मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर के मनियारी मठ में देश का एक ऐसा मंदिर है, जहां राधा-कृष्ण के साथ गुरु ग्रंथ साहिब की भी पूजा होती है. स्थानीय लोग बताते है कि मंदिर में एक दुर्लभ पांडुलिपि भी रखी है, जिसका संबंध सिख धर्म से है.
भारत का इकलौता मठ: मान्यता है कि इस दुर्लभ पांडुलिपि को गुरु नानक देव जी ने मनियारी में आकर स्वयं लिखा था. मनियारी मठ एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थल है, जिसकी स्थापना 15वीं शताब्दी के अंत में हुई थी. मंदिर में एक ओर जहां राधा–कृष्ण का मंदिर है, वहीं मंदिर के एक कमरा में गुरु ग्रंथ साहिब भी रखा है.
राधा-कृष्ण के साथ गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा: यह मठ उदासी संप्रदाय के संस्थापक श्री चंद्र महाराज द्वारा स्थापित किया गया था, जो गुरु नानक देव जी के द्वितीय पुत्र थे. इस मठ को चुनने के पीछे का कारण यह था कि गुरु नानक देव जी ने इस स्थान पर बैठकर हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना की थी, जो आज भी यहां पांडुलिपि के रूप में सुरक्षित है.

मनियारी मठ में 4 प्रतियों में से एक: यह मठ हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब की पांडुलिपि के लिए प्रसिद्ध है, जो सिख धर्म के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. माना जाता है कि दुनिया में हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब की केवल चार प्रतियां हैं, जिनमें से एक मनियारी मठ में सुरक्षित है.
हिंदू और सिख अनुयायी साथ करते हैं पूजा: मठ के महंत दर्शन दास जी ने 1928 में राधा कृष्ण की प्रतिमा की स्थापना की, जो इस मठ की एक महत्वपूर्ण विशेषता है. महंत दर्शन दास जी राधा कृष्ण के बड़े उपासक थे और उन्होंने इस मठ में उनकी भक्ति को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया. तब से मनियारी मठ में हिंदू और सिख अनुयायी एक साथ आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं.

गुरु नानक देव जी द्वारा लिखित ग्रंथ मौजूद: ग्रामीण मुकुल कुमार ने बताया कि 15वीं शताब्दी के अंत में इस मठ की स्थापना की गई थी. गुरु नानक जी के द्वितीय पुत्र श्री चंद्र महाराज के द्वारा जब उदासी संप्रदाय की स्थापना की गई थी तो इस मठ को चुना गया था. उस जगह को चुनने के पीछे यह कारण था कि गुरु नानक देव जी ने इस जगह पर बैठकर हस्तलिखित गुरु नानक ग्रंथ की स्थापना की थी. जो आज भी यहां पांडुलिपि के रूप में सुरक्षित रखा गया है.

"जब उनके पुत्र ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की तब उस समय यह मठ बनाया गया. जिसे लोग मनियारी मठ के नाम से जानते हैं. इस मठ के कैंपस में नागा साधु शारीरिक बल का प्रशिक्षण करते थे. इस मठ की स्थापना हिंदू धर्म के रक्षा के लिए की गई थी."- मुकुल कुमार, ग्रामीण
एक विदेश और तीन भारत में ग्रंथ: कहा जाता है कि इसकी अन्य शाखा भी है. इसकी खासियत यह है कि सिख संप्रदाय से जुड़े देश विदेश के शोधार्थी इस मठ में आते और रिसर्च करते हैं. गुरु ग्रंथ साहब के बारे में यह मानता है कि हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब दुनिया में केवल चार प्रतियां हैं, जिनमें से एक विदेश में है और तीन भारत में है. अमृतसर , पटना और तीसर मनियारी में है

गुरु बाबा मनुराम जीवंत समाधि: मंदिर के 11वें महंत के रूप में दर्शन दास जी महंत बने थे. वे राधा कृष्ण के बहुत बड़े उपासक थे, जिन्होंने 1928 में राधा कृष्ण की प्रतिमा की स्थापना की थी. उस समय नया भवन भी बनकर तैयार हुआ था. मंहत जी के आध्यात्मिक गुरु बाबा मनुराम जीवंत समाधि भी लिया थे, जोकि बगल में है. उनकी भी बड़ी आस्था के लोग पूजा पाठ करते है.

'12 साल से ग्रंथ की कर रहा देखभाल': गुरु ग्रंथ साहिब की देखभाल करने वाले युवक अविनाश कुमार बताते है कि पिछले 12 साल से गुरु ग्रंथ साहिब के देखभाल करने की जिम्मेदारी मुझे दी गई है. लोग यहां बड़ी आस्था के साथ पूजा पाठ करने आते हैं. एक भवन में के बगल में मंदिर भी है.
300 साल पुराना इतिहास: दोनों धर्म के लोग इस मठ के मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं. मंदिर और गुरुग्रंथ साहिब का इतिहास 3 सौ साल से भी अधिक पुराना है.कहा जाता है गुरु नानक देव जी ने इस जगह पर बैठकर हस्तलिखित गुरु नानक ग्रंथ की स्थापना की थी। जो आज भी यहां पांडुलिपि के रूप में सुरक्षित रखा गया है.

मंदिर के पुजारी ने क्या कहा: मंदिर के पुजारी वीरेंद्र भूषण ने बताया कि यह बेहद प्राचीन मठ है. यहां गांव के संत मनीराम की जिंदा समाधि भी है. इसके साथ ही मठ परिसर में राधा कृष्ण का मंदिर है. मंदिर में रोजाना पूजा-पाठ होती है. इन सबके साथ ही मंदिर में एक दुर्लभ पांडुलिपि भी रखी है,जिसका संबंध सिख धर्म से है.
"सिख धर्म का यह ग्रंथ मंदिर परिसर में ही रखा हुआ है, जिसको लेकर मान्यता है कि यह गुरु नानक देव जी ने मनियारी में आकर स्वयं लिखा था. साथ ही यह ग्रंथ सिख संप्रदाय के लिए बेहद पूजनीय है. इसे गुरुमुखी भाषा में लिखी गई है."- वीरेंद्र भूषण, मंदिर के पुजारी
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