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माओवादी पहले भी संघर्ष विराम का दे चुके है प्रस्ताव, 2004 में सेंट्रल कमेटी की बैठक में तय हुआ था शांति प्रस्ताव - MAOIST PEACE PROPOSAL

भाकपा माओवादी ने संघर्ष विराम का प्रस्ताव रखा है. इससे पहले भी माओवादियों ने सेंट्रल कमेटी में शांति प्रस्ताव पर फैसला किया था.

Maoist peace proposal
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : April 11, 2025 at 4:46 PM IST

3 Min Read

पलामू: प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ने संघर्ष विराम का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव पर पूरे देश में चर्चा हो रही है. बिहार और झारखंड में माओवादी अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि अन्य राज्यों में उनकी स्थिति काफी कमजोर हो गई है.

संघर्ष विराम का प्रस्ताव माओवादियों के उत्तर पश्चिम सब जोन ब्यूरो की ओर से दिया गया है. पिछले एक पखवाड़े में यह दूसरी बार है, जब माओवादियों की ओर से संघर्ष विराम का प्रस्ताव आया है. हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ के इलाके में बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए हैं और स्थिति कमजोर होती जा रही है.

पहली बार 2004 में आया था संघर्ष विराम का प्रस्ताव

2004 में देशभर के नक्सली संगठनों का आपस में विलय हो गया था. इस विलय के बाद हुई पहली बैठक में संघर्ष विराम का प्रस्ताव आया था. इस बैठक में पीडब्लूजी और एमसीसी के गुटों के बीच संघर्ष विराम को लेकर अलग-अलग राय थी. एमसीसी से जुड़े शीर्ष कमांडर संघर्ष विराम के पक्ष में नहीं थे, जबकि पीडब्लूजी के सदस्य संघर्ष विराम के पक्ष में थे. बाद में विचारधारा के टकराव और विभिन्न कार्रवाइयों के कारण संघर्ष विराम का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका.

बाद में 2011 में शीर्ष माओवादी कमांडर किशनजी ने संघर्ष विराम और सरकार से बातचीत का प्रस्ताव रखा था. किशनजी आंध्र प्रदेश का रहने वाला था और 2011 में पश्चिम बंगाल में मारा गया था. किशनजी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश क्षेत्र का सबसे बड़ा कमांडर था. किशनजी के मारे जाने के बाद इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया.

"2004 में हुई बैठक में संघर्ष विराम का प्रस्ताव पेश किया गया था लेकिन यह आगे नहीं बढ़ सका. उस दौरान सभी संगठनों का विलय हो गया था और विलय के बाद हुई बैठक में कई दिनों तक संघर्ष विराम पर चर्चा हुई थी. उस दौरान एक बड़ा समूह संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर सहमत हो गया था. उन्हें नहीं पता कि मौजूदा स्थिति क्या है और अब क्या प्रस्ताव आया है" - सतीश कुमार, पूर्व माओवादी

रणनीति बदलने की भी योजना, अरविंद ने भी रखा था विराम का प्रस्ताव

कई बार संघर्ष विराम के दौरान माओवादी अपनी रणनीति बदल देते हैं. कई मौकों पर वे खुद को मजबूत करने की तैयारी भी करते हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व माओवादी ने बताया कि कई बार रणनीति बदलने की योजना है. पीडब्लूजी की विचारधारा से प्रभावित लोग शुरू से ही संघर्ष विराम के पक्षधर रहे हैं, जबकि एमसीसी से प्रभावित लोग सशस्त्र संघर्ष में ज्यादा विश्वास रखते हैं.

माओवादियों की तरफ पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की ओर से संघर्ष विराम का प्रस्ताव है. माओवादियों की कई शाखाएं हैं. लेकिन पीएलजीए ही सबकुछ तय करती है. बूढ़ापहाड़ के इलाके में शीर्ष कमांडर देव कुमार सिंह उर्फ ​​अरविंद ने संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर चर्चा की थी, लेकिन बाद में इस प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया गया.

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पलामू: प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ने संघर्ष विराम का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव पर पूरे देश में चर्चा हो रही है. बिहार और झारखंड में माओवादी अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि अन्य राज्यों में उनकी स्थिति काफी कमजोर हो गई है.

संघर्ष विराम का प्रस्ताव माओवादियों के उत्तर पश्चिम सब जोन ब्यूरो की ओर से दिया गया है. पिछले एक पखवाड़े में यह दूसरी बार है, जब माओवादियों की ओर से संघर्ष विराम का प्रस्ताव आया है. हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ के इलाके में बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए हैं और स्थिति कमजोर होती जा रही है.

पहली बार 2004 में आया था संघर्ष विराम का प्रस्ताव

2004 में देशभर के नक्सली संगठनों का आपस में विलय हो गया था. इस विलय के बाद हुई पहली बैठक में संघर्ष विराम का प्रस्ताव आया था. इस बैठक में पीडब्लूजी और एमसीसी के गुटों के बीच संघर्ष विराम को लेकर अलग-अलग राय थी. एमसीसी से जुड़े शीर्ष कमांडर संघर्ष विराम के पक्ष में नहीं थे, जबकि पीडब्लूजी के सदस्य संघर्ष विराम के पक्ष में थे. बाद में विचारधारा के टकराव और विभिन्न कार्रवाइयों के कारण संघर्ष विराम का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका.

बाद में 2011 में शीर्ष माओवादी कमांडर किशनजी ने संघर्ष विराम और सरकार से बातचीत का प्रस्ताव रखा था. किशनजी आंध्र प्रदेश का रहने वाला था और 2011 में पश्चिम बंगाल में मारा गया था. किशनजी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश क्षेत्र का सबसे बड़ा कमांडर था. किशनजी के मारे जाने के बाद इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया.

"2004 में हुई बैठक में संघर्ष विराम का प्रस्ताव पेश किया गया था लेकिन यह आगे नहीं बढ़ सका. उस दौरान सभी संगठनों का विलय हो गया था और विलय के बाद हुई बैठक में कई दिनों तक संघर्ष विराम पर चर्चा हुई थी. उस दौरान एक बड़ा समूह संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर सहमत हो गया था. उन्हें नहीं पता कि मौजूदा स्थिति क्या है और अब क्या प्रस्ताव आया है" - सतीश कुमार, पूर्व माओवादी

रणनीति बदलने की भी योजना, अरविंद ने भी रखा था विराम का प्रस्ताव

कई बार संघर्ष विराम के दौरान माओवादी अपनी रणनीति बदल देते हैं. कई मौकों पर वे खुद को मजबूत करने की तैयारी भी करते हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व माओवादी ने बताया कि कई बार रणनीति बदलने की योजना है. पीडब्लूजी की विचारधारा से प्रभावित लोग शुरू से ही संघर्ष विराम के पक्षधर रहे हैं, जबकि एमसीसी से प्रभावित लोग सशस्त्र संघर्ष में ज्यादा विश्वास रखते हैं.

माओवादियों की तरफ पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की ओर से संघर्ष विराम का प्रस्ताव है. माओवादियों की कई शाखाएं हैं. लेकिन पीएलजीए ही सबकुछ तय करती है. बूढ़ापहाड़ के इलाके में शीर्ष कमांडर देव कुमार सिंह उर्फ ​​अरविंद ने संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर चर्चा की थी, लेकिन बाद में इस प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया गया.

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