नई दिल्ली: प्रसिद्ध कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी पुस्तक 'हार्ट लैंप' के लिए प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है. बानू की पुस्तक हसीना एंड अदर स्टोरीज (Haseena and Other Stories) का दीपा भस्ती ने 'हार्ट लैंप' नाम से अंग्रेजी में अनुवाद किया था. इस पुस्तक ने अब अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 जीता है.
बानू मुश्ताक की पुस्तक को बुकर पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था. लेकिन दुनिया भर की पांच अन्य पुस्तकों को पछाड़ कर आखिरकार इसे पुरस्कार मिल गया है. 20 मई मंगलवार को लंदन में इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 की घोषणा की गई. पुरस्कार राशि 50,000 पाउंड है. बानू मुश्ताक और दीपा भस्ती पुरस्कार राशि साझा करेंगी.
रिपोर्ट के मुताबिक, बानू मुश्ताक ने अपनी पहली लघु कहानी 1950 के दशक में लिखी थी, जब कर्नाटक के हासन शहर में मिडिल स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं. आज 77 वर्षीय लेखिका, वकील और कार्यकर्ता ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया. वह बुकर प्राइज जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बन गईं.
मुश्ताक की बुकर प्राइज 2025 विजेता पुस्तक हार्ट लैंप - 30 वर्षों के दौरान लिखी गई उनकी 12 लघु कहानियों का संग्रह है, जिसने कर्नाटक में मुस्लिम महिलाओं के रोजमर्रा के जीवन को बुद्धि और संतुलन के साथ बेहतरीन ढंग से दर्शाया है. हार्ट लैंप अंग्रेजी में अनुवादित सर्वश्रेष्ठ कथा साहित्य को सम्मानित करने वाला वार्षिक पुरस्कार जीतने वाला पहला लघु कहानी संग्रह है.
बुकर प्राइज जीतने के बाद मुश्ताक की प्रतिक्रिया
लंदन के टेट मॉडर्न गैलरी में आयोजित समारोह में मुश्ताक ने कहा, "यह क्षण ऐसा लगता है जैसे हजारों जुगनू एक ही आकाश को रोशन कर रहे हों - संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक. मैं इस महान सम्मान को एक व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि अनेक अन्य लोगों के साथ मिलकर उठाई गई आवाज के रूप में स्वीकार करती हूं."

दीपा भस्ती अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज जीतने वाली पहली भारतीय अनुवादक बन गई हैं. उन्होंने कहा, "यह मेरी सुंदर भाषा के लिए कितनी सुंदर जीत है."
हार्ट लैंप तीन साल में बुकर पुरस्कार जीतने वाली दूसरी भारतीय पुस्तक है. इससे पहले गीतांजलि श्री और अनुवादक डेज़ी रॉकवेल ने टॉम्ब ऑफ सैंड (रेत समाधि) के लिए 2022 का बुकर पुरस्कार जीता था.
कन्नड़ साहित्य की प्रमुख आवाज हैं मुश्ताक
लेखिका मुश्ताक प्रगतिशील कन्नड़ साहित्य की प्रमुख आवाज हैं, वह महिला अधिकारों की बड़ी समर्थक हैं और भारत में जाति और वर्ग व्यवस्था के खिलाफ लिखती रही हैं. मुश्ताक को उन महिलाओं के अनुभवों से कहानियां लिखने की प्रेरणा मिली जो मदद मांगने उनके पास आई थीं. ये लघु कहानियां बानू मुश्ताक द्वारा 1990 से 2023 तक 30 से अधिक वर्षों की अवधि में लिखी गई थीं.
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