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गणेश जोशी आय से अधिक संपत्ति मामला, क्या है कानूनी प्रक्रिया, क्या हैं मौजूदा विकल्प, जानें एक्सपर्ट की राय - Ganesh Joshi Property Controversy

Ganesh Joshi property controversy उत्तराखंड की धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी पर आय से अधिक संपत्ति मामले पर जांच की तलवार लटकी हुई है. कैबिनेट बैठक में मामले पर आगे की कार्रवाई पर फैसला होना है. ऐसे में अगर कैबिनेट से जांच की संस्तुति मिलती है तो आगे कानूनी प्रक्रिया क्या रहेगी? कानून और कोर्ट के क्या प्रावधान हैं? साथ ही क्या गणेश जोशी के पास कोई विकल्प मौजूद हैं? इस पर एक्सपर्ट क्या कहते हैं, जानिए इस रिपोर्ट में...

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 12, 2024, 2:19 PM IST

Updated : Sep 13, 2024, 5:47 PM IST

Ganesh Joshi property controversy
गणेश जोशी आय से अधिक संपत्ति मामला (PHOTO- ETV Bharat)

देहरादूनः आय से अधिक संपत्ति मामले में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. याचिकाकर्ता विकेश नेगी द्वारा विजिलेंस कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति मामले में दायर की गई याचिका पर धामी कैबिनेट से कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और जांच करने की संस्तुति मांगी है.

गणेश जोशी आय से अधिक संपत्ति मामला (VIDEO- ETV Bharat)

ये है मामला: याचिकाकर्ता द्वारा कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के निर्वाचन में जमा किए गए एफिडेविट को आधार बनाते हुए अब तक की विधायक के तौर पर अर्जित की गई आय के सापेक्ष वास्तविक आय पर सवाल खड़े किए गए हैं. जिन पर विजिलेंस ने अपनी प्राथमिक जांच के बाद मंत्रिमंडल से इस संबंध में कार्रवाई की संस्तुति मांगी है.

विपक्ष ने घेरा: वहीं, विपक्ष इस मामले को लगातार भुनाने में लगा हुआ है. विपक्ष के नेता गणेश गोदियाल का कहना है कि यह बेहद गंभीर आरोप हैं. उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि, ठीक इसी जगह अगर कोई विपक्ष का नेता होता तो सरकार उसके खिलाफ ईडी, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों को नेता के पीछे लगा देती. लेकिन अब देखना होगा कि धामी सरकार भ्रष्टाचार का साथ देती है या अपनी साख बचाती है.

गणेश जोशी बेफिक्र: वहीं गणेश जोशी खुद इस मामले पर बेफिक्र नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले 16-17 सालों में उनकी विधायकी के दौरान उनके और उनके पूरे परिवार की संपत्ति को मिलाकर कहा जा रहा है कि उनकी विधायकी से ही संपत्ति अर्जित की गई है. जबकि ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके दामाद की अच्छी इनकम है. उनके बेटे मर्चेंट नेवी में हैं. इस तरह से उनके पूरे परिवार की संपत्ति बढ़ी है. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा उनकी संपत्ति का पूरा ब्यौरा मुख्यमंत्री को सौंप दिया गया है.

इस पूरे मामलों को तकनीकी रूप से देखा जाए तो ईटीवी भारत ने शासन के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से इस संबंध में जानकारी ली और जाना कि जब भी इस तरह का कोई विषय आता है तो उस पर सरकारी मशीनरी कैसे काम करती है? नियम और कानून में क्या प्रावधान है?

इंटरनल जांच: उत्तराखंड गोपन विभाग का लंबे समय तक अनुभव रखने वाले वरिष्ठ अधिकारी ओंकार सिंह ने बताया कि इस तरह के मामले जब भी गोपन विभाग के पास आते हैं, तो सरकार पहले अपने स्तर पर इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट से इंटरनल जांच करवाती है. इस तरह के फैसले बिना किसी ठोस वजह के नहीं लिए जाते हैं. ये विषय भी सरकार के वरिष्ठ पद पर बैठे कैबिनेट मंत्री को लेकर है. जिसको लेकर कैबिनेट अपनी इंटरनल जांच के बाद ही कोई फैसला ले सकती है.

सीएम के निर्देश पर आगे की कार्रवाई: वहीं इस मामले पर ईटीवी भारत ने आईजी इंटेलिजेंस एपी अंशुमन से भी बात की. उन्होंने कहा कि सरकार के सभी लोग कोड ऑफ कंडक्ट से बंधे हुए हैं. इस तरह के मामलों में क्या प्रावधान है के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि सामान्यतः अगर किसी छोटे अधिकारी पर आरोप लगे हों तो इंटेलिजेंस अपने अनुरूप इसकी जांच करती है. लेकिन जब बात लोक सेवा से जुड़े अधिकारियों या फिर जन सेवा जनप्रतिनिधियों से जुड़ी होती है, तो ऐसे में मुख्यमंत्री सर्वोच्च होते हैं. उनके दिशा निर्देशों पर कार्य किया जाता है. हालांकि, जांच में जो चीजें पब्लिक डोमेन में हो, वह सबके लिए एक जैसी ही होती है. खासतौर से जनप्रतिनिधियों के संपत्तियां आदि के ब्यौरे इसमें कोई बात किसी से छिपी हुई नहीं है.

क्या हैं कानूनी पहलू और मंत्री जोशी के पास हैं क्या विकल्प? : इस पूरे मामले पर कानून किस तरह के हैं और कानून क्या कहता है? यह भी हमने जानने की कोशिश की. वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन नारंग बताते हैं कि इस तरह के मामले जब स्पेशल कोर्ट में आते हैं, खासतौर से विजिलेंस कोर्ट में तो वह बेहद गंभीर माने जाते हैं. इस तरह के अपराध व्हाइट कॉलर क्रिमिनलिटी के नाम से जाने जाते हैं. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि ए राजा, जयललिता, पी चिदंबरम जैसे कई बड़े नेताओं को आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसने के बाद अपना पद गंवाना पड़ा है.

क्या गणेश जोशी के पास कोर्ट के माध्यम से कोई विकल्प मौजूद है? इस सवाल के जबाव पर अधिवक्ता नितिन नारंग बताते हैं कि नेचुरल लॉ ऑफ जस्टिस कहता है कि जब भी किसी पर आरोप लगता है तो कोर्ट उसकी सुनवाई के लिए उसे पूरा मौका देती है. लेकिन ऐसे अधिक संपत्ति मामले में मामला थोड़ा सा पेचीदगी भरा हो जाता है. क्योंकि ऐसे आरोप लगने पर कोर्ट यह मानकर चलता है कि आपने गलती की है और अब आपको यह साबित करना है कि आपने गलती नहीं की है.

सीएम धामी के लिए धर्म संकट: पिछले लंबे समय से उत्तराखंड में पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत का इस मामले पर कहना है कि गणेश जोशी आय से अधिक संपत्ति मामले में अब गेंद सरकार के पाले में है. यह समय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए बेहद चुनौती भरा है. मुख्यमंत्री धामी यदि गणेश जोशी के खिलाफ संस्तुति नहीं देते हैं, तो इससे प्रदेश में गलत मैसेज जाएगा. गणेश जोशी भी यदि जांच से बचते हैं, तो उससे कुछ गड़बड़ हुई है का मैसेज जाएगा. इसके उलट यदि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह, धामी गणेश जोशी के खिलाफ फैसला लेते हैं, तो कहीं ना कहीं पार्टी में भी उन्हें जवाब देना होगा.

ये भी पढ़ेंः आय से अधिक संपत्ति मामले पर मंत्री गणेश जोशी का अटपटा बयान, बेटी का उदाहरण देकर बोले- बड़ा फायदा होने वाला है

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ये भी पढ़ेंः मंत्री गणेश जोशी पर मुकदमा दर्ज करने के लिए विजिलेंस को कैबिनेट के फैसले का इंतजार, इसके बाद कोर्ट करेगा निर्णय

देहरादूनः आय से अधिक संपत्ति मामले में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. याचिकाकर्ता विकेश नेगी द्वारा विजिलेंस कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति मामले में दायर की गई याचिका पर धामी कैबिनेट से कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और जांच करने की संस्तुति मांगी है.

गणेश जोशी आय से अधिक संपत्ति मामला (VIDEO- ETV Bharat)

ये है मामला: याचिकाकर्ता द्वारा कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के निर्वाचन में जमा किए गए एफिडेविट को आधार बनाते हुए अब तक की विधायक के तौर पर अर्जित की गई आय के सापेक्ष वास्तविक आय पर सवाल खड़े किए गए हैं. जिन पर विजिलेंस ने अपनी प्राथमिक जांच के बाद मंत्रिमंडल से इस संबंध में कार्रवाई की संस्तुति मांगी है.

विपक्ष ने घेरा: वहीं, विपक्ष इस मामले को लगातार भुनाने में लगा हुआ है. विपक्ष के नेता गणेश गोदियाल का कहना है कि यह बेहद गंभीर आरोप हैं. उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि, ठीक इसी जगह अगर कोई विपक्ष का नेता होता तो सरकार उसके खिलाफ ईडी, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों को नेता के पीछे लगा देती. लेकिन अब देखना होगा कि धामी सरकार भ्रष्टाचार का साथ देती है या अपनी साख बचाती है.

गणेश जोशी बेफिक्र: वहीं गणेश जोशी खुद इस मामले पर बेफिक्र नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले 16-17 सालों में उनकी विधायकी के दौरान उनके और उनके पूरे परिवार की संपत्ति को मिलाकर कहा जा रहा है कि उनकी विधायकी से ही संपत्ति अर्जित की गई है. जबकि ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके दामाद की अच्छी इनकम है. उनके बेटे मर्चेंट नेवी में हैं. इस तरह से उनके पूरे परिवार की संपत्ति बढ़ी है. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा उनकी संपत्ति का पूरा ब्यौरा मुख्यमंत्री को सौंप दिया गया है.

इस पूरे मामलों को तकनीकी रूप से देखा जाए तो ईटीवी भारत ने शासन के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से इस संबंध में जानकारी ली और जाना कि जब भी इस तरह का कोई विषय आता है तो उस पर सरकारी मशीनरी कैसे काम करती है? नियम और कानून में क्या प्रावधान है?

इंटरनल जांच: उत्तराखंड गोपन विभाग का लंबे समय तक अनुभव रखने वाले वरिष्ठ अधिकारी ओंकार सिंह ने बताया कि इस तरह के मामले जब भी गोपन विभाग के पास आते हैं, तो सरकार पहले अपने स्तर पर इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट से इंटरनल जांच करवाती है. इस तरह के फैसले बिना किसी ठोस वजह के नहीं लिए जाते हैं. ये विषय भी सरकार के वरिष्ठ पद पर बैठे कैबिनेट मंत्री को लेकर है. जिसको लेकर कैबिनेट अपनी इंटरनल जांच के बाद ही कोई फैसला ले सकती है.

सीएम के निर्देश पर आगे की कार्रवाई: वहीं इस मामले पर ईटीवी भारत ने आईजी इंटेलिजेंस एपी अंशुमन से भी बात की. उन्होंने कहा कि सरकार के सभी लोग कोड ऑफ कंडक्ट से बंधे हुए हैं. इस तरह के मामलों में क्या प्रावधान है के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि सामान्यतः अगर किसी छोटे अधिकारी पर आरोप लगे हों तो इंटेलिजेंस अपने अनुरूप इसकी जांच करती है. लेकिन जब बात लोक सेवा से जुड़े अधिकारियों या फिर जन सेवा जनप्रतिनिधियों से जुड़ी होती है, तो ऐसे में मुख्यमंत्री सर्वोच्च होते हैं. उनके दिशा निर्देशों पर कार्य किया जाता है. हालांकि, जांच में जो चीजें पब्लिक डोमेन में हो, वह सबके लिए एक जैसी ही होती है. खासतौर से जनप्रतिनिधियों के संपत्तियां आदि के ब्यौरे इसमें कोई बात किसी से छिपी हुई नहीं है.

क्या हैं कानूनी पहलू और मंत्री जोशी के पास हैं क्या विकल्प? : इस पूरे मामले पर कानून किस तरह के हैं और कानून क्या कहता है? यह भी हमने जानने की कोशिश की. वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन नारंग बताते हैं कि इस तरह के मामले जब स्पेशल कोर्ट में आते हैं, खासतौर से विजिलेंस कोर्ट में तो वह बेहद गंभीर माने जाते हैं. इस तरह के अपराध व्हाइट कॉलर क्रिमिनलिटी के नाम से जाने जाते हैं. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि ए राजा, जयललिता, पी चिदंबरम जैसे कई बड़े नेताओं को आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसने के बाद अपना पद गंवाना पड़ा है.

क्या गणेश जोशी के पास कोर्ट के माध्यम से कोई विकल्प मौजूद है? इस सवाल के जबाव पर अधिवक्ता नितिन नारंग बताते हैं कि नेचुरल लॉ ऑफ जस्टिस कहता है कि जब भी किसी पर आरोप लगता है तो कोर्ट उसकी सुनवाई के लिए उसे पूरा मौका देती है. लेकिन ऐसे अधिक संपत्ति मामले में मामला थोड़ा सा पेचीदगी भरा हो जाता है. क्योंकि ऐसे आरोप लगने पर कोर्ट यह मानकर चलता है कि आपने गलती की है और अब आपको यह साबित करना है कि आपने गलती नहीं की है.

सीएम धामी के लिए धर्म संकट: पिछले लंबे समय से उत्तराखंड में पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत का इस मामले पर कहना है कि गणेश जोशी आय से अधिक संपत्ति मामले में अब गेंद सरकार के पाले में है. यह समय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए बेहद चुनौती भरा है. मुख्यमंत्री धामी यदि गणेश जोशी के खिलाफ संस्तुति नहीं देते हैं, तो इससे प्रदेश में गलत मैसेज जाएगा. गणेश जोशी भी यदि जांच से बचते हैं, तो उससे कुछ गड़बड़ हुई है का मैसेज जाएगा. इसके उलट यदि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह, धामी गणेश जोशी के खिलाफ फैसला लेते हैं, तो कहीं ना कहीं पार्टी में भी उन्हें जवाब देना होगा.

ये भी पढ़ेंः आय से अधिक संपत्ति मामले पर मंत्री गणेश जोशी का अटपटा बयान, बेटी का उदाहरण देकर बोले- बड़ा फायदा होने वाला है

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Last Updated : Sep 13, 2024, 5:47 PM IST
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