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जानें डॉ. भीमराव आंबेडकर को किस तरह से याद कर रहे 103 वर्षीय लक्ष्मण खोतकर - LAXMAN KHOTKAR AMBEDKARITS

बाबा साहेब के करीब रहे महाराष्ट्र के संभाजीनगर के 103 वर्षीय लक्ष्मण खोतकर ने भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़ी यादें साझा कीं.

Laxman Khotkar, Ambedkaraits.
लक्ष्मण खोतकर, अम्बेडकरवादी. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : April 14, 2025 at 4:25 PM IST

5 Min Read

छत्रपति संभाजीनगर: देशभर में आज भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती मनाई जा रही है. इसी बीच महाराष्ट्र के संभाजीनगर के रहने वाले 103 वर्षीय लक्ष्मण खोतकर ने डॉ. अंबेडकर से जुड़ी अपनी यादें साझा कीं.

दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना पसंद किया

आज भी पुराने साथियों को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की यादें जीने की प्रेरणा देती हैं. उनमें से एक हैं 'लक्ष्मण खोतकर'. वो कहते हैं कि शहर में बाबासाहेब ने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए मिलिंद कॉलेज बनवाया था. उसका हरेक काम उन्होंने अपने हाथों से किया. यहां तक ​​कि जब वे निजाम के रेलवे में काम कर रहे थे. उस दौरान भी उन्होंने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति अपने प्रेम के कारण ही दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना पसंद किया. इस तरह से देखा जाए तो 103 साल की उम्र में उस समय को याद करते हुए उनके चेहरे पर एक अलग ही खुशी, उत्साह और संतुष्टि दिखी.

मिलिंद कॉलेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में सेवानिवृत्त हुए खोतकर

शहर के मिलिंद कॉलेज क्षेत्र में 103 वर्षीय 'लक्ष्मण खोतकर' कहते हैं कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का सानिध्य प्राप्त करना ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने के समान है. वो कहते हैं कि साल 1948 में लक्ष्मण खोतकर जब निजाम रेलवे में शरणपुर में कार्यरत थे, उसी समय उन्हें जानकारी मिली कि डॉ. आंबेडकर मिलिंद कॉलेज की स्थापना कर रहे हैं. ऐसा सुनकर खोतकर ने 15 रुपए निश्चित वेतन वाली अपनी नौकरी छोड़ दी. इसी के बाद से उन्होंने कॉलेज के निर्माण में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. इस दौरान जब कॉलेज का कार्य प्रगति पर था, तब की कई यादें उन्होंने अपने मन में संजोकर रखीं. लक्ष्मण खोतकर ने वहां कॉलेज के हर निर्माण कार्य को देखा. कॉलेज शुरू होने के बाद वे वहां सुरक्षा गार्ड के रूप में रहे और वहीं सेवानिवृत्त हुए.

बाबा साहब का सानिध्य

लक्ष्मण खोतकर, अम्बेडकरवादी. (Etv Bharat)

डॉ. बाबा साहब आंबेडकर को औरंगाबाद यानी आज के छत्रपति संभाजीनगर जिले से विशेष लगाव था. उस समय निजाम के अधीन आने वाले इस क्षेत्र में गरीब बच्चों के लिए उच्च शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी. उसी दौर में मिलिंद कॉलेज के निर्माण का काम शुरू हुआ था. वो कहते हैं कि जब डॉ. आंबेडकर शहर में आतो तो वो उनके साथ ड्यूटी पर रहते थे. बाबा साहब सूबेदारी रेस्ट हाउस में रुकते थे, उस समय उनके खाने-पीने, कपड़े धोने, सफाई करने और उनकी हर इच्छा या अनिच्छा की जिम्मेदारी लक्ष्मण खोतकर की होती थी. इस तरह से वह डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को करीब से देखने के अवसर को पूरे गर्व के साथ याद करते हैं.

डॉ. बाबासाहेब ने अपने अधीन काम करने वाले हरेक का रखा ध्यान

पुराने दिनों को याद करके लक्ष्मण खोतकर कहते हैं कि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर हाइली क्वालीफॉइड थे. लेकिन उन्होंने अपने अधीन काम करने वाले सभी लोगों का ख्याल रखा. लक्ष्मण खोतकर भले ही आंबेडकर की सेवा में लगे थे, लेकिन कभी-कभी वे उनसे और ड्राइवर से आग्रह करते थे कि वे उनके साथ खाना खाएं. वे लोगों का ख्याल परिवार के सदस्य की तरह रखते थे. वो कहते हैं कि बाबासाहेब काम में इतने व्यस्त रहते थे कि कभी-कभी वे देर रात तक जगते थे और सुबह के 3 या 4 बजे सोते थे. फिर वो छोटी नींद लेकर वे जग जाते थे. वे अपने समय के अनुसार मिलिंद कॉलेज के काम का निरीक्षण करने भी जाते थे. लक्ष्मण खोतकर बताते हैं कि जब भी वे मिलिंद कॉलेज जाते थे, तो उनके साथ लोगों की एक बड़ी भीड़ जरूर होती थी.

लोगों के प्रति अपार स्नेह रखते थे आंबेडकर

जब बाबा साहब भीमराव आंबेडकर शहर में आए तो लक्ष्मण खोतकर का काम सूबेदारी विश्राम गृह में शुरू हो गया. जब तक बाबा साहब शहर में रहे, वे अपने निवास से बाहर नहीं निकले.

लक्ष्मण खोतकर कहते हैं कि "एक दिन मैं दोपहर का खाना खाए बिना ही काम पर चला गया था, जिससे मेरी पत्नी परेशान थी. दोपहर में मेरी पत्नी डब्बा और अपने 6 महीने के बच्चे को लेकर सूबेदारी पहुंच गई थी. वह गेट पर मेरा इंतजार करने लगी. बाबा साहब ने यह देखा और मजाक में कहा कि हम उसे भूखा नहीं रखते. इसके बाद मेरी पत्नी ने अपने 6 महीने के बच्चे को बाबा साहब के चरणों में रख दिया और आशीर्वाद मांगा." इस घटना को याद करते हुए लक्ष्मण पुरानी यादों में खो गए.

बाबा साहब की आखिरी मुलाकात नहीं हुई

'ईटीवी भारत' से बातचीत में लक्ष्मण खोतकर कहते हैं कि "बाबा साहब आंबेडकर किसी काम से दिल्ली गए थे. उन्होंने हमें भी चलने को कहा. हम ट्रेन से मुंबई पहुंचे और एक जगह पर रुके, क्योंकि ट्रेन वहां से आगे बढ़ने में देर कर रही थी. इसी दौरान मैंने बाबा साहब के चले जाने की खबर सुनी. अचानक आई इस खबर ने मुझे झकझोर कर रख दिया." ये बताते वक्त लक्ष्मण खोतकर के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी. उन्होंने कहा कि हम मिल नहीं पाए. बाबा साहब के निधन के बाद कई लोगों ने गलत कहानियां सुनानी शुरू कर दी थीं.

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छत्रपति संभाजीनगर: देशभर में आज भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती मनाई जा रही है. इसी बीच महाराष्ट्र के संभाजीनगर के रहने वाले 103 वर्षीय लक्ष्मण खोतकर ने डॉ. अंबेडकर से जुड़ी अपनी यादें साझा कीं.

दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना पसंद किया

आज भी पुराने साथियों को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की यादें जीने की प्रेरणा देती हैं. उनमें से एक हैं 'लक्ष्मण खोतकर'. वो कहते हैं कि शहर में बाबासाहेब ने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए मिलिंद कॉलेज बनवाया था. उसका हरेक काम उन्होंने अपने हाथों से किया. यहां तक ​​कि जब वे निजाम के रेलवे में काम कर रहे थे. उस दौरान भी उन्होंने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति अपने प्रेम के कारण ही दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना पसंद किया. इस तरह से देखा जाए तो 103 साल की उम्र में उस समय को याद करते हुए उनके चेहरे पर एक अलग ही खुशी, उत्साह और संतुष्टि दिखी.

मिलिंद कॉलेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में सेवानिवृत्त हुए खोतकर

शहर के मिलिंद कॉलेज क्षेत्र में 103 वर्षीय 'लक्ष्मण खोतकर' कहते हैं कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का सानिध्य प्राप्त करना ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने के समान है. वो कहते हैं कि साल 1948 में लक्ष्मण खोतकर जब निजाम रेलवे में शरणपुर में कार्यरत थे, उसी समय उन्हें जानकारी मिली कि डॉ. आंबेडकर मिलिंद कॉलेज की स्थापना कर रहे हैं. ऐसा सुनकर खोतकर ने 15 रुपए निश्चित वेतन वाली अपनी नौकरी छोड़ दी. इसी के बाद से उन्होंने कॉलेज के निर्माण में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. इस दौरान जब कॉलेज का कार्य प्रगति पर था, तब की कई यादें उन्होंने अपने मन में संजोकर रखीं. लक्ष्मण खोतकर ने वहां कॉलेज के हर निर्माण कार्य को देखा. कॉलेज शुरू होने के बाद वे वहां सुरक्षा गार्ड के रूप में रहे और वहीं सेवानिवृत्त हुए.

बाबा साहब का सानिध्य

लक्ष्मण खोतकर, अम्बेडकरवादी. (Etv Bharat)

डॉ. बाबा साहब आंबेडकर को औरंगाबाद यानी आज के छत्रपति संभाजीनगर जिले से विशेष लगाव था. उस समय निजाम के अधीन आने वाले इस क्षेत्र में गरीब बच्चों के लिए उच्च शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी. उसी दौर में मिलिंद कॉलेज के निर्माण का काम शुरू हुआ था. वो कहते हैं कि जब डॉ. आंबेडकर शहर में आतो तो वो उनके साथ ड्यूटी पर रहते थे. बाबा साहब सूबेदारी रेस्ट हाउस में रुकते थे, उस समय उनके खाने-पीने, कपड़े धोने, सफाई करने और उनकी हर इच्छा या अनिच्छा की जिम्मेदारी लक्ष्मण खोतकर की होती थी. इस तरह से वह डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को करीब से देखने के अवसर को पूरे गर्व के साथ याद करते हैं.

डॉ. बाबासाहेब ने अपने अधीन काम करने वाले हरेक का रखा ध्यान

पुराने दिनों को याद करके लक्ष्मण खोतकर कहते हैं कि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर हाइली क्वालीफॉइड थे. लेकिन उन्होंने अपने अधीन काम करने वाले सभी लोगों का ख्याल रखा. लक्ष्मण खोतकर भले ही आंबेडकर की सेवा में लगे थे, लेकिन कभी-कभी वे उनसे और ड्राइवर से आग्रह करते थे कि वे उनके साथ खाना खाएं. वे लोगों का ख्याल परिवार के सदस्य की तरह रखते थे. वो कहते हैं कि बाबासाहेब काम में इतने व्यस्त रहते थे कि कभी-कभी वे देर रात तक जगते थे और सुबह के 3 या 4 बजे सोते थे. फिर वो छोटी नींद लेकर वे जग जाते थे. वे अपने समय के अनुसार मिलिंद कॉलेज के काम का निरीक्षण करने भी जाते थे. लक्ष्मण खोतकर बताते हैं कि जब भी वे मिलिंद कॉलेज जाते थे, तो उनके साथ लोगों की एक बड़ी भीड़ जरूर होती थी.

लोगों के प्रति अपार स्नेह रखते थे आंबेडकर

जब बाबा साहब भीमराव आंबेडकर शहर में आए तो लक्ष्मण खोतकर का काम सूबेदारी विश्राम गृह में शुरू हो गया. जब तक बाबा साहब शहर में रहे, वे अपने निवास से बाहर नहीं निकले.

लक्ष्मण खोतकर कहते हैं कि "एक दिन मैं दोपहर का खाना खाए बिना ही काम पर चला गया था, जिससे मेरी पत्नी परेशान थी. दोपहर में मेरी पत्नी डब्बा और अपने 6 महीने के बच्चे को लेकर सूबेदारी पहुंच गई थी. वह गेट पर मेरा इंतजार करने लगी. बाबा साहब ने यह देखा और मजाक में कहा कि हम उसे भूखा नहीं रखते. इसके बाद मेरी पत्नी ने अपने 6 महीने के बच्चे को बाबा साहब के चरणों में रख दिया और आशीर्वाद मांगा." इस घटना को याद करते हुए लक्ष्मण पुरानी यादों में खो गए.

बाबा साहब की आखिरी मुलाकात नहीं हुई

'ईटीवी भारत' से बातचीत में लक्ष्मण खोतकर कहते हैं कि "बाबा साहब आंबेडकर किसी काम से दिल्ली गए थे. उन्होंने हमें भी चलने को कहा. हम ट्रेन से मुंबई पहुंचे और एक जगह पर रुके, क्योंकि ट्रेन वहां से आगे बढ़ने में देर कर रही थी. इसी दौरान मैंने बाबा साहब के चले जाने की खबर सुनी. अचानक आई इस खबर ने मुझे झकझोर कर रख दिया." ये बताते वक्त लक्ष्मण खोतकर के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी. उन्होंने कहा कि हम मिल नहीं पाए. बाबा साहब के निधन के बाद कई लोगों ने गलत कहानियां सुनानी शुरू कर दी थीं.

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