मुअज्जम मोहम्मद की रिपोर्ट
श्रीनगर: इजराइल के हमलों के बीच ईरान से निकाले गए नौ छात्र गुरुवार को कश्मीर पहुंचे. इन छात्रों ने तेहरान में विस्फोटों और हवाई हमलों के बाद की भयावह स्थिति को बयां किया.
ईरान से अर्मेनियाई सीमा पार कर कश्मीर पहुंचने के लिए चार दिनों की यात्रा करने के बाद जब वे अपने घरों में दाखिल हुए तो परिवार के लोग भावुक दिखे और माता-पिता ने उन्हें गले लगा लिया.
ईरान के पश्चिम अजरबैजान प्रांत में उर्मिया मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी के छात्रों ने कहा कि वे 16 जून को राजधानी येरेवन पहुंचने के लिए अर्मेनियाई सीमा पार कर गए, जहां वे ऑपरेशन सिंधु के तहत भारत के लिए उड़ान पर सवार हुए.
भारत ने युद्ध प्रभावित ईरान से भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन सिंधु लॉन्च किया है. इसके तहत गुरुवार को 110 भारतीय छात्रों को लेकर पहली उड़ान भारत पहुंची. इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी भारतीय दूतावास ने की.
3000 से अधिक कश्मीरी छात्रों को ईरानी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिला है, क्योंकि कश्मीरी माता-पिता अपने बच्चों को ईरान के किफायती कॉलेजों और कश्मीर के साथ सांस्कृतिक समानताओं के कारण वहां भेजना पसंद करते हैं.
श्रीनगर की रहने वाली मेडिकल छात्रा सबा रसूल ने अपने माता-पिता से मिलकर खुशी जाहिर की और कहा कि उन्हें यकीन नहीं था कि वे घर पहुंच पाएंगे या नहीं.
ईरान में जमीनी हालात को "बहुत खराब" बताते हुए चौथे वर्ष की एमबीबीएस छात्रा ने कहा कि उसने अपने माता-पिता से कहा था कि खराब टेलीफोन कनेक्टिविटी के कारण वह उनसे संपर्क नहीं कर पाएगी. उन्होंने कहा, "शुरू में इंटरनेट पर आंशिक बैन था और अब इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. हम कॉल नहीं कर पा रहे है. एटीएम में पैसे खत्म हो रहे हैं और बाजार बंद हैं. स्थिति बहुत खराब है."
उन्होंने कहा कि वे उर्मिया में चिल्ड्रन हॉस्पिटल के बाहर ड्रोन हमलों और उसके बाद तबरेज और मशाद हवाई अड्डों पर हुए नुकसान को देखकर 'स्तब्ध' रह गए.
मैं घायलों की मदद करना चाहती थी...
सबा ने कहा कि शुरुआत में, उनकी घर लौटने की इच्छा नहीं थी और स्थिति को देखने के बाद वहां ईरान के मूल निवासियों की मदद करना चाहते थे. उन्होंने कहा कि ईरानी लोग बहुत मेहमाननवाज हैं और मैं घायलों की मदद के लिए अपना योगदान देना चाहती थी. लेकिन हमें (भारतीय) दूतावास से आदेश मिले और हम वापस लौट आए."
उन्होंने बढ़ते युद्ध के बीच निकासी के लिए विदेश मंत्रालय और भारतीय दूतावास की सराहना की. सबा ने बताया, "111 भारतीय छात्रों को ईरान से अर्मेनियाई सीमा पार करने में आठ घंटे लगे. हम भारतीय दूतावास की बेहतरीन व्यवस्था के साथ एक रात येरेवान में रुके. अगले दिन, हम दोहा में एक घंटे के ठहराव के साथ भारत के लिए 15 घंटे की उड़ान पर सवार हुए."
विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि और लोगों को निकाला जा रहा है. उन्होंने कहा, "हमारे पास विमान तैयार हैं. हम आज एक और विमान भेजेंगे. हम तुर्कमेनिस्तान से कुछ और लोगों को निकाल रहे हैं. हमारे मिशनों ने निकासी के किसी भी अनुरोध के लिए 24 घंटे की लाइनें खोल दी हैं. जैसे-जैसे स्थिति विकसित होगी, हम भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए और विमान भेजेंगे."
दिल्ली में छात्रों ने केंद्र शासित प्रदेश सरकार की खराब परिवहन सुविधाओं के बारे में शिकायत की और कुछ ने श्रीनगर पहुंचने के लिए हवाई जहाज की बुकिंग भी कर ली. सबा उन छात्रों में से एक थीं, जिन्होंने बसों की गुणवत्ता के बारे में शिकायत करते हुए अपने खर्चे पर श्रीनगर जाने के लिए हवाई यात्रा को प्राथमिकता दी.
उन्होंने कहा, "मैंने सुबह 6 बजे दिल्ली से श्रीनगर के लिए हवाई टिकट बुक किया था, क्योंकि मैं परिवार से मिलने के लिए उत्सुक थी. अब तक, किसी को भी मेरे अध्ययन स्थान के बारे में पता नहीं था, लेकिन अब पूरा भारत जानता है कि मैं ईरान में पढ़ती हूं."
इन शिकायतों ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को छात्रों के लिए डीलक्स बसों की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा, "रेजिडेंट कमिश्नर को जेकेआरटीसी के साथ समन्वय स्थापित करने का काम सौंपा गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उचित डीलक्स बसों की व्यवस्था की जाए."
सबा के पिता गुलाम रसूल सोफी ने कहा कि इजराइ हमले के बाद से वह सो नहीं पाए हैं, क्योंकि वह अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे. न्होंने कहा, "मुझे खुशी है कि वह घर आ गई है. यहां परिसर में उसके प्रवेश की खुशी को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं."
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