक्षा और पहलगाम हमले पर जनता का आक्रोश शामिल है, यह साफ है कि भारत ऐसे किसी भी कूटनीतिक प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा, जिसकी शुरुआत पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को ध्वस्त करने से न हो. भारत आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और किसी भी तरह की बातचीत से पहले ठोस कार्रवाई की मांग करता है.

शरीफ ने कहा कि जिन मुद्दों पर दोनों पक्षों को चर्चा करनी चाहिए, उनमें पानी भी शामिल है. यह पहलगाम आतंकी हमले के एक दिन बाद भारत द्वारा 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को स्थगित करने के बाद आया है.

विश्व बैंक के तत्वावधान में 1960 में हस्ताक्षरित आईडब्ल्यूटी, भारत और पाकिस्तान के बीच जल-साझाकरण समझौता है. यह तीन पूर्वी नदियों - रावी, ब्यास और सतलुज - को भारत को और तीन पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम और चिनाब - को पाकिस्तान को आवंटित करता है, जबकि भारत को गैर-उपभोग उद्देश्यों के लिए पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग करने की अनुमति देता है. यह संधि भारत-पाकिस्तान संबंधों की आधारशिला रही है, जो कई संघर्षों से बची रही और शत्रुता के बीच सहयोग के प्रतीक के रूप में कार्य करती रही.

IWT को निलंबित करके, भारत ने सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ अपनी व्यापक रणनीति में जल संसाधनों का लाभ उठाने के लिए तत्परता का संकेत दिया है. यह कदम भारत को पश्चिमी नदियों पर अधिक स्वायत्तता प्रदान करता है, जिसका संभावित रूप से पाकिस्तान की कृषि और जलविद्युत उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है, जो इन जल पर काफी हद तक निर्भर हैं.

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