खूंटी: झारखंड का खूंटी जिला, जहां कभी आदिवासी क्रांति की मशाल जलती थी, आज एक भयावह सच्चाई की गिरफ्त में है. यह वही धरती है, जिसने महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को जन्म दिया था. वही धरती, जहां कभी "उलगुलान" (क्रांति) की गूंज सुनाई देती थी, आज वहां मासूम बच्चियों की चीखें अनसुनी हो रही हैं. 12 दिसंबर 2007 को रांची से अलग होकर खूंटी राज्य का 23वां जिला बना. रांची से महज 40 किलोमीटर दक्षिण में स्थित यह जिला आदिवासी बहुल है. पर आज यह जिला एक नई त्रासदी से गुजर रहा है. एक ऐसी त्रासदी, जिसमें नाबालिग लड़कियों की सांसें कैद हैं, भविष्य अंधकारमय है और बचपन अपराध की सजा भुगत रहा है.
बिन ब्याही मां बनती बच्चियां, जिनके पास जवाब नहीं–और कोई सवाल नहीं पूछता
ईटीवी भारत की टीम ने इस सामाजिक त्रासदी की पड़ताल में छह महीने से अधिक का वक्त लगाया. दर्जनों गांवों की खाक छानी, पीड़ित लड़कियों से मुलाकात की, उन लड़कों से बात की जो इस भयावह चक्र का हिस्सा हैं. जो खुलासे सामने आए, वे रूह कंपा देने वाले हैं.
खूंटी के सरकारी अस्पतालों में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक, दर्जनों नाबालिग लड़कियां मां बन चुकी हैं. इनमें से अधिकतर लड़कियां अपने मायके में रह रही हैं, जबकि कुछ ही ऐसी हैं जो अपने नाबालिग पति के साथ रहती हैं. सबसे चिंताजनक बात यह है कि कई बच्चियों को यह नहीं पता कि उनके द्वारा जन्मे बच्चे कहां गए. कुछ ने बताया कि बच्चे की मौत हो गई, कुछ ने कहा कि अबॉर्शन हुआ, जबकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वे सभी बच्चियों को स्वस्थ बच्चे के साथ घर भेज चुके थे.
नशे की दलदल और खोती चेतना
यह पूरा इलाका कभी नक्सलवाद की गिरफ्त में था. प्रशासन और सुरक्षा बलों ने नक्सलियों को भले ही खदेड़ दिया हो, लेकिन उनके जाने के बाद यह जमीन अब अफीम की खेती और नशे की गिरफ्त में है. अफीम और शराब का ऐसा जाल फैला है कि नाबालिग लड़के-लड़कियां नशे की हालत में वह सब कर जाते हैं जिसका अंजाम उन्हें समझ नहीं आता. नतीजा – कम उम्र में मां और पिता बनने वाले किशोर, जिनके पैदा किए बच्चे लापता हैं.
जानकारी के अभाव में नाबालिग लड़कियां बर रहीं मां
इन सब विषयों पर ईटीवी भारत की टीम के साथ महिला समाजसेवियों ने जिले के लगभग सभी प्रखंडों में निवास करने वाले वैसे लोगों तक पहुंची, जो कम उम्र में मां बनीं. छह महीने लगातार गांव-गांव जाकर उन बच्चियों से मिलकर यह जाना कि उन्हें किसने गर्भवती किया. हालांकि कुछ बच्चियों ने बताया कि गांव के किसी युवक से प्रेम करती थीं, जबकि कइयों ने बताया कि गाय-बैल और भैंस चराने के दौरान गांव के ही चरवाहों से संबंध बना लिए, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि वो गर्भवती हो जाएंगी और उसे बच्चा भी होगा.
घर की चुप्पी, समाज की चुप्पी – किससे करें सवाल?
अधिकतर पीड़ित बच्चियों ने बताया कि गांव के ही लड़कों से दोस्ती हुई, फिर कहीं जंगल में, तो कहीं फॉल के किनारे उनके शारीरिक संबंध बने. कुछ ने यह भी बताया कि गाय-भैंस चराने के दौरान चरवाहों से उनकी नजदीकियां बढ़ीं, लेकिन उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि इसके नतीजे इतने भयावह होंगे.

लड़कियों ने किए चौंकाने वाले खुलासे
शराब की लत और घर में माता-पिता की अनुपस्थिति ने इन बच्चियों की हालत और बदतर बना दी है. कई पीड़ित लड़कियों ने बताया कि उनके माता-पिता स्वयं शराब के नशे में रहते हैं, उन्हें यह तक नहीं मालूम होता कि उनकी बेटी हफ्ते भर से घर में नहीं है. कोई सवाल नहीं पूछता, कोई जवाब नहीं चाहता. जिन लड़कों के साथ वो रहती थीं, वो अपने घर ले जाते थे या फिर किसी रिश्तेदार के यहां रखते थे. लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा कि यह कौन है.
जब शारीरिक बदलाव और पेट में दर्द हुआ तो मालूम हुआ कि वह गर्भवती हैं. इसके बाद जब उन्होंने उस लड़के को इस बारे में बताने की कोशिश की तो वह घर छोड़ कर भाग गया. घर वापस जाने के बाद घर वाले अस्पताल ले गए जहां उसने बच्चे को जन्म दिया. लगभग सभी बच्चियों की यही कहानी है, लेकिन कुछ बच्चियों ने बताया कि उनके घर में माता पिता का प्यार नहीं मिलता था. माता पिता सहित भाई भी नशे में रहते हैं. इसी दौरान वे गांव के ही लड़के या फिर दूसरे गांव के लड़कों के संपर्क में आई, बातचीत शुरू हो गई जो प्यार में बदल गया, इस दौरान उनके संबंध बने. लड़कियों ने बताया कि वे कब गर्भवती हुई उन्हें पता नहीं चला. बहुत ऐसी बच्चियां हैं जो अपने नाबालिग पति के साथ रहती हैं जबकि अधिकतर बच्चियां अपने मायके में रह रही हैं.

क्या कहते हैं सदर अस्पताल के आंकड़े, कहां हैं वे बच्चे? कौन ले गया उन्हें?
सदर अस्पताल में दर्ज आंकड़ों के अनुसार 25 से 30 बच्चियां ऐसी भी हैं जो मां तो बन गईं, लेकिन उनके बच्चे कहां गए उन्हें पता नहीं चला. बच्चियां बताती हैं कि उनके परिजनों ने उन्हें बताया कि बच्चा मर गया, कुछ बच्चियों ने बताया कि उनका अबॉर्शन हो गया, जबकि अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार अस्पताल पहुंची सभी बच्चियों का स्वस्थ्य बच्चा हुआ. इसके बाद उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ अवस्था में बच्चे के साथ घर भेजा गया था. समाजसेवियों ने लगभग सभी बच्चियों से बातचीत की तो यह बात सामने आई कि बिन ब्याही मां बनीं बच्चियों के बच्चे को शायद बेच दिया गया. क्योंकि जन्म देने वाली नाबालिग मां इतना कमजोर रहती हैं कि वह उसका पालन पोषण नहीं कर पाती हैं. संभावना है कि बिन ब्याही मां के परिजन या फिर उसका पति जन्मे बच्चे को किसी को दे दिया होगा या बेंच दिया होगा.

क्या कहती हैं समाजसेवी
समाजसेवी लक्ष्मी बाखला, रुकमणी देवी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष जोनिका गुड़िया ने इस मामले की तह तक पहुंचने में मदद की. उन्होंने बताया कि नाबालिग लड़कियों को यह भी नहीं मालूम होता कि गर्भवती होने का क्या मतलब होता है. कई बार तो यह संबंध खेल-खेल में बन जाते हैं. नतीजा सामने आता है जब शारीरिक बदलाव शुरू होते हैं, और फिर पता चलता है कि वो गर्भवती हैं.

ढुकु प्रथा के कारण भी नाबालिग लड़कियां बन रही मां
समाजसेवी लक्ष्मी बाखला ने बताया कि खूंटी में ढुकु प्रथा काफी प्रचलित है. इसी प्रथा में लड़के लड़कियों को अपने घर ले जाते हैं, लेकिन परिजन उन्हें कुछ नहीं पूछते हैं कि यह लड़की कौन है, कई बार लड़कियां ही लड़कों को लेकर अपने घर ले जाती हैं. महीनों बाद इस बात का खुलासा होता है कि गांव आई लड़की कौन है. लड़कियों के परिजनों को भी मालूम नहीं होता है कि उनकी बेटी कहां हैं और किसके साथ है.
क्या है आदिवासी क्षेत्र में फैली ढुकु प्रथा
झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में ढुकु प्रथा एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जो मुख्य रूप से संताल और अन्य आदिवासी समुदायों में प्रचलित है. यह प्रथा विवाह और परिवार से संबंधित है, जिसमें एक लड़की किसी अन्य पुरुष के साथ बिना शादी के साथ रहती है. इस दौरान अलग लड़के और लड़की एक दूसरे को पसंद करने लगे तो फिर दोनों की शादी होती है. ढुकू प्रथा झारखंड के आदिवासी समुदायों, विशेष रूप से संथाल, मुंडा, और उरांव जैसे समुदायों में प्रचलित एक सामाजिक प्रथा है, जिसमें जोड़े बिना औपचारिक विवाह के एक साथ रहते हैं. इसे लिव-इन रिलेशनशिप से जोड़ा जाता है, लेकिन यह शहरी लिव-इन से अलग है क्योंकि इसमें सामुदायिक मान्यताएं और मजबूरियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
अस्पताल में दर्ज कराए गए पते पर जाने पर मिली हैरान करने वाली जानकारी
सदर अस्पताल में दर्ज आंकड़ो और उसमें दर्ज नाम पते के अनुसार मां बनी नाबालिग बच्चियों एवं उनके पति से संपर्क किया गया तो कई चौंकाने वाली कहानी सामने आई है. मां बनी नाबालिग लड़कियों ने बताया कि उनके पास बच्चे नहीं हैं, क्योंकि उन्हें यह बताया गया कि उनके बच्चे की मौत हो गई. समाजसेवी ने बताया कि कुछ ही लड़कियों के पास उनका बच्चा है. उन्होंने अंदेशा जताया कि मां बनी नाबालिग बच्चियों के बच्चे की बिक्री हो गई होगी. उन्होंने कहा कि कम उम्र में मां बन रही लड़कियों के बच्चे आखिर कहां जा रहे है उसकी जांच होनी चाहिए. जिले में कम उम्र में मां बनने का कारण बताते हुए समाजसेवी रुकमिला देवी ने बताया कि गलत संगत में पड़कर यहां की बच्चियां मां बन रही हैं. उन्होंने बताया कि यहां के परिजन अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं जिसके कारण यहां की छोटी छोटी बच्चियां प्यार के जाल में फंसकर गर्भवती हो रही हैं.

पूरे जिले में लगभग इसी तरह का मामला है. उन्होंने बताया कि यहां बच्चों के परिजन नशे में रहते हैं, कई बच्चे भी कम उम्र में नशा का सेवन करने लगते हैं, जिसके कारण उन्हें यह समझ नहीं कि वो क्या कर रहे हैं. इसका खुलासा तब होता है जब वो गर्भवती हो जाती हैं. उन्होंने इस तरह की कुप्रथा पर लगाम लगनी चाहिए. नाबालिग लड़कियों को हम सुरक्षा कैसे दे सके इसपर विचार करने की जरूरत है. जिले में बड़ी संख्या में नाबालिग लड़कियां गर्भवती हो रही हैं. सीडब्ल्यूसी को भी कई मामलों की जानकारी नहीं है.- जोनिका गुड़िया, पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष
सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष ने क्या कहा
सीडब्ल्यूसी (बाल संरक्षण आयोग) अध्यक्ष तनुश्री सरकार ने बताया कि यह गंभीर विषय है और यह पोक्सो केस बनता है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों पर जब नियमता मामले आते हैं तो सीडब्ल्यूसी पॉक्सो और जेजे एक्ट के तहत मामले को देखता है. उन्होंने बताया कि ईटीवी भारत ने इस मामले को बताया है, जल्द ही सीडब्ल्यूसी इस पर कार्रवाई करेही. उन्होंने बताया कि सदर अस्पताल से संपर्क कर डाटा उपलब्ध कराकर जांच कराई जाएगी और जो बच्चियां कम उम्र में मां बनी है तो जांचोपरांत कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

सदर अस्पताल के डीएस ने बच्चों की काउंसलिंग करने की दी सलाह
सदर अस्पताल के डीएस आनंद उरांव ने बताया कि कम उम्र के बच्चे गर्भवती अवस्था में यहां आती हैं जिसका उचित इलाज कराया जाता है. उन्होंने बताया कि जमीनी स्तर पर बच्चों की काउंसलिंग होनी चाहिए जो नहीं होती है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों पर तभी कमी लाई जा सकती है, जब सामाजिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाई जाए. कम उम्र में मां बनना जच्चा बच्चा दोनों के लिए खतरनाक है. उन्होंने डॉक्टर होने के नाते बताया कि जिले में स्कूल स्तर पर बच्चों को जागरूक करना चाहिए कि सही गलत क्या है और गर्भवती होने से कैसे बचा जाए.

नशे के कारण भटक रहे हैं बच्चे
सिविल सर्जन नागेश्वर मांझी ने बताया कि खूंटी आदिवासी बहुल जिला है और यहां अफीम की खेती जगह जगह होती है. नशे में रहने के कारण उन्हें यह पता नहीं चलता है कि वो क्या कर रहे हैं. नशा करने के बाद यहां के नाबालिग बच्चे एवं बच्चियां भटक जाते हैं और एक दूसरे से संबंध बना लेते हैं, जिसके कारण बच्चियां गर्भवती हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि गर्भवती होने के बाद वे सदर अस्पताल पहुंचती हैं जहां उनका डिलीवरी कराई जाती है. उन्होंने बताया कि इस तरह के केस में जिले में बच्चे की मौत अब तक नहीं हुई है. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों पर जच्चा बच्चा को ट्रेस आउट करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन पता नहीं चलता. नाबालिग मां बनने वाली अधिकतर बच्चियां जिले के अड़की और मुरहू प्रखंड क्षेत्र के रहने वाली हैं.
शिक्षा और नशाबंदी से खत्म हो सकते हैं ऐसे मामले
कई कपल के पास बच्चे नहीं होने के सवाल पर सिविल सर्जन ने बताया कि मां बनी बच्चियां खुद कमजोर रहती हैं, जच्चा बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाते हैं. परिजन या उसके पति बच्चा अस्पताल से ले तो जाते हैं लेकिन उसके बाद वे क्या करते हैं यह जानकारी नहीं मिल पाती. उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में बच्चे कहां जाते हैं यह न ही प्रशासन जनता है और न ही स्वास्थ्य विभाग जनता है. उन्होंने आगे बताया कि ऐसे मामलों में कमी लाने के लिए मानवाधिकार संस्था, स्वास्थ्य विभाग, प्रशासन सहित सामाजिक स्तर के लोगों को ध्यान देना चाहिए. ऐसे मामलों में कमी लाने के लिए झारखंड को नशा मुक्त करने की दिशा में पहल करना चाहिए. शिक्षा बेहतर मिले और नशा बंद हो जाए यो ऐसे मामले नहीं होंगे.
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