मंगलुरु: नदी किनारे स्टील की प्लेट की हल्की खनक के बाद "कांव... कांव..." की तेज आवाज और आसमान काले पंखों से भर जाता है. दरअसल, प्लेट की आवाज सुनकर दर्जनों कौवे भोजन के लिए नीचे उतर रहे होते हैं. यह कोई जादू नहीं, बल्कि मंगलुरु के बोक्कापटना इलाके में रहने वाले एक शख्स की रोज की आदत है. कौवों से उसकी यह अनोखी दोस्ती अब इलाके की पहचान बन चुकी है.
पक्षियों के साथ अनोखा रिश्ता रखने वाले शख्स का नाम जय नारायण पुजारी है. एक क्रूज़ होटल के कर्मचारी हैं. पिछले पांच सालों से जय कौओं को नियमित रूप से खाना खिलाते रहे हैं. शुरू में, सिर्फ़ एक या दो कौवे ही आते थे. लेकिन अब, रोज़ाना 150 से ज़्यादा कौवे आते हैं. जय, स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय हैं और कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं.

जय कहते हैं- "मैं बस प्लेट थपथपाता हूं, और वे उड़कर आ जाते हैं. मैं अपने मेहमानों को दोपहर का खाना परोसने से पहले ऐसा करता हूं. यह मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है."
जय का यह कार्य बिना किसी दिखावे या अपेक्षा के शुरू हुआ. हर दोपहर, क्रूज होटल में दोपहर का भोजन परोसने से पहले वह एक प्लेट में चावल और थोड़ा रसम (ग्रेवी) भरता है, उसे बाहर रखता है. पक्षियों को संकेत देने के लिए प्लेट को थपथपाता है. कुछ ही क्षणों में, कौवों का झुंड इकट्ठा हो जाता है और भोजन करता है. जिसे देखकर आसपास से गुजर रहे लोग अचंभित होते हैं.

क्रूज़ के मैनेजर रंजीत कहते हैं, "यह सिर्फ़ पक्षियों को खाना खिलाने के बारे में नहीं है. यह प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर रहने का संदेश देता है. जय के प्यार और करुणा ने एक शांत प्रभाव डाला है." जब कभी जय शहर में नहीं होता है तब ऐसा नहीं है कि इन कौवों को भोजन नहीं मिलता है. जय यह जिम्मेदारी अपने साथी सतीश को देकर जाते हैं. सतीश भी जय की अनुपस्थिति में कौवों को खाना खिलाने के लिए पहुंचते हैं.

जय के इस कार्य की तुलना ओडिशा के कान्हू बेहरा से की जाती है. जो कटक जिले के जंगलों में 200 से ज़्यादा मोरों को खाना खिलाते हैं. कान्हू की तरह, जय का समर्पण सभी जीवों के प्रति शांत प्रेम को दर्शाता है. स्थानीय लोग अब जय के काम की सराहना करते हैं. बता दें कि कौवे, जिन्हें आम लोग अक्सर शोर मचाने वाले पक्षी मानते हैं, वह नेचुरल सफाईकर्मी के रूप में पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
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