बेंगलुरु : कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम संचालित स्कूलों और कॉलेजों को विशेष छूट देने का फैसला किया है. इसके अनुसार इनके द्वारा संचालित स्कूलों और कॉलेजों को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्था का टैग बरकार रखने के लिए उसी समुदाय (मुस्लिमों) के छात्रों की न्यूनतम संख्या रखना अनिवार्य होगा. यानी उनके लिए यह जरूरी है कि कम से कम 25 फीसदी या फिर 50 फीसदी (जहां पर जो भी लागू है) छात्र उसी समुदाय से हों.
अन्य अल्पसंख्यक समुदायों (बौद्ध, जैन, पारसी) द्वारा संचालित संस्थानों को यह छूट नहीं दी गई है. यानी उनके द्वारा संचालित स्कूलों और कॉलेजों को धार्मिक अल्पसंख्यक संस्था का टैग बरकरार रखने के लिए उसी समुदाय के छात्रों की न्यूनतम संख्या रखना अनिवार्य नहीं होगा.
अब विवाद इस बात से उठ रहा है कि आखिर मुस्लिमों को ही यह विशेष छूट प्रदान क्यों की गई है. मार्च 2024 तक लागू नीति के तहत मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा पाने के लिए अपने समुदाय के कम से कम 25 प्रतिशत छात्रों को प्रवेश देना अनिवार्य था. उच्च शिक्षा, तकनीकी और कौशल विकास संस्थानों को 50 प्रतिशत की सीमा का सामना करना पड़ता था. अधिकारियों ने पिछले साल छोटे धार्मिक समूहों के लिए कोटा पूरा करने में कठिनाई का हवाला देते हुए इन नियमों में ढील दी थी. फिर भी एक फॉलो-अप ऑर्डर में केवल मुस्लिम संस्थानों को औपचारिक रूप से किसी भी निश्चित कोटा से मुक्त कर दिया गया.
यह बदलाव सिद्धारमैया के राजनीतिक सचिव एमएलसी नसीर अहमद द्वारा दिसंबर 2023 में राज्य सरकार के समक्ष याचिका दायर करने के बाद आया. अहमद ने तर्क दिया था कि मुसलमानों को छोड़कर अल्पसंख्यकों को आवश्यक सीटें भरने में संघर्ष करना पड़ता है. 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए सरकार ने उल्लेख किया कि अल्पसंख्यक कर्नाटक की आबादी का सिर्फ 16 प्रतिशत हिस्सा हैं. इन आंकड़ों के अनुसार 78.94 लाख मुसलमान, 11.43 लाख ईसाई, 4.4 लाख जैन, 95,000 बौद्ध, 28,000 सिख और 1,100 पारसी हैं. कर्नाटक सरकार के आदेश में कहा गया चूंकि इन समुदायों की आबादी कम है, इसलिए धार्मिक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की घोषणा के लिए छात्रों का आवश्यक प्रतिशत प्राप्त करना मुश्किल है.
हालांकि, मुस्लिम संचालित कॉलेजों और स्कूलों ने इस छूट का विरोध किया. नवंबर 2023 की कैबिनेट बैठक में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बी.जेड. जमीर अहमद खान ने तर्क दिया कि मुस्लिम संचालित संस्थानों के पास प्रवेश कोटा मानदंड को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त इस समुदाय के पर्याप्त छात्र हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि मानदंड को हटाने से गैर-मुस्लिम छात्रों की संख्या उनके परिसरों में समुदाय के सदस्यों से अधिक हो सकती है, जिससे उनका अल्पसंख्यक कैरेक्टर कमजोर हो सकता है.
कानूनी कार्यकर्ता एडवोकेट सी.आर. इम्तियाज ने कर्नाटक हाई कोर्ट में इस नीति को चुनौती दी है. उन्होंने कहा, 'केवल मुस्लिम शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक-टैग नियमों से छूट देने की सरकार की नीति गलत है और संविधान का पालन नहीं करती है.'
इम्तियाज ने कहा कि संविधान अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए कोई प्रवेश कोटा निर्धारित नहीं करता है. उन्होंने प्रशासन से छूट वापस लेने का आग्रह करते हुए कहा, 'राज्य सरकार उस स्थिति को सुरक्षित करने के लिए प्रवेश का एक विशिष्ट प्रतिशत कैसे निर्धारित कर सकती है?'
सिद्धारमैया सरकार का कहना है कि मार्च 2024 का फैसला सभी अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर लिया गया था, लेकिन बाद में मुसलमानों को इस राहत से हटाने के लिए इसमें संशोधन किया गया. आलोचकों का कहना है कि इससे दो-स्तरीय व्यवस्था बनती है और यह सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लिए समान व्यवहार के सिद्धांत के खिलाफ है.
जैसा कि हाईकोर्ट इम्तियाज की याचिका पर विचार कर रहा है कर्नाटक भर के अल्पसंख्यक समूह इस पर कड़ी नजर रख रहे हैं. उनके नतीजे राज्य में धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों के संचालन और छात्रों के प्रवेश के तरीके को बदल सकते हैं.