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'बाबूजी' ने बॉबी को हरा दिया! बड़ी दिलचस्प है जगजीवन राम की वो कहानी - JAGJIVAN RAM BIRTH ANNIVERSARY

वैसे तो कई कहानी आपने बाबू जगजीवन राम के बारे में सुनी होगी. पर हम आपको जो बताने जा रहे हैं वाकई दिलचस्प है. पढ़ें

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 5, 2025 at 5:22 PM IST

Updated : April 5, 2025 at 6:00 PM IST

10 Min Read

आरा/पटना : 6 मार्च 1977, रविवार का दिन था, दिल्ली में हलचल तेज थी. रामलीला मैदान तत्कालीन केन्द्र की इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए तैयार था. मंच से 'बाबूजी' यानी जगजीवन राम की गर्जना होनी थी. तभी ऐलान किया गया कि दूरदर्शन पर फिल्म बॉबी दिखाई जाएगी. सरकार को पता था फिल्म सुपरहिट है. लोग रामलीला मैदान का रुख नहीं करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. लगभग 10 हजार की संख्या में लोग गांधी मैदान पहुंच गए. अगले दिन अखबारों की हेडलाइन थी, '''बाबूजी' ने बॉबी को हरा दिया! बाबूजी की बॉबी पर जीत.''

प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में इस दिलचस्प वाक्या का जिक्र किया है. उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि 1973 में राज कपूर के निर्देशन में बॉबी फिल्म का निर्माण हुआ था. जिसमें ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया अभिनेत्री थी. वह फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी.

1977 के आम चुनाव में जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण ने केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली में 6 मार्च 1977 को रैली करने का ऐलान किया. रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण की रैली को असफल करने के लिए तत्कालीन सरकार ने दिलचस्प चला चली. 6 मार्च जिस दिन दिल्ली में रैली होने वाली थी ठीक उसी दिन और उसी वक्त दूरदर्शन पर बॉबी फिल्म का प्रसारण का ऐलान किया गया. दूरदर्शन पर उस समय सरकार का पूरा नियंत्रण था, इसीलिए रैली किस तरीके से फ्लॉप हो इसको लेकर बॉबी जैसे सुपरहिट फिल्म को प्रसारित करने का फैसला लिया गया.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

रामचंद्र गुहा अपनी किताब में लिखते हैं कि कांग्रेस को यह उम्मीद थी कि यह रैली फ्लॉप साबित होगी. लेकिन दिल्ली के लोगों ने बॉबी फिल्म को नकारते हुए रैली को हिट साबित कर दिया. दिल्ली के रामलीला मैदान में 10 हजार से अधिक लोग जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण को सुनने के लिए पहुंचे. इस तरह कांग्रेस की कद्दावर नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ बाबू जगजीवन राम ने विरोध की राजनीति में बड़ी सफलता हासिल की.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि भारतीय सियासत का यह दुर्भाग्य है कि नई पीढ़ी बाबू जगजीवन नाम के बारे में नहीं जानती है. भीमराव अंबेडकर, मायावती और काशीराम के बारे में लोग जानते हैं, लेकिन जगजीवन बाबू के बारे में नई पीढ़ी को बहुत ज्यादा नहीं पता. वो भारतीय राजनीति में पहले दलित नेता थे जिन्होंने सियासी राजनीति में अपना परचम लहराया.

''जगजीवन राम कभी प्रतिक्रियावादी नहीं रहे. बचपन से अछूत होने का उनको दंश झेलना पड़ा. पढ़ाई के साथ-साथ सियासत में भी उनके साथ यही हुआ लेकिन उन्होंने कभी इसपर प्रतिक्रिया नहीं दी.''- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

कौशलेंद्र प्रियदर्शी बताते हैं कि अंग्रेजों की सेवा में उनके पिता सोभी राम सैनिक थे. लेकिन सेवा की नौकरी छोड़कर उन्होंने सन्यास ले लिया था. जब मैट्रिक की परीक्षा में जगजीवन बाबू प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए तो एक ब्रिटिश महिला ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें इंग्लैंड भेज कर आगे की पढ़ाई करने का ऑफर दिया. लेकिन जगजीवन बाबू की मां इसके लिए तैयार नहीं हुई क्योंकि उन्हें डर था कि बेटा का कहीं धर्म परिवर्तन न हो जाए.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

''जगजीवन बाबू ऐसी शख्सियत थे कि उन्होंने हमेशा अपने धर्म को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम किया. इतना ही नहीं बहुत सारी दलितों को उन्होंने धर्म परिवर्तन से भी उस समय रोका. 50 साल का संसदीय जीवन कोई साधारण बात नहीं है. कांग्रेस की राजनीति करते हुए यदि इंदिरा गांधी के खिलाफ कोई आवाज बुलंद किया तो वह बाबू जगजीवन राम ही थे. उन्हीं के रक्षा मंत्री के काल में पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंटा."- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

आज भारतीय राजनीति के बाबूजी यानी जगजीवन राम की 118वीं जयंती है. जगजीवन राम का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के छोटे से गांव चांदवा में 5 अप्रैल 1908 में हुआ था. उनके पिता का नाम सोभी राम और मां वसंती देवी थी. बाबू जगजीवन राम के गांव चंदवा में अब उनके परिवार के लोग कभी कभार ही आते हैं. लेकिन गांव के लोगों की आत्मा में अभी भी बाबूजी बसे हुए हैं.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

जगजीवन राम के घर के केयरटेकर आशीष कुमार का कहना है कि ''हर वर्ष उनके जन्मदिन के मौके पर गांव के लोग उनके चंदवा स्थित आवास पर पहुंचकर उनका जन्मदिन मनाते हैं और उन्हें याद करते हैं. बाबूजी के प्रति लोगों के मन में अभी भी इतनी श्रद्धा है कि उनके परिवार के कोई सदस्य नहीं रहने बावजूद गांव के लोग इकट्ठा होकर उन्हें नमन करते हैं. घर से कुछ दूर पर ही उनका समाधि स्थल बनाया गया है जहां पर हर वर्ष 6 जुलाई को उनकी पुत्री मीरा कुमार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आती हैं.''

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

बाबूजी की याद में रेलवे हाल्ट : जगजीवन नाम के नाम पर उनके गांव चंदवा के नजदीक रेलवे ने एक हॉल्ट का निर्माण करवाया था. जिस गांव ने एक उपप्रधानमंत्री दिया उस गांव के जगजीवन राम के नाम पर बना हाल्ट अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. स्थानीय रोहन कुमार का कहना है कि इस हाल्ट पर ना तो पीने के लिए समुचित पानी की व्यवस्था है ना ही शौचालय है. गर्मी के दिनों में यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

आरा से शुरू हुई प्रारंभिक शिक्षा : जगजीवन राम की प्रारंभिक शिक्षा आरा के टाउन स्कूल से शुरू हुई. जब जगजीवन राम 6 साल के हुए तो उनके पिताजी का निधन हो गया. 1925 में वे आरा में होने वाले एक छात्र सम्मेलन में शामिल हुए. वहां उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय का स्वागत भाषण देने का मौका मिला. उनका भाषण सुनकर मालवीय जी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें आगे पढ़ाई के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय बुलाया. जाति-धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

जातिवाद के घोर विरोधी : जगजीवन राम बचपन से ही जातिवाद के घोर विरोधी रहे. जगजीवन राम के नाती अंशुल अभिजीत ने ईटीवी भारत से बाबूजी से जुड़ी हुई एक रोचक जानकारी साझा की. अंशुल ने बताया कि जब वह छोटे थे तो उनके नाना जी उनसे अपनी बातें साझा करते थे.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

"नाना जी ने बताया था कि जब वह 12 वर्ष की अवस्था में आरा के टाउन स्कूल के क्लास 6 में पढ़ रहे थे. उस समय देश में दलितों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था. जिस स्कूल में वह पढ़ते थे वहां उच्च वर्ग के बच्चों के लिए अलग घड़े में पानी की व्यवस्था रहती थी और दलितों के लिए अलग घड़े में पानी की व्यवस्था. यह उनको बहुत बुरा लगता था इसीलिए एक दिन उन्होंने स्कूल के दोनों पानी के घड़ों को फोड़ दिया. हालांकि इसके लिए उनको सजा भी मिली थी लेकिन इसके बाद स्कूल में दो घड़ा रखने की प्रथा समाप्त कर दी गई."-अंशुल अभिजीत, जगजीवन राम के नाती

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आजादी की लड़ाई में लिया हिस्सा : जगजीवन राम आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. स्वतंत्रता संग्राम में दलित समाज को शामिल करने का श्रेय जगजीवन राम को जाता है. 1934 में उन्होंने कोलकाता (पहले कलकत्ता) में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की थी. इस संगठन के माध्यम से दलित समाज को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया. जिसका परिणाम हुआ की बड़ी संख्या में दलित वर्ग के लोग आजादी के आंदोलन से जुड़े.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

कांग्रेस से राजनीतिक जीवन की शुरुआत : आजादी के आंदोलन के दिनों में ही जगजीवन राम का कांग्रेस के प्रति आकर्षण बढ़ा. 1931 में वह कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने. जगजीवन राम का संसदीय जीवन 50 वर्षों का रहा, जो अपने आप में एक विश्व कीर्तिमान है. 28 साल की उम्र में 1936 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्‍य बने. गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्‍ट 1935 के तहत 1937 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो जगजीवन राम विधायक चुने गए. जगजीवन राम बिहार के सासाराम सुरक्षित क्षेत्र से 1952 से 1984 तक लगातार आठ बार सांसद रहे.1952 से 1971 तक कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

50 वर्षों का संसदीय जीवन : जगजीवन राम ने आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की. इसके बाद 1980 में भी इसी पार्टी के टिकट पर विजय हासिल की. लोकसभा चुनाव 1984 में जगजीवन बाबू ने अपनी पार्टी इंडियन कांग्रेस "जगजीवन" बना ली और फिर जीत दर्ज की. इसके बाद जगजीवन राम फिर कांग्रेस में शामिल हो गए. जुलाई 1986 में उनका निधन हो गया.

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बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

मंत्री से उपप्रधानमंत्री तक : जगजीवन राम पंडित जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. वर्ष 1946 से लेकर 1963 तक जगजीवन राम जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में श्रम, ट्रांसपोर्ट, रेलवे और संचार मंत्री जैसे कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेवारी संभाले.1966 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री बनाए गए. इसके बाद 1970 से 1974 तक इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री बनाये गए. इसी कार्यकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और युद्ध में भारत की जीत हुई और नए देश बांग्लादेश का गठन हुआ. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में जगजीवन राम रक्षा मंत्री बनाए गए. 1979 में जगजीवन राम को देश का उप प्रधानमंत्री बने.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

अमरीकी दबा में नहीं झुके : जगजीवन राम के नाती अंशुल अभिजीत ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि जब भारत और पाकिस्तान की लड़ाई शुरू होने वाली थी उस समय अमेरिका का रुख पाकिस्तान की तरफ था. अमेरिका के रक्षा मंत्री किसिंजर ने बाबूजी से बात की और उन्हें अमेरिका आने की सलाह दी. लेकिन बाबूजी ने अमेरिका रक्षा मंत्री को दो टूक शब्दों में कहा कि पहले आप पाकिस्तान को हथियार की सप्लाई बंद कीजिए.10 मिनट में किसिंजर मीटिंग छोड़कर वापस चले गए. भारतीय दबाव में अमेरिका को अपना सातवां समुद्री बेड़ा वापस बुलाना पड़ा. इस लड़ाई में पाकिस्तान की हार हुई और नया देश बांग्लादेश का गठन हुआ.

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बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

ये भी पढ़ें :-

...तब जगजीवन राम की साख बचाने के लिए पंडित नेहरू को आना पड़ा था भभुआ

देश की राजनीति से आरा का गहरा संबंध, बाबू जगजीवन राम का पैतृक गांव, 1 रुपये चंदा लेकर लड़ते थे चुनाव

आरा/पटना : 6 मार्च 1977, रविवार का दिन था, दिल्ली में हलचल तेज थी. रामलीला मैदान तत्कालीन केन्द्र की इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए तैयार था. मंच से 'बाबूजी' यानी जगजीवन राम की गर्जना होनी थी. तभी ऐलान किया गया कि दूरदर्शन पर फिल्म बॉबी दिखाई जाएगी. सरकार को पता था फिल्म सुपरहिट है. लोग रामलीला मैदान का रुख नहीं करेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. लगभग 10 हजार की संख्या में लोग गांधी मैदान पहुंच गए. अगले दिन अखबारों की हेडलाइन थी, '''बाबूजी' ने बॉबी को हरा दिया! बाबूजी की बॉबी पर जीत.''

प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में इस दिलचस्प वाक्या का जिक्र किया है. उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि 1973 में राज कपूर के निर्देशन में बॉबी फिल्म का निर्माण हुआ था. जिसमें ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया अभिनेत्री थी. वह फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी.

1977 के आम चुनाव में जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण ने केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली में 6 मार्च 1977 को रैली करने का ऐलान किया. रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण की रैली को असफल करने के लिए तत्कालीन सरकार ने दिलचस्प चला चली. 6 मार्च जिस दिन दिल्ली में रैली होने वाली थी ठीक उसी दिन और उसी वक्त दूरदर्शन पर बॉबी फिल्म का प्रसारण का ऐलान किया गया. दूरदर्शन पर उस समय सरकार का पूरा नियंत्रण था, इसीलिए रैली किस तरीके से फ्लॉप हो इसको लेकर बॉबी जैसे सुपरहिट फिल्म को प्रसारित करने का फैसला लिया गया.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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रामचंद्र गुहा अपनी किताब में लिखते हैं कि कांग्रेस को यह उम्मीद थी कि यह रैली फ्लॉप साबित होगी. लेकिन दिल्ली के लोगों ने बॉबी फिल्म को नकारते हुए रैली को हिट साबित कर दिया. दिल्ली के रामलीला मैदान में 10 हजार से अधिक लोग जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण को सुनने के लिए पहुंचे. इस तरह कांग्रेस की कद्दावर नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ बाबू जगजीवन राम ने विरोध की राजनीति में बड़ी सफलता हासिल की.

वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि भारतीय सियासत का यह दुर्भाग्य है कि नई पीढ़ी बाबू जगजीवन नाम के बारे में नहीं जानती है. भीमराव अंबेडकर, मायावती और काशीराम के बारे में लोग जानते हैं, लेकिन जगजीवन बाबू के बारे में नई पीढ़ी को बहुत ज्यादा नहीं पता. वो भारतीय राजनीति में पहले दलित नेता थे जिन्होंने सियासी राजनीति में अपना परचम लहराया.

''जगजीवन राम कभी प्रतिक्रियावादी नहीं रहे. बचपन से अछूत होने का उनको दंश झेलना पड़ा. पढ़ाई के साथ-साथ सियासत में भी उनके साथ यही हुआ लेकिन उन्होंने कभी इसपर प्रतिक्रिया नहीं दी.''- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

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कौशलेंद्र प्रियदर्शी बताते हैं कि अंग्रेजों की सेवा में उनके पिता सोभी राम सैनिक थे. लेकिन सेवा की नौकरी छोड़कर उन्होंने सन्यास ले लिया था. जब मैट्रिक की परीक्षा में जगजीवन बाबू प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए तो एक ब्रिटिश महिला ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें इंग्लैंड भेज कर आगे की पढ़ाई करने का ऑफर दिया. लेकिन जगजीवन बाबू की मां इसके लिए तैयार नहीं हुई क्योंकि उन्हें डर था कि बेटा का कहीं धर्म परिवर्तन न हो जाए.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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''जगजीवन बाबू ऐसी शख्सियत थे कि उन्होंने हमेशा अपने धर्म को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम किया. इतना ही नहीं बहुत सारी दलितों को उन्होंने धर्म परिवर्तन से भी उस समय रोका. 50 साल का संसदीय जीवन कोई साधारण बात नहीं है. कांग्रेस की राजनीति करते हुए यदि इंदिरा गांधी के खिलाफ कोई आवाज बुलंद किया तो वह बाबू जगजीवन राम ही थे. उन्हीं के रक्षा मंत्री के काल में पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंटा."- कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

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बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर (ETV Bharat)

आज भारतीय राजनीति के बाबूजी यानी जगजीवन राम की 118वीं जयंती है. जगजीवन राम का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के छोटे से गांव चांदवा में 5 अप्रैल 1908 में हुआ था. उनके पिता का नाम सोभी राम और मां वसंती देवी थी. बाबू जगजीवन राम के गांव चंदवा में अब उनके परिवार के लोग कभी कभार ही आते हैं. लेकिन गांव के लोगों की आत्मा में अभी भी बाबूजी बसे हुए हैं.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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जगजीवन राम के घर के केयरटेकर आशीष कुमार का कहना है कि ''हर वर्ष उनके जन्मदिन के मौके पर गांव के लोग उनके चंदवा स्थित आवास पर पहुंचकर उनका जन्मदिन मनाते हैं और उन्हें याद करते हैं. बाबूजी के प्रति लोगों के मन में अभी भी इतनी श्रद्धा है कि उनके परिवार के कोई सदस्य नहीं रहने बावजूद गांव के लोग इकट्ठा होकर उन्हें नमन करते हैं. घर से कुछ दूर पर ही उनका समाधि स्थल बनाया गया है जहां पर हर वर्ष 6 जुलाई को उनकी पुत्री मीरा कुमार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आती हैं.''

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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बाबूजी की याद में रेलवे हाल्ट : जगजीवन नाम के नाम पर उनके गांव चंदवा के नजदीक रेलवे ने एक हॉल्ट का निर्माण करवाया था. जिस गांव ने एक उपप्रधानमंत्री दिया उस गांव के जगजीवन राम के नाम पर बना हाल्ट अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. स्थानीय रोहन कुमार का कहना है कि इस हाल्ट पर ना तो पीने के लिए समुचित पानी की व्यवस्था है ना ही शौचालय है. गर्मी के दिनों में यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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आरा से शुरू हुई प्रारंभिक शिक्षा : जगजीवन राम की प्रारंभिक शिक्षा आरा के टाउन स्कूल से शुरू हुई. जब जगजीवन राम 6 साल के हुए तो उनके पिताजी का निधन हो गया. 1925 में वे आरा में होने वाले एक छात्र सम्मेलन में शामिल हुए. वहां उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय का स्वागत भाषण देने का मौका मिला. उनका भाषण सुनकर मालवीय जी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें आगे पढ़ाई के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय बुलाया. जाति-धर्म के आधार पर होने वाले भेदभाव के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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जातिवाद के घोर विरोधी : जगजीवन राम बचपन से ही जातिवाद के घोर विरोधी रहे. जगजीवन राम के नाती अंशुल अभिजीत ने ईटीवी भारत से बाबूजी से जुड़ी हुई एक रोचक जानकारी साझा की. अंशुल ने बताया कि जब वह छोटे थे तो उनके नाना जी उनसे अपनी बातें साझा करते थे.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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"नाना जी ने बताया था कि जब वह 12 वर्ष की अवस्था में आरा के टाउन स्कूल के क्लास 6 में पढ़ रहे थे. उस समय देश में दलितों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था. जिस स्कूल में वह पढ़ते थे वहां उच्च वर्ग के बच्चों के लिए अलग घड़े में पानी की व्यवस्था रहती थी और दलितों के लिए अलग घड़े में पानी की व्यवस्था. यह उनको बहुत बुरा लगता था इसीलिए एक दिन उन्होंने स्कूल के दोनों पानी के घड़ों को फोड़ दिया. हालांकि इसके लिए उनको सजा भी मिली थी लेकिन इसके बाद स्कूल में दो घड़ा रखने की प्रथा समाप्त कर दी गई."-अंशुल अभिजीत, जगजीवन राम के नाती

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आजादी की लड़ाई में लिया हिस्सा : जगजीवन राम आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. स्वतंत्रता संग्राम में दलित समाज को शामिल करने का श्रेय जगजीवन राम को जाता है. 1934 में उन्होंने कोलकाता (पहले कलकत्ता) में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की थी. इस संगठन के माध्यम से दलित समाज को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया. जिसका परिणाम हुआ की बड़ी संख्या में दलित वर्ग के लोग आजादी के आंदोलन से जुड़े.

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कांग्रेस से राजनीतिक जीवन की शुरुआत : आजादी के आंदोलन के दिनों में ही जगजीवन राम का कांग्रेस के प्रति आकर्षण बढ़ा. 1931 में वह कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने. जगजीवन राम का संसदीय जीवन 50 वर्षों का रहा, जो अपने आप में एक विश्व कीर्तिमान है. 28 साल की उम्र में 1936 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्‍य बने. गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्‍ट 1935 के तहत 1937 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो जगजीवन राम विधायक चुने गए. जगजीवन राम बिहार के सासाराम सुरक्षित क्षेत्र से 1952 से 1984 तक लगातार आठ बार सांसद रहे.1952 से 1971 तक कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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50 वर्षों का संसदीय जीवन : जगजीवन राम ने आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की. इसके बाद 1980 में भी इसी पार्टी के टिकट पर विजय हासिल की. लोकसभा चुनाव 1984 में जगजीवन बाबू ने अपनी पार्टी इंडियन कांग्रेस "जगजीवन" बना ली और फिर जीत दर्ज की. इसके बाद जगजीवन राम फिर कांग्रेस में शामिल हो गए. जुलाई 1986 में उनका निधन हो गया.

बाबू जगजीवन राम की पुरानी तस्वीर
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मंत्री से उपप्रधानमंत्री तक : जगजीवन राम पंडित जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. वर्ष 1946 से लेकर 1963 तक जगजीवन राम जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में श्रम, ट्रांसपोर्ट, रेलवे और संचार मंत्री जैसे कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेवारी संभाले.1966 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री बनाए गए. इसके बाद 1970 से 1974 तक इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री बनाये गए. इसी कार्यकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और युद्ध में भारत की जीत हुई और नए देश बांग्लादेश का गठन हुआ. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में जगजीवन राम रक्षा मंत्री बनाए गए. 1979 में जगजीवन राम को देश का उप प्रधानमंत्री बने.

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अमरीकी दबा में नहीं झुके : जगजीवन राम के नाती अंशुल अभिजीत ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि जब भारत और पाकिस्तान की लड़ाई शुरू होने वाली थी उस समय अमेरिका का रुख पाकिस्तान की तरफ था. अमेरिका के रक्षा मंत्री किसिंजर ने बाबूजी से बात की और उन्हें अमेरिका आने की सलाह दी. लेकिन बाबूजी ने अमेरिका रक्षा मंत्री को दो टूक शब्दों में कहा कि पहले आप पाकिस्तान को हथियार की सप्लाई बंद कीजिए.10 मिनट में किसिंजर मीटिंग छोड़कर वापस चले गए. भारतीय दबाव में अमेरिका को अपना सातवां समुद्री बेड़ा वापस बुलाना पड़ा. इस लड़ाई में पाकिस्तान की हार हुई और नया देश बांग्लादेश का गठन हुआ.

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Last Updated : April 5, 2025 at 6:00 PM IST
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