नई दिल्ली: विश्व मौसम संगठन (WMO) की हालिया रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया 2024' के अनुसार, भारत में 2024 में भीषण गर्मी की लहरों ने 450 से अधिक लोगों की जान ले ली. यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया में बढ़ते तापमान और चरम मौसमी घटनाओं के गंभीर प्रभावों को उजागर करती है. भारत सरकार और राज्यों द्वारा जलवायु परिवर्तन कार्य योजनाओं के माध्यम से इन प्रभावों को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में तापमान वैश्विक औसत की तुलना में लगभग दोगुना तेजी से बढ़ रहा है, जिससे मौसमी घटनाएं अधिक तीव्र हो रही हैं और अर्थव्यवस्थाओं, पारिस्थितिक तंत्रों और समाज पर भारी प्रभाव पड़ रहा है. 2024 में एशिया का औसत तापमान 1991-2020 के औसत से 1.04 डिग्री सेल्सियस अधिक था. 1991-2024 के बीच तापमान वृद्धि की दर 1961-1990 की अवधि की तुलना में लगभग दोगुनी थी.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2024 में समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर था और एशिया के समुद्रों में तापमान वृद्धि की दर वैश्विक औसत से दोगुनी थी. भारतीय और प्रशांत महासागरों में समुद्र का स्तर वैश्विक औसत से अधिक बढ़ा, जिससे तटीय क्षेत्रों के लिए खतरा बढ़ गया.
हिमालय और तियान शान जैसे क्षेत्रों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. 2024 में इन क्षेत्रों के 24 में से 23 ग्लेशियरों में द्रव्यमान की हानि हुई, जिससे ग्लेशियल झीलों के फटने और भूस्खलन जैसे खतरे बढ़ गए. इससे भविष्य में जल सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी अरब सागर और प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 0.24 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ा, जो वैश्विक औसत (0.13 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक) से दोगुना है. अगस्त और सितंबर 2024 में, एशिया के लगभग 1.5 करोड़ वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र में तीव्र समुद्री गर्मी की लहरें देखी गईं, जो पृथ्वी के कुल समुद्री क्षेत्र का लगभग दसवां हिस्सा है.
आर्कटिक महासागर में भी समुद्री बर्फ का बड़े पैमाने पर पिघलना देखा गया. तिब्बती पठार पर केंद्रित हाई-माउंटेन एशिया (HMA) क्षेत्र, जो सबसे अधिक बर्फ का भंडार है, में भी 2023-2024 के दौरान ग्लेशियरों का द्रव्यमान कम हुआ. कम बर्फबारी और गर्मी की लहरों ने इस नुकसान को और बढ़ाया.
WMO की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, "यह रिपोर्ट तापमान, ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसे प्रमुख जलवायु संकेतकों में बदलावों को दर्शाती है, जिनका समाज, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि चरम मौसम पहले ही भारी नुकसान पहुंचा रहा है."
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