लेह: पिछले कुछ वर्षों में लद्दाख में मादक पदार्थों के सेवन के मामलों में वृद्धि देखी गई है, खास तौर पर युवाओं में. मनोचिकित्सक और परामर्शदाता चेतावनी देते हैं कि लद्दाख आने वाले वर्षों में एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट देख सकता है. इसे रोकने के लिए स्कूलों, परिवार और समुदाय के स्तर पर बेहतर जागरुकता कार्यक्रमों की जरूरत है. साथ ही अभिभावकों की निगरानी और जमीनी स्तर पर भागीदारी भी चाहिए.
मनोचिकित्सक रोकथाम और पुनर्वास दोनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) स्तर पर एक उचित दवा नीति की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं.
एसएनएम अस्पताल में मनोचिकित्सक डॉ. पद्मा अंगमो कहती हैं, "लद्दाख में स्थिति बहुत गंभीर है क्योंकि पिछले पांच वर्षों में यह काफी खराब हो गई है. अगर हम ओपीडी के मरीजों के पैटर्न को देखें, तो 2018 तक हमारे पास भांग के इस्तेमाल से जुड़े कुछ ही मामले थे. लेकिन पिछले 3-4 वर्षों में हमने नशे की लत के मामलों में तेज वृद्धि देखी है, जिसमें इन्ट्रावेनस (IV) ड्रग का इस्तेमाल भी शामिल है. हमारी छोटी आबादी को देखते हुए, ड्रग लेने वालों का प्रतिशत काफी अधिक है. अगर हमने अभी हस्तक्षेप नहीं किया, तो अगले 10-15 वर्षों में लद्दाख को पूर्वोत्तर जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, आत्महत्या की दर में वृद्धि और एचआईवी के मामलों में उछाल होगा."
उन्होंने आगे कहा, "पिछले कुछ महीनों में, हमने रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि सिर्फ 26 दिनों में, शराब के सेवन से संबंधित 21 मरीज भर्ती हुए. कुछ मामले अवैध दवाओं के सेवन से जुड़े थे. मरीजों में स्थानीय और गैर-स्थानीय दोनों तरह के लोग शामिल थे, जैसे कि झारखंड और नेपाल से आए मजदूर. ओपीडी में, हम ओपिओइड (opioids), हेरोइन और स्मैक जैसी अवैध दवाओं का उपयोग करने वाले रोगियों को देखते हैं. उनमें से कई स्थानीय लोगों सहित इंजेक्शन से नशीली दवाएं लेने वाले हैं. हमारे पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं और हम लंबे समय तक भर्ती की योजना नहीं बना सकते हैं."
डॉ. पद्मा अंगमो ने बताती हैं, "सबसे चिंताजनक बात यह है कि मरीज एक-दूसरे की सुई साझा करते हैं, जिससे एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी फैलने का गंभीर जोखिम होता है. हमारी छोटी आबादी को देखते हुए, कुछ मामले भी जल्दी ही एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन सकते हैं. एक और चिंता यह है कि ज्यादातर मरीज अकादमिक और पेशेवर क्षेत्र से हैं. कई स्कूल या कॉलेज ड्रॉपआउट हैं और बेरोजगार हैं. हालांकि हम नशा मुक्ति सेवाएं प्रदान करते हैं, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए बहुत कम चर्चा या समर्थन होता है. परिवारों और प्रशासन दोनों को दीर्घकालिक पुनर्वास के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है."
नुब्रा के दिस्कित (Diskit) में उप-जिला अस्पताल में किशोर मित्रवत स्वास्थ्य क्लिनिक (AFHC) के काउंसलर देचेन डॉल्कर (Dechen Dolker) कहते हैं, "काउंसलिंग में, छात्र अक्सर हमारे पास नहीं पहुंच पाते हैं, जो स्कूल और क्लिनिक के समय के बीच टकराव के कारण हो सकता है. काउंसलिंग एक दिन की प्रक्रिया नहीं है; इसके लिए निरंतर फॉलो-अप की आवश्यकता होती है, जो चुनौतीपूर्ण भी है. छात्रों के लिए सेवाओं को अधिक सुलभ बनाने के लिए हमें एक बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है. पहले, एचआईवी को मुख्य रूप से यौन संचारित रोग के रूप में देखा जाता था, लेकिन पूर्वोत्तर के कुछ गांवों में, यह IV ड्रग के उपयोग से युवाओं में फैल गया है. इसी तरह, अगर लद्दाख में IV ड्रग लेने वाले हैं, तो साझा सुइयों के माध्यम से एचआईवी फैलने का जोखिम है. हमें उनके लिए उपलब्ध सेवाओं के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करने की जरूरत है."
डॉ. पद्मा अंगमो कहती हैं, "बहुत से मामले खराब माहौल और लापरवाही वाले परिवारों से आते हैं. नशे की लत को रोकने के लिए, हमें मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और तनाव प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. कई मरीज असफल रिश्तों या पारिवारिक कलह के कारण नशे की लत में पड़ जाते हैं. हमें तनाव प्रबंधन कौशल सिखाने के लिए शुरुआती हस्तक्षेप की आवश्यकता है ताकि नशीली दवाओं की लत को रोका जा सके."
लेह में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPDDR) के तहत जून 2024 में जिला नशामुक्ति केंद्र की स्थापना की गई थी.
जिला नशा मुक्ति केंद्र के प्रबंधक थिनलाय नूरबू (Thinlay Nurboo) कहते हैं, "कलंक और समाज की एक दूसरे से जुड़ी प्रकृति के अलावा भी कई बाधाएं हैं. समुदाय से सहयोग की भी कमी है. लेह में कई ऐसे हॉटस्पॉट हैं जहां नशा करने वाले लोग इकट्ठा होते हैं, इसलिए अभिभावकों के लिए स्कूल के बाद अपने बच्चों पर कड़ी निगरानी रखना बहुत जरूरी है."
वह कहते हैं, "हम नशे के आदी लोगों के लिए एकीकृत पुनर्वास केंद्र (आईपीडीए), आउटरीच और ड्रॉप-इन सेंटर (ओडीआईसी), और सामुदायिक सहकर्मी-नेतृत्व हस्तक्षेप (सीपीएलआई) जैसी निःशुल्क सेवाएं प्रदान करते हैं. साथ ही घर पर परामर्श भी देते हैं. सीपीएलआई के जरिये, हम कक्षा 6 से आगे के स्कूली बच्चों में रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करते हैं. साथियों के दबाव, जिज्ञासा और माहौल से प्रेरित शुरुआती मादक पदार्थों के सेवन को रोकने का प्रयास करते हैं. हमने लेह में 20 सहकर्मी शिक्षकों की पहचान की है जो छात्रों को व्यस्त रखने के लिए स्कूल के बाद खेल और संगीत जैसी गतिविधियां आयोजित करते हैं."
थिनलाय ने आगे कह, "हमने स्कूलों में याटो क्लब (Yato Clubs) भी स्थापित किए हैं, जिनमें 6वीं से 12वीं के बीच प्रत्येक कक्षा से एक सदस्य है, ताकि अप्रत्यक्ष रूप से स्वस्थ जुड़ाव को बढ़ावा दिया जा सके. हालांकि, सामाजिक स्वीकृति एक बड़ी चुनौती बनी हुई है - माता-पिता और शिक्षक अक्सर प्रभावित बच्चों का समर्थन करने के बजाय उन्हें कलंकित करते हैं, जिससे उनका तनाव और कमजोरी बढ़ती है. हमारे पास आने वाले ज्यादातर मामले वयस्कों में शराब की लत से जुड़े होते हैं. अब तक, हमने लगभग 2,000 मामलों को संभाला है, जिसमें 2-3 मामले दर्ज किए गए हैं."
डॉ. पद्मा अंगमो ने बताया, "नशे की लत से अभी भी कलंक जुड़ा हुआ है और उपलब्ध ओपीडी और भर्ती सेवाओं के बारे में कम जागरूकता है. इसके अलावा, नशे की लत को अक्सर एक चिकित्सा समस्या के बजाय नैतिक विफलता के रूप में देखा जाता है. कई मरीज तब आते हैं जब उनकी हालत बिगड़ जाती है. इसके बाद भी अक्सर इलाज जारी नहीं रखते हैं. पहली बार संपर्क करने पर, माता-पिता अपने बच्चों को बहुत गुस्से में लेकर आते हैं, लेकिन समय के साथ, उनकी रुचि और समर्थन भी कम हो जाता है. इसी तरह, मरीज नशा मुक्ति केंद्र जाने के लिए बहुत आनाकानी करते हैं. बहुत ज्यादा कलंक है और वे नियमित फॉलो-अप के लिए नहीं आते हैं. हमें अपनी सेवाओं को मजबूत करने और नशे की लत के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है."
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