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पौष्टिकता का खजाना उत्तराखंड का ये मिलेट, डाइट में करें शामिल, बीमारियों से रहेंगे दूर - Kauni Crop Production

Uttarakhand Kauni Crop Production उत्तराखंड में पारंपरिक तरीके से उगाये उत्पादों को काफी पौष्टिक माना जाता है. लेकिन आधुनिकता के इस दौड़ में किसान पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. जिससे कई अनाजों का उत्पादन नाम मात्रा का रह गया है. वहीं पौष्टिकता से भरभूर कौणी की खेती से भी किसानों ने दूरी बनाई है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 16, 2024, 10:12 AM IST

Updated : Sep 16, 2024, 10:42 AM IST

Uttarakhand Kauni Crop Production
पौष्टिकता गुणों से भरपूर है कौणी अनाज (Photo- ETV Bharat)

विकासनगर (उत्तराखंड): उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक कृषि करने वाले किसान कई फसलों का उत्पादन करते आ रहे हैं. बावजूद इसके अब धीरे-धीरे किसानों ने भी आधुनिकता की इस दौड़ में खुद को पिछड़ता हुआ देख खेती किसानी के तरीकों में बदलाव किया है. किसान अधिक आय वाली फसलों पर जोर दे रहे हैं, जिसमें नकदी फसलें शामिल हैं. ऐसे में उत्तराखंड में पारंपरिक तरीके से की जाने वाली फसलों का उत्पादन कम होता जा रहा है. जिसे पौष्टिकता का खजाना माना जाता है और जिनका उत्पादन अब नाम मात्र ही हो रहा है. जबकि सरकार इसको बढ़ावा देने के लिए पुरजोर ढंग से लगी हुई है.

मोटा अनाज कौणी पौष्टिकता से है भरपूर (Video- ETV Bharat)

किसानों ने बताई उपयोगिता: जौनसार के ईच्छला गांव के किसान अतर सिंह ने कहा कि कौणी का उपयोग पहले बहुत ज्यादा होता था. बुजुर्गों लोगों द्वारा बच्चों को खसरा, बुखार में कौणी को खिलाया जाता था. शुगर के लिए भी इसे लाभदायक माना जाता है. अतर सिंह ने कहा कि कौणी,मंडुवा और इन्य मोटे अनाजों को बोना किसानों ने छोड़ दिया है. किसान नकदी की फसल का उत्पादन कर रहे हैं. लेकिन पारंपरिक स्थानीय उत्पादों को भी किसानों ने उत्पादन करना चाहिए. जिससे इसकी उपयोगिता बढ़ सके

इस अनाज में कीड़ा नहीं लगता: इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते है कि कोंदा (रागी), झंगौरा, चैणी और कौणी ऐसा मोटा अनाज है, जो इसका दाना पर कवर होता है. जौ कई सालों तक स्टोर किया जा सकता है. इन अनाजों में कीड़ा नहीं लगता है. इन फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान खेतों में खड़ी फसल को सूवों (तोते) का झुंड नुकसान पहुंचाता है. लेकिन कौणी की फसल उत्पादन करने में किसानों को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती. यह फसल एक बार के लिए सूखे को भी झेल लेती है. हमें नकदी फसलों के साथ ही पारंपरिक फसलों का भी उत्पादन करना आवश्यक है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया पौष्टिक: कृर्षि विज्ञान केंद्र विकासनगर देहरादून के वैज्ञानिक डॉक्टर संजय सिंह ने कहा कि कौणी पौष्टिकता से भरपूर हैं और कम लागत,कम पानी में तैयार हो जाती है. कौणी को किसी भी प्रकार के कीट, रोगों से बहुत दूर रहती है. इनको पोषक तत्व अनाज मोटे अनाज की श्रेणी में रखते हैं. इनकी खेती बहुत ही लंबे समय से पर्वतीय अंचल उत्तराखंड, हिमाचल, और उत्तर भारतीय राज्य में होती है. यह फसल भूमि,वातावरण, बदलते हुए वैश्विक तापमान के लिए बहुत लाभदायक है.

प्रोटीन और ऊर्जा का अच्छा स्रोत: स्वास्थ्य की बात करें तो इनमें बहुत से पौष्टिक तत्व मिलते हैं. कौणी में कैल्शियम, प्रोटीन और ऊर्जा का अच्छा स्रोत है. यह कई बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है. कौणी की फसल को फॉक्सटेल मिलेट भी कहा जाता है.इस अनाज से कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं. भारत सरकार व संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनाजों को वैश्विक मंच प्रदान करते हुए वर्ष 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष' घोषित किया.वहीं प्रदेश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने से किसानों की आय में इजाफा तो होगा ही, साथ ही बढ़ावा देने से किसान पारंपरिक खेती की ओर फिर से आकर्षित होंगे.

पढ़ें-

विकासनगर (उत्तराखंड): उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक कृषि करने वाले किसान कई फसलों का उत्पादन करते आ रहे हैं. बावजूद इसके अब धीरे-धीरे किसानों ने भी आधुनिकता की इस दौड़ में खुद को पिछड़ता हुआ देख खेती किसानी के तरीकों में बदलाव किया है. किसान अधिक आय वाली फसलों पर जोर दे रहे हैं, जिसमें नकदी फसलें शामिल हैं. ऐसे में उत्तराखंड में पारंपरिक तरीके से की जाने वाली फसलों का उत्पादन कम होता जा रहा है. जिसे पौष्टिकता का खजाना माना जाता है और जिनका उत्पादन अब नाम मात्र ही हो रहा है. जबकि सरकार इसको बढ़ावा देने के लिए पुरजोर ढंग से लगी हुई है.

मोटा अनाज कौणी पौष्टिकता से है भरपूर (Video- ETV Bharat)

किसानों ने बताई उपयोगिता: जौनसार के ईच्छला गांव के किसान अतर सिंह ने कहा कि कौणी का उपयोग पहले बहुत ज्यादा होता था. बुजुर्गों लोगों द्वारा बच्चों को खसरा, बुखार में कौणी को खिलाया जाता था. शुगर के लिए भी इसे लाभदायक माना जाता है. अतर सिंह ने कहा कि कौणी,मंडुवा और इन्य मोटे अनाजों को बोना किसानों ने छोड़ दिया है. किसान नकदी की फसल का उत्पादन कर रहे हैं. लेकिन पारंपरिक स्थानीय उत्पादों को भी किसानों ने उत्पादन करना चाहिए. जिससे इसकी उपयोगिता बढ़ सके

इस अनाज में कीड़ा नहीं लगता: इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते है कि कोंदा (रागी), झंगौरा, चैणी और कौणी ऐसा मोटा अनाज है, जो इसका दाना पर कवर होता है. जौ कई सालों तक स्टोर किया जा सकता है. इन अनाजों में कीड़ा नहीं लगता है. इन फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान खेतों में खड़ी फसल को सूवों (तोते) का झुंड नुकसान पहुंचाता है. लेकिन कौणी की फसल उत्पादन करने में किसानों को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती. यह फसल एक बार के लिए सूखे को भी झेल लेती है. हमें नकदी फसलों के साथ ही पारंपरिक फसलों का भी उत्पादन करना आवश्यक है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया पौष्टिक: कृर्षि विज्ञान केंद्र विकासनगर देहरादून के वैज्ञानिक डॉक्टर संजय सिंह ने कहा कि कौणी पौष्टिकता से भरपूर हैं और कम लागत,कम पानी में तैयार हो जाती है. कौणी को किसी भी प्रकार के कीट, रोगों से बहुत दूर रहती है. इनको पोषक तत्व अनाज मोटे अनाज की श्रेणी में रखते हैं. इनकी खेती बहुत ही लंबे समय से पर्वतीय अंचल उत्तराखंड, हिमाचल, और उत्तर भारतीय राज्य में होती है. यह फसल भूमि,वातावरण, बदलते हुए वैश्विक तापमान के लिए बहुत लाभदायक है.

प्रोटीन और ऊर्जा का अच्छा स्रोत: स्वास्थ्य की बात करें तो इनमें बहुत से पौष्टिक तत्व मिलते हैं. कौणी में कैल्शियम, प्रोटीन और ऊर्जा का अच्छा स्रोत है. यह कई बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है. कौणी की फसल को फॉक्सटेल मिलेट भी कहा जाता है.इस अनाज से कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं. भारत सरकार व संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनाजों को वैश्विक मंच प्रदान करते हुए वर्ष 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष' घोषित किया.वहीं प्रदेश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने से किसानों की आय में इजाफा तो होगा ही, साथ ही बढ़ावा देने से किसान पारंपरिक खेती की ओर फिर से आकर्षित होंगे.

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Last Updated : Sep 16, 2024, 10:42 AM IST
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