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'लौल कश्मीर': अनुच्छेद 370 हटने के बाद कर्फ्यू के सन्नाटे में पनपी मोहब्बत की कहानी - MEHAK JAMAL

महक जमाल की कहानियां पाठकों को घाटी में प्रेम-संबंध और अस्तित्व की गहन व्यक्तिगत खोज का अवसर प्रदान करती है.

Mehak Jamal
महक जमाल. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : June 15, 2025 at 8:51 PM IST

Updated : June 15, 2025 at 8:58 PM IST

3 Min Read

श्रीनगर: महक जमाल की किताब 'लौल कश्मीर' जम्मू और कश्मीर से 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के बाद ब्लैकआउट के दौरान सामने आई सच्ची, अनकही प्रेम कहानियों को प्रकाश में लाने के लिए सुर्खियों में रही है. इन कहानियों के ज़रिए महक पाठकों को घाटी में प्यार, जुड़ाव और अस्तित्व की गहरी निजी खोज कराती हैं.

'लौल कश्मीर', जो महक की पहली किताब है, प्रेम के विभिन्न रंगों को एक साथ बुनती है. रोमांटिक स्नेह, माता-पिता का बंधन और गहरी दोस्ती - सभी कश्मीर की अनूठी परिस्थितियों द्वारा आकार लेते हैं.

महक जमाल. (ETV Bharat)

ईटीवी भारत से बातचीत में महक ने कहा, "2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद बने हालात ने मुझे लिखने के लिए मजबूर किया. मैंने 2020 में किताब पर काम करना शुरू किया और इसे पूरा होने में करीब चार साल लगे. आखिरकार जनवरी 2025 में इसे रिलीज किया गया."

उन्होंने बताया, "लंबे और परेशान करने वाले संचार अवरोध ने मानवीय संबंधों की कई कहानियों को सामने लाया. मुझे सबसे ज़्यादा प्यार की कहानियों ने आकर्षित किया- कैसे लोग लगाए गए सन्नाटे के बीच एक-दूसरे तक पहुंचने और संवाद करने के नए-नए तरीके खोज रहे थे."

महक ने बताया कि उन्होंने अपने शोध के दौरान 70 से ज़्यादा लोगों का साक्षात्कार लिया. "कई मायनों में, मुझे लगा कि मैं उनके रहस्यों की रखवाली कर रही हूं, क्योंकि कई लोग गुमनाम रहना चाहते थे. यह तथ्य कि उन्होंने अपनी जीवन की कहानियां मुझ पर भरोसा करके बताईं, मुझे उनसे और कश्मीर से और भी ज़्यादा जुड़ाव का एहसास कराता है."

उन्होंने माना कि इन कहानियों को इकट्ठा करना बिल्कुल भी आसान नहीं था. उन्होंने कहा-"कुछ लोगों ने मुझसे फ़ोन और ज़ूम कॉल पर बात की. दूसरों ने व्यक्तिगत रूप से अपनी कहानियां साझा कीं. कहानीकारों के अनुरोध पर पुस्तक में कई नाम बदल दिए गए हैं या छिपाए गए हैं. वे चाहते थे कि उनकी सच्चाई लोगों तक पहुंचे, लेकिन अपनी पहचान बताए बिना."

एक सवाल के जवाब में महक ने बताया, "यह उन पाकिस्तानी महिलाओं की कहानी है जिन्होंने कश्मीरी पुरुषों से शादी की और 2010 में पुनर्वास नीति के तहत कश्मीर आईं. एक दशक से ज़्यादा समय से यहां रहने के बावजूद उन्हें अभी तक नागरिकता नहीं दी गई है. उस कहानी ने मुझे रुला दिया."

अब 31 वर्षीय महक के पास बैंगलोर में सृष्टि इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी से क्रिएटिव आर्ट्स इन फ़िल्म की डिग्री है. हालांकि उनकी बुनियादी शिक्षा कश्मीर में हुई थी. उन्होंने तिब्बती नामक एक फ़िल्म में स्क्रिप्ट सुपरवाइज़र के रूप में अपना करियर शुरू किया और तब से कई लघु और फ़ीचर फ़िल्मों का निर्देशन किया है.

उनकी लघु फ़िल्म बैड एग का प्रीमियर 2022 में 19वें भारतीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल स्टटगार्ट में हुआ, जहां इसने जर्मन स्टार ऑफ़ इंडिया ऑडियंस अवार्ड जीता. यह फ़िल्म दुनिया भर के फ़ेस्टिवल में दिखाई गई.

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'लौल कश्मीर', जो महक की पहली किताब है, प्रेम के विभिन्न रंगों को एक साथ बुनती है. रोमांटिक स्नेह, माता-पिता का बंधन और गहरी दोस्ती - सभी कश्मीर की अनूठी परिस्थितियों द्वारा आकार लेते हैं.

महक जमाल. (ETV Bharat)

ईटीवी भारत से बातचीत में महक ने कहा, "2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद बने हालात ने मुझे लिखने के लिए मजबूर किया. मैंने 2020 में किताब पर काम करना शुरू किया और इसे पूरा होने में करीब चार साल लगे. आखिरकार जनवरी 2025 में इसे रिलीज किया गया."

उन्होंने बताया, "लंबे और परेशान करने वाले संचार अवरोध ने मानवीय संबंधों की कई कहानियों को सामने लाया. मुझे सबसे ज़्यादा प्यार की कहानियों ने आकर्षित किया- कैसे लोग लगाए गए सन्नाटे के बीच एक-दूसरे तक पहुंचने और संवाद करने के नए-नए तरीके खोज रहे थे."

महक ने बताया कि उन्होंने अपने शोध के दौरान 70 से ज़्यादा लोगों का साक्षात्कार लिया. "कई मायनों में, मुझे लगा कि मैं उनके रहस्यों की रखवाली कर रही हूं, क्योंकि कई लोग गुमनाम रहना चाहते थे. यह तथ्य कि उन्होंने अपनी जीवन की कहानियां मुझ पर भरोसा करके बताईं, मुझे उनसे और कश्मीर से और भी ज़्यादा जुड़ाव का एहसास कराता है."

उन्होंने माना कि इन कहानियों को इकट्ठा करना बिल्कुल भी आसान नहीं था. उन्होंने कहा-"कुछ लोगों ने मुझसे फ़ोन और ज़ूम कॉल पर बात की. दूसरों ने व्यक्तिगत रूप से अपनी कहानियां साझा कीं. कहानीकारों के अनुरोध पर पुस्तक में कई नाम बदल दिए गए हैं या छिपाए गए हैं. वे चाहते थे कि उनकी सच्चाई लोगों तक पहुंचे, लेकिन अपनी पहचान बताए बिना."

एक सवाल के जवाब में महक ने बताया, "यह उन पाकिस्तानी महिलाओं की कहानी है जिन्होंने कश्मीरी पुरुषों से शादी की और 2010 में पुनर्वास नीति के तहत कश्मीर आईं. एक दशक से ज़्यादा समय से यहां रहने के बावजूद उन्हें अभी तक नागरिकता नहीं दी गई है. उस कहानी ने मुझे रुला दिया."

अब 31 वर्षीय महक के पास बैंगलोर में सृष्टि इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट, डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी से क्रिएटिव आर्ट्स इन फ़िल्म की डिग्री है. हालांकि उनकी बुनियादी शिक्षा कश्मीर में हुई थी. उन्होंने तिब्बती नामक एक फ़िल्म में स्क्रिप्ट सुपरवाइज़र के रूप में अपना करियर शुरू किया और तब से कई लघु और फ़ीचर फ़िल्मों का निर्देशन किया है.

उनकी लघु फ़िल्म बैड एग का प्रीमियर 2022 में 19वें भारतीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल स्टटगार्ट में हुआ, जहां इसने जर्मन स्टार ऑफ़ इंडिया ऑडियंस अवार्ड जीता. यह फ़िल्म दुनिया भर के फ़ेस्टिवल में दिखाई गई.

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Last Updated : June 15, 2025 at 8:58 PM IST
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