कोटा: जेईई एडवांस्ड परीक्षा का सोमवार को रिजल्ट आ गया और कोटा के रहने वाले रजित गुप्ता की ऑल इंडिया पहली रैंक आई है. ईटीवी भारत ने रजित से विशेष बातचीत की. इसमें उसने अपनी सफलता के कई राज बताए. रजित ने बताया कि कभी वे मोबाइल सहित अन्य गैजेट चलाने के काफी शौकीन थे. यहां तक कि कभी कभी उनका स्क्रीन टाइम 12 घंटे तक पहुंच जाता था, लेकिन इस पर उन्होंने खुद कंट्रोल कर लिया. दूसरी तरफ उनके पैरेंट्स ने उनकी टाइमिंग और सोने के शेड्यूल को पूरा करवाने के लिए पर्ची फंडा यूज किया था, जो काफी मददगार रहा.
रजित गुप्ता ने कहा कि वे मोबाइल में बहुत ज्यादा व्यस्त रहा करते थे. मोबाइल का उपयोग पहले तो पढ़ाई के उद्देश्य से करता था, क्योंकि ऑनलाइन क्लासेस होती थी, लेकिन बाद में गाने सुन लेता और कार्टून देखता था. जब मैं 10वीं व 11वीं में था, तब कभी-कभी मेरा स्क्रीन टाइम 11 घंटे तक पहुंच जाता था. बाद में मैंने अपनी आदत में काफी सुधार किया. स्क्रीन टाइम को भी काफी कम किया और यूजफुल जगह पर मैंने लगाया. टीवी पर मेरा रुझान ज्यादा नहीं था.
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पढ़ने के लिए कोटा अच्छी जगह : रजित ने कहा कि मुझे प्रिविलेज था कि मैं कोटा से ही हूं. मेरे 11-12 बैचमेट भी सेलेक्ट हुए हैं, लेकिन वे कोटा से नहीं थे. यदि बाहर से यहां आकर परफॉर्म कर पा रहे हैं. इसका मतलब यह है कि कोटा पढ़ने के लिए बहुत अच्छी जगह है. मैं बच्चों को सलाह देना चाहता हूं कि यहां आकर पढ़िए, लेकिन यहां पर रहना अच्छा लगता है तो वेरी गुड और नहीं लगता है तो यहां के सिस्टम से बात कीजिए. कहां पर गड़बड़ हो रही है, उसको भी दुरुस्त करने की जरूरत है.
अब आईआईटी बॉम्बे में होगा कॉम्पीटिशन : रजित गुप्ता ने कॉम्पीटिशन में अपने दोस्तों के पिछड़ जाने के सवाल पर कहा कि जिस दिन कॉम्पीटिशन होता है. उस दिन क्या होगा, पक्का नहीं कहा जा सकता. आपको पहले से सुनिश्चित करना पड़ता है कि मेरी तैयारी अच्छी है. खुद को भी कॉम्पीटिशन के लिए तैयार करना होता है. मेरे बैच के सभी लड़कों ने अच्छा किया है. मेरे कुछ दोस्त टॉप 60-70 में नहीं आए है, लेकिन मैं उन्हें कमतर नहीं बता सकता. हम सब बराबर प्लेटफार्म पर हैं. कोई आगे निकल रहा है तो यह उसकी किस्मत हो सकती है. भगवान का आशीर्वाद हो सकता है. अब आईआईटी मुंबई में कंप्यूटर साइंस ब्रांच बीटेक करने जा रहे हैं, वहां नए दोस्त बनेंगे और नए आइडिया पर काम करेंगे. मेरे बैच से भी करीब 11 से 12 लोग यहां से जाने वाले हैं.

पिता ने भी इसी कोचिंग से की थी पढ़ाई : रजित के पिता दीपक गुप्ता का कहना था कि उन्होंने भी इंजीनियरिंग की कोचिंग इसी संस्थान से की थी और सफलता पाई. राजस्थान प्री इंजीनियरिंग टेस्ट (आरपीईटी) में 1994 में उनके 48वीं रैंक थी. इसके बाद उन्होंने बीटेक किया. इसके बाद बीएसएनएल में उनकी जॉब लगी. खुशी इस बात की है कि 31 साल बाद उनका बेटा भी इस संस्थान में पढ़कर सफलता प्राप्त कर रहा है.
दीपक गुप्ता का कहना था कि उसे स्कूल में कॉम्पीटिशन नहीं मिल रहा था. हमें लगा कि इसकी प्रतिभा को देखते हुए इसे अच्छे मैटर और अच्छे एक्सपर्ट से पढ़ना चाहिए. इसीलिए उसे कोचिंग में दाखिल करवाया. पिता गुप्ता ने बताया कि हमने अपने घर को ऑफिस से नजदीक लिया ताकि लंच के समय बच्चों के पास जाया जा सके. हालांकि, रजित पढ़ाई के प्रति गंभीर था, इसलिए यह बताने की जरूरत नहीं थी कि उसे क्या पढ़ना है. पहले वह एमबीबीएस करना चाहता था, लेकिन दसवीं के बाद उसने मैथमेटिक्स चुनी.
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यह था पर्ची का फंडा : रजित की मां डॉ. श्रुति अग्रवाल का कहना है कि हम जल्दी सो जाते थे, लेकिन रजित रात को काफी देर तक पढ़ता था. उसकी नींद पूरा होना जरूरी था. इसलिए रजित देर रात जितनी बजे तक पढ़ता था, वह उसे स्लिप पर लिखकर सो जाता था, ताकि अलगे दिन उसे उसी हिसाब से जगाया जा सके. इस पर्ची को हमने कम्युनिकेशन का एक जरिया बना लिया था. डॉ. श्रुति का कहना है कि उन्हें भी जॉब पर जाना होता था, ऐसे में रजित 7 से 8 घंटे सो जाए, इसकी कैलकुलेशन करके ही उसे उठाते थे. वह उठने में भी थोड़ा कमजोर है, अलार्म से भी नहीं उठ पाता है.
प्रॉब्लम होने पर मनपसंद खाना : रजित की मां का मानना था कि काफी फूडी है और उनका किसी भी परेशानी का इलाज खाना है. उनको पसंद का खाना खिला दिया जाए, तो उनका मन प्रसन्न हो जाता है. वह फिर से पढ़ाई में जुट जाता है. उसे कोचिंग के पियर ग्रुप के साथ भी कई बार पढ़ाई में ऊपर नीचे होने पर परेशानी आई. आपस में काफी हेल्दी कॉम्पीटिशन रहा है. कई बार होता था कि कम नंबर आने पर रैंक नीचे आ जाती थी. हमने कभी इसे सीरियस नहीं लिया और यह नहीं पूछा कि नंबर क्यों कम आए. यह खुद ही बताता था कि यह गलती हो गई थी. हम उसको यह जरूर कहते थे कि जो गलती हुई है, उससे सबक ले और रिव्यू करके आगे सुधार करें, ताकि वह गलती आगे नहीं दोहराई जा सके.