कुरुक्षेत्र: जरूरी नहीं कि हुनर हाथ में ही हो, जिनके हाथ नहीं होते, वो भी हुनरबाज हो सकते हैं... इस बात को सच कर दिखाया है उत्तराखंड की रहने वाली भारती ने. जो कि मौजूदा समय में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से फाइन आर्ट से मास्टर कर रही है. कहते हैं कि अंधेरा जितना गहरा होता है, सुबह उतनी ही नजदीक होती है. ये कहावत भारती पर सटीक बैठती है.
बगैर हाथ के बना रही बेहतरीन आर्ट: दरअसल, भारती उत्तराखंड के नैनीताल के रामनगर की रहने वाली है. एक हादसे ने उससे उसके दोनों हाथ छीन लिए. हादसे के बाद उसकी जिन्दगी बिल्कुल बदल गई. हालांकि भारती ने हार नहीं मानी. वो अडिग रही और आगे बढ़ती रही. हादसे के वक्त भारती की उम्र काफी कम थी. जैसे ही वो ठीक होने लगी तो उसने स्कूल जाना शुरू किया. इसके बाद वो दूसरे लोगों की तरह रोजमर्रा के काम भी करने लगी. उसने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना ली और बगैर हाथों के भी वो हर वो काम करने लगी, जो कि लोग हाथ होने पर करते हैं. आलम यह है कि आज के समय में भारती बेहतरीन आर्ट तैयार करती है. भारती के बनाए आर्ट की बारीकी ऐसी है कि उसे देख कोई भी उसकी कला का मुरीद हो जाए.
सिर से उठ चुका है पिता का साया: ईटीवी भारत ने भारती से बातचीत की. भारती ने बताया, "मैं उत्तराखंड के नैनीताल के पास रामनगर की रहने वाली हूं. अभी मैं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट से मास्टर कर रही हूं. हम कुल पांच भाई-बहन हैं. मेरी मां एक गृहणी है. पिता का स्वर्गवास हो चुका है. सर से पिता का साया उठने से परिवार पर मानों दुख का पहाड़ टूट पड़ा हो. हालांकि मुझे पढ़ाई करके अपने सपने पूरे करने हैं. इसलिए मैं दिन रात मेहनत करती रहती हूं."

हादसे में गवां दिए दोनों हाथ: भारती ने आगे कहा कि जब मैं काफी छोटी थी, तब बम जैसा मैंने कुछ छू लिया था, विस्फोट होने के बाद मेरे दोनों हाथ खराब हो गए. डॉक्टर ने उपचार के दौरान मेरे दोनों हाथ काट दिए. उस समय उम्र कम थी, सो कुछ समझ नहीं आता था. हालांकि धीरे-धीरे मैंने सच को स्वीकार किया और बगैर हाथों के मैंने वो काम करने शुरु कर दिए, जो काम लोग हाथ होने पर करते हैं. स्कूल भी जाने लगी थी. रोजमर्रा का काम भी करने लग गई थी. मैंने खुद को किसी पर बोझ नहीं बनने दिया. अब अपना काम मैं खुद कर लेती हूं."

"हमारे आस-पास कई तरह के लोग होते हैं. लोग कुछ न कुछ बोलते ही हैं. मैं लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देती. मुझे फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या कहते हैं. मैं अपना काम करती हूं. अपने काम पर ही मेरा पूरा फोकस होता है. इसलिए कभी किसी के कुछ अच्छा या बुरा कहने पर कोई फर्क मुझे नहीं पड़ा. मुझे कभी अहसास ही नहीं हुआ कि मेरे दोनों हाथ ही नहीं है. कोई पॉजिटिव एनर्जी थी, जो मुझे आगे बढने में मदद करती रही."- भारती
दसवीं के बाद चुना फाइन आर्ट: भारती के अनुसार, "मैं दसवीं तक एक साधारण विद्यार्थी थी, जो दूसरे की तरह ही अपनी पढ़ाई किया करती थी, लेकिन दसवीं कक्षा पास करने के बाद किसी ने मुझे फाइन आर्ट के विषय में बताया. इसके बाद मेरी जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया. हाथ न होने के चलते परेशानी तो हुई, लेकिन धीरे-धीरे मैंने अपने आप को इसमें इस कदर ढाल लिया कि अब ये मुझे अच्छा लगने लगा है. अभी मैं फाइन आर्ट में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से मास्टर कर रही हूं."

नेचर संबंधित आर्ट में खास रुचि: भारती ने कहा, मैं उत्तराखंड से हूं, सो वहां के नेचर को देख कोई भी वहां का दीवाना बन जाए. नेचर मुझे काफी आकर्षित करती है, इसलिए मैंने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए नेचर पर आर्ट बनाना शुरू किया. मैं रंग भी नेचुरल तरीके से तैयार करती हूं. नेचुरल कलर का प्रयोग मैं अपने ज्यादातर प्रोजेक्ट में करती हूं."

दूसरे राज्यों में लग चुके हैं एग्जीबिशन: भारती ने आगे बताया, "मैं शुरू से ही फाइन आर्ट में कुछ हट के करना चाहती थी. इसलिए मैंने नेचुरल आर्ट पर ज्यादा फोकस किया. धीरे-धीरे मुझे ये और अच्छा लगने लगा. अब मेरे बनाए पेंटिंग की एग्जीबिशन चंडीगढ़, अमृतसर और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में लग चुके हैं. एग्जीबिशन में आए लोग मेरे बनाए पेंटिंग की काफी तारीफ किए. एग्जीबिशन में अपने आर्ट की प्रदर्शनी करना एक अच्छा एक्सपीरियंस रहा मेरे लिए. वहां हर तरह के लोग आए थे. सभी से मिलकर काफी अच्छा लगा. सभी कापी टेलेंटेड थे."

गांव के बच्चों को सिखाती है आर्ट: भारती ने बताया कि, "मैं ग्रामीण परिवेश से हूं. जब मेरी छुट्टी होती है तो मैं अपने गांव में चली जाती हूं. वहां पर ग्रामीण परिवेश के बच्चों को चित्रकला सिखाती हूं. ताकि ग्रामीण परिवेश के बच्चे चित्रकला सीख कर वह भी अपने भविष्य और जीवन में कुछ कर सकें. इसलिए मैंने गांव के बच्चों को आर्ट सीखाना शुरू किया है, ताकि वे बच्चे भविष्य में इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकेंगे."

हाथ नहीं पर दूसरों से बेहतर करती है आर्ट: कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट विभाग अध्यक्ष डॉ गुरु चरण सिंह ने भारती के बारे में बताया कि, "भारती बहुत ही होनहार छात्रा है. हम लोग इसका काम देखते आ रहे हैं. यह दूसरे लोगों से भी अच्छा काम करती है. भले भारती के पास हाथ न हो लेकिन चित्रकला में बड़ी बारीकी से वो काम करती है. ऐसा काम तो जिनके पास हाथ है, वो भी नहीं कर पाते. भारती के बनाए आर्ट लोगों को खुद की ओर आकर्षित करते हैं. आर्ट को लेकर भारती के अंदर एक अलग ही जुनून है. यह जुनून उनके काम में दिखाई देता है. भारती को देख दूसरे स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि टीचर भी मोटिवेट होते हैं. मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा कि यह बच्ची भविष्य में अपने सपनों को पूरा करें, ताकि कोई भी इसको इसके काम के लिए जाने".

लोगों को मिलता है मोटिवेशन: भारती की क्लासमेट तनीषा ने कहा कि, "भारती को देखकर हमें भी प्रेरणा मिलती है. उसके आर्ट में बारीकी से काम किया हुआ होता है. वो काफी बेहतर आर्ट करती है. हमें भारती से मोटिवेशन मिलता है. जो लोग अपनी जिंदगी से निराश हो जाते हैं, उन लोगों को भारती से प्रेरणा लेनी चाहिए.
ऐसे में ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि किसी भी काम को करने के लिए जुनून का होना जरूरी है. अगर आपने मन में ये ठान लिया है कि हमें आगे जाना है तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकती. भले आप शारीरिक तौर पर अक्षम ही क्यों न हो. शायद इसीलिए ये कहा जाता है कि मन के हारे हार मन के जीते जीत... भारती इन बातों पर बिल्कुल सटीक बैठती है. अपने जुनून के साथ आगे बढ़ रही भारती के हौसले को ईटीवी भारत का भी सलाम.
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