
प्राकृतिक घटनाएं न लें आपदा का रूप, कैसे कम हो नुकसान? वैज्ञानिकों से समझिये क्या करने की है जरुरत
वैज्ञानिकों ने ऑब्जर्वेशनल नेटवर्क के साथ इंपैक्ट असेसमेंट पर ध्यान देने की जरूरत बताई है.

By ETV Bharat Uttarakhand Team
Published : September 13, 2025 at 12:49 PM IST
रोहित सोनी की रिपोर्ट
देहरादून: उत्तराखंड समेत देश के हिमालय क्षेत्र में मानसून की रफ्तार अब कम होने लगी है. संभावना जताई जा रही है कि 15 सितंबर के बाद मानसून की रवानगी हो जाएगी. इस साल मानसून के कहर ने उत्तराखंड समेत देश के लगभग सभी हिमालय क्षेत्रों में जमकर तबाही मचाई है. मानसून का रौद्र रूप राज्य सरकारों की चिताओं और चुनौतियों को बढ़ाने वाला रहा है. अब मानसून की रवानगी के साथ ही वैज्ञानिक अब हिमालय पर मानसून के मौसम की चरम गतिशीलता (Dynamics of Monsoon Weather Extremes over the Himalayas) पर अध्ययन करने की कवायद में जुट गए हैं.
हर साल मानसून सीजन के दौरान भारी बारिश का सिलसिला देश के तमाम हिस्सों में देखा जाता रहा है. खासकर देश के हिमालय क्षेत्र में मानसून सीजन के दौरान प्राकृतिक घटनाओं की वजह से आपदा जैसी स्थिति भी बनती है. साल 2025 प्राकृतिक घटनाओं के लिहाज से बेहद खास रहा. इस साल अगस्त महीने में सामान्य से काफी अधिक भारी बारिश हुई.

जिसके चलते उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब समेत कई राज्यों में आपदा जैसे स्थिति बनी. वैज्ञानिक इसके पीछे की तमाम वजहों को बता रहे हैं. जिसमें वेस्टर्न डिस्टरबेंस फ्रीक्वेंसी का अधिक होना, क्लाइमेट चेंज एक महत्वपूर्ण बिंदू रहा है. इस साल अत्यधिक भारी बारिश होने की वजह से अब वैज्ञानिक इस बात पर भी जोर दे रहे हैं की आने वाले समय में मानसून के दौरान इसी तरह का रेनफॉल देखने को मिल सकता है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के रिटायर्ड सचिव डॉ माधवन नायर राजीवन ने कहा-
वेस्टर्न डिस्टरबेंस फ्रीक्वेंसी अधिक होने की वजह से ही साल 2025 के अगस्त महीने में अत्यधिक भारी बारिश हुई है. हालांकि, हर साल मानसून सीजन के दौरान वेस्टर्न डिस्टरबेंस फ्रीक्वेंसी की वजह से बारिश होती है, लेकिन इस साल अधिक होने की वजह से ही उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर और पंजाब में सामान्य से काफी अधिक बारिश हुई है. अगर साल 2025 में तमाम राज्यों में अत्यधिक भारी बारिश का सिलसिला देखा गया है तो इसका ये मतलब नहीं है कि आने वाले सालों में भी अत्यधिक भारी बारिश होगी. इतना जरूर है कि अगले 10-15 सालों में वेस्टर्न डिस्टरबेंस फ्रीक्वेंसी अधिक होने की संभावना है.जिसकी वजह से प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ सकती हैं.
डॉ माधवन नायर राजीवन ने कहा वर्तमान समय में हमारे पास वह टेक्नोलॉजी मौजूद है जिसके जरिए अत्यधिक भारी बारिश का पूर्वानुमान दो से तीन दिन पहले किया जा सकता है. 15 दिन या एक महीना पहले भारी बारिश का पूर्वानुमान जारी करना संभव नहीं है. ऐसे में अगर भारी बारिश की जानकारी दो दिन पहले मिल जाती है तो ऐसे में व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर सकते हैं.

इसके लिए मौसम के पूर्वानुमान से संबंधित अर्ली वार्निंग सिस्टम, डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम के साथ ही मौसम को लेकर जारी पूर्वानुमान की सूचना जनता तक पहुंचाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कई बार मौसम का पूर्वानुमान गलत भी साबित हो जाता है, लेकिन डिजास्टर मैनेजमेंट सिस्टम और पब्लिक एक्शन परफेक्ट होना चाहिए.

वहीं, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी के डॉयरेक्टर डॉ विनीत गहलोत ने कहा-
आने वाले समय में क्लाइमेट चेंज की वजह से मानसून में जो बदलाव हुआ है वह लगातार जारी रहेगा. यानी, आने वाले समय में भारी बारिश का सिलसिला बढ़ेगा, क्लाउडबर्स्ट की घटनाएं बढ़ेंगी. ऐसे में इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि वर्तमान समय में भारी बारिश की वजह से जो परिस्थितियां बनी है वो भविष्य में और अधिक भयावह हो सकती हैं. हालांकि, क्लाइमेट चेंज की वजह से मानसून पैटर्न में हो रहे बदलाव को रोक नहीं जा सकता, लेकिन काम जरूर किया जा सकता है. ऐसे में पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि जिस तरह से आने वाले समय में इवेंट्स बढ़ेंगे इस तरह आपदाएं भी बढ़ेगी.
डॉ विनीत गहलोत ने बताया भारत में ही क्लाइमेट चेंज का असर नहीं देखा जा रहा है बल्कि विश्व भर के लिए यह एक गंभीर समस्या बनी हुई है. भारत के हिमालयी समेत कुछ क्षेत्रों में क्लाइमेट चेंज का इंपैक्ट ज्यादा दिखाई दे रहा है. उन्होंने कहा पर्वतीय क्षेत्रों में हो रही अनियंत्रित विकास ही प्राकृतिक घटनाओं को आपदा में तब्दील कर रहे हैं. जिसे कंट्रोल करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा अभी से ही इंपैक्ट असेसमेंट करने की जरूरत है. जिससे पता लगाया जा सके कि कौन-कौन से ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर प्राकृतिक घटनाओं की वजह से आपदा जैसी स्थिति बन सकती है. ऐसे में ऑब्जरवेशन नेटवर्क को बढ़ाने के साथ ही इंपैक्ट एसेसमेंट पर ध्यान देने की जरूरत है.
डॉ विनीत गहलोत ने कहा वाडिया इंस्टीट्यूट वर्तमान समय में अधिक ग्लेशियर का अध्ययन कर रहा है. इंपैक्ट असेसमेंट के लिए मॉडलिंग की जाएगी. जिससे यह पता लगाया जा सके कि अगर कोई प्राकृतिक घटना होती है तो उसे कौन-कौन से क्षेत्र प्रभावित होंगे. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑब्जर्वेशनल नेटवर्क को बढ़ाने के साथ ही इंपैक्ट असेसमेंट करने पर जोर दे रहा है.
मानसून के दौरान राज्यों में हुई सामान्य से अधिक बारिश
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